MURLI 30-06-2025/BRAHMAKUMARIS

(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

30-06-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – बाप आये हैं तुम्हें ज्ञान से शुद्ध खुशबूदार फूल बनाने, तुम्हें कांटा नहीं बनना है, कांटों को इस सभा में नहीं लाना है”
प्रश्नः- जो बच्चे याद की यात्रा में मेहनत करते हैं उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:- याद की मेहनत करने वाले बच्चे बहुत खुशी में रहेंगे। बुद्धि में रहेगा कि अभी हम वापिस लौट रहे हैं। फिर हमें खुशबूदार फूलों के बगीचे में जाना है। तुम याद की यात्रा से खुशबूदार बनते हो और दूसरों को भी बनाते हो।

ओम् शान्ति। बागवान भी बैठा है, माली भी है, फूल भी हैं। यह नई बात है ना। कोई नया अगर सुने तो कहेंगे यह क्या कहते हैं। बागवान फूल आदि यह क्या है? ऐसी बातें तो कभी शास्त्रों में सुनी नहीं। तुम बच्चे जानते हो, याद भी करते हैं बागवान-खिवैया को। अब यहाँ आये हैं, यहाँ से पार ले जाने। बाप कहते हैं याद की यात्रा पर रहना है। अपने को आपेही देखो हम कितना दूर जा रहे हैं? कितना अपनी सतोप्रधान अवस्था तक पहुँचे हैं? जितना सतोप्रधान अवस्था होती जायेगी तो समझेंगे अभी हम लौट रहे हैं। कहाँ तक हम पहुँचे हैं, सारा मदार याद की यात्रा पर है। खुशी भी चढ़ी रहेगी। जो जितनी-जितनी मेहनत करते हैं उतना उनमें खुशी आयेगी। जैसे इम्तहान के दिन होते हैं तो स्टूडेन्ट समझ जाते हैं ना – हम कहाँ तक पास होंगे। यहाँ भी ऐसे है – हर एक बच्चा अपने को जानते हैं कि कहाँ तक हम खुशबूदार फूल बने हैं? कितना खुशबूदार फिर औरों को बनाते हैं? यह गाया ही जाता है – कांटों का जंगल। वह है फूलों का बगीचा। मुसलमान लोग भी कहते हैं गॉर्डन ऑफ अल्लाह। समझते हैं वहाँ एक बगीचा है, वहाँ जो जाता है उनको खुदा फूल देते हैं। मन में जो कामना होती है वह पूरी करते हैं। बाकी ऐसे तो नहीं, कोई फूल उठाकर देते हैं, जैसा जिसकी बुद्धि में है वह साक्षात्कार हो जाता है। यहाँ साक्षात्कार पर कुछ भी है नहीं। भक्ति मार्ग में तो साक्षात्कार के लिए गला भी काट देते हैं। मीरा को साक्षात्कार हुआ उनका कितना मान है। वह है भक्ति मार्ग। भक्ति को आधाकल्प चलना ही है। ज्ञान है ही नहीं। वेदों आदि का बहुत मान है। कहते हैं वेद तो हमारे प्राण हैं। अभी तुम जानते हो यह वेद-शास्त्र आदि सब हैं भक्ति मार्ग के लिए। भक्ति का कितना बड़ा विस्तार है। बड़ा झाड़ है। ज्ञान है बीज। अभी ज्ञान से तुम कितने शुद्ध होते हो। खुशबूदार बनते हो। यह तुम्हारा बगीचा है। यहाँ कांटा किसी को भी नहीं कहेंगे क्योंकि यहाँ विकार में कोई जाते नहीं। तो कहेंगे इस बगीचे में एक भी कांटा नहीं। कांटा है कलियुग में। अभी है पुरुषोत्तम संगमयुग। इसमें कांटा कहाँ से आया। अगर कोई कांटा बैठा है तो अपने को ही नुकसान पहुँचाते हैं क्योंकि यह इन्द्रप्रस्थ है ना। इसमें ज्ञान परियां बैठी हैं। ज्ञान डान्स करने वाली परियां हैं। मुख्य-मुख्य के नाम पुखराज परी, नीलम परी आदि-आदि पड़े हैं। वही फिर 9 रत्न गाये जाते हैं। परन्तु यह कौन थे, यह किसको भी पता नहीं। बाप सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो। तुम बच्चों की बुद्धि में अब समझ है, 84 का चक्र भी अभी बुद्धि में है। शास्त्रों में तो 84 लाख कह दिया है। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को बाप ने समझाया है तुमने 84 जन्म लिए। अब तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। कितना सहज है। भगवानुवाच बच्चों प्रति, मामेकम् याद करो। अभी तुम बच्चे खुशबूदार फूल बनने के लिए अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। कांटे नहीं बनो। यहाँ सब मीठे-मीठे फूल हैं। कांटा नहीं। हाँ माया के तूफान तो आयेंगे। माया ऐसी कड़ी है जो झट फँसा देगी। फिर पछतायेंगे – हमने यह क्या किया। हमारी तो की कमाई सारी चट हो गई।

