MURLI 29-09-2024/MURLI 29-09-2024/BRAHMAKUMARIS
29-09-24 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
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रिवाइज: 03-02-2002 मधुबन |
“लक्ष्य और लक्षण को समान बनाओ, सर्व खजानों में सम्पन्न बनो”
आज सर्व खजानों के मालिक अपने खजानों से सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा सर्व खजानों से सम्पन्न है। जो सम्पन्न होता है उनकी निशानी सदा प्राप्ति स्वरूप, तृप्त आत्मा दिखाई देगी। सदा खुश नज़र आयेगी क्योंकि भरपूर है। तो हर एक अपने से पूछे कि हमारे पास कितने खजाने जमा हैं? यह अविनाशी खजाने अब भी प्राप्त हैं और भविष्य में अनेक जन्म साथ रहेंगे। यह खजाने खत्म नहीं होने वाले हैं। सबसे पहला खजाना है – ज्ञान का खजाना, जिस ज्ञान के खजाने से इस समय भी आप सभी मुक्ति और जीवनमुक्ति का अनुभव कर रहे हो। जीवन में रहते, पुरानी दुनिया में रहते, तमोगुणी वायुमण्डल में रहते ज्ञान के खजाने के आधार से इन सब वायुमण्डल, वायब्रेशन से न्यारे मुक्त हो, कमल पुष्प समान न्यारे मुक्त आत्मायें दु:ख से, चिंताओं से, अशान्ति से मुक्त हो। जीवन में रहते बुराइयों के बन्धनों से मुक्त हो। व्यर्थ संकल्पों के तूफान से मुक्त हो। हैं मुक्त? सभी हाथ हिला रहे हैं।
तो मुक्ति और जीवनमुक्ति इस ज्ञान के खजाने का फल है, प्राप्ति है। चाहे व्यर्थ संकल्प आने की कोशिश करते हैं, निगेटिव भी आते हैं लेकिन ज्ञान अर्थात् समझ है कि व्यर्थ संकल्प वा निगेटिव का काम है आना और आप ज्ञानी तू आत्माओं का काम है इनसे मुक्त, न्यारे और बाप के प्यारे रहना। तो चेक करो – ज्ञान का खजाना प्राप्त है? भरपूर है? सम्पन्न है या कम है? अगर कम है तो उसको जमा करो, खाली नहीं रहना।
ऐसे ही योग का खजाना – जिससे सर्व शक्तियों की प्राप्ति होती है। तो अपने को देखो योग के खजाने द्वारा सर्व शक्तियां जमा है? सर्व? एक भी शक्ति अगर कम होगी तो समय पर धोखा दे देगी। आप सबका टाइटल – मास्टर सर्वशक्तिवान है, शक्तिवान नहीं, सर्वशक्तिवान। तो सर्व शक्तियों का खजाना योगबल द्वारा जमा है? भरपूर है, प्राप्ति स्वरूप है वा कमी है? क्यों? अभी अपनी कमी को भर सकते हो। अभी चांस है। फिर सम्पन्न करने का समय समाप्त हो जायेगा तो कमी रह जायेगी। चेक करो – एक एक शक्ति को सामने लाओ और सारे दिन की दिनचर्या में चेक करो – अगर परसेन्टेज़ भी कम है तो फुल पास नहीं कहेंगे क्योंकि आप सबका लक्ष्य है, किसी भी बच्चे से पूछते हैं कि फुल पास होना है या हाफ पास? तो सभी कहते हैं कि हम तो सूर्यवंशी बनेंगे, चन्द्रवंशी नहीं बनेंगे। चन्द्रवंशी बनेंगे? बापदादा बहुत अच्छा तख्त देंगे, बनेंगे चन्द्रवंशी? इण्डिया वाले सूर्यवंशी बन जाएं, फारेन वाले चन्द्रवंशी बन जाएं, बनेंगे? नहीं बनेंगे? सूर्यवंशी बनना है? बनना ही है। यह तो बापदादा चिटचैट कर रहे हैं। जब सूर्यवंशी बनना ही है, दृढ़ निश्चय है, बाप से और स्वयं से प्रतिज्ञा कर ली है तो अब से किसी भी शक्ति की परसेन्टेज़ कम नहीं हो। अगर कहेंगे सरकमस्टांश अनुसार, समस्याओं अनुसार परसेन्टेज़ कम रह गई तो 14 कला बन जायेंगे इसलिए आजकल बापदादा चारों ओर के सभी बच्चों का पोतामेल, रजिस्टर चेक कर रहा है। बापदादा के पास भी हर एक का रजिस्टर है क्योंकि समय के