Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
31-03-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – तुम अभी पुरानी दुनिया के गेट से निकलकर शान्तिधाम और सुखधाम में जा रहे हो, बाप ही मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताते हैं” | |
प्रश्नः- |
वर्तमान समय सबसे अच्छा कर्म कौन सा है? |
उत्तर:- |
सबसे अच्छा कर्म है मन्सा, वाचा, कर्मणा अन्धों की लाठी बनना। तुम बच्चों को विचार सागर मंथन करना चाहिए कि ऐसा कौन-सा शब्द लिखें जो मनुष्यों को घर का (मुक्ति का) और जीवनमुक्ति का रास्ता मिल जाए। मनुष्य सहज समझ लें कि यहाँ शान्ति सुख की दुनिया में जाने का रास्ता बताया जाता है। |
ओम् शान्ति। जादूगर की बत्ती सुना है? अलाउद्दीन की बत्ती भी गाया जाता है। अलाउद्दीन की बत्ती वा जादूगर की बत्ती क्या-क्या दिखाती है! वैकुण्ठ, स्वर्ग, सुखधाम। बत्ती को प्रकाश कहा जाता है। अभी तो अन्धियारा है ना। अब यह जो प्रकाश दिखाने के लिए बच्चे प्रदर्शनी मेले करते हैं, इतना खर्चा करते हैं, माथा मारते हैं। पूछते हैं बाबा इनका नाम क्या रखें? यहाँ बाम्बे को कहते हैं गेट-वे ऑफ इन्डिया। स्टीमर पहले बाम्बे में ही आते हैं। देहली में भी इन्डिया गेट है। अब अपना यह है गेट ऑफ मुक्ति जीवनमुक्ति। दो गेट्स हैं ना। हमेशा गेट दो होते हैं इन और आउट। एक से आना, दूसरे से जाना। यह भी ऐसे है – हम नई दुनिया में आते हैं फिर पुरानी दुनिया से बाहर निकल अपने घर चले जाते हैं। परन्तु वापस आपेही तो हम जा नहीं सकते क्योंकि घर को भूल गये हैं, गाइड चाहिए। वह भी हमको मिला है जो रास्ता बताते हैं। बच्चे जानते हैं बाबा हमको मुक्ति-जीवनमुक्ति, शान्ति और सुख का रास्ता बताते हैं। तो गेट ऑफ शान्तिधाम सुखधाम लिखें। विचार सागर मंथन करना होता है ना। बहुत ख्यालात चलते हैं – मुक्ति-जीवनमुक्ति किसको कहा जाता है, वह भी कोई को पता नहीं है। शान्ति और सुख तो सभी चाहते हैं। शान्ति भी हो और धन दौलत भी हो। वह तो होता ही है सतयुग में। तो नाम लिख दें – गेट ऑफ शान्तिधाम और सुखधाम अथवा गेट ऑफ प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी। यह तो अच्छे अक्षर हैं। तीनों ही यहाँ नहीं हैं। तो इस पर फिर समझाना भी पड़े। नई दुनिया में यह सब था। नई दुनिया की स्थापना करने वाला है पतित-पावन, गाड फादर। तो जरूर हमको इस पुरानी दुनिया से निकल घर जाना पड़े। तो यह गेट हुआ ना – प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी का। बाबा को यह नाम अच्छा लगता है। अब वास्तव में उसकी ओपनिंग तो शिवबाबा करते हैं। परन्तु हम ब्राह्मणों द्वारा कराते हैं। दुनिया में ओपनिंग सेरीमनी तो बहुत होती रहती हैं ना। कोई हॉस्पिटल की करेंगे, कोई युनिवर्सिटी की करेंगे। यह तो एक ही बार होती है और इस समय ही होती है तो इसलिए विचार किया जाता है। बच्चों ने लिखा – ब्रह्मा बाबा आकर उद्घाटन करें। बापदादा दोनों को बुलायें। बाप कहते हैं तुम बाहर कहीं जा नहीं सकते। उद्घाटन करने के लिए जायें, विवेक नहीं कहता, कायदा नहीं। यह तो