“Ravan Rajya vs. Ram Rajya (Part 8)”

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रावण राज्य बनाम राम राज्य (भाग 8)

“ओम शांति।”
आज हम इस गहन विषय का आठवाँ पाठ कर रहे हैं —
रावण राज्य बनाम राम राज्य।
यानी — नर्क और स्वर्ग की वास्तविकता।


1. सच्चाई: कलयुग नर्क है और सतयुग स्वर्ग है

भाइयों और बहनों,
जब हम सतयुग को याद करते हैं तो मन में सुख-शांति, प्रेम, दिव्यता की छवि उभरती है।
जब कलयुग की बात करते हैं — तो दुख, बीमारी, हिंसा, अशांति का अनुभव होता है।

 सतयुग में सुख और शांति थी।
 कलयुग में दुख और अशांति है।
इसलिए सतयुग को स्वर्ग कहा गया,
और कलयुग को नर्क।


2. आज की दुनिया: बाहरी सुंदरता का छलावा

आज की दुनिया में लोग सुंदरता की तलाश में
मेकअप, फैशन और सौंदर्य प्रसाधनों पर करोड़ों खर्च करते हैं।
पर क्या यह स्थायी है?

 क्या यह अंदर की सच्चाई को ढँक सकता है?
नहीं।
शरीर कमजोर है, अशुद्ध है, बीमारियों से भरा हुआ है।

रक्त की कमी है, इसलिए लाल रंग लगाया जाता है।
बाल सफेद हो गए, इसलिए रंगते हैं।
यह सब केवल दिखावा है —
असलियत में, यह शरीर तमोप्रधान हो चुका है।


3. नर्क के लक्षण: पतन और पीड़ा का यथार्थ

कलियुग का यह शरीर पाप से बना है,
पाप में पलता है, और अंततः दुख पाता है।

कहीं अंगहीन जन्म,
 कहीं विकृत अंग,
 दवाइयों और इत्रों से हम सच्चाई छिपाना चाहते हैं।
पर क्या छिपा सकते हैं?

 बीमारी, पीड़ा और कमजोरी —
यही नर्क के प्रमाण हैं।


4. सतयुग की महिमा: स्वाभाविक सुंदरता और दिव्यता

अब कल्पना कीजिए सतयुग की…

वहाँ शरीर प्राकृतिक रूप से सुंदर था।
 अंगों से सुगंध आती थी — इत्र की जरूरत नहीं।
 दांत जीवनभर मजबूत,
 दृष्टि दिव्य,
 वस्त्र इतने शुद्ध कि धोने की आवश्यकता नहीं।

वहां का वातावरण शुद्ध,
मन पवित्र,
और शरीर दीप्तिमान था।

 वहाँ सुंदरता का मतलब था — पवित्रता और आत्म-प्रकाश।
 वहाँ कोई प्रदूषण, बीमारी, या दुख नहीं था।


5. दिव्य पोशाक बनाम आज की कपड़ों की दौड़

आज हम रोज़ कपड़े बदलते हैं,
उन्हें धोते हैं, प्रेस करते हैं —
तब जाकर थोड़ा ‘प्रस्तुत’ दिखते हैं।

पर सतयुग में —
वस्त्र स्वर्ण जैसे होते थे,
कभी मैले नहीं होते थे।

 क्योंकि वहाँ पवित्रता ही फैशन थी,
सादगी ही आकर्षण थी,
दिव्यता ही अलंकार था।


6. निष्कर्ष: क्या हम स्वर्ग में लौट सकते हैं?

आज का बड़ा प्रश्न —
क्या हम वापस उस स्वर्ग में जा सकते हैं?

