(12)क्या स्वर्ग जाने के लिए श्राध्द जरूरी है?
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
पितृपक्ष में श्राध्द रहस्यः-(12)क्या स्वर्ग जाने के लिए श्राध्द जरूरी है?
1. समाज की मान्यता
समाज में यह धारणा है कि –
“यदि श्राद्ध ना किया जाए तो आत्मा स्वर्ग नहीं जा सकती।”
इसीलिए हर वर्ष पितृ पक्ष पर श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान की परंपरा निभाई जाती है।
लेकिन सच्चाई क्या है?
क्या केवल श्राद्ध से आत्मा को शांति और स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है?
2. आत्मा का यात्रा नियम
साकार मुरली: 20 सितम्बर 2017
बाबा ने कहा –
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“आत्मा शरीर छोड़ते ही अपने कर्म अनुसार तुरंत नया शरीर ले लेती है।”
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आत्मा एक तीखा रॉकेट है, जो एक सेकंड में वहां पहुंच जाती है जहां नया गर्भ तैयार है।
इसका मतलब है कि आत्मा किसी के श्राद्ध पर निर्भर नहीं रहती।
3. आत्मा का अगला जन्म किस आधार पर होता है?
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आत्मा का जन्म उसके कर्मों और संचित पुण्य पर निर्भर होता है।
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जिसके साथ उसका कार्मिक अकाउंट है, उसी आधार पर नया जन्म मिलता है।
जैसे – अच्छे कर्म = अच्छे घर/परिवार का जन्म,
बुरे कर्म = कठिन परिस्थितियों का जन्म।
4. स्वर्ग कहां और कब मिलता है?
साकार मुरली: 21 सितम्बर 2016
बाबा ने समझाया –
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“स्वर्ग यहां इस संगमयुग में ज्ञान और पवित्रता द्वारा ही स्थापित होता है।”
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जो ज्ञान-योग का पुरुषार्थ करते हैं वही स्वर्ग के अधिकारी बनते हैं।
स्वर्ग का प्रवेश टिकट – ज्ञान, योग और पवित्रता है,
श्राद्ध या तर्पण नहीं।
5. श्राद्ध और स्वर्ग का भ्रम
साकार मुरली: 20 सितम्बर 2017
बाबा ने कहा –
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“श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान – यह सब भक्ति मार्ग की रीतियां हैं।
इनसे आत्मा को शांति नहीं मिलती।”
आत्मा को शांति कब मिलेगी?
जब आत्मा अपने अंदर शांति वाले संस्कार बनाएगी।
6. उदाहरण द्वारा समझें
मान लीजिए –
एक विद्यार्थी परीक्षा पास होने के लिए मिठाई बांटे, लेकिन पढ़ाई ना करे।
क्या वह पास होगा?
नहीं।
ठीक उसी तरह,
श्राद्ध करने से स्वर्ग नहीं मिलता,
स्वर्ग मिलता है आत्मिक पढ़ाई – ईश्वर का ज्ञान और राजयोग से।
7. निष्कर्ष
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स्वर्ग जाने के लिए श्राद्ध जरूरी नहीं।
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आत्मा का अगला जन्म कर्म और योगबल से तय होता है।
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असली स्वर्ग यहीं संगमयुग में, ईश्वर द्वारा स्थापित होता है।
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स्वर्ग का सच्चा टिकट है – ज्ञान, योग और पवित्रता।
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प्रश्नोत्तर अध्याय: पितृ पक्ष में श्राद्ध का रहस्य
1. समाज की मान्यता
प्रश्न: समाज क्यों मानता है कि श्राद्ध ना करने से आत्मा स्वर्ग नहीं जा सकती?
उत्तर: क्योंकि यह मान्यता पीढ़ियों से भक्ति मार्ग की परंपराओं द्वारा चली आ रही है। लोग सोचते हैं कि श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से ही आत्मा को शांति और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।प्रश्न: क्या केवल श्राद्ध करने से आत्मा को स्वर्ग मिलता है?
उत्तर: नहीं। आत्मा का गमन और उसका अगला जन्म श्राद्ध पर निर्भर नहीं है।
2. आत्मा का यात्रा नियम
प्रश्न: आत्मा शरीर छोड़ने के बाद कहां जाती है?
उत्तर: साकार मुरली: 20 सितम्बर 2017 में बाबा ने कहा –
“आत्मा शरीर छोड़ते ही अपने कर्म अनुसार तुरंत नया शरीर ले लेती है। आत्मा एक तीखा रॉकेट है, जो एक सेकंड में नया गर्भ पकड़ लेती है।”
इसलिए आत्मा श्राद्ध की प्रतीक्षा नहीं करती।
3. आत्मा का अगला जन्म किस आधार पर होता है?
प्रश्न: आत्मा को नया जन्म कैसे मिलता है?
उत्तर: आत्मा का जन्म उसके कर्मों और संचित पुण्य पर निर्भर होता है।
अच्छे कर्म = अच्छे घर/परिवार का जन्म,
बुरे कर्म = कठिन परिस्थितियों का जन्म।
4. स्वर्ग कहां और कब मिलता है?
प्रश्न: आत्मा को स्वर्ग कब और कहां मिलता है?
उत्तर: साकार मुरली: 21 सितम्बर 2016 में बाबा ने कहा –
“स्वर्ग यहां संगमयुग में ज्ञान और पवित्रता द्वारा स्थापित होता है।”
स्वर्ग का प्रवेश टिकट है – ज्ञान, योग और पवित्रता।
5. श्राद्ध और स्वर्ग का भ्रम
प्रश्न: क्या श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आत्मा को शांति दे सकते हैं?
उत्तर: साकार मुरली: 20 सितम्बर 2017 में बाबा ने स्पष्ट कहा –
“श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान – यह सब भक्ति मार्ग की रीतियां हैं। इनसे आत्मा को शांति नहीं मिलती।”प्रश्न: आत्मा को शांति कब मिलेगी?
उत्तर: जब आत्मा स्वयं शांति वाले संस्कार बनाएगी।
6. उदाहरण द्वारा समझें
प्रश्न: क्या बिना पढ़ाई किए मिठाई बांटने से छात्र परीक्षा पास हो सकता है?
उत्तर: नहीं।
ठीक उसी तरह,
केवल श्राद्ध करने से स्वर्ग नहीं मिलता।
स्वर्ग मिलता है – आत्मिक पढ़ाई, ईश्वर का ज्ञान और राजयोग से।
7. निष्कर्ष
प्रश्न: तो क्या श्राद्ध जरूरी है?
उत्तर: नहीं। आत्मा का अगला जन्म उसके कर्म और योगबल से तय होता है।प्रश्न: असली स्वर्ग कहां है?
उत्तर: असली स्वर्ग यहीं संगमयुग में ईश्वर रचते हैं।
स्वर्ग का टिकट है – ज्ञान, योग और पवित्रता। - Disclaimer: यह वीडियो धार्मिक परंपराओं का सम्मान करते हुए केवल आध्यात्मिक शिक्षा और ब्रह्माकुमारी मुरली ज्ञान पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी भी परंपरा या विश्वास को ठेस पहुँचाना नहीं है, बल्कि वास्तविकता और आत्मिक शांति का मार्ग बताना है।
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