कोई भी खोल सकते हैं। अखबार में भी पड़ेगा – प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियां। यह नाम भी बड़ा अच्छा है ना। प्रजापिता तो सबका बाप हो गया। वह कोई कम है क्या! और फिर बाप खुद सेरीमनी कराते हैं। करनक-रावनहार है ना। बुद्धि में रहना चाहिए ना हम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। तो कितना पुरूषार्थ कर श्रीमत पर चलना चाहिए। वर्तमान समय मंसा-वाचा-कर्मणा सबसे अच्छा कर्म तो एक ही है – अंधों की लाठी बनना। गाते भी हैं – हे प्रभू अंधों की लाठी। सब अन्धे ही अन्धे हैं। तो बाप आकर लाठी बनते हैं। ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं, जिससे तुम स्वर्ग में नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जाते हो। नम्बरवार तो हैं ही। यह बहुत बड़ी बेहद की हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी है। समझाया जाता है – आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा पतित-पावन है। तुम उस बाप को याद करो तो सुखधाम चले जायेंगे। यह है हेल, इनको हेविन नहीं कहेंगे। हेविन में है ही एक धर्म। भारत स्वर्ग था, दूसरा कोई धर्म नहीं था। यह सिर्फ याद करें, यह भी मन-मनाभव है। हम स्वर्ग में सारे विश्व के मालिक थे – इतना भी याद नहीं पड़ता है! बुद्धि में है हमको बाप मिला है तो वह खुशी रहनी चाहिए। परन्तु माया भी कम नहीं है। ऐसे बाप का बनकर फिर भी इतनी खुशी में नहीं रहते हैं। घुटके खाते रहते हैं। माया घड़ी-घड़ी बहुत घुटके खिलाती है। शिवबाबा की याद भुला देती है। खुद भी कहते हैं याद ठहरती नहीं है। बाप घुटका खिलाते हैं ज्ञान सागर में, माया फिर घुटका खिलाती है विषय सागर में। बड़ा खुशी से घुटका खाने लग पड़ते हैं। बाप कहते हैं शिवबाबा को याद करो। माया फिर भुला देती है। बाप को याद ही नहीं करते। बाप को जानते ही नहीं। दु:ख हर्ता सुख कर्ता तो परमपिता परमात्मा है ना। वह है ही दु:ख हरने वाला। वह फिर गंगा में जाकर डुबकी लगाते हैं। समझते हैं गंगा पतित-पावनी है। सतयुग में गंगा को दु:ख हरनी पाप कटनी नहीं कहेंगे। साधू सन्त आदि सब जाकर नदियों के किनारे बैठते हैं। सागर के किनारे क्यों नहीं बैठते हैं? अभी तुम बच्चे सागर के किनारे बैठे हो। ढेर के ढेर बच्चे सागर पास आते हैं। फिर समझते हैं सागर से निकली हुई यह छोटी-बड़ी नदियाँ भी हैं। ब्रह्म पुत्रा, सिंध, सरस्वती यह भी नाम रखे हुए हैं।
बाप समझाते हैं – बच्चे, तुम्हें मन्सा-वाचा-कर्मणा बहुत-बहुत ध्यान रखना है, कभी भी तुम्हें क्रोध नहीं आना चाहिए। क्रोध पहले मन्सा में आता फिर वाचा और कर्मणा में भी आ जाता है। यह तीन खिड़कियाँ हैं इसलिए बाप समझाते हैं – मीठे बच्चे, वाचा अधिक नहीं चलाओ, शान्त में रहो, वाचा में आये तो कर्मणा में आ जायेगा। गुस्सा पहले मन्सा में आता है फिर वाचा-कर्मणा में आता है। तीनों खिड़कियों से निकलता है। पहले मन्सा में आयेगा। दुनिया वाले तो एक-दो को दु:ख देते रहते हैं, लड़ते-झगड़ते रहते हैं। तुमको तो कोई को भी दु:ख नहीं देना है। ख्याल भी नहीं