यह है बगीचा। बगीचे में अच्छे-अच्छे फूल भी होते हैं। इस बगीचे में भी कोई तो फर्स्टक्लास फूल होते जाते हैं। जैसे मुगल गॉर्डन में अच्छे-अच्छे फूल होते हैं। सब जाते हैं देखने। यहाँ तुम्हारे पास कोई देखने तो आयेंगे नहीं। तुम कांटों को क्या मुँह दिखायेंगे। गायन भी है मूत पलीती…… बाबा को जप साहेब, सुखमनी आदि सब याद थी। अखण्ड पाठ भी करते थे, 8 वर्ष का था तो पटका बांधता था, रहता ही मन्दिर में था। मन्दिर की चार्ज सारी हमारे ऊपर थी। अभी समझते हैं, मूत पलीती कपड़े धोने का अर्थ क्या है। महिमा सारी बाबा की ही है। अभी तुम बच्चों को बाप बैठ समझाते हैं। बच्चों को कहते भी हैं – अच्छे अच्छे फूल लाओ। जो अच्छे-अच्छे फूल लायेंगे वह अच्छा फूल माना जायेगा। सभी कहते हैं हम श्री लक्ष्मी-नारायण बनेंगे तो गोया गुलाब के फूल हो गये। बाप कहते हैं अच्छा तुम बच्चों के मुख में गुलाब। अब पुरुषार्थ कर सदा गुलाब बनो। ढेर के ढेर बच्चे हैं। प्रजा तो बहुत बन रही है। वहाँ है ही राजा रानी और प्रजा। सतयुग में वजीर होता ही नहीं क्योंकि राजा में ही पावर रहती है। वजीर आदि से राय लेने की दरकार नहीं रहती। नहीं तो राय देने वाला बड़ा हो जाए। वहाँ भगवान-भगवती को राय की दरकार नहीं, वजीर आदि तब होते हैं, जब पतित होते हैं। भारत की ही बात है, और कोई खण्ड नहीं, जहाँ राजायें राजाओं को माथा टेकते हो। यहाँ ही दिखाया जाता है ज्ञान मार्ग में पूज्य, अज्ञान मार्ग में पुजारी। वह डबल ताज, वह सिंगल ताज। भारत जैसा पवित्र खण्ड कोई है नहीं। पैराडाइज़, बहिश्त था। तुम उसके लिए ही पढ़ते हो। अभी तुमको फूल बनना है। बागवान आया है। माली भी है। माली नम्बरवार होते हैं। बच्चे भी समझते हैं यह बगीचा है, इसमें कांटे नहीं, कांटे दु:ख देते हैं। बाप तो किसको दु:ख नहीं देते। वह है ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता। कितना मीठा बाबा है।