अनुसार पहले ही बापदादा बच्चों को सुना रहे हैं कि समय की रफ्तार अनुसार अभी कब नहीं कहो, अब। कब हो जायेगा, कर लेंगे… होना तो है ही… यह नहीं सोचो। होना तो है नहीं, अभी-अभी करना ही है। समय की रफ्तार तीव्र हो रही है इसलिए जो लक्ष्य रखा है बाप समान बनने का, फुल पास होने का, 16 कला सम्पन्न बनने का, तो बापदादा भी यही चाहते हैं कि लक्ष्य और प्रैक्टिकल में लक्षण समान हों। जब लक्ष्य और लक्षण दोनों समान होंगे तब ही बाप समान सहज बन जायेंगे। तो चेक करो – हो जायेगा, बन ही जायेंगे… यह अलबेला-पन है। जो करना है, जो बनना है, जो लक्ष्य है, वह अभी से ही करना है, बनना है। कभी शब्द नहीं लगाओ, अभी-अभी।
तो ज्ञान का खजाना, योग का खजाना और भी धारणाओं का खजाना है। जिससे (धारणाओं से) गुणों का खजाना जमा हो जाता है। गुणों में भी जैसे सर्व शक्तियाँ हैं, ऐसे ही सर्वगुण हैं, सिर्फ गुण नहीं हैं, सर्वगुण हैं। तो सर्व गुण हैं या सोचते हो एक दो गुण कम हुआ, तो क्या हुआ, चलेगा? नहीं चलेगा। तो सर्वगुणों का खजाना जमा है? कौन से गुण की कमी है उसको चेक करके भरपूर हो जाओ।
चौथी बात है – सेवा। सेवा द्वारा सभी को अनुभव है, जब भी मन्सा सेवा या वाणी द्वारा वा कर्म द्वारा भी सेवा करते हो तो उसकी प्राप्ति आत्मिक खुशी मिलती है। तो चेक करो सेवा द्वारा खुशी की अनुभूति कहाँ तक की है? अगर सेवा की और खुशी नहीं हुई, तो वह सेवा यथार्थ सेवा नहीं है। सेवा में कोई न कोई कमी है, इसलिए खुशी नहीं मिलती। सेवा का अर्थ है आत्मा अपने को खुशनुम:, खिला हुआ रूहानी गुलाब खुशी के झूले में झूलने वाला अनुभव करेगी। तो चेक करो – सारा दिन सेवा की लेकिन सारे दिन की सेवा की तुलना में इतनी खुशी हुई या सोच-विचार ही चलते रहे, यह नहीं ये, यह नहीं ये…? और आपकी खुशी का प्रभाव एक तो सेवा स्थान पर, दूसरा सेवा साथियों पर, तीसरा जिन आत्माओं की सेवा की उन आत्माओं पर पड़े, वायुमण्डल भी खुश हो जाए। यह है सेवा का खजाना खुशी।
और बात – चार सबजेक्ट तो आ ही गई। और है सम्बन्ध-सम्पर्क, वह भी बहुत जरूरी है, क्यों? कई बच्चे समझते हैं बापदादा से तो सम्बन्ध है ही। परिवार में हुआ नहीं हुआ, क्या बात है, (क्या हर्जा है) बीज से तो है ही। लेकिन आपको विश्व का राज्य करना है ना! तो राज्य में सम्बन्ध में आना ही होगा। इसलिए सम्बन्ध-सम्पर्क में आना ही है लेकिन सम्बन्ध-सम्पर्क में यथार्थ खजाना मिलता है दुआयें। बिना सम्बन्ध-सम्पर्क के आपके पास दुआओं का खजाना जमा नहीं होगा। माँ बाप की दुआयें तो हैं, लेकिन सम्बन्ध-सम्पर्क में भी दुआयें लेनी हैं। अगर दुआयें नहीं मिलती, फीलिंग नहीं आती तो समझो सम्बन्ध-सम्पर्क में कोई कमी है। यथार्थ रीत अगर सम्बन्ध-सम्पर्क है तो दुआओं की अनुभूति होनी चाहिए। और दुआओं की अनुभूति क्या होगी? अनुभवी तो हो ना! अगर सेवा से दुआयें मिलती हैं तो दुआयें मिलने का अनुभव यही होगा जो स्वयं भी सम्बन्ध में आते, कार्य करते डबल लाइट (हल्का) होगा, बोझ नहीं महसूस करेगा और जिनकी सेवा की, सम्बन्ध-सम्पर्क में आये वह भी डबल लाइट फील करेगा। अनुभव करेगा कि यह सम्बन्ध में सदा हल्का अर्थात् इज़ी है, भारी नहीं रहेगा। सम्बन्ध में आऊं, नहीं आऊं… लेकिन दुआयें मिलने के कारण दोनों तरफ नियम प्रमाण, ऐसा इज़ी भी नहीं – जैसे कहावत है, ज्यादा मीठे पर चीटिंयां बहुत आती हैं। तो इतना इज़ी भी नहीं, लेकिन डबल लाइट रहेगा। तो बापदादा कहते हैं – अपने खजाने चेक करो। समय दे रहे हैं। अभी समाप्ति का बोर्ड नहीं लगा है। इसलिए चेक करो और बढ़ते चलो।