आना चाहिए। साइलेन्स में रहना बड़ा अच्छा है। तो बाप आकर स्वर्ग का अथवा सुख-शान्ति का गेट बतलाते हैं। बच्चों को ही बतलाते हैं। बच्चों को कहते हैं तुम भी औरों को बतलाओ। प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी होती है स्वर्ग में। वहाँ कैसे जाते हैं, वह समझना है। यह महाभारत लड़ाई भी गेट खोलती है। बाबा का विचार सागर मंथन तो चलता है ना। क्या नाम रखें? सवेरे विचार सागर मंथन करने से मक्खन निकलता है। अच्छी राय निकलती है, तब बाबा कहते हैं सवेरे उठ बाप को याद करो और विचार सागर मंथन करो – क्या नाम रखा जाए? विचार करना चाहिए, कोई का अच्छा विचार भी निकलता है। अब तुम समझते हो पतित को पावन बनाना माना नर्कवासी से स्वर्गवासी बनाना। देवतायें पावन हैं, तब तो उनके आगे माथा टेकते हैं। तुम अभी किसको माथा नहीं टेक सकते हो, कायदा नहीं। बाकी युक्ति से चलना होता है। साधू लोग अपने को ऊंच पवित्र समझते हैं, औरों को अपवित्र नींच समझते हैं। तुम भल जानते हो हम सबसे ऊंच हैं परन्तु कोई हाथ जोड़े तो रेसपान्ड देना पड़े। हरीओम् तत्सत् करते हैं, तो करना पड़े। युक्ति से नहीं चलेंगे तो वह हाथ नहीं आयेंगे। बड़ी युक्तियां चाहिए। जब मौत सिर पर आता है तो सभी भगवान का नाम लेते हैं। आजकल इत़फाक तो बहुत होते रहेंगे। आहिस्ते-आहिस्ते आग फैलती है। आग शुरू होगी विलायत से फिर आहिस्ते-आहिस्ते सारी दुनिया जल जायेगी। पिछाड़ी में तुम बच्चे ही रह जाते हो। तुम्हारी आत्मा पवित्र हो जाती है तो फिर तुमको वहाँ नई दुनिया मिलती है। दुनिया का नया नोट तुम बच्चों को मिलता है। तुम राज्य करते हो। अलाउद्दीन की बत्ती भी मशहूर है ना! नोट ऐसा करने से कारून का खजाना मिल जाता है। है भी बरोबर। तुम जानते हो अल्लाह अवलदीन झट इशारे से साक्षात्कार कराते हैं। सिर्फ तुम शिवबाबा को याद करो तो सब साक्षात्कार हो जायेंगे। नौधा भक्ति से भी साक्षात्कार होता है ना। यहाँ तुमको एम ऑब्जेक्ट का साक्षात्कार तो होता ही है फिर तुम बाबा को, स्वर्ग को बहुत याद करेंगे। घड़ी-घड़ी देखते रहेंगे। जो बाबा की याद में और ज्ञान में मस्त होंगे वही अन्त की सभी सीन सीनरी देख सकेंगे। बड़ी मंजिल है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना, मासी का घर नहीं है। बहुत मेहनत है। याद ही मुख्य है। जैसे बाबा दिव्य दृष्टि दाता है तो स्वयं अपने लिए दिव्य दृष्टि दाता बन जायेंगे। जैसे भक्ति मार्ग में तीव्र वेग से याद करते हैं तो साक्षात्कार होता है। अपनी मेहनत से जैसे दिव्य दृष्टि दाता बन जाते हैं। तुम भी याद की मेहनत में रहेंगे तो बहुत खुशी में रहेंगे और साक्षात्कार होते रहेंगे। यह सारी दुनिया भूल जाए। मनमनाभव हो जाएं। बाकी क्या चाहिए! योगबल से फिर तुम अपना शरीर छोड़ देते हो। भक्ति में भी मेहनत होती है, इसमें भी मेहनत चाहिए। मेहनत का रास्ता बाबा बहुत फर्स्टक्लास बताते रहते हैं। अपने को आत्मा समझने से फिर देह का भान ही नहीं रहेगा। जैसे बाप समान बन जायेंगे। साक्षात्कार करते रहेंगे। खुशी भी बहुत रहेगी। रिजल्ट सारी पिछाड़ी की