राजयोग का परम ज्ञान:-राजयोग का परम ज्ञान
हम सारे बहुत पुराने बाबा के बच्चे और सहज राज योग के हम सभी अभ्यासी काफी समय से अभ्यास कर रहे हैं।
मैं सामान्य था, बहुत लोग पूछते हैं — हमारा योग नहीं लगता।
सोचते हैं कि कहीं जाकर योग भक्ति सीखे। क्यों ऐसा होता है?
आज हम इस बात को ध्यान से समझने का प्रयास करेंगे।
आप सब कुछ जानते हैं, इसलिए आप माइक ले लीजिए — आप बताएंगे, मैं सिर्फ प्रश्न पूछूंगा।
जितना आप सही बताते जाएंगे, उतना मुझे बोलना कम पड़ेगा।
और जब कुछ कमी होगी, तो मैं उस बिंदु को स्पष्ट कर दूंगा।
ठीक है, आवाज ठीक है? ओम शांति।
ओम शांति। तो हम सभी आज के क्लास का टाइम WhatsApp पर नहीं डाले थे, क्योंकि सबको पता था।
जो नहीं जानता था, उसने मनोज भाई से पता किया — चलो कोई बात नहीं।
जो ड्रामा में पार्ट है, उनकी रिकॉर्डिंग हो रही है। अच्छा।
सहज राज योग शब्द
आज का विषय है — “सहज राज योग का परम ज्ञान”, अर्थात् वह ज्ञान जो परमात्मा द्वारा दिया गया है।
अब प्रश्न यह है — इसे सहज क्यों कहते हैं?
जो बताना चाहे, माइक उठाकर बताए।
सहज क्यों कहते हैं?
जिसको पता है वो बोले, नहीं पता है तो मैं बोलूं।
आत्मा — जब स्वयं को आत्मा का निश्चय हो जाता है, तब यह सहज बन जाता है।
जब तक हम आत्मा का निश्चय नहीं करते, तब तक यह सहज नहीं हो सकता।
दूसरे भाई ने कहा — क्योंकि परमात्मा हमारा पिता है, इसलिए सहज है।
इतना दूर का रिश्ता नहीं है जिसे याद करने में कठिनाई हो।
पिता का रिश्ता तो बहुत निकट है, इसलिए उसे याद करना सहज है।
बस अपने को आत्मा समझकर परमात्मा को एक संबंध से याद करना है — यही सहज राज योग है।
दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो:
दुनिया में जितने भी योग हैं, सबमें शरीर को टेढ़ा-मेढ़ा करके, अकड़कर बैठना पड़ता है।
परंतु बाबा ने कहा — जैसे मर्जी बैठो, चाहे कुर्सी पर, चाहे नीचे, चाहे लेटे हुए।
क्योंकि पेरेंट्स के पास जाने के लिए बच्चों को कोई विशेष आसन की आवश्यकता नहीं।
बाबा कहते हैं — “चलते-फिरते, उठते-बैठते, खाते-पीते मुझे याद करो।”
याद के लिए कोई विशेष स्थान या बाबा रूम जरूरी नहीं।
कहीं भी, किसी भी स्थिति में याद संभव है।
नए बच्चों को वातावरण देने के लिए बाबा रूम में बैठाया जाता है, ताकि लगन लगे, लेकिन याद हर जगह हो सकती है।
अब दूसरा शब्द – राजयोग
राजयोग क्या है?
राजयोग आत्मा और परमात्मा का साक्षात मिलन है।
जब आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है, तभी वह सच्चा राजयोग है।
यदि यह मिलन नहीं हुआ, तो हम केवल योगी कहलाते हैं, राजयोगी नहीं।
परमात्मा दिखाई तो देता नहीं — अब आत्मा क्या है?
आत्मा शक्ति है, ऊर्जा है।
हम उसे देख नहीं सकते, लेकिन महसूस कर सकते हैं।
कैसे? जैसे बिजली तार में होती है — दिखाई नहीं देती, पर करंट है या नहीं, यह टेस्टर से पता चलता है।
वैसे ही बाबा ने हमें टेस्टर दिया है — अनुभव का।
आपने कभी मृत शरीर देखा है? उसमें और जीवित शरीर में क्या अंतर होता है?
