P-P 64″क्या परमात्मा किसको अधिक देता है और किसको कम? या समान देता है
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“परमात्मा का समान भंडारा: ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ से जुड़ी सच्चाई”
1. परमात्मा का भंडारा और समानता
“क्या परमात्मा सभी को समान रूप से देता है? इस सवाल का उत्तर साफ है—परमात्मा किसी को ज्यादा नहीं देता, किसी को कम नहीं देता। वह सभी आत्माओं को समान रूप से अपना भंडारा प्रदान करते हैं। लेकिन भेद कहाँ आता है? यह फर्क तब आता है, जब आत्मा के ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ पर निर्भर करता है।”
2. “मेरा बाबा”—भंडारे की चाबी
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“परमात्मा का भंडारा हर आत्मा के लिए समान रूप से खुला है। लेकिन उस भंडारे को प्राप्त करने की चाबी क्या है?”
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“वह चाबी है—’मेरा बाबा’। जब हम दिल से ‘मेरा बाबा’ कहते हैं, तो यह चाबी उस दरवाजे को खोल देती है। परंतु, यह चाबी केवल दिल से लगानी पड़ती है।”
3. भक्ति का प्रभाव
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“परमात्मा कहता है, ‘मैंने सबको ढूंढा’। क्या इसका मतलब है कि परमात्मा को कोई पहले मिलता है और कोई बाद में?”
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“जो आत्माएं पहले भक्ति करती हैं, उन्हें पहले चुना जाता है। जो बाद में भक्ति करती हैं, उन्हें बाद में चुना जाता है। लेकिन एक चीज साफ है—जो पहले बिछड़ा है, वह पहले आकर मिलेगा।”
4. समान रूप से मिलने वाला भंडारा
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“परमात्मा का भंडारा सर्वहितकारी है, यानी वह सभी आत्माओं के लिए समान रूप से खुला है। जैसे सूर्य अपनी किरणें सभी पर समान रूप से बिखेरता है, वैसे ही परमात्मा अपनी शक्तियां सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध कराता है।”
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“हमारी ग्रहण शक्ति और आवश्यकता के आधार पर हम वह ऊर्जा ग्रहण करते हैं जो हमें चाहिए।”
5. कर्म और ग्रहण शक्ति
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“भंडारा समान रूप से है, लेकिन उसे ग्रहण करने की प्रक्रिया व्यक्तिगत है। यह हमारे पुरुषार्थ पर निर्भर करता है। जितना पुरुषार्थ करेंगे, उतना अधिक हम ग्रहण करेंगे।”
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“जिस आत्मा की ग्रहण शक्ति ज्यादा होगी, वह ज्यादा प्राप्त करेगी। और जितना वह प्राप्त करेगी, उतना दूसरों को देगी।”
6. “देने से ही मिलता है”—महत्वपूर्ण सच्चाई
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“परमात्मा कहता है—’जिसे देना है, वह पहले लेना शुरू करता है।’ यह बहुत महत्वपूर्ण है। जितना हम देंगे, उतना ही हम प्राप्त करेंगे।”
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“यदि हम दूसरों को सुख और शांति देते हैं, तो वह हमें भी लौटकर मिलेगा। लेकिन अगर हम दुख देंगे, तो वह भी हमें वापस आएगा।”
7. ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ: इनका अंतर
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“ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ दो अलग-अलग बातें हैं। ग्रहण शक्ति वह क्षमता है जिससे हम परमात्मा से ज्ञान, शक्ति और गुण प्राप्त कर सकते हैं। जबकि पुरुषार्थ वह प्रयास है जो हम अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए करते हैं।”
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“याद रखें, जितना हम पुरुषार्थ करेंगे, उतना ही हमें लाभ मिलेगा। अगर हमारी ग्रहण शक्ति मजबूत है, तो हम जो भी प्राप्त करेंगे, उसे दूसरों को देंगे, और वही हमें वापस मिलेगा।”
8. परमात्मा का उद्देश्य: आत्माओं को श्रेष्ठ बनाना
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“परमात्मा का मुख्य उद्देश्य है—’हर आत्मा का जीवन श्रेष्ठ बनाना’। वह हमें यह सिखाता है कि हम अपने पुरुषार्थ से कैसे अपने जीवन को सुधारें और विश्व के मालिक बनें।”
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“जब हम अपने जीवन में बदलाव लाते हैं, तो हम विश्व में अपनी भूमिका को सफलतापूर्वक निभाते हैं।”
9. निष्कर्ष: भंडारा सबके लिए समान
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“परमात्मा का भंडारा हर आत्मा के लिए खुला है। लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ के आधार पर कितने लाभ लेते हैं।”
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“यह भंडारा बिना भेदभाव के है, परंतु हमें इसे ग्रहण करने के लिए अपना प्रयास और पुरुषार्थ बढ़ाना होगा।”
🎙️ आज का पदम: “क्या परमात्मा किसको अधिक देता है और किसको कम या समान देता है?”