तुम बच्चों को बाप पर लव है। बाप भी बच्चों को लव करते हैं ना। यह पढ़ाई है। बाप कहते हैं मैं तुमको प्रैक्टिकल में पढ़ाता हूँ, यह भी पढ़ते हैं, पढ़कर फिर पढ़ाओ तो और भी कांटे से फूल बनें। भारत महादानी गाया हुआ है क्योंकि अभी तुम बच्चे महादानी बनते हो। अविनाशी ज्ञान रत्नों का तुम दान करते हो। बाबा ने समझाया है आत्मा ही रूप बसन्त है। बाबा भी रूप बसन्त है। उनमें सारा ज्ञान है। ज्ञान का सागर है परमपिता परमात्मा, वह अथॉरिटी है ना। ज्ञान का सागर एक बाप है इसलिए गाया जाता है सारा समुद्र स्याही बनाओ तो भी खुटने वाला नहीं है। और फिर एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति का भी गायन है। तुम्हारे पास कोई शास्त्र आदि नहीं हैं। वहाँ कोई पण्डित आदि के पास जायेंगे तो समझते हैं यह पण्डित बहुत पढ़ा हुआ अथॉरिटी है। इसने सब वेद शास्त्र कण्ठ किये हैं फिर संस्कार ले जाते हैं तो छोटेपन से फिर वह अध्ययन कर लेते हैं। तुम संस्कार नहीं ले जाते हो। तुम पढ़ाई की रिजल्ट ले जाते हो। तुम्हारी पढ़ाई पूरी हुई फिर रिजल्ट निकलेगी और वह पद पा लेंगे। ज्ञान थोड़ेही ले जायेंगे जो किसको सुनायेंगे। यहाँ तो तुम्हारी पढ़ाई है, जिसकी प्रालब्ध नई दुनिया में मिलनी है। तुम बच्चों को बाप ने समझाया है – माया भी कोई कम शक्तिवान नहीं है। माया को शक्ति है दुर्गति में ले जाने की। परन्तु उनकी महिमा थोड़ेही करेंगे। वह तो दु:ख देने में शक्तिमान है ना। बाप सुख देने में शक्तिमान है इसलिए उनका गायन है। यह भी ड्रामा बना हुआ है। तुम सुख उठाते हो तो दु:ख भी उठाते हो। हार और जीत किसकी है, इनका भी मालूम होना चाहिए ना। बाप भी भारत में आते हैं, जयन्ती भी भारत में मनाई जाती है, यह किसको भी पता नहीं कि शिवबाबा कब आया, क्या आकर किया था। नाम-निशान ही गुम कर दिया है। श्रीकृष्ण बच्चे का नाम दे दिया है। वास्तव में बील्वेड बाप की महिमा अलग, श्रीकृष्ण की महिमा अलग है। वह निराकार, वह साकार है। श्रीकृष्ण की महिमा है सर्वगुण सम्पन्न. . . . . . शिवबाबा की यह महिमा नहीं करेंगे, जिसमें गुण हैं तो अवगुण भी होंगे इसलिए बाप की महिमा ही अलग है। बाप को अकालमूर्त कहते हैं ना। हम भी अकाल मूर्त हैं। आत्मा को काल खा नहीं सकता है। आत्मा अकाल मूर्त का यह तख्त है। हमारा बाबा भी अकाल मूर्त है। काल शरीर को ही खाते हैं। यहाँ अकाल मूर्त को बुलाते हैं। सतयुग में नही बुलायेंगे क्योंकि वहाँ तो सुख ही सुख है इसलिए गाते भी हैं दु:ख में सिमरण सब करें सुख में करे न कोई। अभी रावण राज्य में कितना दु:ख है। बाप तो स्वर्ग का मालिक बनाते हैं फिर वहाँ आधाकल्प कोई पुकारते ही नहीं। जैसे लौकिक बाप बच्चों को श्रृंगार कर वर्सा दे खुद वानप्रस्थ अवस्था लेते हैं। सब कुछ बच्चों को देकर कहेंगे – अभी हम सतसंग में जाते हैं। कुछ खाने के लिए भेजते रहना। यह बाबा तो ऐसे नहीं कहेंगे ना। यह तो कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों हम तुमको विश्व की बादशाही देकर वानप्रस्थ में चले जायेंगे। हम थोड़ेही कहेंगे – खाने के लिए भेजना। लौकिक बच्चों का तो फ़र्ज है बाप की सम्भाल करना। नहीं तो खायेंगे कैसे? यह बाप तो कहते हैं मैं निष्काम सेवाधारी हूँ। मनुष्य कोई निष्काम हो न सकें। भूख मर जायें। हम थोड़ेही भूख मरेंगे, हम तो अभोक्ता हैं। तुम बच्चों को विश्व की बादशाही देकर हम जाए विश्राम करते हैं। फिर हमारा पार्ट बन्द हो जाता। फिर भक्ति मार्ग में शुरू होता है। यह अनादि ड्रामा बना हुआ है, जो राज़ बाप बैठ समझाते हैं। वास्तव में तुम्हारा पार्ट सबसे जास्ती है तो इज़ाफा भी तुमको मिलना चाहिए। मैं आराम करता हूँ, तो तुम फिर ब्रह्माण्ड के भी मालिक, विश्व के भी मालिक बनते हो। तुम्हारा नाम बड़ा होता है। यह ड्रामा का राज़ भी तुम जानते हो। तुम हो ज्ञान के फूल। दुनिया में एक भी नहीं। रात-दिन का फ़र्क है। वह रात में हैं, तुम दिन में जाते हो। आजकल देखो वन उत्सव करते रहते, अब भगवान मनुष्यों का वनोत्सव कर रहे हैं।

