P-P (66) “Procedure to meet the Supreme Soul

P-P 66 “परमात्मा से मिलने का विधि विधान

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“परमात्मा से मिलने का सही विधि-विधान: ज्ञान, अनुभव और आत्म-चेतना की यात्रा”


1. भूमिका: क्यों उठता है यह प्रश्न?

“हर आत्मा परमात्मा से मिलना चाहती है। हर युग, हर धर्म, हर प्रार्थना में आत्मा की यह पुकार छिपी रहती है – ‘हे परमात्मा! मुझे दर्शन दो, मुझे मिलो।’
परंतु प्रश्न उठता है – परमात्मा से मिलने का विधि-विधान क्या है? कैसे मिलें? कब मिलें? कहाँ मिलें?”


2. मिलन की स्मृति और अनुभव

  • आत्मा जब यह प्रश्न करती है कि “मैं परमात्मा से मिलना चाहती हूँ,” तो इसका अर्थ यही है कि उसने कभी मिलन का अनुभव किया है।

  • भक्ति मार्ग में आत्मा उसी अनुभव को बार-बार स्मरण करती है – पूजा, ध्यान, भजन के माध्यम से।

  • यह स्मृति ही संकेत है कि आत्मा ने साकार मिलन का कभी अनुभव अवश्य किया है।


3. परमधाम में मिलन संभव नहीं

  • परमधाम में आत्मा और परमात्मा दोनों ही बिंदु रूप में स्थित हैं – शांत, निराकार और निष्क्रिय।

  • वहाँ कोई संकल्प नहीं, कोई वाणी नहीं, कोई अनुभूति नहीं – वहाँ केवल “स्थिति” है, “साक्षी भाव” है।

  • अतः वहाँ मिलन संभव नहीं, केवल उपस्थिति है।


4. साकार मिलन का रहस्य: संगमयुग का महत्त्व

  • सत्य मिलन केवल तब होता है जब परमात्मा साकार ब्रह्मा तन में प्रवेश करते हैं।

  • वह ज्ञान द्वारा आत्मा को उसकी सच्ची पहचान कराते हैं – “तुम आत्मा हो, तुम मेरा बच्चा हो।”

  • यही मिलन वह दिव्य अनुभूति है जिसे आत्मा खोज रही है।


5. मुरली: मिलन का माध्यम

  • मुरली वह वाणी है जिससे परमात्मा आत्माओं से संवाद करते हैं।

  • मुरली से प्रेम = बाबा से प्रेम।

  • मुरली वह ब्रह्म-रज्जु है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है।

  • यदि आत्मा को मुरली प्रिय नहीं है, तो वह अभी सच्चे प्रेम में नहीं पहुँची।


6. मिलन की सच्ची विधि-विधान क्या है?

  • पहला नियम: “स्वयं को आत्मा समझो” – देह से न्यारे हो जाओ।

  • दूसरा नियम: “शिवबाबा को याद करो” – जो ब्रह्मा के तन में आकर ज्ञान देते हैं।

  • तीसरा नियम: “मुरली सुनो, समझो और उस पर अमल करो” – यही सच्चा योग है।

  • यह योग ही आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है – सच्चा मिलन कराता है।


7. भक्ति मार्ग की छाया: देवी-देवताओं की पूजा

  • आत्मा शिवबाबा को नहीं जानती, इसलिए अपने अनुभवों को देवी-देवताओं के रूप में व्यक्त करती है।

  • भक्ति मार्ग की मूर्तियाँ, कथा, पूजा – सब उस एक परम अनुभव की छाया मात्र हैं।


8. सकारात्मक निष्कर्ष

  • हमें ब्रह्मा बाबा से साकार में मिलने का भाग्य नहीं मिला, परंतु मुरली के द्वारा हमें परमात्मा का साक्षात्कार होता है।

  • जितना ज्ञान और मुरली हमारे भाग्य अनुसार मिल रही है – उतना ही हमारी आत्मा का जागरण हो रहा है।

  • परमात्मा से मिलने की विधि-विधान यही है:

    “आत्मा बनो, बाबा को याद करो, मुरली से जुड़ो।”


9. उदाहरण: सगाई और प्यार

  • बाबा ने कहा: “जिस आत्मा की बाबा से सगाई हो गई, उसके दिल में अपने प्रियतम के लिए प्रेम स्वाभाविक हो जाता है।”

  • सच्चा प्रेम केवल उस आत्मा को होता है जो मुरली को बाबा की सजीव वाणी मानती है।


10. अंतिम वाणी: मिलन की प्राप्ति

  • जब आत्मा अपने आप को आत्मा मानकर, परमात्मा को साकार रूप में पहचानकर उनसे जुड़ जाती है – वही होता है सच्चा मिलन।

  • यही परमात्मा से मिलने का सही विधि-विधान है – यही हमारा आज का “शांति नेक्स्ट पदम” है।

नेक्स्ट हमारा पदम है – परम परमात्मा से मिलने का विधि विधान

(परमात्मा से मिलने की सही विधि क्या है? आइए जानते हैं प्रश्नोत्तरी रूप में)


प्रश्न 1:सभी आत्माएं परमात्मा से मिलना चाहती हैं, तो उनसे मिलने का सही विधि विधान क्या है?