जीवित में आंखों की चमक होती है, डेड बॉडी में वह चमक बुझ जाती है।
वही आत्मा की उपस्थिति और अनुपस्थिति का प्रमाण है।
आत्मा को हम प्रत्यक्ष रूप से नहीं देख सकते, लेकिन उसकी उपस्थिति महसूस कर सकते हैं।
आत्मा सूक्ष्म ज्योति बिंदु है — यही परमात्मा का भी स्वरूप है।
दोनों ही अति-सूक्ष्म ज्योति बिंदु हैं।
बाबा ने समझाया — “आत्मा और परमात्मा, दोनों बिंदु हैं, जिनकी लंबाई, चौड़ाई या ऊँचाई नहीं।”
पहले चित्रों में अंडाकार दिखाया जाता था।
फिर बाबा ने कहा — “बीच में एक बिंदी लगाओ,” और वहीं से बिंदी का प्रयोग आरंभ हुआ।
अब हमें आत्मा और परमात्मा के इस बिंदु स्वरूप को समझना है।
मैं आत्मा हूं, यह शरीर मेरी गाड़ी है।
जब तक यह अभ्यास नहीं होगा, तब तक राजयोग का अनुभव नहीं हो सकता।
अशरीरी बनने का अभ्यास:
बाबा कहते हैं — “एक सेकंड में देह से न्यारा हो जाओ।”
यदि कोई एक सेकंड भी इसका अनुभव कर ले, तो वह अवस्था बढ़ती जाएगी।
अभ्यास कब करना है? जब आप एकांत में हों।
एकांत का अर्थ है — जब बुद्धि में केवल बाबा हो, और कोई नहीं।
बाबा की श्रीमत के सिवाय कोई और विचार न हो — वही एकांत है।
उस समय स्वयं को कमांड दें — “मैं इस देह से न्यारी आत्मा हूं।”
यदि एक सेकंड भी अनुभव हो जाए, तो वह नशा चढ़ जाता है, और बार-बार उसी अवस्था में जाने की लगन बढ़ती है।
कमेंट्री से योग नहीं लगता:
जब कोई कमेंट्री चल रही होती है, तब ध्यान कमेंट्री करने वाले पर चला जाता है।
इससे ना उसका योग लगता है, ना श्रोता का।
कमेंट्री केवल नयों को सिखाने का माध्यम है, ताकि उन्हें पता चले कि बैठकर क्या करना है।
लेकिन सच्चा योग तब होता है जब बुद्धि में केवल बाबा हो।
सार:
पहला अभ्यास — अशरीरी होना।
बिना अशरीरी हुए परमात्मा से कनेक्शन नहीं जुड़ता।
राजयोग तभी होता है जब हम आत्मा रूप में स्थिर होकर परमात्मा बिंदु से संबंध जोड़ें।
यह कठिन नहीं, सहज है — लेकिन हमने इसे कठिन बना रखा है,
क्योंकि हम बाबा की श्रीमत के अनुसार स्वयं को बदलने का पूरा प्रयास नहीं करते।
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शक्तियां मिलती हैं। बाबा का कहना मानेंगे, परिवर्तन करेंगे — तो शक्तियां भी मिलेंगी। सब कुछ होगा।
याद की ज्वालामुखी — साकार मुरली है यह 22 फरवरी 1969 की।
बच्चे, योग की ज्वालामुखी में तुम्हारे पाप भस्म हो जाएंगे।
यह याद की आग आत्मा को कंचन बना देती है।
