Parmatma-padam (56) Paramadham: Knower-giver or creator?

P-P 56″ परमधामः ज्ञाता-दाता या विधाता?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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ओम शांति कौन बनेगा पद्मा पदम पति हमने ठेका लिया है अपने आप को पद्मा पदम पति बनाने इसलिए उसके लिए जरूरी है ज्ञान का मंथन करना आप भी इस ज्ञान के मंथन के लिए जुड़ सकते हैं इसी वीडियो के डिस्क्रिप्शन बॉक्स में लिंक दिया हुआ है गुगल मीट का जिस पर आप इस समय 8 बजे और सवेरे 4:00 बजे 6 बजे और शाम को 4:00 बजे मुरली मंथन के लिए जुड़ सकते और यदि आपको यह लिंक नहीं मिल रहा है जुड़ने में आपको कठिनाई आ रही है तो आप इसी वीडियो में चलती हुई लाइन में नंबर देख रहे हैं उस पर आप व्टसप करके आप लिंक मंगा सकते हैं कोई प्रश्न पूछ सकते हैं और यदि

आपके पास कोई सुझाव है वो भी आप दे सकते हैं ओम शांति आज का विषय है परमात्मा ज्ञाता दाता और विधाता है तीन परमात्मा की विशेषताएं हम देख रहे हैं नंबर एक विश्व नाटक और विधि विधान का ज्ञाता विश्व नाटक और विधि विधान का ज्ञाता विधि विधान क्या होता है संविधान कानून का जो बुक होती है उसको संविधान बोलते हैं और यहां पर विधि विधान किस प्रकार से यह सारा विश्व का नाटक चलेगा उसकी हर बात का ज्ञाता है विश्व नाटक और विधि विधान यह विश्व का नाटक कैसे चलेगा और उसमें हम आत्माएं परमात्मा प्रकृति उनका आपस में किस प्रकार से कार्य

होगा क्या विधि है क्या नियम है उन सब नियमों का जानने वाला है परमात्मा विश्व नाटक और उसके सभी विधि विधान का संपूर्ण ज्ञाता है वे आत्माओं को इन विधि विधान का गहन ज्ञान प्रदान करता है इस ज्ञान से आत्माएं सत्य को पहचानती हैं और अपने जीवन को सुधारने की दिशा में कार्य करती है नंबर दो परमात्मा विधाता नहीं विधि विधान का ज्ञाता है विधाता नहीं बल्कि ज्ञान देने वाला है विधाता में और दाता में क्या अंतर होगा इसको हम ध्यान से देखते हैं आगे क्या कहते हैं परमात्मा इस विश्व नाटक के विधि विधान को बनाता नहीं उसने किसी कानून को बनाया नहीं

विधाता होता है नियम कानून बनाने वाला संविधान बनाने वाला परंतु बाबा कहते मैंने संविधान नहीं बनाया वरना तुम मेरा सिर खा जाओगे इसलिए पल्ला झाड़ लो ठीक बोलता है ना बाबा नहीं तो सारे पकड़ के बैठ जाते बताओ यह क्यों बनाया यह क्यों बनाया बाबा सारी बात से एक झटके में देखो कैसे अलग हो गया मैंने कोई कानून नहीं बनाया छुट्टी हो गई ना कानून पे चलता हूं पर ये कानून मैंने नहीं बनाया है मैंने नहीं बनाई ये नाटक अनादि और अविनाशी है क्योंकि मैं कहूं कि मैंने बनाया तो आप कहोगे कब बनाया बताओ कब बनाया पीछे पड़ जाएगी जान छूट

गई ना बोलते डायरेक्टर बाबा है डायरेक्टर है परंतु आप देख रहे हो ना कैसे डायरेक्टर है ये डायरेक्टर समझ रहे हैं जी मैंने नियम नहीं बनाए हैं यह तो नियम अनादि और अविनाशी है बाबा ने यह भी कहा ना एक जगह पर कि मैंने तुम आत्माओं को पैदा नहीं किया वो लाइन याद रखनी चाहिए मैंने तुम आत्माओं को पैदा नहीं किया मैं तुम आत्माओं को पैदा करता तो तुम मुझे कहते मुझे बताना पड़ता कि मैंने इस आत्मा को को कब पैदा किया सब
को कब पैदा किया ये किस को कब पैदा इसलिए जान लिए उसने हमे नही बनाया अपने यहां भी जान छुड़वा ली
शिव बाबा को भी