उत्तर:परमात्मा से मिलने का यथार्थ अनुभव तभी होता है जब आत्मा अपने स्वरूप को आत्मा समझकर, परमात्मा को साकार रूप में पहचानती है। परमात्मा निराकार शिव है, जो साकार ब्रह्मा के तन में आकर ज्ञान सुनाते हैं। यही मिलन, परमात्मा से मिलने का सच्चा विधान है।


प्रश्न 2:परमधाम में आत्मा और परमात्मा एक साथ रहते हैं, तो क्या वह मिलन नहीं हुआ?

उत्तर:परमधाम में आत्मा और परमात्मा शुद्ध निराकार अवस्था में रहते हैं, वहाँ कोई संकल्प नहीं होता, न कोई अनुभव। इसलिए वहाँ मिलन की अनुभूति नहीं होती। सच्चा मिलन तब होता है जब दोनों साकार शरीर के माध्यम से जुड़ते हैं — यही संगम युग का अलौकिक मिलन है।


प्रश्न 3:अगर कोई आत्मा कहे कि हम तो साकार में नहीं मिले, अव्यक्त में मिले, तो क्या वह मिलन नहीं कहलाएगा?

उत्तर:बिल्कुल मिलन कहलाएगा। आत्मा को जिस समय, जिस विधि से मिलना होता है, वही उसका ड्रामा अनुसार सटीक पार्ट है। अव्यक्त में मिलना भी मिलन है। मुरली को सुनना, समझना, अनुभव करना — यह सब बाबा से मिलन के स्वरूप हैं।


प्रश्न 4:परमात्मा का साकार मिलन कब होता है?

उत्तर:परमात्मा का साकार मिलन केवल संगम युग में होता है, जब शिव परमात्मा ब्रह्मा के तन में प्रवेश करके हम आत्माओं को पढ़ाते हैं। यह ज्ञान, योग और अनुभूति के द्वारा मिलन का अनुभव कराते हैं।


प्रश्न 5:क्या आत्मा को साकार रूप की ज़रूरत है परमात्मा से मिलने के लिए?

उत्तर:हाँ, आत्मा और परमात्मा दोनों को एक-दूसरे को जानने और अनुभव करने के लिए साकार रूप (तन) की आवश्यकता होती है। आत्मा इस शरीर के माध्यम से मुरली सुनती है, समझती है और अनुभव करती है। इसी से मिलन की सच्ची अनुभूति होती है।


प्रश्न 6:भक्ति मार्ग में आत्माएं परमात्मा को क्यों पुकारती हैं, जबकि वे इष्ट देवताओं को बुलाती हैं?

उत्तर:भक्ति मार्ग में आत्माएं इष्ट देवताओं को पुकारती हैं क्योंकि परमात्मा का वास्तविक ज्ञान उन्हें नहीं होता। लेकिन उनकी आत्मा में जो छिपा हुआ प्रेम है, वह वास्तव में उस निराकार शिव बाबा के लिए होता है — जिसे उन्होंने संगम युग में प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया था।


प्रश्न 7:अगर कोई कहे कि हमने तो सिर्फ मुरली सुनी, साकार बाबा से नहीं मिले, तो क्या हम बाबा से नहीं मिले?

उत्तर:मुरली ही बाबा का स्वरूप है। मुरली से प्रेम होना मतलब बाबा से प्रेम होना। बाबा ने स्वयं कहा है — “मुरली से प्रेम मतलब मुझसे प्रेम।” अतः जो मुरली से जुड़ा है, वह बाबा से भी जुड़ा हुआ है।


प्रश्न 8:परमात्मा से मिलने के लिए आत्मा को कौन-से नियम और विधि को अपनाना होगा?

उत्तर:आत्मा को स्वयं को आत्मा समझना होगा, शरीर नहीं। शिव बाबा को साकार रूप में ब्रह्मा तन में अनुभव करना होगा, मुरली को जीवन में धारण करना होगा, योग में स्थित रहना होगा — यही परमात्मा से मिलने की सच्ची विधि है।


प्रश्न 9:भक्ति मार्ग की ‘सगाई’ और संगम युग की ‘सगाई’ में क्या संबंध है?

उत्तर:संगम युग में आत्मा की परमात्मा से जो सगाई होती है, वह ही भक्ति मार्ग में स्मृति रूप बन जाती है। जैसे सगाई होने पर गहरा प्रेम होता है, वैसा ही भाव भक्ति मार्ग में परमात्मा के प्रति व्यक्त होता है — लेकिन वह अनुभव उन्हें संगम युग के इस ज्ञानयुक्त मिलन से ही प्राप्त हुआ होता है।


निष्कर्ष:परमात्मा से मिलने का सही विधान यह है कि आत्मा स्वयं को आत्मा समझकर, परमात्मा शिव को साकार ब्रह्मा तन में अनुभव करे। मुरली को सुनना, समझना और उसमें स्थित होना ही परमात्मा से सच्चा मिलन है।

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