Skip to content
brahmakumarisbkomshanti

brahmakumarisbkomshanti

Welcome to The Home of Godly Knowledge

  • HOME
  • RAJYOGA
  • LITRATURE
  • INDIAN FESTIVALS
  • CONTACT US
  • DISCLAMER
  • Home
  • Heaven Hell
  • Ravana Rajya vs. Ram Rajya (05)”Freedom from the bondage of karma is the secret of blissful relationships

Ravana Rajya vs. Ram Rajya (05)”Freedom from the bondage of karma is the secret of blissful relationships

May 8, 2025June 23, 2025omshantibk07@gmail.com

रावण राज्य बनाम रामराज्य(05)”कर्म बंधन से मुक्त होना आनंदमय संबंधों का रहस्य

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

YouTube player

कर्म बंधन से मुक्त होना – आनंदमय संबंधों का रहस्य


1. भूमिका: आत्मा और संबंधों का गहन रहस्य

प्रिय दिव्य आत्माएं,
आज हम उस सत्य को समझने जा रहे हैं जिससे हमारे जीवन की खुशी और दुख दोनों जुड़े हैं — संबंध और कर्म बंधन।
हम जानेंगे कि क्यों कलयुग में संबंध दुख का कारण बन जाते हैं, और सतयुग में वही संबंध आनंद का स्रोत बनते हैं।


 2. कर्म क्षेत्र में आत्मा की यात्रा

  • हम सभी आत्माएं परमधाम से आती हैं।

  • पृथ्वी को कहा जाता है कर्म क्षेत्र, कुरुक्षेत्र।

  • जैसे ही हम इस धरती पर आते हैं — हमारा संकल्प ही पहला कर्म बन जाता है।

  • यहाँ पर कोई भी आत्मा कर्म किए बिना रह नहीं सकती।


3. कर्म बंधन का अर्थ

  • हर कर्म — चाहे अच्छा हो या बुरा — हिसाब-किताब बनाता है।

  • सुख दिया तो सोने की बेड़ी, दुख दिया तो लोहे की बेड़ी।

  • कोई भी आत्मा जब तक उस कर्म का फल नहीं लौटाती — बंधन बना रहता है।

उदाहरण:
अगर हमने किसी को कोई सुख दिया है, वो हमें लौटाना ही होगा — नहीं तो वो रिश्ता खत्म नहीं होगा।


 4. वर्तमान युग में संबंधों की पीड़ा क्यों?

  • कलयुग में रिश्ते बनते हैं शरीर चेतना पर।

  • अपेक्षाएं, इच्छाएं, स्वार्थ, और मोह — यही बनते हैं कर्म ऋण के कारण।

  • रिश्तों में आता है दबाव, मजबूरी, और पीड़ा।

  • संबंध बन जाते हैं — बंधन का जाल।


 5. सतयुग में संबंध कैसे होते हैं?

  • सतयुग में आत्माएं शुद्ध और पवित्र होती हैं।

  • रिश्तों का आधार होता है — दिव्य प्रेम, निस्वार्थ सेवा, सहज सहयोग।

  • कोई अपेक्षा नहीं, कोई अहंकार नहीं, कोई कर्म ऋण नहीं।

  • हर आत्मा स्वतंत्र होती है — फिर भी प्रेमपूर्ण रूप से जुड़ी हुई।


6. कर्म बंधन से मुक्ति का मार्ग

तो प्रश्न यह है:
क्या हम आज के समय में ही उन आनंदमय संबंधों को अनुभव कर सकते हैं?

उत्तर है — हाँ। कैसे?

 आत्म जागृति द्वारा:

  • आत्मा की स्मृति में स्थित होना।

  • मैं शरीर नहीं, आत्मा हूँ — इस अनुभव में रहना।

  • जब हम आत्मिक स्थिति में रहते हैं — हमारे कर्म पवित्र हो जाते हैं।

 परमात्मा से संबंध:

  • एक शिव बाबा से संबंध जोड़ें।

  • वह सर्व ऋणों का समाप्त करने वाला है।

  • जब हम परमात्मा को याद करते हैं — हमारे सारे कर्म ऋण कटते हैं।


 7. आत्मिक संबंधों का अभ्यास

  • हर दिन ध्यान में बैठें और विचार करें:

    “मैं आत्मा हूँ — शांत, पवित्र, प्रेममय।”
    “सामने वाली आत्मा भी पवित्र है — परमधाम से आई है।”

  • जब यह अभ्यास पक्का होता है — संबंध बंधन नहीं, बंधनमुक्त आनंद बन जाते हैं।


 8. निष्कर्ष: रावण राज्य से राम राज्य की ओर

  • रावण राज्य में हम कर्मों से बंधते हैं — दुख और संघर्ष झेलते हैं।

  • राम राज्य में आत्मिक संबंध होते हैं — प्यार, सहयोग और आनंद का अनुभव होता है।

अब समय है —
बुद्धि की ग्रंथि खोलने का,
कर्म बंधन को समाप्त कर,
आत्मिक स्वतंत्रता का अनुभव करने का।


अंत में एक संकल्प:

“मैं आत्मा, आज से अपने सभी संबंधों में आत्मिक दृष्टि रखूँगा।
मैं प्रेम, पवित्रता और निस्वार्थता से संबंध निभाऊँगा।
मैं परमात्मा से संबंध जोड़कर सभी कर्म ऋणों से मुक्त हो जाऊँगा।”

कर्म बंधन से मुक्त होना – आनंदमय संबंधों का रहस्य


प्रश्न 1: कर्म बंधन से मुक्त होने का क्या अर्थ है?