निरंतर बाबा की श्रीमत पर अपने आप को सुधार रहे हैं।
एक शब्द आता है — “याद की यात्रा।”
आगे मुरली में यह शब्द आएगा, परंतु यहां उसे स्पष्ट करना जरूरी है।
बाबा ने कहा — एक होती है साइकिल जो घर में खड़ी होती है, और एक होती है जिससे रोड पर चलते हैं।
तो बाबा ने कहा — याद की यात्रा “रोड वाली साइकिल” जैसी होनी चाहिए, खड़ी हुई साइकिल जैसी नहीं।
जो सारा दिन पांव चला रहा है लेकिन आगे नहीं बढ़ रहा — वह खड़ी साइकिल है।
बाबा रूम में आठ घंटे बैठकर योग कर रहा है, भट्टी से बाहर निकला तो वैसा का वैसा।
कोई परिवर्तन नहीं आया।
बाबा कहते हैं — दूरी तो तय होनी चाहिए ना।
इसलिए बाबा ने साइकिल का उदाहरण दिया कि वह साइकिल लो जिससे आगे बढ़ो, दूरी तय करो।
कई भाई-बहन जैसे आए थे वैसे ही हैं —
आए, मुरली सुनी, चले गए।
आए, मुरली सुनी, चले गए।
जैसे कथा सुनने मंदिर जाते थे — कोई परिवर्तन नहीं आया।
वह यात्रा नहीं हुई।
यात्रा का मतलब है — मेरे अंदर सुधार आना चाहिए, मेरे अंदर परिवर्तन आ रहा है।
तब तो मैं यात्रा पर हूं।
अब याद के योग के लिए तो कोई विशेष लाइन नहीं।
आप हर पल अपने में सुधार देखें।
बाबा के शब्द हैं — हर सेकंड देखो, मैं आगे बढ़ा या नहीं।
हर सेकंड देखो — मैं आगे बढ़ रहा हूं या वहीं खड़ा हूं।
यह बैठकर का चक्र है — मेरे अंदर कितना सुधार आया?
अब इतनी देर मैं बाबा की याद में रहा या नहीं?
चाहे चलते-फिरते याद किया, लेकिन यदि सुधार आया तो आप आगे बढ़े,
वरना क्या फायदा?
दोस्तों को भी याद नहीं किया, फिल्म देखने भी नहीं गए, इधर-उधर की बातें भी नहीं की,
न्यूज़ भी नहीं सुनी —
फिर भी फायदा नहीं हुआ तो क्या लाभ? वही के वही।
इतने टफ नियम हैं, और नियम में छूट भी नहीं है।
कोई पैसे दे दे, भंडारी में फालतू जमा करे — उससे कोई मतलब नहीं।
मेरा सिर्फ एक ही उद्देश्य है — क्या मुझमें सुधार हो रहा है?
अगर सुधार हो रहा है, तो आप याद की यात्रा पर हैं,
नहीं तो आप अभी भी पहली क्लास में खड़े हैं।
चाहे 10 साल हो गए हों — फिर भी वही स्थिति।
याद में ही बल है।
साकार मुरली 18 जनवरी 1970 की —
बच्चे, योग बल से असंभव संभव हो जाता है।
योग बल से ही विजय का ताज मिलता है।
याद सहज है — यदि प्रेम है।
साकार मुरली 21 सितंबर 1969 की —
बच्चे, योग साधना नहीं है, योग तो प्रेम है।
अगर कोई कहे “मैं योग कर रहा हूं” — तो मेहनत क्यों?