बाप देखो कैसी कमाल करते हैं जो मनुष्य को देवता, रंक को राव (राजा) बना देते हैं। अभी बेहद के बाप से तुम सौदा लेने आये हो, कहते हो बाबा हमको रंक से राव बनाओ। यह तो बहुत अच्छा ग्राहक है। उनको तुम कहते भी हो दु:ख हर्ता सुख कर्ता। इन जैसा दान कोई होता ही नहीं। वह है सुख देने वाला। बाप कहते हैं भक्ति मार्ग में भी मैं तुमको देता हूँ। यह ड्रामा में नूँध है साक्षात्कार आदि की। अब बाप बैठ समझाते हैं मैं क्या-क्या करता हूँ। आगे चलकर समझाते रहेंगे। आखरीन अन्त में तुम नम्बरवार कर्मातीत अवस्था को पायेंगे। यह सब ड्रामा में नूँध है फिर भी पुरुषार्थ कराया जाता है, बाप को याद करो। बरोबर यह महाभारत लड़ाई भी है। सब खत्म हो जायेंगे। बाकी भारतवासी ही रहेंगे फिर तुम विश्व पर राज्य करते हो। अभी बाप तुमको पढ़ाने आये हैं। वही ज्ञान सागर है। यह भी खेल है, इसमें मूँझने की बात ही नहीं। माया तूफान में लायेगी। बाप समझाते हैं इनसे डरो नहीं। बहुत गन्दे गन्दे संकल्प आयेंगे। वह भी तब जब बाबा की गोद लेंगे। जब तक गोद ही नहीं ली है तो माया इतना नहीं लड़ेगी। गोद लेने के बाद ही तूफान लगते हैं इसलिए बाप कहते हैं गोद भी सम्भाल कर लेनी चाहिए। कमजोर है तो फिर प्रजा में आ जायेंगे। राजाई पद पाना तो अच्छा है, नहीं तो दास-दासियाँ बनना पड़ेगा। यह सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन हो रही है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) रूप-बसन्त बन अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कर महादानी बनना है। जो पढ़ाई पढ़ते हो वह दूसरों को भी पढ़ानी है।

2) किसी भी बात में मूँझना वा डरना नहीं है, अपनी सम्भाल करनी है। अपने आपसे पूछना है मैं किस प्रकार का फूल हूँ। मेरे में कोई बदबू तो नहीं है?

वरदान:- दृढ़ संकल्प द्वारा कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को समाप्त करने वाले समर्थी स्वरूप भव
दिलशिकस्त होना, किसी भी संस्कार वा परिस्थिति के वशीभूत होना, व्यक्ति वा वैभवों के तरफ आकर्षित होना – इन सब कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को दृढ़ संकल्प की अंगुली देकर सदाकाल के लिए समाप्त करो अर्थात् विजयी बनो। विजय हमारे गले की माला है – सदा इस स्मृति से समर्थी स्वरूप बनो। यही स्नेह का रिटर्न है। जैसे साकार बाप ने स्थिति का स्तम्भ बनकर दिखाया ऐसे फालो फादर कर सर्वगुणों के स्तम्भ बनो।
स्लोगन:- साधन सेवाओं के लिए हैं, आरामपसन्द बनने के लिए नहीं।

अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो

जैसे एटम बम एक स्थान पर छोड़ने से चारों ओर उसके अंश फैल जाते हैं – वह एटम बम है और यह आत्मिक बम है। इसका प्रभाव अनेक आत्माओं को आकर्षित करेगा और सहज ही प्रजा की वृद्धि हो जायेगी इसलिए संगठित रूप में आत्मिक स्वरूप के अभ्यास को बढ़ाओ, स्मृति-स्वरूप बनो तो वायुमण्डल पॉवरफुल हो जायेगा।

मीठे बच्चे – बाप आये हैं तुम्हें ज्ञान से शुद्ध खुशबूदार फूल बनाने, तुम्हें कांटा नहीं बनना है, कांटों को इस सभा में नहीं लाना है 🌸

प्रश्नोत्तर शैली (Q&A Format)


प्रश्न 1:जो बच्चे याद की यात्रा में मेहनत करते हैं उनकी विशेष निशानी क्या होती है?

उत्तर:ऐसे बच्चे बहुत खुशी में रहते हैं। उनकी बुद्धि में स्पष्ट होता है कि अब हमें वापिस घर लौटना है और वहाँ फूलों के बगीचे में जाना है। वे खुद भी खुशबूदार बनते हैं और दूसरों को भी बनाते हैं।


प्रश्न 2:बाप इस समय कौन-सी नई बात बच्चों को समझा रहे हैं, जो शास्त्रों में नहीं लिखी है?

उत्तर:बाप कहते हैं कि यह ज्ञान का बगीचा है, जहाँ वह स्वयं बागवान और माली बनकर बच्चों को फूल बना रहे हैं। यह नई बात है – शास्त्रों में सिर्फ फूल, कांटे, बागवान आदि का प्रतीकात्मक उल्लेख है, परंतु यहाँ उसकी साकार सच्चाई समझाई जा रही है।


प्रश्न 3:संगमयुग में कांटा कौन बनता है और क्यों?

