P-P 64″क्या परमात्मा किसको अधिक देता है और किसको कम? या समान देता है
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
आज का पदम है क्या परमात्मा किसको अधिक देता है और किसको कम या समान देता है? क्या कहेंगे इस पर आप? परमात्मा देता है, किसको अधिक नहीं देता, किसको कम नहीं देता, समान देता है। समान देते हैं तो फिर फर्क कैसे आ जाता है सारी दुनिया में? लेने में नंबर वार लेने में नंबर वार है। बाबा कहता है, “मैंने सबको ढूंढा।” बाबा कहता, “मैंने सबको ढूंढा।” हमें पहले क्यों ढूंढा? उनको लेट क्यों ढूंढा?
अच्छा, जिन्होंने भक्ति ज्यादा की है, वो पहले चुने गए। जिन्होंने भक्ति कम की है, वो बाद में चुने गए। जो पहले बिछड़ा है, वो पहले आकर मिलेगा।
अच्छा, ये भी है कि जो पहले बिछड़े, बाबा से परमधाम से पहले बिछड़ कर आएगा, तो फिर अब बाबा से जल्दी आकर के मिलेगा। जो परमधाम से आएगा लेट, तो बाबा से मिलेगा भी लेट। ठीक, देखते हैं आप क्या कहते हैं बाबा? परमात्मा का भंडारा समान और सर्वहितकारी है। परमात्मा का भंडार है कि चाबी सबके पास है। सबको मालूम है क्या है चाबी? “मेरा बाबा, मेरा बाबा, मेरा बाबा।” बाबा चाबी खोलता है। लेना है औरों को देना है। ताला खोलने की चाबी—ताला चाबी को खोलने के लिए कैसे कैसे चाबी लगानी है? दिल से कहना है।
दिल से कहेंगे, “मेरा बाबा,” तो भंडारा खुलेगा। चाबी तो है “मेरा बाबा।” परंतु चाबी लगाने का तरीका है—दिल से कहेंगे “बाबा।” यह भी बड़ी शर्त है। वैसे तब जाकर के भंडारा खुलता है। भंडारा खुल भी जाए तो भी हमें नहीं मिलता है, तो भी क्या करना पड़ता है? हमें बाँटना है। जितना लेंगे औरों को देंगे। जितना आत्माओं को बाँटेंगे उतना हमारे खाते में जमा होगा।
बाबा कहता है, “परमात्मा ज्ञान, गुण और शक्तियों का असीम सागर है। उनका यह भंडारा सदा हर आत्मा के लिए समान रूप से खुला रहता है। वे किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करते हैं।”
परमात्मा की यह महिमा सूर्य और सागर से की जाती है। जैसे सूर्य अपनी किरणों को सभी पर समान रूप से बिखेरता है और सागर अपनी जल राशि से सबका स्वागत करता है, उसी प्रकार परमात्मा का भंडारा हर आत्मा के लिए है। आत्मा की ग्रहण शक्ति पर निर्भर करता है कि वह कितना ले सकती है।
हालांकि परमात्मा का भंडारा हर आत्मा के लिए खुला है, लेकिन उससे लेना हर आत्मा का व्यक्तिगत कार्य है। आत्मा की ग्रहण शक्ति, उसकी आवश्यकता और ड्रामा में निर्धारित पार्ट के अनुसार यह तय होता है।
यदि सबको बराबर-बराबर मिल जाता तो फिर यह नाटक ना तो रोचक लगता, ना अद्वितीय लगता। ऐसा नाटक पूरे यूनिवर्स में और कोई भी नहीं है। अब इसके अंदर हमें पता लगा कि उसकी योग्यता क्या है।
अब योग्यता का प्रयोग कैसे होता है? वह हमने पहले देखा कि जितना कोई का पार्ट होगा, वह उतना दिल से बाबा को याद करेगा। जितना कम लेने का पार्ट होगा, तो उसकी याद में भी उतनी कमी आएगी। सारी बात डिपेंड करती है—क्योंकि उसने देना है। देना ही लेना है।
यह बात बहुत वंडरफुल है, बहुत रोचक है। सबसे वंडरफुल है। आज की पढ़ाई में सबसे ज्यादा दिक्कत यही है कि “मेरा-मेरा” नोट्स किसी ने देख लिया, बस बच्चे के दिमाग में रहता है। लेकिन यह बहुत वंडरफुल है कि सब कुछ दे दो, उसके बाद अपने आप जब आप दोगे तो आपको मिलेगा।
