P-P 66 “परमात्मा से मिलने का विधि विधान
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
शांति नेक्स्ट हमारा पदम है परम परमात्मा से मिलने का विधि विधान परमात्मा से मिलने का क्या विधि विधान है परमात्मा से मिलने का क्या नियम होगा प्रश्न सभी आत्मा परमात्मा को याद करती हैं उनसे मिलना चाहती हैं तो उनसे मिलने का विधि विधान क्या है प्रश्न को थोड़ा विस्तार किया गया है बाबा का कहना मानना उनसे मिलने का विधि विधान क्या है जो आत्माएं परमात्मा से मिलना चाहती हैं इसका अर्थ है कि वे कभी ना कभी परमात्मा से मिली होंगी भाई जी हम तो अव्यक्त मे मिले साकार में तो नहीं मिले तो वो भी तो मिलना हुआ ना बिल्कुल मिलना होगा साकार में हमारा पार्ट नहीं था बिल्कुल बिल्कुल जी हर आत्मा का जिस समय पार्ट है उस समय मिलना है और परमात्मा से मिलना है परमात्मा से पढ़ना है परमात्मा से मिलना माना परमात्मा से पढ़ना जो आप बाबा के बच्चे बने हैं व स्पष्ट है कि वह पहले भी बच्चे बने थे अब जो छोड़ के जाने वाले हैं वह छोड़ के गए थे अव भी छोड़ के जाएंगे कल्प कल्प उसी प्रकार से करेंगे यही कारण है उनकी आत्मा में फिर से मिलने की प्रबल इच्छा है अब यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि आत्मा और परमात्मा का मिलन कब और कहां संभव है कब और कहां संभव है आत्मा और परमात्मा हां जी बाबा से मिलन तो संभव संगम पर है
हम उसको आत्मा और परमात्मा का स्थान परम धाम
एक साथ रहते हैं लेकिन वहां आत्मा को कोई साकार देह नहीं होती और ना ही कोई आत्मा कोई संकल्प कर सकती है इसलिए वहां मिलने की अनुभूति या सुख संभव नहीं वहां कोई परमात्मा से मिलने की अनुभव कोई अनुभव नहीं कर सकता कोई अनुभूति नहीं मिल सकती परम धाम में आत्मा और परमात्मा का अस्तित्व केवल शुद्ध निराकार रूप में होता है साकार मिलन का महत्व और यथार्थ मिलन
साकार मिलन कैसे होता है इसका यथार्थ मिलन क्या है दोनों बातों को हमने देखना है मिलन की वास्तविक अनुभूति और उसका सुख केवल तब संभव है जब परम आत्मा साकार देह के माध्यम से आते हैं यह यथार्थ मिलन तब होता है जब परमात्मा ब्रह्मा के तन में अवतरित होते हैं और आत्माओं को ज्ञान सुनाते हैं यही मिलन आत्मा को सच्चा सुख और शांति प्रदान करता है ये वही मिलन है ये वही मिलन है जिसे आत्माएं भक्ति मार्ग में याद करती हैं और जिसके लिए शास्त्रों में भी उल्लेख है जिसके लिए शास्त्रों में भी उल्लेख है भक्ति मार्ग में स्मृति भक्ति मार्ग में क्या स्मृति होती है भक्ति मार्ग में आत्माओं द्वारा परमात्मा से मिलन की अनुभूति को विभिन्न रूपों में व्यक्त किया गया है और ये उस साकार अनुभव का स्मरण है जब आत्मा ने सृष्टि चक्र के आरंभ में परमात्मा से प्रत्यक्ष रूप में ज्ञान और शक्ति प्राप्त की थी अपने इष्ट देवों को देवी देवताओं को बेशक बुलाती है परंतु उनका होता तो उस परमात्मा के प्रति है ना परमात्मा को जानते नहीं परंतु कमाल की बात यह है कि परमात्मा को वह जानते नहीं परमात्मा के स्थान पर वह इष्ट देवी देवताओं को बुलाते रहते पुकारते रहते हैं अब शिव बाबा से मिलने की विधि आत्मा का
