P-P 61″क्या परमात्मा को किसी दुखी को देखकर उसके दुःख दर्द की अनुभूति होती है?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
आज का पदम: क्या परमात्मा को किसी दुखी को देखकर उसके दुख दर्द की अनुभूति होती है?
शिव बाबा किसी दुखी को देखकर क्या दुख दर्द की अनुभूति करते हैं? नहीं करते, भाई जी! यह एक गहन प्रश्न है—क्या परमात्मा दुखी आत्मा को देखकर दुख दर्द की अनुभूति करते हैं? यह आध्यात्मिक चिंतन का विषय है। इस अध्याय में हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि परमात्मा सुख-दुख से न्यारे, अ-भोक्ता क्यों हैं, और उनका दृष्टिकोण विश्व नाटक को लेकर कैसा है।
परमात्मा और दुख-दर्द की अनुभूति
परमात्मा अ-भोक्ता होने का अर्थ है कि जिसे स्वयं के दुख-दर्द की अनुभूति होती है, वही दूसरों के दुख-दर्द की अनुभूति कर सकता है। लेकिन परमात्मा सुख और दुख दोनों से न्यारे हैं। उनका स्वभाव और स्वरूप उन्हें इन अनुभूतियों से परे रखते हैं।
परमात्मा को न तो दुख की अनुभूति होती है और न ही कोई सुख की अनुभूति होती है। परमात्मा की स्थिति—परमात्मा सुख और दुख दोनों से परे हैं। हमने मुरली में भी पढ़ा था: “मैं सुख और दुख से परे हूँ और अ-भोक्ता हूँ।”
उनका दृष्टिकोण विश्व नाटक को देखने का है, जो उन्हें परम आनंदमय अनुभव प्रदान करता है।
नाटक का दृष्टिकोण
यदि हम भी देह और देह की दुनिया से ऊपर उठकर इस नाटक को देखें, तो यह नाटक परम आनंदमय प्रतीत होगा। सारा जीवन कठपुतलियों के खेल जैसा अनुभव होगा और किसी भी आत्मा के सुख-दुख की अनुभूति नहीं होगी।
भोक्ता बनने का प्रभाव
यदि परमात्मा किसी के दुख को देखकर दुख की अनुभूति करें, तो वे भी सुख-दुख के भोक्ता बन जाएंगे। यह उनकी स्थिति और भूमिका के विपरीत होगा, क्योंकि वे सृष्टि चक्र के ज्ञाता और दाता हैं। वे सृष्टि चक्र को जानते भी हैं और सृष्टि चक्र का ज्ञान देने वाले भी हैं।
परमात्मा का ज्ञान और दृष्टिकोण
परमात्मा के अंदर इस विश्व नाटक का संपूर्ण ज्ञान अनादि और अविनाशी रूप में समाया हुआ है। वे जानते हैं कि यह नाटक अपने समय पर पुनरावृत्ति होता है—एक्यूरेट रिपीट होता है। उसी ज्ञान के आधार पर वे आत्माओं को मार्गदर्शन देते हैं।
परमात्मा सुख और दुख का खुद अनुभव नहीं करते, परंतु जानते हैं कि सुख-दुख क्या होता है। वे बता सकते हैं कि दुख और सुख क्या होता है। उन्हें इसकी जानकारी है, परंतु उन्होंने कभी इसे भोगा नहीं।
परमात्मा का अनुभव और ज्ञान
यह एक बहुत ही आश्चर्यजनक बात है कि बाबा ने कभी भी संसार को भोगा नहीं, फिर भी वे सब कुछ जानते हैं। जैसे कोई कहे कि गुलाब जामुन मीठा होता है, लेकिन उसने कभी चखा नहीं! यह आश्चर्य की बात है, है न?
