( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
पितृपक्ष में श्राध्द रहस्यः-(21)अगर पैसे ना हों तो क्या श्राद्ध ना करना पाप है?
अगर पैसे ना हों तो क्या श्राद्ध ना करना पाप है?
1. परिचय
बहुत से लोग मानते हैं कि श्राद्ध करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है। अगर कोई आर्थिक कारण से श्राद्ध न कर पाए तो उसे पाप समझा जाता है। समाज में यह धारणा है कि ऐसा करने से पितृ जनों का दिल दुखता है।
लेकिन क्या यह सच है?
2. समाज की सोच बनाम सच्चाई
-
समाज: श्राद्ध नहीं किया → पाप किया।
-
सच्चाई: श्राद्ध करना या न करना पाप-पुण्य का प्रश्न ही नहीं है।
क्योंकि यह केवल भक्ति मार्ग की परंपरा है, जो आत्मा को शांति नहीं देती।
3. मुरली से प्रमाण
(i) साकार मुरली – 22 सितंबर 2016
शिव बाबा कहते हैं:
“श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान – ये सब भक्ति मार्ग की परंपराएं हैं। इनसे आत्मा को शांति नहीं मिलती।”
➡ इसका अर्थ है – श्राद्ध करना या न करना न तो पाप है और न ही पुण्य।
(ii) साकार मुरली – 18 सितंबर 2015
बाबा कहते हैं:
“सच्चा श्राद्ध है आत्मा को ज्ञान और योग का भोजन देना।”
➡ असली शांति केवल तब मिलती है जब हम ईश्वर की याद में बैठकर पवित्रता और ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं।
(iii) 2015 की मुरली बिंदु
“पितरों को अन्न-पानी से तृप्ति नहीं मिलती। उन्हें चाहिए योग-बल और शांति।”
4. क्यों आर्थिक स्थिति का कोई संबंध नहीं?
-
आत्मा की शांति पैसे से खरीदी नहीं जा सकती।
-
चाहे अमीर हो या गरीब – हर कोई असली श्राद्ध कर सकता है, क्योंकि इसके लिए केवल ईश्वर की याद चाहिए।
-
असली श्राद्ध है –
-
ज्ञान का पाठ पढ़ाना।
-
योग के अनुभव से आत्मा को शांति देना।
-
5. उदाहरण
मान लीजिए किसी को सिर दर्द हो गया।
आप उसे सोने के गिलास में पानी दे दो, लेकिन दवाई न दो। क्या फायदा?
बिल्कुल नहीं।
इसी तरह चाहे कितने भी खर्चे करके श्राद्ध किया जाए, आत्मा की भूख नहीं मिटती।
➡ असली दवाई है – ईश्वर स्मृति और योग-बल।
6. निष्कर्ष
Z श्राद्ध न करना पाप नहीं है।
✔ असली श्राद्ध कर्मकांड नहीं, बल्कि राजयोग और ज्ञान का प्रकाश है।
✔ पितरों की आत्मा को शांति आर्थिक साधनों से नहीं, बल्कि केवल ईश्वर की याद से मिलती है।
अगर पैसे ना हों तो क्या श्राद्ध ना करना पाप है?
Q1: अगर किसी के पास पैसे नहीं हैं और वह श्राद्ध नहीं कर सकता, तो क्या यह पाप होगा?
A: नहीं, भाई जी, नहीं होगा।
श्राद्ध न करना पाप नहीं है। असली शांति पैसे से नहीं खरीदी जा सकती।
Q2: समाज इस विषय में क्या सोचता है?
A: समाज में यह धारणा है कि श्राद्ध करना हर किसी का कर्तव्य है।
अगर कोई आर्थिक कारण से श्राद्ध न करे तो उसे पाप माना जाता है, क्योंकि उसे अपने पितृ जनों का दिल दुखाने का दोष लगता है।
Q3: वास्तव में क्या सच है?
A: सच्चाई यह है कि श्राद्ध करना या ना करना पाप-पुण्य का प्रश्न ही नहीं है।
यह केवल भक्ति मार्ग की परंपराएं हैं जो आत्मा को शांति नहीं देती।
Q4: बाबा का स्पष्ट संदेश क्या है?
A (साकार मुरली – 22 सितंबर 2016):
“श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान – ये सब भक्ति मार्ग की परंपराएं हैं। इनसे आत्मा को शांति नहीं मिलती। चाहे श्राद्ध करो, तर्पण करो या पिंडदान करो, आत्मा को कोई शांति नहीं मिलती।”
➡ इसका अर्थ: श्राद्ध करना या ना करना पाप-पुण्य का प्रश्न ही नहीं है।
Q5: असली श्राद्ध क्या है?
A (साकार मुरली – 18 सितंबर 2015):
“सच्चा श्राद्ध है आत्मा को ज्ञान और योग का भोजन देना।”
-
जब हम ईश्वर की याद में बैठकर पवित्रता और ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं, तो वही पितरों को असली शांति देता है।
Q6: क्यों आर्थिक स्थिति का कोई संबंध नहीं है?
A:
-
आपके पास पैसा हो या न हो – आत्मा की शांति पैसे से खरीदी नहीं जा सकती।
-
पितरों की आत्मा को ज्ञान और योग से ही मनसा सेवा करके शांति मिलती है।
-
ज्ञान = परमात्मा का परिचय देना, ज्ञान का पाठ पढ़ाना।
-
योग = ईश्वर की याद का अनुभव कराना।
मुरली बिंदु (2015):
“पितरों को अन्न-पानी से तृप्ति नहीं मिलती, उन्हें चाहिए योग-बल और शांति।”
Q7: क्या अमीर और गरीब दोनों असली श्राद्ध कर सकते हैं?
A: हाँ। असली श्राद्ध के लिए पैसे की जरूरत नहीं, केवल ईश्वर की याद और ज्ञान चाहिए।
Q8: उदाहरण से समझें
मान लीजिए किसी को सिर दर्द हो गया।
-
आप उसे सिर्फ पानी दे दें, लेकिन दवाई न दें।
➡ कोई फायदा नहीं।
इसी तरह, चाहे कितने भी खर्चे करके श्राद्ध किया जाए, आत्मा की भूख नहीं मिटती।
➡ असली दवाई है ईश्वर स्मृति और योग-बल।
Q9: निष्कर्ष
-
✅ श्राद्ध न करना पाप नहीं है।
-
✅ असली श्राद्ध कर्मकांड नहीं, बल्कि राजयोग और ज्ञान का प्रकाश है।
-
✅ पितरों की आत्मा को शांति आर्थिक साधनों से नहीं, बल्कि केवल ईश्वर की याद से मिलती है।
-