स्वरूप जैसे कि मुरली में बताया गया है परम धाम में है ही निराकारा आत्माएं बिंदी से तो मिल नहीं सकते तो शिव बाबा से कैसे मिलेंगे इसका अर्थ है कि आत्मा को अपनी पहचान और अनुभव के लिए साकार रूप की आवश्यकता होती है मिलन का ज्ञान परमात्मा से मिलन का अनुभव तब होता है जब आत्मा स्वयं को आत्मा समझकर शिव बाबा को याद करती है शिव बाबा साकार ब्रह्मा तन में आकर ज्ञान सुनाते हैं और इस ज्ञान के माध्यम से आत्मा को स्वयं का और परमात्मा का वास्तविक परिचय देते हैं निष्कर्ष परमात्मा से मिलने का यथार्थ
अनुभव तब होता है जब आत्मा अपने स्वरूप को पहचानते हुए परमात्मा को साकार रूप में पाती है यह मिलन साकार ब्रह्मा तन के माध्यम से संभव होता है आत्मा के इस अनुभव को ही भक्ति मार्ग में स्मरण किया जाता है और यही परमात्मा से मिलने का सही विधि विधान है का सही विधि विधान है अच्छा ओम शांति कोई प्रश्न है तो देखो कोई बात स्पष्ट नहीं है तो पूछो हा भाई जी पूछना है भाई जी हम किसी को सुख दिया तो वो सतयुग में सत्व प्रधान सुख दिया तो उस सतयुग में हमें बहन जी बहन जी ध्यान दीजिए प्रश्न है परमात्मा से मिलन का जी
उससे
रिलेटेड प्रश्न इसमें पूछो जो इससे अलग प्रश्न है वो अलग पूछो ना और जो
टॉपिक चला है कि हमें परमात्मा से मिलने का यथार्थ अनुभव तब होता है कब होता है जब आत्मा अपने स्वरूप को पहचानते है परमात्मा को साकार रूप में पाती है जबकि परमात्मा का भी अपना कोई रूप नहीं है साकार रूप नहीं है परंतु वह साकार शरीर का आधार लेती है हम भी साकार शरीर का आधार लेते हैं तो इन कानों के माध्यम से इस शरीर के माध्यम से हम ज्ञान को समझ पाते हैं और सच्चाई को समझ पाते तो यहां हम पहचान क्योंकि हमें पहचान यही मिलती है इससे पहले हमें पहचान ही नहीं मिलती तो
परमात्मा को साकार रूप में पाती है यह मिलन साकार ब्रह्मा तन के माध्यम से संभव होता है कि परमात्मा प्रजापिता ब्रह्मा के तन का आधार लेकर हम सब आत्माओं से मिलन मनाते हैं आत्मा के इस अनुभव को ही भक्ति मार्ग में स्मरण किया जाता है और यही परमात्मा से मिलन का सही विधि विधान है सही विधि विधान ब्रह्मा बाबा से ना साकार में मिले ना अव्यक्त मे मिले हमें तो सिर्फ मुरली मिली कोई बात नहीं जितना मिला ड्रामा अनुसार हमें भाग्य बनाने का विधान समझ में आ जाए नियम समझ में आ जाए हम जितना बनाएंगे मान लो हम पहले जन्म में नहीं आएंगे चलो दूसरे जन्म में आ जाएंगे और
क्या होगा एक साल में नहीं आए तो क्या फर्क पड़ सकता है अब जितना हम पुरुषार्थ नहीं है बाबा मिलन बनाने की है भाई जी बाबा ने मु बताया था जिसके साथ सगाई हो जाती है ना सगाई होने के बाद उसके साथ में कितना लव हो जाता है प्यार हो जाता है ना उसके साथ मेरे लिए मुरली बहुत है बिल्कुल बाबा ने कहा मुरली से मुरली से प्यार माना बाबा से प्यार यदि मुरली से प्यार नहीं है तो बाबा से भी प्यार नहीं है
नेक्स्ट हमारा पदम है – परम परमात्मा से मिलने का विधि विधान
(परमात्मा से मिलने की सही विधि क्या है? आइए जानते हैं प्रश्नोत्तरी रूप में)
प्रश्न 1:सभी आत्माएं परमात्मा से मिलना चाहती हैं, तो उनसे मिलने का सही विधि विधान क्या है?
उत्तर:परमात्मा से मिलने का यथार्थ अनुभव तभी होता है जब आत्मा अपने स्वरूप को आत्मा समझकर, परमात्मा को साकार रूप में पहचानती है। परमात्मा निराकार शिव है, जो साकार ब्रह्मा के तन में आकर ज्ञान सुनाते हैं। यही मिलन, परमात्मा से मिलने का सच्चा विधान है।
प्रश्न 2:परमधाम में आत्मा और परमात्मा एक साथ रहते हैं, तो क्या वह मिलन नहीं हुआ?