जिसे बाबा से सच्चा प्यार है, उसे कोई मेहनत नहीं लगती।
मोहब्बत है तो मेहनत नहीं; मेहनत है तो मोहब्बत नहीं।
योग तो प्रेम की निशानी है।
जब दिल से बाप को प्यार करोगे, तो याद अपने आप चलेगी।
प्रेम की आग ही योग का असली अनुभव है।
हमें प्रेम की आग लग जाए — यही योग का सच्चा अनुभव है।
प्रेम में जब आग लगती है, तो वह दिल को निरंतर गरमाती है।
जितनी यह गर्मी बढ़ेगी, उतनी हमारे अंदर शक्ति भी आएगी।
शिव पिता को अब याद करो, मुक्ति धाम जाना है।
अपने कर्मों के बल पर ही मुक्ति का द्वार खुलता है।
शिव पिता को याद करो — वही फिर से आया है, वही ज्ञान सुना रहा है।
कलियुग का अंत आया है, विकराल अविनाश सामने खड़ा है।
पिता को याद करो।
पांडव शिव शक्ति से मेरी अब फिर बजती है —
सतयुग में वही स्वर लहराएगा।
शिव पिता को याद करो — मुक्ति धाम जाना है।
अपने कर्मों के बल पर अब तुम्हें वहाँ पहुँचना है।
योग भी उसी प्रकार है — आत्मा की तरफ।
जब आत्मा निरंतर परमात्मा को याद करती है,
तो यह याद की ज्वाला निरंतर प्रज्वलित रहती है।
इस आग में विकार और पाप के बीज भस्म हो जाते हैं।
जब बाबा याद होगा, तो हमारे से कोई गलती हो ही नहीं सकती।
यदि गलती हो रही है — तो बाबा याद नहीं।
जैसे सोने को गर्म करने पर उसकी सारी खोट निकल जाती है,
वैसे ही जब आत्मा बाबा की याद में रहती है,
तो हमारी कमियां, हमारी खामियां, सब बाहर निकल जाती हैं।
हमें कुछ भी विशेष मेहनत करने की जरूरत नहीं।
5 फरवरी 1970 को बाबा ने कहा —
“बच्चे, योग की आग में पाप भस्म हो जाते हैं।”
यह आग प्रेम से लगती है, जोर-जबरदस्ती से नहीं।
जितना बाबा से प्यार होगा, उतनी यह आग जलती रहेगी।
स्पेशल है ना अपने आप ही जवाब देता है ध्यान गया अभी क्यों क्यों खड़ा किया कहता है यदि मैं इसको आपके सामने खड़ा करूं क्योंकि ये तुम्हारा लक्ष्य है। मैं इसको तुम्हारे सामने खड़ा करूं तो इसकी पीठ दिखाई देगी चित्र में।
यदि हमारे सामने खड़ा करे तो इसकी पीठ दिखाई देगी। और यदि मैं तुम्हें इनके सामने करूं तो आपकी पीठ दिखाई देगी। इसलिए मुझे बीच में खड़ा करना पड़ा। मतलब मुरली में बाबा समझा रहा है ऐसे। अब उसके बाद यह तुम्हारा वर्तमान लक्ष्य है विष्णु चतुर्भुज बनना।
इसमें चार सब्जेक्ट है। इसमें चारों अलंकार है। ये अलंकार बाबा कहते तुम्हारे हैं। ये तो बेचारा तुम्हारे लिए पकड़ कर खड़ा है। कि भैया इनको धारण कर लो। तुम जल्दी धारण करो। मेरी जात छूटे। ठीक है।
फिर नहीं। अच्छा अब हमने शंख को हम जानते हैं। शंख माना ज्ञान सुनाना ज्ञान सुनाना है नहीं जितना ज्ञान सुनाएंगे उसमें हम 100% बनना है। ठीक है कि नहीं? उसके बाद दूसरा क्या है हमारे पास? कमल फूल समान पवित्र बनना। 100% पवित्र बनना है। और उसके बाद चक्र चलाना।
चक्र चलाना माना अपने ध्यान दीजिए ध्यान कोई बात नहीं आप प्लीज सुनिए हां बता रहा हूं मैं आपको पहले अभी एक एक चक्र बता दूं एक एक अलंकारों को बता दूं फिर मैं उसको 100% बनने का क्या मतलब है बताता हूं आपको सबका एक ही मतलब है सुदर्शन चक्र किसे कहते हैं।