बापदादा का बच्चों से प्यार है ना! तो बापदादा समझते हैं कोई भी बच्चा पीछे नहीं रह जाए। हर एक बच्चा आगे से आगे जाए। चलते-चलते देह-अभिमान आ जाता है। स्वमान और देह-अभिमान। देह-अभिमान का कारण है स्वमान में कमी हो जाती है। तो देह-अभिमान को मिटाने का बहुत सहज साधन है – देह-अभिमान आने का एक ही अक्षर है, एक ही शब्द है, वह जानते भी हो। देह-अभिमान का एक शब्द कौन सा है? (मैं) अच्छा तो कितना बारी मैं-मैं कहते हो? सारे दिन में कितने बारी “मैं” बोलते हो, कभी नोट किया है? अच्छा एक दिन नोट करना। बार-बार मैं शब्द तो आता ही है। लेकिन मैं कौन? पहला पाठ है, मैं कौन? जब देह-अभिमान में मैं कहते हो, लेकिन वास्तव में मैं हूँ कौन? आत्मा या देह? आत्मा ने देह धारण की, या देह ने आत्मा धारण की? क्या हुआ? आत्मा ने देह धारण की। ठीक है ना? तो आत्मा ने देह धारण की, तो मैं कौन? आत्मा ना! तो सहज साधन है, जब भी मैं शब्द बोलो, तो यह याद करो कि मैं कौन सी आत्मा हूँ? आत्मा निराकार है, देह साकार है। निराकार आत्मा ने साकार देह धारण की, तो जितना बारी भी मैं मैं शब्द बोलते हो, उतना समय यह याद करो कि मैं निराकार आत्मा साकार में प्रवेश किया है। जब निराकार स्थिति याद होगी तो निरंहकारी स्वत: हो जायेंगे। देह-भान खत्म हो जायेगा। वही पहला पाठ मैं कौन? यह स्मृति में रख करके मैं कौन सी आत्मा हूँ, आत्मा याद आने से निराकारी स्थिति पक्की हो जायेगी। जहाँ निराकारी स्थिति होगी वहाँ निरंहकारी, निर्विकारी हो ही जायेंगे। तो कल से नोट करना – जब मैं शब्द कहते हो तो क्या याद आता है? और जितना बारी मैं शब्द यूज़ करो उतना बारी निराकारी, निरंहकारी, निर्विकारी स्वत: हो जायेंगे। अच्छा।
आज यूथ ग्रुप आया है। यूथ बहुत हैं। बापदादा यूथ ग्रुप को वरदान देते हैं कि सदा आबाद रहना। एक भी खजाना बरबाद नहीं करना, आबाद रहना, आबाद करना। लौकिक गुरू लोग आशीर्वाद देते हैं आयुश्वान भव और बापदादा कहते हैं शरीर की आयु तो जितनी है उतनी रहेगी इसीलिए शरीर की आयु के हिसाब से आयुश्वान भव का वरदान नहीं देते हैं लेकिन इस ब्राह्मण जीवन में सदा आयुश्वान भव। क्यों? ब्राह्मण सो देवता बनेंगे। तो आयुश्वान तो होंगे ना! यूथ की एक विशेषता होती है। आप यूथ अपनी विशेषता को जानते हो? क्या विशेषता होती है, जानते हो? क्या विशेषता है आपमें? (जो चाहे वह कर सकते हैं) अच्छा – कर सकते हो? अच्छी बात है, दुनिया के हिसाब से कहते हैं, यूथ जिद्दी बहुत होते हैं, जो सोचेंगे वह करेंगे, दिखायेंगे। वह लोग उल्टा कहते हैं लेकिन यहाँ ब्राह्मण यूथ जिद्दी नहीं हैं लेकिन अपनी प्रतिज्ञा पर पक्के रहने वाले हैं। हटने वाले नहीं हैं। ऐसे हो यूथ? हाथ उठाना तो बहुत सहज है। बापदादा खुश है हाथ उठाना, यह भी हिम्मत है ना। लेकिन रोज़ अमृतवेले बाप से की हुई प्रतिज्ञा, कि हम इस ब्राह्मण जीवन की प्राप्ति से, सेवा से कभी भी संकल्प में भी हटेंगे नहीं। इस हिम्मत को, प्रतिज्ञा को रोज़ दोहराओ और बार-बार चेक करो कि हिम्मत जो रखी, संकल्प किया वह प्रैक्टिकल में हो रहा है?