उत्तर:परमधाम में आत्मा और परमात्मा शुद्ध निराकार अवस्था में रहते हैं, वहाँ कोई संकल्प नहीं होता, न कोई अनुभव। इसलिए वहाँ मिलन की अनुभूति नहीं होती। सच्चा मिलन तब होता है जब दोनों साकार शरीर के माध्यम से जुड़ते हैं — यही संगम युग का अलौकिक मिलन है।
प्रश्न 3:अगर कोई आत्मा कहे कि हम तो साकार में नहीं मिले, अव्यक्त में मिले, तो क्या वह मिलन नहीं कहलाएगा?
उत्तर:बिल्कुल मिलन कहलाएगा। आत्मा को जिस समय, जिस विधि से मिलना होता है, वही उसका ड्रामा अनुसार सटीक पार्ट है। अव्यक्त में मिलना भी मिलन है। मुरली को सुनना, समझना, अनुभव करना — यह सब बाबा से मिलन के स्वरूप हैं।
प्रश्न 4:परमात्मा का साकार मिलन कब होता है?
उत्तर:परमात्मा का साकार मिलन केवल संगम युग में होता है, जब शिव परमात्मा ब्रह्मा के तन में प्रवेश करके हम आत्माओं को पढ़ाते हैं। यह ज्ञान, योग और अनुभूति के द्वारा मिलन का अनुभव कराते हैं।
प्रश्न 5:क्या आत्मा को साकार रूप की ज़रूरत है परमात्मा से मिलने के लिए?
उत्तर:हाँ, आत्मा और परमात्मा दोनों को एक-दूसरे को जानने और अनुभव करने के लिए साकार रूप (तन) की आवश्यकता होती है। आत्मा इस शरीर के माध्यम से मुरली सुनती है, समझती है और अनुभव करती है। इसी से मिलन की सच्ची अनुभूति होती है।
प्रश्न 6:भक्ति मार्ग में आत्माएं परमात्मा को क्यों पुकारती हैं, जबकि वे इष्ट देवताओं को बुलाती हैं?
उत्तर:भक्ति मार्ग में आत्माएं इष्ट देवताओं को पुकारती हैं क्योंकि परमात्मा का वास्तविक ज्ञान उन्हें नहीं होता। लेकिन उनकी आत्मा में जो छिपा हुआ प्रेम है, वह वास्तव में उस निराकार शिव बाबा के लिए होता है — जिसे उन्होंने संगम युग में प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया था।
प्रश्न 7:अगर कोई कहे कि हमने तो सिर्फ मुरली सुनी, साकार बाबा से नहीं मिले, तो क्या हम बाबा से नहीं मिले?
उत्तर:मुरली ही बाबा का स्वरूप है। मुरली से प्रेम होना मतलब बाबा से प्रेम होना। बाबा ने स्वयं कहा है — “मुरली से प्रेम मतलब मुझसे प्रेम।” अतः जो मुरली से जुड़ा है, वह बाबा से भी जुड़ा हुआ है।
प्रश्न 8:परमात्मा से मिलने के लिए आत्मा को कौन-से नियम और विधि को अपनाना होगा?
उत्तर:आत्मा को स्वयं को आत्मा समझना होगा, शरीर नहीं। शिव बाबा को साकार रूप में ब्रह्मा तन में अनुभव करना होगा, मुरली को जीवन में धारण करना होगा, योग में स्थित रहना होगा — यही परमात्मा से मिलने की सच्ची विधि है।
प्रश्न 9:भक्ति मार्ग की ‘सगाई’ और संगम युग की ‘सगाई’ में क्या संबंध है?
उत्तर:संगम युग में आत्मा की परमात्मा से जो सगाई होती है, वह ही भक्ति मार्ग में स्मृति रूप बन जाती है। जैसे सगाई होने पर गहरा प्रेम होता है, वैसा ही भाव भक्ति मार्ग में परमात्मा के प्रति व्यक्त होता है — लेकिन वह अनुभव उन्हें संगम युग के इस ज्ञानयुक्त मिलन से ही प्राप्त हुआ होता है।
निष्कर्ष:परमात्मा से मिलने का सही विधान यह है कि आत्मा स्वयं को आत्मा समझकर, परमात्मा शिव को साकार ब्रह्मा तन में अनुभव करे। मुरली को सुनना, समझना और उसमें स्थित होना ही परमात्मा से सच्चा मिलन है।
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