सुदर्शन चक्र का मतलब है स्वय का दर्शन करना कि मैं सतयुग त्रेता तो आपको कलयुग कैसे बना जब कलयुग में आएंगे तो द्वापर में जो कलयुग में आएंगे संगम पर आएंगे। जब हम संगम पर आएंगे तो हमें पता लगेगा अच्छा अब मुझे देवता बनना है।
यही है ना? देवता बनना है। परंतु मेरी ये गंदी आदतें मुझे देवता बनने देंगी। कौन सी गंदी आदतें मुझे देवता नहीं बनने देती? अच्छा ये वाली। आज इसका गला कांचना है। तब तो सुदर्शन चक्र चलाया। आपने उस बुराई का गला काटा। अगले दिन फिर अच्छा यह भी अभी रह गई है। इसका भी गला काटना है। चलो अब इसका गला।
मतलब एक एक बुराई का गला काटना माना सुदर्शन चक्र चलाना। और आपने मैंने ना स्कूल में बड़ी देर सत्य लेता तो आपको खुद कभी चक्र चला चला चला चला। दिमाग खराब कर दिया और यहां आके पता लगा भैया ये सुदर्शन चक्र चलाना नहीं।
चक्कर चलाना है तो संगम पर आकर गला काटो किसी का तब तो आपने चक्कर चलाया चक्कर चलाया गला एक भी नहीं कटा क्या फायदा हुआ मैं स्कूल में बैठा बैठा रटता रहता था सतयुग में ये त्रेता में द्वापर में मैंने घुमा घुमा के टाइम वेस्ट कर दिया क्या पता ही नहीं था सारी दुनिया अभी वही कर रही है वही कर रही है गला काट दो भाई तभी तो दूसरा।
अगले दिन फिर दूसरा गला काटो। दिन में जितनी बार सुदर्शन चक्र चलाओ आपने गला नहीं काटा। किसी बुराई का क्या किया? किस बात का सुदर्शन चक्र चलाया? आपका हर सुदर्शन चक्र बुराई का गला काटने वाला। योग को बदल दिया।
बहुत बहुत अच्छी तरह से ध्यान से समझना। कमल फूल समान पवित्र बनना है। जरा भी पानी नहीं टिकना चाहिए मेरे ऊपर। हर वक्त मुझे अलर्ट खड़ा रहना है गधा पकड़ कर। कोई मेरे पास शत्रु घुस ना सके। ये चारों अलंकारों से हम 100% प्योर बनेंगे।
ठीक है कि नहीं? मैं विषय से आपको बाहर नहीं निकालना चाह रहा हूं। तो यहां पर हम ब्रह्मा जो है जब चारों अलंकार धारण कर लेता है तो ऊपर खड़ा कर दिया। नीचे बैठा है। ऊपर जाके ब्रह्मा को क्या कर दिया? खड़ा कर दिया और फिर ऊपर पेड़ कमल का फूल ऊपर दिखा दिया। देख रहे हो उसके ऊपर ऊपर साइड में कमल का फूल ऊपर क्या जरूरत है कमल का फूल दिखाने की?
एक एक चीज बाबा मुरली में पकड़ करके दिखाते कि कमल का फूल ऊपर क्यों दिखा दिया? जब ब्रह्मा संपूर्ण पवित्र बन गया तो इस साइड में क्या दिखाया? उसके नीचे क्या लिखा हुआ है? नहीं नीचे पढ़ो क्या लिखा हुआ है — सतयुग का प्रथम राजकुमार। कहां दिखाया विनाश से पहले।
और बाबा की मुरली है — ब्रह्मा सो विष्णु व श्री कृष्ण बनता। जब यह नीचे वाला ब्रह्मा विष्णु बनता है तो कृष्ण के रूप में जन्म लेता है।
ठीक है? मेन बात हमें यही बनना है विषय। अब कोई नहीं बनेगा जो यहां बनेगा तो वो तो यही सुरक्षित शरीर छोड़ के जाएगा और जो पूरा नहीं बनेगा वो वापस आकर के जन्म देगा। ठीक है? हमें मेन बात समझनी थी — विष्णु चतुर्भुज वर्तमान हमारा लक्ष्य है। हमने चारों अलंकारों को 100% धारण करना।