परमात्मा के पास सारी जानकारी है, लेकिन वे भोगते नहीं। उन्होंने कभी कोई चीज खाई नहीं, फिर भी वे बता सकते हैं कि गुलाब जामुन मीठा होता है, नमक का स्वाद नमकीन होता है।
बाबा के पास इमेजिनेशन है, परंतु फीलिंग नहीं
इस बात को हमें बहुत ध्यान से समझना है—बाबा कहते हैं, “मेरे पास सारी जानकारी है, लेकिन मैं भोगता नहीं।”
यहाँ पर यह प्रश्न उठ सकता है कि बाबा सच कह रहे हैं या झूठ?
परमात्मा ही केवल सत्य हैं। उन्होंने स्वयं यह ज्ञान हमें दिया है। बाबा ने स्पष्ट किया कि “मैं आकर बच्चों को अपना अंत देता हूँ।”
परमात्मा ने कभी कुछ खाया नहीं
ब्रह्मा बाबा के तन में भी नहीं खाया, गुलजार दादी के तन में भी नहीं खाया। क्योंकि खाना ही उनका पार्ट नहीं है।
बाबा स्पष्ट कहते हैं: “मैं अ-भोक्ता हूँ, मैं बिल्कुल भी नहीं खाता हूँ। मैं भासना भी नहीं लेता हूँ।”
मुरली में भी बाबा के शब्द हैं:
“मैं अपना शरीर नहीं बनाता, मैं किसी भी प्रकार का भोग नहीं करता।”
परमात्मा का कार्य
बाबा ने स्पष्ट किया कि वे ज्ञान का दान करते हैं, परंतु स्वयं कुछ भी ग्रहण नहीं करते। जब वे ब्रह्मा बाबा के तन में आते हैं, तो सुनते हैं, बोलते हैं, ज्ञान देते हैं।
जब भोग लगाया जाता है, तब बाबा कहते हैं:
“मैं तो खाता नहीं हूँ, मैं तो अ-भोक्ता हूँ।”
शिव बाबा और झंडा फहराने का कार्य
बाबा खुद झंडा फहराते हैं, परंतु किसी आत्मा के तन का आधार लेकर। शिव बाबा ज्ञान का सागर हैं, वे आत्माओं को जीवन की सच्चाई और नाटक के रहस्यों का बोध कराते हैं।
ब्रह्मा बाबा—अनुभवों का सागर
ब्रह्मा बाबा अनुभवों का सागर हैं, क्योंकि उन्होंने कल्प भर के सुख-दुख का अनुभव किया है। लेकिन शिव बाबा के पास केवल ज्ञान है, अनुभव नहीं।
निष्कर्ष
परमात्मा सुख-दुख दोनों से न्यारे हैं और अ-भोक्ता हैं।
वे विश्व नाटक को परम आनंदमय दृष्टि से देखते हैं।
वे आत्माओं को ज्ञान और अनुभव प्रदान करते हैं, लेकिन स्वयं भोगते नहीं।
यदि वे दुख की अनुभूति करें, तो वे भी भोक्ता बन जाएंगे, जो उनकी स्थिति के विपरीत होगा।
ब्रह्मा बाबा अपने अनुभवों से ज्ञान देते हैं, जबकि शिव बाबा केवल ज्ञान के आधार पर मार्गदर्शन देते हैं।
शिव बाबा ज्ञान का सागर हैं। वे आत्माओं को सही दिशा में प्रेरित करते हैं। यही उनकी भूमिका है।
आज का पदम: क्या परमात्मा को किसी दुखी को देखकर उसके दुख दर्द की अनुभूति होती है?
❓ प्रश्न 1: क्या शिव बाबा किसी दुखी आत्मा को देखकर दुख महसूस करते हैं?
उत्तर:नहीं। शिव बाबा दुख-दर्द की अनुभूति नहीं करते। वे अ-भोक्ता हैं—यानी वे न सुख का अनुभव करते हैं, न दुख का। वे आत्माओं को दुख-सुख का ज्ञान देते हैं, परंतु स्वयं इन भावनाओं से न्यारे रहते हैं।
❓ प्रश्न 2: जब कोई आत्मा कष्ट में होती है, तो क्या परमात्मा को दुख होता है?