गवर्मेन्ट तो कहती है, बस दो चार लाख बन जाएं तो भी ठीक है। बापदादा कहते हैं – यह ब्राह्मण यूथ एक एक लाख के समान हैं। इतने मजबूत हैं। हैं? देखो, ऐसे नहीं घर जाकर फिर लिख दो बाबा माया आ गई, संस्कार आ गया, समस्या आ गई। समस्याओं के समाधान स्वरूप बनो। समस्यायें तो आयेंगी लेकिन अपने से पूछो मैं कौन? समाधान स्वरूप हूँ या समस्या से हार खाने वाला हूँ? आप सबका टाइटल क्या है – विजयी रत्न या हार खाने वाले रत्न? विजयी रत्न हैं। ब्राह्मण जन्म होते ही बापदादा ने हर ब्राह्मण के मस्तक में विजय का तिलक अमर लगा दिया। तो अमरभव के वरदानी हो। अभी यह अपने से वायदा करो, ऐसे तो वायदा कहलायेंगे तो सब कर लेंगे लेकिन अपने मन में अपने से वायदा करो – कभी भी संस्कार के वश नहीं होंगे जो बाप के संस्कार वह मुझ ब्राह्मण आत्मा के संस्कार। जो द्वापर, कलियुग के संस्कार हैं वह मेरे संस्कार नहीं क्योंकि बाप के संस्कार नहीं हैं। यह तमोगुणी संस्कार ब्राह्मणों के संस्कार हैं? नहीं है ना! तो आप कौन हो? ब्राह्मण हो ना!
बापदादा को भी यूथ ग्रुप पर नाज़ है। देखो, दादियों को भी यूथ पर नाज़ है। दादी को प्यार है ना यूथ से। एक्स्ट्रा प्यार है। कुमार है सुकुमार। कुमार नहीं, सुकुमार हैं। एक-एक कुमार विश्व के कुमारों का परिवर्तन कर दिखाने वाले। अच्छा, कुमारों को काम दें? हिम्मत है? करना पड़ेगा। कुमारियां करेंगी?