उत्तर:जो देह-अभिमान और विकारों में जाते हैं, वही कांटे बनते हैं। लेकिन इस ज्ञान-सभा में सबको फूल बनना है। अगर कोई कांटा बनता है तो खुद को नुकसान पहुँचाता है, क्योंकि यहाँ ज्ञान परियाँ रहती हैं – साक्षात देवता बनने वाले।


प्रश्न 4:बगीचे में किस प्रकार के फूल होते हैं और कौन से फूल श्रेष्ठ कहे जाते हैं?

उत्तर:बगीचे में सभी फूल होते हैं, लेकिन जो श्रेष्ठ पुरुषार्थ करते हैं, वे फर्स्ट क्लास गुलाब जैसे फूल बनते हैं। ऐसे बच्चों के मुख से सदैव गुलाब जैसी मीठी वाणी निकलती है। वे दूसरों को भी प्रेरणा देने वाले बनते हैं।


प्रश्न 5:‘ज्ञान मार्ग में पूज्य और अज्ञान मार्ग में पुजारी’ – इसका अर्थ क्या है?

उत्तर:ज्ञान मार्ग में हम पवित्र, श्रेष्ठ कर्मों से पूज्य बनते हैं। और जब भक्ति मार्ग आता है, तब वही आत्माएं अपनी ही मूर्ति की पूजा करने लगती हैं – इसलिए अज्ञान मार्ग में वे पुजारी बन जाते हैं।


प्रश्न 6:‘मूत-पलीती कपड़े धोना’ – इस वाक्य का गूढ़ अर्थ क्या है?

उत्तर:यह दर्शाता है कि आत्मा में पापों की गंदगी भर गई है। अब ज्ञान रूपी साबुन और बाप की याद रूपी पानी से आत्मा को शुद्ध करना है। यही है सच्ची सफाई – आत्मिक पवित्रता।


प्रश्न 7:क्यों कहा गया है कि इस सभा में कांटे नहीं आने चाहिए?

उत्तर:क्योंकि यह ज्ञान की सभा है जहाँ आत्माएं फूल बनने आई हैं। कांटे (अर्थात् दोषयुक्त व्यवहार, विकारी दृष्टि, अशुद्ध सोच) अगर यहाँ आए तो वातावरण को भी दूषित कर देंगे और स्वयं को भी नुकसान पहुँचाएँगे।


प्रश्न 8:ज्ञान की पढ़ाई और भक्ति की पढ़ाई में क्या अंतर है?

उत्तर:भक्ति में शास्त्रों का अध्ययन होता है और पुनर्जन्म में संस्कार रूप से चलता है, जबकि ज्ञान में आत्मा प्रत्यक्ष रूप से बाप से पढ़ती है और उसी आधार पर नई दुनिया में पद प्राप्त करती है। यहाँ रिज़ल्ट ले जाया जाता है, न कि ज्ञान।


प्रश्न 9:बाबा को ‘अकालमूर्त’ क्यों कहा जाता है?

उत्तर:क्योंकि बाबा को काल नहीं खा सकता। वह शरीरधारी नहीं है। आत्मा रूप में आकर पढ़ाते हैं और फिर वानप्रस्थ में चले जाते हैं। बाबा स्वयं अभोक्ता और निष्काम सेवाधारी हैं।


प्रश्न 10:बाप का बच्चों से सौदा क्या होता है?

उत्तर:बाप बच्चों को रंक से राव (राजा) बनाते हैं। बच्चे कहते हैं – “बाबा, हमें रंक से राव बना दो।” यह सबसे श्रेष्ठ सौदा है जो बेहद के बाप के साथ होता है।


प्रश्न 11:बाप किसे “महादानी” कहते हैं और क्यों?

उत्तर:जो बच्चे अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करते हैं – उन्हें महादानी कहा जाता है। ऐसे बच्चे बाप के समान रूपबसंत बनकर संसार में सच्ची सेवा करते हैं।


प्रश्न 12:‘यह ज्ञान का फूलों वाला बगीचा’ और ‘दुनिया का कांटों वाला जंगल’ – इन दोनों में क्या अंतर है?

उत्तर:बगीचा वह है जहाँ आत्माएं ज्ञान से शुद्ध, पवित्र और प्रेममय बनती हैं। जंगल वह है जहाँ विकार, अहंकार, दुख और असत्य व्याप्त हैं। एक में सृजन है, दूसरे में विनाश।

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