P-P 61″Does God feel the pain of a person when he sees him suffering?

P-P 61″क्या परमात्मा को किसी दुखी को देखकर उसके दुःख दर्द की अनुभूति होती है?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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आज का पदम: क्या परमात्मा को किसी दुखी को देखकर उसके दुख दर्द की अनुभूति होती है?”


1. Introduction:

“ओम शांति! आज हम एक गहन प्रश्न पर विचार करेंगे: क्या परमात्मा को किसी दुखी को देखकर उसके दुख दर्द की अनुभूति होती है? यह प्रश्न एक आध्यात्मिक चिंतन का विषय है। हम जानेंगे कि परमात्मा सुख और दुख से क्यों न्यारे हैं और उनका दृष्टिकोण विश्व नाटक को लेकर क्या है।”


2. परमात्मा और दुख-दर्द की अनुभूति:

“परमात्मा अ-भोक्ता हैं। इसका मतलब है कि जिन्हें दुख और सुख की अनुभूति होती है, वही दूसरों के दुख-दर्द को समझ सकते हैं। लेकिन परमात्मा सुख और दुख दोनों से परे हैं। उनके स्वभाव और स्वरूप में कोई भी दुःख या सुख का अनुभव नहीं होता। यह हमें मुरली में भी बताया गया है – ‘मैं सुख और दुख से परे हूँ और अ-भोक्ता हूँ।'”


3. नाटक का दृष्टिकोण:

“यदि हम भी देह और देह की दुनिया से ऊपर उठकर इस नाटक को देखें, तो यह नाटक परम आनंदमय लगेगा। जैसे किसी दृश्य में कठपुतलियाँ खेल रही हों, वैसे ही सभी आत्माएँ अपना-अपना भाग निभाती हैं। परमात्मा, अपने विशेष दृष्टिकोण से नाटक को देख रहे हैं, और इस पर कोई दर्द या दुख की अनुभूति नहीं होती।”


4. भोक्ता बनने का प्रभाव:

“अगर परमात्मा किसी के दुख को देखकर दुखी हो जाते, तो वे भी सुख-दुख के भोक्ता बन जाते। यह उनकी भूमिका के विपरीत होता, क्योंकि वे सृष्टि चक्र के ज्ञाता और दाता हैं। वे आत्माओं को मार्गदर्शन देते हैं, लेकिन स्वयं सुख-दुख का अनुभव नहीं करते।”


5. परमात्मा का ज्ञान और दृष्टिकोण:

“परमात्मा का ज्ञान अनादि और अविनाशी है। वे जानते हैं कि यह नाटक हर कल्प में पुनरावृत्त होता है, लेकिन वे खुद कभी दुख या सुख का अनुभव नहीं करते। वे आत्माओं को मार्गदर्शन देते हैं, लेकिन उनका ज्ञान ही इस नाटक को समझने के लिए पर्याप्त है।”


6. परमात्मा का अनुभव और ज्ञान:

“यह एक आश्चर्यजनक बात है कि बाबा ने संसार को भोगा नहीं, फिर भी वे सब कुछ जानते हैं। जैसे कोई कहे कि गुलाब जामुन मीठा होता है, लेकिन उसने कभी चखा नहीं। परमात्मा के पास सारी जानकारी है, लेकिन उन्होंने कभी इसे भोगा नहीं।”


7. बाबा के शब्द: “मैं अ-भोक्ता हूँ”:

“बाबा खुद स्पष्ट कहते हैं: ‘मैं अ-भोक्ता हूँ, मैं बिल्कुल भी नहीं खाता हूँ, मैं भासना भी नहीं लेता हूँ।’ उनका कार्य है ज्ञान देना, न कि खुद कुछ ग्रहण करना। यही उनका परम कार्य है।”


8. शिव बाबा और झंडा फहराने का कार्य:

“शिव बाबा ज्ञान का सागर हैं, वे आत्माओं को जीवन की सच्चाई और नाटक के रहस्यों का बोध कराते हैं। वे अपने ज्ञान से आत्माओं को सही दिशा में प्रेरित करते हैं, लेकिन वे कभी भोगते नहीं।”


9. ब्रह्मा बाबा—अनुभवों का सागर:

“ब्रह्मा बाबा अनुभवों का सागर हैं, क्योंकि उन्होंने कल्प भर के सुख-दुख का अनुभव किया है। लेकिन शिव बाबा केवल ज्ञान का आधार हैं। वे खुद भोगते नहीं, बल्कि ज्ञान देते हैं।”


10. निष्कर्ष:

“समाप्त करते हुए, हम यह समझ सकते हैं कि परमात्मा सुख और दुख दोनों से न्यारे हैं। वे अपने ज्ञान और दृष्टिकोण से हमें मार्गदर्शन देते हैं। वे विश्व नाटक को परम आनंदमय दृष्टि से देखते हैं। यदि वे दुख की अनुभूति करते, तो वे भी भोक्ता बन जाते, जो उनकी स्थिति के विपरीत होता। ब्रह्मा बाबा अपने अनुभवों से ज्ञान देते हैं, जबकि शिव बाबा ज्ञान के आधार पर मार्गदर्शन करते हैं। शिव बाबा ज्ञान का सागर हैं और वे आत्माओं को सही दिशा में प्रेरित करते हैं।”

आज का पदम: क्या परमात्मा को किसी दुखी को देखकर उसके दुख दर्द की अनुभूति होती है?