गाई हुई है। अपने नाम-रूप से भी न्यारा होना है तो फिर दूसरे के नाम-रूप को याद करने से क्या हालत होगी! नॉलेज तो बहुत सहज है। प्राचीन भारत का योग जो है, जादू उसमें है। बाबा ने समझाया है ब्रह्म ज्ञानी भी ऐसे शरीर छोड़ते हैं। हम आत्मा हैं, परमात्मा में लीन होना है। लीन कोई होते नहीं हैं। हैं ब्रह्म ज्ञानी। बाबा ने देखा है बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं। वायुमण्डल बड़ा शान्त रहता है, सन्नाटा हो जाता है। सन्नाटा भी उनको भासेगा जो ज्ञान मार्ग में होंगे, शान्त में रहने वाले होंगे। बाकी कई बच्चे तो अभी बेबियाँ हैं। घड़ी-घड़ी गिर पड़ते हैं, इसमें बहुत-बहुत गुप्त मेहनत है। भक्ति मार्ग की मेहनत प्रत्यक्ष होती है। माला फेरो, कोठी में बैठ भक्ति करो। यहाँ तो चलते-फिरते तुम याद में रहते हो। कोई को पता पड़ न सके कि यह राजाई ले रहे हैं। योग से ही सारा हिसाब-किताब चुक्तू करना है। ज्ञान से थोड़ेही चुक्तू होता है। हिसाब-किताब चुक्तू होगा याद से। कर्मभोग याद से चुक्तू होगा। यह है गुप्त। बाबा सब कुछ गुप्त सिखलाते हैं। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मन्सा-वाचा-कर्मणा कभी भी क्रोध नहीं करना है। इन तीनों खिड़कियों पर बहुत ध्यान रखना है। वाचा अधिक नहीं चलाना है। एक-दो को दु:ख नहीं देना है।
2) ज्ञान और योग में मस्त रह अन्तिम सीन सीनरी देखनी हैं। अपने वा दूसरों के नाम-रूप को भूल मैं आत्मा हूँ, इस स्मृति से देहभान को समाप्त करना है।
वरदान:- |
स्नेह के वाण द्वारा स्नेह में घायल करने वाले स्नेह और प्राप्ति सम्पन्न लवलीन आत्मा भवजैसे लौकिक रीति से कोई किसके स्नेह में लवलीन होता है तो चेहरे से, नयनों से, वाणी से अनुभव होता है कि यह लवलीन है – आशिक है – ऐसे जब स्टेज पर जाते हो तो जितना अपने अन्दर बाप का स्नेह इमर्ज होगा उतना ही स्नेह का वाण औरों को भी स्नेह में घायल कर देगा। भाषण की लिंक सोचना, प्वाइंट दुहराना – यह स्वरूप नहीं हो, स्नेह और प्राप्ति का सम्पन्न स्वरूप, लवलीन स्वरूप हो। अथॉर्टी होकर बोलने से उसका प्रभाव पड़ता है। |
स्लोगन:- |
सम्पूर्णता द्वारा समाप्ति के समय को समीप लाओ। |
अव्यक्त इशारे – सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ
यह तो सब समझने लगे हैं कि यह ‘कोई हैं’, लेकिन यही हैं और यह एक ही हैं, यह हलचल का हल अब चलाओ। अभी और भी हैं, यह भी हैं यहाँ तक पहुंचे हैं लेकिन यह एक ही हैं, अभी ऐसा तीर लगाओ। धरनी तो बन गई और बनती जायेगी। लेकिन जो फाउन्डेशन है, नवीनता है, बीज है, वह है नया ज्ञान। नि:स्वार्थ प्यार है, रूहानी प्यार है यह तो अनुभव करते हैं लेकिन अभी प्यार के साथ-साथ ज्ञान की अथॉरिटी वाली आत्मायें हैं, सत्य ज्ञान की अथॉरिटी हैं, यह प्रत्यक्ष करो तब प्रत्यक्षता हो।
मीठे बच्चे – तुम अभी पुरानी दुनिया के गेट से निकलकर शान्तिधाम और सुखधाम में जा रहे हो, बाप ही मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताते हैं
प्रश्न और उत्तर:
प्रश्न 1: वर्तमान समय सबसे अच्छा कर्म कौन सा है?