तो काम दे रहे हैं ध्यान से सुनना। तो जो अगली सीज़न होगी, अगली सीजन में कुमारों का ऐसे ही स्पेशल प्रोग्राम रखेंगे लेकिन… लेकिन भी है। ज्यादा काम नहीं देते हैं एक-एक कुमार 10-10 कुमारों का, छोटा सा हाथ का कंगन तैयार करके लाना। हाथ में कंगन पड़ता है ना। ब्रह्मा बाप को सदैव हाथ में फूलों का कंगन डालते हैं। तो एक-एक कुमार, कच्चे-कच्चे नहीं लाना, पक्के-पक्के लाना। तो मधुबन में तो आयें फिर घर जायें तो बदल जाएं! नहीं। ऐसे पक्के बनाकर लाना जो बापदादा देख-देख कहे वाह कुमार वाह! ऐसे तैयार हैं? करेंगे, ऐसे? थोड़ा सोचो। ऐसे ही हाथ नहीं उठा लो। करना पड़ेगा। बनाना पड़ेगा। डबल फारेनर्स भी करेंगे? डबल फारेनर्स में कुमार हाथ उठाओ। तो आप भी 10 लायेंगे ना? फारेनर्स भी लायेंगे, इण्डिया वाले भी लायेंगे। फिर जो फर्स्टक्लास क्वालिटी लायेंगे उसको इनाम देंगे। इनाम बढ़िया देंगे, घटिया नहीं देंगे। प्यार है ना कुमारों से। अगर गवर्मेन्ट को ज्यादा में ज्यादा कुमार पॉजिटिव कर्म करने वाले मिल जाएं तो गवर्मेन्ट कितना खुश होगी। अगर आप 10-10 कुमार लायेंगे तो सारा हॉल कुमारों से भरेंगे फिर गवर्मेन्ट को बुलायेंगे, देखो यह कुमार। लेकिन लाने पड़ेंगे, बनाने पड़ेंगे। अगर अपनी स्थिति, लक्ष्य और लक्षण को समान रखेंगे तो सेवा में सफलता होगी या नहीं होगी – यह संकल्प भी नहीं उठ सकता। हुई पड़ी है। सिर्फ आपको निमित्त बनना पड़ेगा। यह प्रतिज्ञा सदा रिवाइज करते रहना। कमाल तो करनी ही है। अच्छा।
(मुरली के बीच अचानक बापदादा के सामने दो कुमार स्टेज पर आ गये, जिन्हें हटाया गया)
अच्छा। अभी खेल में खेल देखा। अभी बापदादा कहते हैं साक्षी होकर खेल देखा, इन्जाय किया, अभी एक सेकण्ड में एकदम देह से न्यारे पॉवरफुल आत्मिक रूप में स्थित हो सकते हो? फुलस्टॉप।
(बापदादा ने बहुत पॉवरफुल ड्रिल कराई) अच्छा – यही अभ्यास हर समय बीच-बीच में करना चाहिए। अभी-अभी कार्य में आये, अभी-अभी कार्य से न्यारे, साकारी सो निराकारी स्थिति में स्थित हो जाएं। ऐसे ही यह भी एक अनुभव देखा, कोई समस्या भी आती है तो ऐसे ही एक सेकण्ड में साक्षी दृष्टा बन, समस्या को एक साइडसीन समझ, तूफान को एक तोहफा समझ उसको पार करो। अभ्यास है ना? आगे चलकर तो ऐसे अभ्यास की बहुत आवश्यकता पड़ेगी। फुलस्टॉप। क्वेश्चन मार्क नहीं, यह क्यों हुआ, यह कैसे हुआ? हो गया। फुलस्टॉप और अपने फुल शक्तिशाली स्टेज पर स्थित हो जाओ। समस्या नीचे रह जायेगी, आप ऊंची स्टेज से समस्या रूपी साइडसीन को देखते रहेंगे। अच्छा।
चारों ओर के सर्व खजानों से सम्पन्न आत्माओं को, सदा हर समय प्राप्तियों से भरपूर, मुस्कराते हुए हर्षित रहने वाली आत्माओं को, सदा बाप से की हुई प्रतिज्ञा को जीवन में प्रत्यक्ष करने वाले ज्ञानी तू आत्मायें, योगी तू आत्मायें बच्चों को, सदा लक्ष्य और लक्षण को समान करने वाले बाप समान आत्माओं को, सदा हर समय सर्व खजानों का स्टॉक और स्टॉप लगाने वाले तीव्र पुरुषार्थी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार, दिलाराम का दिल से यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:- | परिस्थितियों को शिक्षक समझ उनसे पाठ पढ़ने वाले अनुभवी मूर्त भव कोई भी परिस्थिति में घबराने के बजाए थोड़े समय के लिए उसे शिक्षक समझो। परिस्थिति आपको विशेष दो शक्तियों के अनुभवी बनाती है एक सहनशक्ति और दूसरा सामना करने की शक्ति। यह दोनों पाठ पढ़ लो तो अनुभवी बन जायेंगे। जब कहते हो हम तो ट्रस्टी हैं, मेरा कुछ नहीं है तो फिर परिस्थितियों से घबराते क्यों हो। ट्रस्टी माना सब कुछ बाप हवाले कर दिया इसलिए जो होगा वह अच्छा ही होगा इस स्मृति से सदा निश्चिंत, समर्थ स्वरूप में रहो। |
स्लोगन:- | जिनका मिजाज़ मीठा है वह भूल से भी किसी को दु:ख नहीं दे सकते। |