पितृपक्ष में श्राध्द रहस्यः-(22) मांस-मदिरा खाने वाले वालों के श्राद्ध का क्या महत्व है?
श्राद्ध का रहस्य
आज समाज में श्राद्ध एक परंपरा बन चुका है।
लोग मानते हैं कि श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।
लेकिन एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है –
जो परिवार स्वयं मांस-मदिरा का सेवन करता है, उनके द्वारा किया गया श्राद्ध कितना प्रभावी होता है?
बाबा का स्पष्ट संदेश
मुरली – 22 सितंबर 2016
“श्राद्ध, तर्पण, पिंड दान से आत्मा को शांति नहीं मिलती। शांति तो केवल परमात्मा की याद से मिल सकती है।”
इसका अर्थ यह है कि आत्मा की सच्ची भूख और प्यास केवल परमात्मा के स्मरण से मिटती है, न कि किसी कर्मकांड से।
मांस, मदिरा और श्राद्ध
जो लोग स्वयं मांस और मदिरा का सेवन करते हैं, उनके घर का वातावरण पहले से ही अशुद्ध हो जाता है।
अशुद्ध वातावरण में किया गया श्राद्ध –
-
केवल दिखावा बन जाता है।
-
आत्मा को कोई शक्ति और शांति नहीं मिलती।
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क्योंकि आत्मा को पवित्रता और ईश्वर स्मृति से ही बल मिलता है।
साकार मुरली – 18 सितंबर 2015
“सच्चा तर्पण है आत्मा को परमात्मा की याद का भोजन देना।”
उदाहरण
मान लीजिए किसी ने धूल-मिट्टी से भरे गिलास में दूध डालकर किसी को पिलाया –
क्या वह दूध उपयोगी रहेगा
बिल्कुल नहीं।
उसी प्रकार –
मांस-मदिरा और अशुद्ध जीवन के बीच किया गया श्राद्ध आत्मा के लिए बेकार है।
परमात्मा तक ऐसी स्थिति में कोई संदेश नहीं पहुँचता।
असली श्राद्ध क्या है?
-
पवित्र जीवन जीना
-
ईश्वर स्मरण (राजयोग ध्यान)
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ज्ञान और योग का प्रकाश फैलाना
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पवित्र वातावरण में आत्माओं को शक्ति भेजना
यही है आत्मा को असली शांति और तृप्ति देने का मार्ग।
निष्कर्ष
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मांस-मदिरा खाने वालों के श्राद्ध का कोई वास्तविक महत्व नहीं।
-
आत्मा को शांति मिलती है केवल –
पवित्रता से
ईश्वर स्मृति से
राजयोग ध्यान से।
सच्चा श्राद्ध है – आत्मा को परमात्मा की याद का भोजन देना।
प्रश्न 1:
आज समाज में लोग श्राद्ध क्यों करते हैं?
उत्तर:
लोग मानते हैं कि श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। यह अब एक परंपरा बन चुका है।
प्रश्न 2:
यदि परिवार स्वयं मांस-मदिरा का सेवन करता है, तो उनके द्वारा किया गया श्राद्ध कितना प्रभावी होता है?
उत्तर:
ऐसा श्राद्ध प्रभावी नहीं होता। क्योंकि मांस-मदिरा से घर का वातावरण अशुद्ध हो जाता है और अशुद्ध वातावरण में आत्मा को शांति और शक्ति नहीं मिलती।
प्रश्न 3:
बाबा का इस विषय पर क्या स्पष्ट संदेश है?
उत्तर:
मुरली – 22 सितंबर 2016
“श्राद्ध, तर्पण, पिंड दान से आत्मा को शांति नहीं मिलती। शांति तो केवल परमात्मा की याद से मिल सकती है।”
इसका अर्थ है कि आत्मा की भूख और प्यास केवल परमात्मा के स्मरण से मिटती है, न कि कर्मकांडों से।
प्रश्न 4:
मांस-मदिरा के साथ श्राद्ध करने का क्या परिणाम होता है?
उत्तर:
-
ऐसा श्राद्ध केवल दिखावा बन जाता है।
-
आत्मा तक कोई संदेश नहीं पहुँचता।
-
आत्मा को न शक्ति मिलती है, न शांति।
साकार मुरली – 18 सितंबर 2015
“सच्चा तर्पण है आत्मा को परमात्मा की याद का भोजन देना।”
प्रश्न 5:
क्या इस स्थिति को समझाने के लिए कोई उदाहरण है?
उत्तर:
हाँ। मान लीजिए धूल-मिट्टी से भरे गिलास में दूध डालकर किसी को पिलाया जाए –
क्या वह दूध उपयोगी रहेगा
बिल्कुल नहीं।
उसी तरह मांस-मदिरा और अशुद्ध जीवन के बीच किया गया श्राद्ध आत्मा के लिए बेकार है।
प्रश्न 6:
तो असली श्राद्ध क्या है?
उत्तर:
असली श्राद्ध है –
-
पवित्र जीवन जीना
-
ईश्वर स्मरण (राजयोग ध्यान)
-
ज्ञान और योग का प्रकाश फैलाना
-
पवित्र वातावरण में आत्माओं को शक्ति भेजना
प्रश्न 7:
निष्कर्ष क्या है?
उत्तर:
-
मांस-मदिरा खाने वालों के श्राद्ध का कोई वास्तविक महत्व नहीं।
-
आत्मा को शांति मिलती है केवल –
पवित्रता से
ईश्वर स्मृति से
राजयोग ध्यान से।
सच्चा श्राद्ध है – आत्मा को परमात्मा की याद का भोजन देना।
Disclaimer:यह वीडियो केवल आध्यात्मिक ज्ञान और मुरली में आए हुए ईश्वरीय संदेश पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी धर्म, परंपरा या रीति-रिवाज की आलोचना करना नहीं है। हम सभी मतों, परंपराओं और मान्यताओं का सम्मान करते हैं। यह वीडियो केवल आत्मा की शांति और सच्चे श्राद्ध के रहस्य को स्पष्ट करने के लिए है।
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