यह देने की जो योग्यता है, बाँटने की जो योग्यता है, वह हर आत्मा में अपनी-अपनी है। क्योंकि जितना बाँटेगा, उतना तो लेगा ना? नहीं बाँटेगा तो ले नहीं पाएगा। दिल से “मेरा बाबा” कहेगा नहीं तो दरवाजा खुलेगा नहीं।
परमात्मा की महिमा इस बात में है कि वह बिना किसी भेदभाव के हर आत्मा के कल्याण के लिए तत्पर रहता है। बाबा ने कई बार यह समझाया है कि जैसे सूर्य अपने किरणों को किसी विशेष व्यक्ति के लिए नहीं रोकता, वैसे ही परमात्मा भी अपनी शक्तियों को सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध कराता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने पुरुषार्थ और आवश्यकता के अनुसार कितना ग्रहण करते हैं या कितना हम देते हैं।
परमात्मा आत्माओं को विश्व का मालिक बनाने के लिए आता है। वह हमें सुख का वर्षा प्रदान करता है, लेकिन यह वर्षा प्राप्त करना आत्मा के पुरुषार्थ पर निर्भर करता है। बाबा का मार्गदर्शन यह है कि—”बच्चों, तुम पुरुषार्थ से विश्व के मालिक बनते हो।”
बाप है विश्व का रचयिता। तुम बाप से सुख का वर्षा लेते हो। बाकी सबको शांति धाम का वर्षा मिल जाएगा। जो सुख धाम का वर्षा नहीं लेंगे, उन सबको शांति धाम का वर्षा तो मिल ही जाएगा।
अब तुम दुख का खाता समाप्त कर, सुख का खाता जमा करो। दुख का खाता समाप्त कैसे करेंगे? जिनको हमने दुख दिया है, वह हमें दुख देंगे। दुख को बराबर करो। सुख का खाता बनाओ। कोई हमें दुख दे रहा है, बहुत ज्यादा दुख दे रहा है, तो हमें यह समझना है कि वह अपना खाता बढ़ा रहा है या हमारा हिसाब चुकता कर रहा है?
अगर हमें दुख मिल रहा है, तो इसका मतलब हमने दिया होगा। इसलिए वह दुख वापस आ रहा है। ड्रामा एक्यूरेट है। अगर हम अभी लेना छोड़ दें, तो वह देना भी छोड़ देगा।
जब तक हमें दुख की फीलिंग आती रहेगी, तब तक वह हमें दुख देता रहेगा। यदि हम फीलिंग लेना बंद कर देंगे, तो वह देना बंद कर देगा।
अब निष्कर्ष यह निकलता है कि परमात्मा का भंडारा असीम और सबके लिए समान रूप से खुला है। परंतु हर आत्मा की ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ के आधार पर भिन्नता रहती है।
ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ—ये दो शब्द हमें स्पष्ट करने हैं। ग्रहण शक्ति क्या है? पुरुषार्थ क्या है? ग्रहण करने के लिए जो कोशिश की जाती है, वह पुरुषार्थ है। पुरुषार्थ अलग है, ग्रहण शक्ति अलग है।
ग्रहण शक्ति का आधार देने की शक्ति है। जितना हम देंगे, उतना ही हमें मिलेगा। हमने अपनी लिमिट से लेना और लिमिट से देना सीखना है।
परमात्मा हमें यह सिखाता है कि हम अपने पुरुषार्थ द्वारा अपने जीवन को श्रेष्ठ कैसे बनाएं। परमात्मा के सारी पढ़ाई का आधार यही है कि हर आत्मा का जीवन श्रेष्ठ बन जाए और विश्व नाटक में अपनी भूमिका को सफलता पूर्वक निभाया जाए।
यह उसकी महानता और हमारे आत्म-सुधार के प्रति उसकी करुणा का प्रतीक है। परमात्मा हमारे प्रति दया रखता है।
🎙️ आज का पदम: “क्या परमात्मा किसको अधिक देता है और किसको कम या समान देता है?”
❓प्रश्न 1:क्या परमात्मा किसी को अधिक देता है और किसी को कम? या सबको समान देता है?