बाप को नहीं बताना पड़ेगा हां ठीक है कि नहीं तो इसलिए वो अनादि खुद अनादि अविनाशी है हम आत्माएं भी अनादि अविनाशी है प्रकृति भी अनादि और अविनाशी है और समय भी अनादि और अविनाशी है और इन तीनों से मिलकर के यह बनाया ड्रामा और सब आत्माओं ने परमात्मा ने प्रकृति ने समय ने सबने मिलकर के अपना अपना पार्ट स्वयं लिखा जान छूट गई
कोई आत्मा शिकायत नहीं कर सकता कि मेरे को ऐसा क्यों हुआ मेरे को यह दुख क्यों मिला मेरे को यह सुख क्यों मिला कोई नहीं कह सकता क्योंकि उसने अपना पार्ट खुद लिखा किसी ने लिखा ही नहीं उसका पार्ट परमात्मा ने उसका पार्ट नहीं लिखा

भगवान कहते मैं क्यों लिखू किसका पार्ट क्यों किसका खराब लिखू पार्ट क्यों किसके जीवन में सुख और किसके जीवन में दुख लिखू मेरे लिए सारे बराबर है मैं नहीं लिखता हर एक आत्मा ने अपने कर्मों की कलम से अपना पार्ट खुद लिखा कब लिखी है हा जी लिखा कब है
ठीक है कर्मों के हिसाब किताब से हम अपना भाग्य तो लिख रहे हैं हमने किसी को दुख दे दिया अब हमारे हाथ में वर्तमान हमारे हाथ में है ना हम किसी के भाग्य किसी को हमने दुख दे दिया तो वह हमारे भाग्य में लिखा गया हमने दुख दिया वह मुझे दुख देगा तो किसने लिखा हमने

अनादि अविनाशी ये जो विधि विधान है नियम है परमात्मा इन विधान में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं करता ताकत ही नहीं है उसमें कोई उसको चैलेंज करना चाहे तो मूर्ख है वो नहीं कर सकता पतन उसने कह दिया मैं परिवर्तन नहीं कर सकता फिर उसको क्यों कहा जाए कि परिवर्तन करो बदल दो उसे
कहने वाला क्या है उसको ज्ञान समझ में नहीं आया भगवान किसी का भी भाग्य बदल नहीं सकता किसी का पार्ट चेंज नहीं कर सकता ड्रामा में कुछ भी चेंज नहीं कर सकता एक सेकंड भी आगे पीछे नहीं कर

सकता नंबर तीन विधि विधान सार्वभौमिक और अनंत है यह विधि विधान जो है सार्वभौमिक सार्वभौमिक मतलब हमेशा चलने वाला और अनंत कभी भी इसका अंत नहीं हो सकता यह विधि विधान सर्व भौमिक सभी जगह स्वीकार किया जाने वाला माने
जाने वाला विश्व नाटक के विधि विधान सभी आत्माओं के लिए एक समान है किसी आत्मा के लिए कोई फर्क नहीं यह नहीं कि गरीब है अमीर है जाति है बिरादरी है कोई मतलब नहीं है हर आत्मा के लिए परमात्मा के जो कानून है परमात्मा के जो बनाई विधि विधान जो है सारा वह सबके लिए एक जैसा है हर आत्मा विश्व नाटक की हर आत्मा अपने कर्मों के

अनुसार इन नियमों का पालन करती है हर आत्मा करले जो करना है उसी नियम अनुसार उसको फल मिल जाएगा और उसका फल भी प्राप्त करती है परमात्मा इस प्रक्रिया में केवल एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है केवल रास्ता दिखाता है देखो यह रास्ता राइट है आप इस रास्ते पर चलोगे तो सुखी बनोगे नहीं चलोगे तो तुम्हारी मर्जी बस परमात्मा रास्ता दिखा के अपने आप को एक किनारे कर ले मार्गदर्शन की भूमिका निभाता यह हमारा भाग्य है कि हमें मार्गदर्शन मिल रहा है

