Question: What is the basis for destiny to open?

प्रश्नः-तकदीर खुलने का आधार क्या है?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“मन-मना-भाव: पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि तक — एक शक्तिशाली जागृति”


1. परिचय: कौन हमें पढ़ाता है?

  • सवाल से संवाद की शुरुआत — “कि हमें कौन पढ़ाता है?”

  • आत्म-मूल्यांकन की प्रेरणा: “मन मना भाव” क्या है?

  • पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि की बदलती स्थिति की समझ।


2. खुशी का स्रोत: प्राप्ति और उसका मूल्य

  • खुशी का संबंध “प्राप्ति” से; मूल्य समझने पर ही मिलती है सच्ची खुशी।

  • चंदन के जंगल की कहानी: मूल्य को पहचानने की सीख — कैसे हम सस्ते में भी बेच देते हैं।

  • जीवन के दैनिक कार्यों में खो जाना – “पशु वाला जीवन” — और वास्तव में हमें क्या खुशी देता है?


3. वैल्यू देने का महत्व: एक सूत्र

  • “मेरी एक बात लाख की” वाले इम्पोर्टेंस की बात।

  • सोचने-समझने के बाद ही कार्य करने की प्रेरणा।

  • जीवन को श्रेष्ठ बनाने का तरीका – शिक्षा, आत्म-सुधार, और वैल्यू देना।


4. सुप्रीम टीचर और आत्म-अस्वीकार

  • “जिससे ऊपर कोई टीचर नहीं” — उस अलौकिक शिक्षक को स्वीकार करना।

  • “मन मना भाव” लागू करके अपनी बुद्धि बदलने की प्रक्रिया।


5. तक़दीर खुलने का आधार: निश्चय और पुरुषार्थ

  • प्रश्न: “तक़दीर खुलने का आधार क्या है?”

  • जवाब: फ़ॉर्मूला — निश्चय + भक्ति/चाहत + पुरुषार्थ = तक़दीर का खुलना।

  • भक्ति से प्रोत्साहित होकर जो लोग “बाप (परमात्मा)” तक अपनी बुद्धि ले जाते हैं, वही ‘सतो प्रधान’ बनते हैं।


6. दौड़ – लक्ष्य तक पहुँचने की प्रेरणा

  • निश्चिंत बाप की अवस्था तक आत्मा की बुद्धि को दौड़ाते रहना।

  • मुश्किल समय में भी अडिग रहना — जैसे बाढ़ या तूफ़ान में स्थिर रहना।

  • सतत अभ्यास और मन मना भाव से वह ऊँचाई हासिल करना।


7. अवधारणा: पत्थरपुरी से पारसपुरी तक

  • पत्थरपुरी (भौतिक जीवन) → पारसपुरी (आध्यात्मिक राज्य) का आदर्श रूपांतरण।

  • यह हमारा “पुरुषोत्तम संगम युग” — शिक्षा और आत्म-साक्षात्कार का युग।


8. लक्ष्य: कल्कि अवतार और नई शिक्षा

  • कल्कि अवतार की प्रतीक्षा और वर्तमान में उसकी पहचान।

  • “मैं ही कल्कि अवतार।” — मुरली वचन से आत्म-प्रेरणा।

  • परमात्मा का अवतरण — हर कल्प में पुनरुत्थान और आत्माओं को दुख से पार करना।

  • निष्कर्ष: हर आत्मा को “विनाश काले विपरीत बुद्धि” के मध्य मार्ग से आगे बढ़ना है।

Q&A: “मन-मना-भाव: पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि तक — एक शक्तिशाली जागृति”


1. परिचय: कौन हमें पढ़ाता है?

प्रश्न: हमें कौन पढ़ाता है?
उत्तर: हमें वह परमात्मा पढ़ाते हैं जो स्वयं कहते हैं: “मैं ज्ञान का सागर हूँ, परम शिक्षक हूँ, जिससे ऊपर कोई भी शिक्षक नहीं।” यह शिक्षा आत्मा को पत्थर से पारस बनाने के लिए दी जाती है।

प्रश्न: “मन मना भाव” का क्या अर्थ है?
उत्तर: “मन मना भाव” का अर्थ है — “अपना मन मेरे में लगाओ।” अर्थात् परमात्मा शिव बाबा में मन को जोड़कर आत्मा की बुद्धि को शुद्ध और शक्तिशाली बनाना।

प्रश्न: पत्थर बुद्धि और पारस बुद्धि में क्या अंतर है?
उत्तर: पत्थर बुद्धि वह है जो भौतिक बातों में उलझी रहती है और दुख देती है, जबकि पारस बुद्धि वह है जो परमात्मा से जुड़कर स्वयं को और दूसरों को मूल्यवान बना देती है।


2. खुशी का स्रोत: प्राप्ति और उसका मूल्य

प्रश्न: सच्ची खुशी कहाँ से आती है?
उत्तर: सच्ची खुशी तब मिलती है जब आत्मा को परमात्मा की प्राप्ति होती है। प्राप्ति का मूल्य समझने से ही खुशी की अनुभूति होती है।

प्रश्न: चंदन के जंगल की कहानी हमें क्या सिखाती है?
उत्तर: वह कहानी सिखाती है कि जब हम किसी मूल्यवान चीज़ को पहचानते नहीं, तो हम उसे सस्ते में गंवा देते हैं। यही हमारे जीवन में भी होता है — परमात्मा की प्राप्ति को हम अनजाने में खो देते हैं।