उत्तर:नहीं होता। परमात्मा विश्व नाटक को “परम आनंद” की दृष्टि से देखते हैं। उनके लिए यह एक एक्यूरेट, रिपीटिंग नाटक है, जिसमें हर आत्मा अपनी भूमिका निभा रही है। वे दृष्टा हैं, भोक्ता नहीं।
❓ प्रश्न 3: अगर परमात्मा को दुख की अनुभूति हो जाए, तो क्या होगा?
उत्तर:यदि वे दुख की अनुभूति करें, तो वे भी भोक्ता बन जाएंगे। परंतु उनकी स्थिति है—सुख-दुख से न्यारा, ज्ञान का सागर, और अ-भोक्ता। इसलिए वे अनुभूति नहीं करते, केवल ज्ञान व मार्गदर्शन देते हैं।
❓ प्रश्न 4: शिव बाबा को कैसे पता होता है कि आत्माएं दुखी हैं, अगर वे दुख को महसूस नहीं करते?
उत्तर:परमात्मा ज्ञान के आधार पर जानते हैं कि कौन दुखी है और क्यों है। वे दुख का कारण जानते हैं, परिणाम जानते हैं, लेकिन उन्होंने स्वयं कभी दुख का अनुभव नहीं किया।
❓ प्रश्न 5: अगर बाबा को दुख की अनुभूति नहीं होती, तो वे इतनी गहराई से मार्गदर्शन कैसे देते हैं?
उत्तर:क्योंकि बाबा के पास पूर्ण और शाश्वत ज्ञान है। जैसे कोई डॉक्टर मरीज का दर्द खुद नहीं भोगता, पर उसका इलाज जानता है—वैसे ही परमात्मा भी आत्माओं को सही दिशा में निर्देशित करते हैं।
❓ प्रश्न 6: क्या परमात्मा ने कभी कुछ खाया, महसूस किया या भोगा है?
उत्तर:नहीं। मुरली में बाबा स्पष्ट कहते हैं:“मैं अ-भोक्ता हूँ, मैं कुछ खाता नहीं, मैं भासना भी नहीं लेता।”
वे ब्रह्मा बाबा के तन से ज्ञान देते हैं, पर स्वयं कुछ भी भोगते नहीं।
❓ प्रश्न 7: बाबा को दुख-सुख की जानकारी कैसे है, अगर उन्होंने कभी अनुभव नहीं किया?
उत्तर:उनके पास ज्ञान का सागर है। उदाहरण के तौर पर—गुलाब जामुन मीठा होता है, ये बिना खाए भी कोई जान सकता है। वैसे ही परमात्मा को सभी अनुभवों का ज्ञान है, लेकिन उन्होंने कभी कुछ भोगा नहीं।
❓ प्रश्न 8: ब्रह्मा बाबा और शिव बाबा में क्या अंतर है इस विषय पर?
उत्तर:ब्रह्मा बाबा—अनुभवों का सागर हैं। उन्होंने कल्प भर का सुख-दुख अनुभव किया है।
शिव बाबा—ज्ञान का सागर हैं। वे अनुभव नहीं करते, बल्कि आत्माओं को ज्ञान के बल से मार्गदर्शन देते हैं।
🧭 निष्कर्ष (Summary):
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परमात्मा सुख-दुख से परे, अ-भोक्ता हैं।
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वे केवल ज्ञान के आधार पर आत्माओं को सही दिशा में प्रेरित करते हैं।
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उनका दृष्टिकोण विश्व नाटक की परिपूर्णता से जुड़ा है—जहाँ सब कुछ नियत और आनंदमय है।
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ब्रह्मा बाबा अनुभव के आधार पर साथ देते हैं, जबकि शिव बाबा ज्ञान के माध्यम से।
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