उत्तर: सबसे अच्छा कर्म है मन्सा, वाचा, कर्मणा अन्धों की लाठी बनना। बच्चों को विचार सागर मंथन करना चाहिए कि ऐसा कौन-सा शब्द लिखें जिससे मनुष्यों को मुक्ति और जीवनमुक्ति का सहज रास्ता मिल जाए।
प्रश्न 2: “गेट ऑफ मुक्ति-जीवनमुक्ति” का क्या अर्थ है?
उत्तर: यह दर्शाता है कि अभी हम पुरानी दुनिया से निकलकर शान्तिधाम और सुखधाम जाने वाले हैं। बाप हमें गाइड करते हैं ताकि हम अपने घर (मुक्तिधाम) और स्वर्ग (जीवनमुक्तिधाम) का रास्ता पा सकें।
प्रश्न 3: किस प्रकार के नाम विचार सागर मंथन करके तय किए गए?
उत्तर: “गेट ऑफ शान्तिधाम और सुखधाम” या “गेट ऑफ प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी” क्योंकि यह तीनों ही इस समय दुनिया में नहीं हैं, लेकिन सतयुग में थे।
प्रश्न 4: क्यों कहा जाता है कि “बाप ही मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताते हैं”?
उत्तर: क्योंकि परमपिता परमात्मा ही पतित-पावन हैं, जो हमें शुद्ध बनाकर स्वर्ग में ले जाते हैं। वे हमें ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं और सच्चा मार्ग दिखाते हैं।
प्रश्न 5: “ज्ञान का तीसरा नेत्र” क्या है?
उत्तर: यह आत्मिक दृष्टि है, जिससे हमें अपनी सत्य पहचान और परमात्मा का वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है। यह नेत्र खुलने से हम अपनी जीवन यात्रा के लक्ष्य को समझ पाते हैं।
प्रश्न 6: सबसे बड़ी हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी कौन-सी है?
उत्तर: यह ब्रह्मा कुमारियों द्वारा चलाई जाने वाली आध्यात्मिक शिक्षा है, जहाँ आत्माओं को ज्ञान और योग की शक्ति से रोगमुक्त और पवित्र बनाया जाता है।
प्रश्न 7: सबसे श्रेष्ठ सेवा क्या है?
उत्तर: सबसे श्रेष्ठ सेवा है – अपने संकल्पों, वाणी और कर्मों द्वारा अन्धों की लाठी बनना और उन्हें सत्य मार्ग दिखाना।
प्रश्न 8: बाप हमें किस प्रकार याद में रहने की विधि सिखाते हैं?
उत्तर: बाप कहते हैं – “अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो।” यही मुख्य विधि है, जिससे कर्मभोग समाप्त होगा और आत्मा पवित्र बनेगी।
प्रश्न 9: साक्षात्कार कैसे होता है?