प्रश्न: “पशु वाला जीवन” क्या है?
उत्तर: जब आत्मा बिना सोच-समझ के सिर्फ खाने-पीने, सोने और भौतिक कार्यों में लगी रहती है, तब वह पशु जैसा जीवन जीती है। आत्म-स्मृति ही उसे इंसान से देवता बनाती है।


3. वैल्यू देने का महत्व: एक सूत्र

प्रश्न: “मेरी एक बात लाख की” — इसका क्या भाव है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि हमारी हर बात, हर सोच, हर कर्म में इतनी वैल्यू हो कि वह लाखों को बदलने की ताकत रखे। यह तब संभव होता है जब हम सोच-समझकर बोलें और करें।

प्रश्न: जीवन को श्रेष्ठ कैसे बनाएं?
उत्तर: शिक्षा, आत्म-सुधार और हर कर्म में वैल्यू जोड़कर ही जीवन श्रेष्ठ बनता है। हमें कर्मों को महत्व देना चाहिए, मात्र संख्या नहीं।


4. सुप्रीम टीचर और आत्म-अस्वीकार

प्रश्न: “जिससे ऊपर कोई टीचर नहीं” — ये कौन हैं?
उत्तर: यह परमात्मा शिव हैं, जिन्हें सभी धर्म वाले “ईश्वर”, “God” या “Supreme” कहते हैं — वही हमें पढ़ाते हैं। उनके जैसा कोई भी टीचर नहीं।

प्रश्न: मन मना भाव से बुद्धि कैसे बदलती है?
उत्तर: जब बुद्धि को बार-बार परमात्मा की याद में टिकाते हैं, तो वह धीरे-धीरे संसार की बातों से हटकर सत्य ज्ञान की ओर झुकती है। यही परिवर्तन पारस बुद्धि की ओर ले जाता है।


5. तक़दीर खुलने का आधार: निश्चय और पुरुषार्थ

प्रश्न: तक़दीर खुलने का असली आधार क्या है?
उत्तर: इसका फ़ॉर्मूला है —
निश्चय + भक्ति/चाहत + पुरुषार्थ = तक़दीर का खुलना।
जब आत्मा को पूर्ण निश्चय होता है, उसमें परमात्मा की चाहत होती है और वह सतत अभ्यास करती है — तभी उसका भाग्य खुलता है।

प्रश्न: ‘सतोप्रधान’ कौन बनता है?
उत्तर: जो आत्मा “बाप” को जानकर उसकी याद में पुरुषार्थ करती है, वही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनती है।


6. दौड़ – लक्ष्य तक पहुँचने की प्रेरणा

प्रश्न: आत्मा को कहाँ तक दौड़ाना है?
उत्तर: आत्मा की बुद्धि को निश्चिंत बाप की स्थिति तक, यानी परमात्मा समान बनने तक दौड़ाना है। यह दौड़ ‘मन मना भाव’ के अभ्यास से ही होती है।

प्रश्न: मुश्किल समय में क्या करें?
उत्तर: जैसे कोई बाढ़ या तूफ़ान में स्थिर रहता है, वैसे ही मुश्किल समय में भी परमात्मा की याद से बुद्धि को स्थिर रखना ही सच्चा पुरुषार्थ है।


7. अवधारणा: पत्थरपुरी से पारसपुरी तक

प्रश्न: “पत्थरपुरी” और “पारसपुरी” क्या हैं?
उत्तर: “पत्थरपुरी” का अर्थ है – वह दुनिया जहाँ आत्मा अज्ञान में पत्थर जैसी जड़ बन जाती है। “पारसपुरी” वह स्थिति है जहाँ आत्मा दिव्यता, शक्ति और सत्यता को प्राप्त कर लेती है।

प्रश्न: पुरुषोत्तम संगम युग का क्या महत्व है?
उत्तर: यह वही समय है जब आत्मा को परमात्मा से शिक्षा मिलती है और वह अपने वास्तविक स्वरूप को जानती है — यह काल बहुत ही श्रेष्ठ और दुर्लभ है।


8. लक्ष्य: कल्कि अवतार और नई शिक्षा

प्रश्न: कल्कि अवतार की सच्चाई क्या है?
उत्तर: परमात्मा स्वयं अवतरित होकर कहते हैं — “मैं ही कल्कि अवतार हूँ, जो अज्ञान का नाश कर सत्य ज्ञान देता हूँ।” यह शिक्षा ही आत्मा को मुक्त करती है।

प्रश्न: परमात्मा का अवतरण कब होता है?
उत्तर: हर कल्प में संगम युग पर परमात्मा आते हैं — जब अज्ञान बढ़ जाता है और धर्म पतन पर होता है — तब वे पुनरुत्थान के लिए ज्ञान रूपी घोड़े पर सवार होकर आते हैं।

प्रश्न: विनाश काले विपरीत बुद्धि क्यों होती है?
उत्तर: जो आत्माएं परमात्मा को न पहचानकर भौतिकता में उलझी रहती हैं, उनकी बुद्धि विनाश काल में विपरीत हो जाती है। इसका समाधान है — मन मना भाव

Disclaimer (डिस्क्लेमर):

इस वीडियो में प्रस्तुत सभी प्रश्नोत्तर और व्याख्याएं ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा दी गई आध्यात्मिक शिक्षाओं और श्रीमद भगवद गीता में दिए गए “मन मना भाव” के मूल आध्यात्मिक भावार्थ पर आधारित हैं। यह वीडियो आत्मा, परमात्मा, और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने में सहायक हेतु बनाया गया है। यह किसी भी धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं है। कृपया इसे एक आध्यात्मिक अध्ययन के रूप में लें।

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