करेंगे तो हम उतना ही जितना कर सकते हैं। है नहीं? हम 15 साल से ज्यादा नौकरी नहीं कर सकते। परंतु हमने क्या करना है? आफ्टर जितना हम कर सकते हैं हम ज्ञान सुनाने वाला काम करें। सेवा करें। जितना हम कमल फूल समान अपने आप को न्यारा और प्यारा बना सकते हैं।
आप पूरी कोशिश करें, पूरी मेहनत करें, पुरुषार्थ करें। उस अवस्था को प्राप्त करने के लिए जितना बुराइयों का गला काट सकते हैं। जितना अलर्ट रह सकते हैं, अपने आप को रखें। ये चारों अलंकार हमारे हैं। और हमने किसी भी बुराई को अपने में आने नहीं देना चाहिए। हमें डायमंड बनना है। और वह भी बेदा दाग।
एक भी दाग रह गया तो वैल्यू कम। मुझे दाग अपने खुद ढूंढने हैं। मिटाने विवाह तो कुछ करता नहीं। निकम्मा है एकदम। कोई काम करने के टाइम पर बहता नहीं हुआ। क्या करता है? रोजाना के सिर खाता है। मुरली सुना के चला जाता है। और सारी बरत हमें करनी पड़ती है। नहीं। हमारे ऊपर पाप है।
हां। हमारे ऊपर पाप है। हमें सारे मिटाने। हमें कहते तुम करो खुद कुछ नहीं करता मेरे लिए तो खाता नहीं है मेरे लिए मेरे लिए। वो तो खाता पीता कुछ है ही नहीं भाई जी वो खाता पीता कुछ नहीं है उसने तो सिर्फ आके ऑर्डर करना है भाषण कर दिया वो भी मुरली एक बार चला दी हम तो उन पढ़ी पढ़ाई लिखी मुरलियों को पढ़ रहे हैं है नहीं कुछ भाग्य हमें मिला था जो हमने 90 से लेकर के 17 तक उनके मुख से या दादी के मुख से सुन ली मुरलियां वरना तो वही लिखी लिखाइयां उन्हीं को पढ़ के उन्हीं को समझ समझ रहे हैं।
हमारे लिए तो आता नहीं। कहता है उंगली पकड़नी है तो तुम आ जाओ। पकड़ लो मेरी उंगली। मैंने बता दिया सुन लो श्रीमत पकड़ लो मेरी उंगली। पकड़ना है तो तुम्हें पकड़ लो। मैं तो कहता हूं आजकल के मां-बाप बच्चे के पीछे पीछे भागते हैं। इधर इधर उधर पकड़ पकड़ के। हमारा बाप कहता है पकड़नी है तो आ जा। मैं नहीं पकड़। जाओ। हम पकड़े तो ठीक है। ना पकड़े तो ठीक है।
हमारा बाबा तो हमारे को उंगली पकड़ने के लिए आता नहीं है। हां। बाबा आपको पकड़ता है। अच्छा ठीक है। बहुत अच्छी बात है। आपका बाबा बहुत अच्छा है। आपको पकड़ लेता है। पर मेरा बाबा ऐसा है। कहता है पकड़नी है तो तू पकड़। अपनी सुरक्षा चाहिए तो तू पकड़। नहीं चाहिए तो मेरे को तेरी कोई जरूरत नहीं है। मैं तो मुरली सुना रहा हूं। मतलब ये याद रखो बाबा ने कुछ नहीं करना। सारा कुछ हमें करना है।
हमें सुधरना है। बाबा कहता है मुझे नहीं सुधरना। मैं तो सुधरा सुधरा हूं। मैं तो 100% हूं। तुम्हें सुधरना है तो तुम उंगली पकड़ लो। सुधारना है अपने आप को सुधार लो। नहीं सुधारते हो तो तुम्हारी मर्जी। बाबा को कोई फर्क नहीं पड़ता। उसको पता है हर आत्मा ने अपने पाठ अनुसार अपना पुरुषार्थ करके बनना है। बनेंगे बन जाएंगे।
लेकिन भाई कई बार ऐसा होता है ना पहाड़ इतने बड़े होते हैं। माम एकम याद करो। बस लास्ट बाबा का क्या है? मुझ एक को याद करो। और किसी की तरफ देखना सुनना नहीं याद प्यार करना और श्रीमत पर चलना।