उत्तर: जब याद की तीव्रता होती है, तो आत्मा को अनुभव और दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है, जिससे सत्य के दर्शन होते हैं और मन शान्ति एवं आनन्द का अनुभव करता है।
प्रश्न 10: “गुस्सा मन्सा, वाचा, कर्मणा में कैसे प्रवेश करता है?”
उत्तर: पहले गुस्सा संकल्प में आता है (मन्सा), फिर वाणी में प्रकट होता है (वाचा) और अंततः कर्मों में दिखाई देता है (कर्मणा)। इसलिए तीनों खिड़कियों पर नियंत्रण आवश्यक है।
प्रश्न 11: सतयुग का राज्य कौन करता है?
उत्तर: जो इस संगमयुग में बाप की श्रीमत पर चलते हैं, वे स्वर्ग के राजा-रानी बनते हैं।
प्रश्न 12: बाबा किस प्रकार कहते हैं कि “शिवबाबा को याद करो”?
उत्तर: बाबा कहते हैं – “जितना शिवबाबा को याद करोगे, उतना ही साक्षात्कार होगा और आत्मा शक्तिशाली बनेगी।”
प्रश्न 13: आध्यात्मिक यात्रा में मुख्य रुकावट कौन सी है?
उत्तर: मुख्य रुकावट माया है, जो याद से हटाने का प्रयास करती है और देह-अभिमान में लाती है।
प्रश्न 14: संगमयुग में आत्माओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुण कौन-सा है?
उत्तर: सबसे महत्वपूर्ण गुण है – स्नेह और प्राप्ति सम्पन्न लवलीन आत्मा बनना, जिससे हम बाप के प्रेम में मग्न रहते हैं और औरों को भी प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 15: “अलाउद्दीन की बत्ती” का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?
उत्तर: यह ज्ञान और योग का प्रकाश है, जिससे आत्मा को अपना सत्य स्वरूप और स्वर्ग की अनुभूति होती है।
प्रश्न 16: मुक्ति और जीवनमुक्ति प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण अभ्यास कौन-सा है?
उत्तर: मनमनाभव – अर्थात् अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना। यही विधि हमें पुरानी दुनिया से निकालकर नई दुनिया में ले जाती है।
प्रश्न 17: “संपूर्णता द्वारा समाप्ति के समय को समीप लाओ” का क्या अर्थ है?
उत्तर: जब हम सम्पूर्ण पवित्र और गुण सम्पन्न बनेंगे, तब परिवर्तन का समय समीप आ जाएगा और सत्ययुग की स्थापना होगी।
प्रश्न 18: “रूहानी प्यार और सत्य ज्ञान की अथॉरिटी” क्या प्रभाव डालती है?
उत्तर: यह आत्माओं को स्नेह में आकर्षित करती है और उन्हें सत्य मार्ग की ओर ले जाती है, जिससे प्रत्यक्षता होती है।
प्रश्न 19: इस संगमयुग की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर: इस युग में परमात्मा स्वयं आकर हमें पढ़ाते हैं, जिससे हम पवित्र बनकर सतयुग के देवी-देवता बन सकते हैं।
प्रश्न 20: “बाप समान बनने” का अर्थ क्या है?
उत्तर: इसका अर्थ है – आत्मा को दिव्यता और शक्तिशाली स्थिति में स्थित करना, ताकि वह स्वयं भी दिव्य दृष्टि का दाता बन जाए और औरों को साक्षात्कार कराए।
सार:
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बाप आकर हमें मुक्ति और जीवनमुक्ति का रास्ता दिखाते हैं।
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अन्धों की लाठी बनना सबसे श्रेष्ठ कर्म है।
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आत्मा को पवित्र और शक्तिशाली बनाने के लिए याद मुख्य साधन है।
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ज्ञान और योग से ही कर्मभोग समाप्त होगा और सत्ययुग की स्थापना होगी।