उत्तर है — हाँ!
परंतु एक ही मार्ग है —

पवित्रता,
आध्यात्मिक जागरूकता,
दिव्य गुणों की धारण,
विकारों से मुक्त जीवन।

जब हम स्वयं को पवित्र बनाते हैं,
तो प्रकृति भी दिव्य बनती है।
तभी फिर से राम राज्य — अर्थात सतयुग की स्थापना होती है।


Final Message (Call to Action):

भाइयों और बहनों,
हमें नकली सुंदरता के पीछे नहीं भागना है।
हमें असली, शाश्वत और दिव्य सुंदरता के लिए प्रयास करना है —
जो आती है पवित्रता और ईश्वर के साथ संबंध से।

राम राज्य की स्थापना पहले स्वयं से होती है।
रावण राज्य से मुक्त होना है तो पहले खुद को बदलना होगा।

आज निर्णय करें — क्या हमें फिर से स्वर्ग में जाना है?
तो आइए —
चलें उस पावन मार्ग पर
जिसे दिखा रहे हैं स्वयं भगवान शिव इस संगम युग में।

“रावण राज्य बनाम राम राज्य (भाग 8)”

 


प्रश्न 1: सतयुग को स्वर्ग और कलियुग को नर्क क्यों कहा जाता है?

उत्तर: सतयुग में हर आत्मा शुद्ध थी, शरीर दिव्य था, और चारों ओर सुख, शांति व प्रेम था।
कलियुग में विकारों का राज्य है — बीमारी, दुख, अशांति और भय है।
इसलिए सतयुग स्वर्ग है, और कलियुग नर्क।


प्रश्न 2: आज की दुनिया सुंदरता के पीछे क्यों भाग रही है?

उत्तर: क्योंकि आत्मा और शरीर दोनों कमजोर हो चुके हैं।
रक्त की कमी को लाल रंग से, सफेद बालों को डाई से, और गंध को इत्र से ढका जा रहा है।
यह दिखावा है, असली सुंदरता भीतर की पवित्रता से आती है।


प्रश्न 3: कलियुग में शरीर को ‘नरक’ क्यों कहा जाता है?

उत्तर: यह शरीर पाप में जन्म लेता है, पाप से पोषित होता है और अंततः दुख पाता है।
बीमारियाँ, विकलांगता, और कृत्रिमता इसकी पहचान हैं।
इसे सजाकर सच्चाई नहीं बदली जा सकती — यही नर्क की पहचान है।


प्रश्न 4: सतयुग में शरीर और जीवन कैसा था?

उत्तर: सतयुग में शरीर दिव्य, दीप्तिमान और स्वाभाविक रूप से सुंदर होता था।
अंगों से प्राकृतिक सुगंध आती थी, दांत मजबूत, दृष्टि दिव्य, और वस्त्र कभी मैले नहीं होते थे।
वहां कोई रोग नहीं होता — क्योंकि वहाँ पवित्रता और संतुलन था।


प्रश्न 5: आज की दुनिया और सतयुग की पोशाक में क्या अंतर है?

उत्तर: आज की दुनिया में कपड़े रोज़ धोने, प्रेस करने और बदलने की जरूरत होती है।
पर सतयुग में वस्त्र स्वर्ण जैसे होते थे, कभी मैले नहीं होते थे।
दिव्यता और पवित्रता ही वहाँ की फैशन थी।


प्रश्न 6: क्या हम फिर से उस स्वर्ग में जा सकते हैं?

उत्तर: हाँ! यदि हम पवित्रता को धारण करें, आत्मा को दिव्य बनाएं, और ईश्वर शिव से संबंध जोड़ें।
जैसे-जैसे हम आत्मा को शुद्ध बनाते हैं, वैसे-वैसे प्रकृति भी दिव्य बन जाती है।
तभी राम राज्य की पुनः स्थापना होती है।


प्रश्न 7: स्वर्ग की ओर पहला कदम क्या है?

उत्तर: पहला कदम है — आत्म-परिवर्तन।
❖ विकारों से मुक्त होना,
❖ सच्ची आत्मा की पहचान,
❖ और ईश्वर से संबंध जोड़कर पवित्र जीवन जीना।


अंतिम प्रेरणा (Final Message):

“हमें नकली सुंदरता से नहीं,
शाश्वत दिव्यता से प्रेम करना है।
राम राज्य लाना है,
तो पहले अपने भीतर की रावणता को जीतना है।
यह तभी संभव है जब हम इस संगम युग में भगवान शिव की राह पर चलें।”

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