❓प्रश्न 1:क्या परमात्मा किसी को अधिक देता है और किसी को कम? या सबको समान देता है?
✅ उत्तर:परमात्मा सबको समान रूप से देता है। वह ज्ञान, गुण और शक्तियों का असीम सागर है, जो किसी में भेदभाव नहीं करता। उसका भंडारा हर आत्मा के लिए खुला है—जैसे सूर्य सब पर समान रूप से किरणें डालता है और सागर सबको जल देता है।
❓प्रश्न 2:अगर परमात्मा सबको समान देता है, तो फिर आत्माओं में फर्क क्यों दिखाई देता है?
✅ उत्तर:फर्क आत्माओं की ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ के कारण आता है। परमात्मा का भंडारा सबके लिए खुला है, पर आत्मा जितना ले सकती है, उतना ही लेती है। यह उसकी तैयारी, भावना, और योग्यता पर निर्भर करता है।
❓प्रश्न 3:ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ में क्या अंतर है?
✅ उत्तर:
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ग्रहण शक्ति आत्मा की योग्यता है, जितनी वह ले सकती है।
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पुरुषार्थ वह प्रयास है, जो आत्मा उस शक्ति को लेने और बाँटने के लिए करती है।
जितना अधिक आत्मा बाँटेगी, उतनी उसकी ग्रहण शक्ति बढ़ती जाएगी।
❓प्रश्न 4:परमात्मा का भंडारा खोलने की ‘चाबी’ क्या है?
✅ उत्तर:चाबी है—“मेरा बाबा, मेरा बाबा”।
लेकिन सिर्फ कहने से नहीं, दिल से कहना पड़ता है। जब दिल से “मेरा बाबा” कहा जाता है, तब भंडारा खुलता है। वह सच्ची भावना ही उस चाबी का काम करती है।
❓प्रश्न 5:यदि परमात्मा ने सबको समान रूप से चुना है, तो हमें पहले क्यों चुना?
✅ उत्तर:बाबा कहते हैं, “मैंने सबको ढूंढा।”
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जो आत्माएं पहले बिछड़ी, वे पहले मिलती हैं।
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जिन्होंने भक्ति ज्यादा की है, वे जल्दी चुनी जाती हैं।
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यह सब ड्रामा के अनुसार क्रमबद्ध होता है।
❓प्रश्न 6:अगर भंडारा खुल भी गया, फिर भी कोई आत्मा कुछ क्यों नहीं ले पाती?
✅ उत्तर:क्योंकि लेने के लिए बाँटना ज़रूरी है।
जितना बाँटेंगे, उतना मिलेगा।
अगर कोई बाँटेगा नहीं, तो भंडारे से उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। लेने और देने का यह रहस्य बहुत अद्भुत है।
❓प्रश्न 7:जब हमें दुख मिलता है, तो उसका क्या कारण होता है?
✅ उत्तर:दुख का कारण कर्मों का हिसाब-किताब है।
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हमने कभी किसी को दुख दिया होगा, वही अब लौटकर आता है।
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अगर हम दुख लेना बंद कर दें (अर्थात् उसे दिल पर लेना छोड़ दें), तो सामने वाला देना भी बंद कर देगा।
ड्रामा एक्यूरेट है।
❓प्रश्न 8:क्या हर आत्मा सुखधाम (स्वर्ग) जाती है?
✅ उत्तर:नहीं, सुखधाम का वर्षा वे आत्माएं लेती हैं जो बाबा से संबंध जोड़ती हैं और पुरुषार्थ करती हैं।
बाकी आत्माओं को शांति धाम का वर्षा मिल जाएगा।
जो जितना पुरुषार्थ करेगा, उतना सुख पायेगा।
❓प्रश्न 9:
क्या परमात्मा के साथ हमारा संबंध लेना है या देना है?
✅ उत्तर:संबंध देना ही लेना है।
जितना हम बाबा से लेंगे और औरों को देंगे, उतना हमारे खाते में जमा होगा। बाबा का प्यार और शक्ति बाँटने से बढ़ते हैं।
❓प्रश्न 10:आज की पढ़ाई से हमें क्या मुख्य शिक्षा मिलती है?
✅ उत्तर:
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परमात्मा का भंडारा सभी के लिए है।
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फर्क हमारी ग्रहण शक्ति और पुरुषार्थ से आता है।
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देना ही लेना है।
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दिल से “मेरा बाबा” कहने में ही शक्ति है।
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दुख भी कर्मों के हिसाब से आता है—बुरे कर्मों को अब समाप्त करें।
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अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाना ही सच्चा पुरुषार्थ है।
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