निष्कर्ष है इसका कि परमात्मा विश्व नाटक का ज्ञाता और दाता है जो आत्माओं को सत्य का ज्ञान प्रदान करता है वे इस नाटक के विधि विधान को बनाता नहीं बल्कि उन पर आधारित कार्य करता है खुद उन नियमों के अनुसार चलता है वह सृष्टि चक्र में में नई चेतना का संचार करता है जिससे आत्माएं अपने कर्म के आधार पर सारी सृष्टि का आनंद
अनुभव कर पाती है क्योंकि परमात्मा आकर हम विस्मृत हुई आत्माएं जो ज्ञान परमात्मा से हमें हर कल्प मिलता है वो ज्ञान यहां संसार में पार्ट बजाते बजाते हम भूल जाती हैं परमात्मा आकर केवल उस ज्ञान की विस्मृति को स्मृति

देता है भूले हुए हम बच्चों को हमें वह स्मृति देता है कि संसार का नियम इस प्रकार से चलता है तो हमें उस सच्चाई को जानकर आत्मा को बड़ी आनंद की अनुभूति होती है और परमानंद की अनुभूति होती है और फिर वह उस पर चलकर अपना श्रेष्ठ भाग्य लिखती है हर एक आत्मा खुद उन नियमो पर चलती है
सबको बताए जाते हैं अब क्लास में मुरली हम सारे एक साथ पढ़ते हैं परंतु कोई अपने आप को सुधार रहा है कोई नहीं सुधार रहा है तो इसमें किसका दोष है हर आत्मा अपने आप को उतना ही सुधारे गी जितना उसका पार्ट हो उससे ज्यादा भी नहीं सुधार सकती उससे कम भी नहीं सुधार सकती

ओम शांति: कौन बनेगा पद्मा पदम पति?

हमने ठेका लिया है अपने आप को पद्मा पदम पति बनाने का। इसलिए इसके लिए जरूरी है ज्ञान का मंथन करना। आइए, कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों और उत्तरों के माध्यम से इस मंथन को गहराई से समझें।


प्रश्न 1: पद्मा पदम पति बनने के लिए सबसे आवश्यक चीज़ क्या है?

उत्तर: पद्मा पदम पति बनने के लिए सबसे आवश्यक चीज़ ज्ञान का मंथन करना है। जब हम मुरली का मनन-चिंतन करते हैं, तो हमारा एक-एक कर्म पद्म के समान बन जाता है। बिना गहन मंथन के यह संभव नहीं।


प्रश्न 2: हम इस ज्ञान मंथन में कैसे जुड़ सकते हैं?

उत्तर:
आप इस ज्ञान मंथन में Google Meet के माध्यम से जुड़ सकते हैं। इसका लिंक इस वीडियो के डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दिया गया है। मंथन के समय:

  • सुबह 4:00 बजे

  • सुबह 6:00 बजे

  • शाम 4:00 बजे

  • रात 8:00 बजे

यदि लिंक नहीं मिल रहा है, तो वीडियो में नीचे चल रही लाइन में दिए गए नंबर पर WhatsApp करके लिंक प्राप्त कर सकते हैं।


प्रश्न 3: परमात्मा को ज्ञाता, दाता और विधाता क्यों कहा जाता है?

उत्तर:
परमात्मा की तीन मुख्य विशेषताएँ हैं:

  1. ज्ञाता: वे विश्व नाटक और विधि विधान के सम्पूर्ण ज्ञाता हैं। उन्हें हर आत्मा, हर नियम, और ड्रामा की मर्यादा का संपूर्ण ज्ञान है।

  2. दाता: परमात्मा हमें सत्य का ज्ञान और शक्तियाँ प्रदान करते हैं। वे हमें मार्गदर्शन देते हैं, परंतु हमारे कर्म हम स्वयं करते हैं।

  3. विधाता नहीं: परमात्मा किसी नियम को बनाते नहीं, वे केवल मार्गदर्शन देते हैं। उन्होंने इस नाटक को नहीं बनाया, यह अनादि और अविनाशी है।


प्रश्न 4: यदि परमात्मा विधाता नहीं, तो क्या वे किसी आत्मा का भाग्य लिखते हैं?