✅ उत्तर:परमात्मा सबको समान रूप से देता है। वह ज्ञान, गुण और शक्तियों का असीम सागर है, जो किसी में भेदभाव नहीं करता। उसका भंडारा हर आत्मा के लिए खुला है—जैसे सूर्य सब पर समान रूप से किरणें डालता है और सागर सबको जल देता है।
❓प्रश्न 2:अगर परमात्मा सबको समान देता है, तो फिर आत्माओं में फर्क क्यों दिखाई देता है?
✅ उत्तर:फर्क आत्माओं की ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ के कारण आता है। परमात्मा का भंडारा सबके लिए खुला है, पर आत्मा जितना ले सकती है, उतना ही लेती है। यह उसकी तैयारी, भावना, और योग्यता पर निर्भर करता है।
❓प्रश्न 3:ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ में क्या अंतर है?
✅ उत्तर:
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ग्रहण शक्ति आत्मा की योग्यता है, जितनी वह ले सकती है।
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पुरुषार्थ वह प्रयास है, जो आत्मा उस शक्ति को लेने और बाँटने के लिए करती है।
जितना अधिक आत्मा बाँटेगी, उतनी उसकी ग्रहण शक्ति बढ़ती जाएगी।
❓प्रश्न 4:परमात्मा का भंडारा खोलने की ‘चाबी’ क्या है?
✅ उत्तर:चाबी है—“मेरा बाबा, मेरा बाबा”।
लेकिन सिर्फ कहने से नहीं, दिल से कहना पड़ता है। जब दिल से “मेरा बाबा” कहा जाता है, तब भंडारा खुलता है। वह सच्ची भावना ही उस चाबी का काम करती है।
❓प्रश्न 5:यदि परमात्मा ने सबको समान रूप से चुना है, तो हमें पहले क्यों चुना?
✅ उत्तर:बाबा कहते हैं, “मैंने सबको ढूंढा।”
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जो आत्माएं पहले बिछड़ी, वे पहले मिलती हैं।
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जिन्होंने भक्ति ज्यादा की है, वे जल्दी चुनी जाती हैं।
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यह सब ड्रामा के अनुसार क्रमबद्ध होता है।
❓प्रश्न 6:अगर भंडारा खुल भी गया, फिर भी कोई आत्मा कुछ क्यों नहीं ले पाती?
✅ उत्तर:क्योंकि लेने के लिए बाँटना ज़रूरी है।
जितना बाँटेंगे, उतना मिलेगा।
अगर कोई बाँटेगा नहीं, तो भंडारे से उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। लेने और देने का यह रहस्य बहुत अद्भुत है।
❓प्रश्न 7:जब हमें दुख मिलता है, तो उसका क्या कारण होता है?
✅ उत्तर:दुख का कारण कर्मों का हिसाब-किताब है।
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हमने कभी किसी को दुख दिया होगा, वही अब लौटकर आता है।
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अगर हम दुख लेना बंद कर दें (अर्थात् उसे दिल पर लेना छोड़ दें), तो सामने वाला देना भी बंद कर देगा।
ड्रामा एक्यूरेट है।
❓प्रश्न 8:क्या हर आत्मा सुखधाम (स्वर्ग) जाती है?
✅ उत्तर:नहीं, सुखधाम का वर्षा वे आत्माएं लेती हैं जो बाबा से संबंध जोड़ती हैं और पुरुषार्थ करती हैं।
बाकी आत्माओं को शांति धाम का वर्षा मिल जाएगा।
जो जितना पुरुषार्थ करेगा, उतना सुख पायेगा।
❓प्रश्न 9:
क्या परमात्मा के साथ हमारा संबंध लेना है या देना है?
✅ उत्तर:संबंध देना ही लेना है।
जितना हम बाबा से लेंगे और औरों को देंगे, उतना हमारे खाते में जमा होगा। बाबा का प्यार और शक्ति बाँटने से बढ़ते हैं।
❓प्रश्न 10:आज की पढ़ाई से हमें क्या मुख्य शिक्षा मिलती है?
✅ उत्तर:
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परमात्मा का भंडारा सभी के लिए है।
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फर्क हमारी ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ से आता है।
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देना ही लेना है।
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दिल से “मेरा बाबा” कहने में ही शक्ति है।
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दुख भी कर्मों के हिसाब से आता है—बुरे कर्मों को अब समाप्त करें।
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अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाना ही सच्चा पुरुषार्थ है।
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