प्रश्न 1: क्या शिव बाबा किसी दुखी आत्मा को देखकर दुख महसूस करते हैं?

उत्तर:नहीं। शिव बाबा दुख-दर्द की अनुभूति नहीं करते। वे अ-भोक्ता हैं—यानी वे न सुख का अनुभव करते हैं, न दुख का। वे आत्माओं को दुख-सुख का ज्ञान देते हैं, परंतु स्वयं इन भावनाओं से न्यारे रहते हैं।

प्रश्न 2: जब कोई आत्मा कष्ट में होती है, तो क्या परमात्मा को दुख होता है?

उत्तर:नहीं होता। परमात्मा विश्व नाटक को “परम आनंद” की दृष्टि से देखते हैं। उनके लिए यह एक एक्यूरेट, रिपीटिंग नाटक है, जिसमें हर आत्मा अपनी भूमिका निभा रही है। वे दृष्टा हैं, भोक्ता नहीं।

प्रश्न 3: अगर परमात्मा को दुख की अनुभूति हो जाए, तो क्या होगा?

उत्तर:यदि वे दुख की अनुभूति करें, तो वे भी भोक्ता बन जाएंगे। परंतु उनकी स्थिति है—सुख-दुख से न्यारा, ज्ञान का सागर, और अ-भोक्ता। इसलिए वे अनुभूति नहीं करते, केवल ज्ञान व मार्गदर्शन देते हैं।

प्रश्न 4: शिव बाबा को कैसे पता होता है कि आत्माएं दुखी हैं, अगर वे दुख को महसूस नहीं करते?

उत्तर:परमात्मा ज्ञान के आधार पर जानते हैं कि कौन दुखी है और क्यों है। वे दुख का कारण जानते हैं, परिणाम जानते हैं, लेकिन उन्होंने स्वयं कभी दुख का अनुभव नहीं किया।

प्रश्न 5: अगर बाबा को दुख की अनुभूति नहीं होती, तो वे इतनी गहराई से मार्गदर्शन कैसे देते हैं?

उत्तर:क्योंकि बाबा के पास पूर्ण और शाश्वत ज्ञान है। जैसे कोई डॉक्टर मरीज का दर्द खुद नहीं भोगता, पर उसका इलाज जानता है—वैसे ही परमात्मा भी आत्माओं को सही दिशा में निर्देशित करते हैं।

प्रश्न 6: क्या परमात्मा ने कभी कुछ खाया, महसूस किया या भोगा है?

उत्तर:नहीं। मुरली में बाबा स्पष्ट कहते हैं:“मैं अ-भोक्ता हूँ, मैं कुछ खाता नहीं, मैं भासना भी नहीं लेता।”

वे ब्रह्मा बाबा के तन से ज्ञान देते हैं, पर स्वयं कुछ भी भोगते नहीं।


प्रश्न 7: बाबा को दुख-सुख की जानकारी कैसे है, अगर उन्होंने कभी अनुभव नहीं किया?

उत्तर:उनके पास ज्ञान का सागर है। उदाहरण के तौर पर—गुलाब जामुन मीठा होता है, ये बिना खाए भी कोई जान सकता है। वैसे ही परमात्मा को सभी अनुभवों का ज्ञान है, लेकिन उन्होंने कभी कुछ भोगा नहीं।


प्रश्न 8: ब्रह्मा बाबा और शिव बाबा में क्या अंतर है इस विषय पर?

उत्तर:ब्रह्मा बाबाअनुभवों का सागर हैं। उन्होंने कल्प भर का सुख-दुख अनुभव किया है।
शिव बाबाज्ञान का सागर हैं। वे अनुभव नहीं करते, बल्कि आत्माओं को ज्ञान के बल से मार्गदर्शन देते हैं।


🧭 निष्कर्ष (Summary):

  • परमात्मा सुख-दुख से परे, अ-भोक्ता हैं।

  • वे केवल ज्ञान के आधार पर आत्माओं को सही दिशा में प्रेरित करते हैं।

  • उनका दृष्टिकोण विश्व नाटक की परिपूर्णता से जुड़ा है—जहाँ सब कुछ नियत और आनंदमय है।

  • ब्रह्मा बाबा अनुभव के आधार पर साथ देते हैं, जबकि शिव बाबा ज्ञान के माध्यम से।

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