उत्तर: नहीं, परमात्मा किसी आत्मा का भाग्य नहीं लिखते
हर आत्मा अपने कर्मों के आधार पर अपना भाग्य खुद लिखती है। परमात्मा सिर्फ हमें ज्ञान देकर मार्गदर्शन करते हैं, लेकिन हमें अपने कर्मों से ही अपने भविष्य को बनाना पड़ता है।


प्रश्न 5: अगर परमात्मा भाग्य नहीं बदलते, तो वे हमारी मदद कैसे करते हैं?

उत्तर: परमात्मा हमें सही मार्ग दिखाते हैं।

  • वे हमें ज्ञान, शक्ति, और श्रेष्ठ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं।

  • वे सृष्टि चक्र का वास्तविक स्वरूप समझाते हैं ताकि हम सही निर्णय ले सकें।

  • वे हमें राजयोग सिखाते हैं, जिससे हम अपने संस्कार और भाग्य को सुधार सकते हैं।


प्रश्न 6: ड्रामा और विधि विधान अनादि और अविनाशी क्यों हैं?

उत्तर:

  • ड्रामा (विश्व नाटक) अनादि और अविनाशी है क्योंकि इसकी कोई शुरुआत या अंत नहीं है।

  • विधि विधान भी अनादि हैं, क्योंकि यह पूरे विश्व के लिए समान हैं और इनमें कोई बदलाव संभव नहीं।

  • हर आत्मा, प्रकृति और समय भी अनादि और अविनाशी हैं।


प्रश्न 7: अगर भाग्य और ड्रामा में बदलाव संभव नहीं, तो क्या हमें प्रयास करने चाहिए?

उत्तर: हाँ, प्रयास बहुत आवश्यक हैं।

  • हमारे पास वर्तमान का अधिकार है।

  • हम अपने संस्कारों को बदलकर अपने जीवन को श्रेष्ठ बना सकते हैं।

  • अगर हमने किसी को दुख दिया, तो उसका परिणाम हमें मिलेगा। इसलिए हमें अच्छे कर्मों से अपने भविष्य को संवारना चाहिए।


प्रश्न 8: क्या परमात्मा किसी आत्मा के कर्मों को बदल सकते हैं?

उत्तर: नहीं, परमात्मा किसी आत्मा के कर्मों को नहीं बदल सकते
हर आत्मा को अपने कर्मों के आधार पर फल भोगना पड़ता है। परमात्मा सिर्फ ज्ञान देकर हमें सही रास्ता दिखाते हैं, लेकिन हम उस मार्ग पर चलें या नहीं, यह हमारा निर्णय है।


प्रश्न 9: क्या परमात्मा ड्रामा के नियमों को बदल सकते हैं?

उत्तर: नहीं, परमात्मा ड्रामा में कोई बदलाव नहीं कर सकते

  • वे स्वयं भी ड्रामा की मर्यादा में कार्य करते हैं।

  • वे सृष्टि चक्र में नए नियम नहीं बनाते, बल्कि आत्माओं को सृष्टि के नियमों का ज्ञान कराते हैं


प्रश्न 10: परमात्मा हमें क्या देते हैं, जिससे हम श्रेष्ठ भाग्य बना सकें?

उत्तर:
परमात्मा हमें तीन मुख्य चीजें देते हैं:

  1. ज्ञान: जिससे हम सत्य को पहचान सकें।

  2. योगबल: जिससे हम अपने पुराने संस्कारों को बदल सकें।

  3. संगति: जिससे हम श्रेष्ठ आत्माओं के साथ रहकर आगे बढ़ सकें।


🔹 निष्कर्ष 🔹

  • परमात्मा विधाता नहीं, बल्कि ज्ञाता और दाता हैं।

  • हर आत्मा अपने कर्मों से अपना भाग्य खुद बनाती है।

  • ड्रामा अनादि और अविनाशी है, इसमें बदलाव संभव नहीं।

  • परमात्मा हमें सिर्फ मार्गदर्शन देते हैं, परंतु हम अपने कर्मों से श्रेष्ठ भाग्य बना सकते हैं।

🚩 इसलिए ज्ञान मंथन में जुड़ें, अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाएं, और स्वयं को पद्मा पदम पति बनाएँ!

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