उत्तर:कर्म बंधन से मुक्त होने का मतलब है, हमें अपने किए गए कर्मों के हिसाब-किताब से स्वतंत्र होना। जब हम किसी को सुख देते हैं या दुख पहुँचाते हैं, तो वह हमारे कर्म का फल बनता है। इस बंधन से मुक्त होने के लिए हमें उन कर्मों का फल लौटाना या उसे समाप्त करना होता है।


प्रश्न 2: कलयुग और सतयुग में संबंधों में क्या अंतर होता है?

उत्तर:कलयुग में संबंध शरीर चेतना पर आधारित होते हैं, जहाँ अपेक्षाएं, स्वार्थ, और मोह होते हैं। इस कारण, रिश्तों में दबाव, पीड़ा और संघर्ष होते हैं। लेकिन सतयुग में, संबंध आत्मा चेतना पर आधारित होते हैं। यहाँ आत्माएँ शुद्ध और पवित्र होती हैं, और रिश्ते दिव्य प्रेम, निस्वार्थ सेवा, और सहज सहयोग पर आधारित होते हैं, जिससे आनंद मिलता है।


प्रश्न 3: कर्म बंधन क्या होता है और यह किस प्रकार से उत्पन्न होता है?

उत्तर:कर्म बंधन वह स्थिति है जब हम अपने कर्मों के कारण किसी आत्मा से जुड़े होते हैं, और जब तक वह आत्मा हमें उसके कर्मों का फल नहीं लौटाती, तब तक हम इस बंधन में रहते हैं। उदाहरण के लिए, अगर हमने किसी को सुख दिया है, तो हमें वह सुख वापस करना होगा, और अगर दुख दिया है, तो हमें उसे भी लौटाना होगा।


प्रश्न 4: वर्तमान युग में संबंधों में पीड़ा का कारण क्या है?

उत्तर:वर्तमान युग (कलयुग) में रिश्ते शरीर चेतना पर आधारित होते हैं, और इसलिए हमारी अपेक्षाएं, इच्छाएं, स्वार्थ, और मोह ही हमारे कर्म ऋण का कारण बनते हैं। इस कारण से, रिश्तों में संघर्ष, दबाव, और पीड़ा उत्पन्न होती है, जिससे बंधन और तकलीफ बढ़ती है।


प्रश्न 5: सतयुग में संबंध कैसे होते हैं और वे आनंद का स्रोत कैसे बनते हैं?

उत्तर:सतयुग में आत्माएँ शुद्ध और पवित्र होती हैं, इसलिए रिश्तों का आधार दिव्य प्रेम, निस्वार्थ सेवा, और सहज सहयोग होता है। यहाँ कोई अपेक्षा, अहंकार, या कर्म ऋण नहीं होते। सभी आत्माएँ स्वतंत्र होकर एक दूसरे से प्रेमपूर्ण तरीके से जुड़ी होती हैं, जिससे रिश्ते आनंद का स्रोत बनते हैं।


प्रश्न 6: हम आज के समय में भी आनंदमय संबंधों का अनुभव कैसे कर सकते हैं?

उत्तर:हम आत्म जागृति के माध्यम से आज के समय में भी आनंदमय संबंधों का अनुभव कर सकते हैं। जब हम आत्मा की स्थिति में रहते हैं और यह समझते हैं कि हम शरीर नहीं, आत्मा हैं, तो हमारे कर्म पवित्र होते हैं और हमारे रिश्ते भी निस्वार्थ और दिव्य बन जाते हैं। साथ ही, परमात्मा से संबंध जोड़ने से हम अपने कर्म ऋणों से मुक्त हो सकते हैं।


प्रश्न 7: आत्मिक संबंधों का अभ्यास कैसे करें?

उत्तर:हम हर दिन ध्यान में बैठकर यह विचार करें: “मैं आत्मा हूँ — शांत, पवित्र, प्रेममय,” और “सामने वाली आत्मा भी पवित्र है — परमधाम से आई है।” जब हम यह अभ्यास करते हैं, तो हमारे रिश्ते बंधन नहीं, बल्कि बंधनमुक्त आनंद बन जाते हैं। यह आत्मिक दृष्टि हमें हर संबंध में शांति और प्रेम का अनुभव कराती है।


प्रश्न 8: रावण राज्य और राम राज्य में रिश्तों का अंतर क्या है?

उत्तर:रावण राज्य में रिश्ते कर्मों के बंधन से भरे होते हैं, जहाँ दुख और संघर्ष होते हैं। जबकि राम राज्य में, आत्मिक संबंध होते हैं, जो प्यार, सहयोग और आनंद का अनुभव कराते हैं। यहाँ आत्माएँ शुद्ध होती हैं और रिश्तों में कोई कर्म ऋण नहीं होता। इसीलिए, राम राज्य में संबंध खुशी और शांति का कारण होते हैं।


प्रश्न 9: कर्म बंधन से मुक्ति के लिए हमें क्या करना चाहिए?

उत्तर:कर्म बंधन से मुक्ति पाने के लिए हमें अपने कर्मों को शुद्ध और निस्वार्थ बनाना होगा। हमें आत्मा की स्थिति में रहकर अपनी आत्मिक दृष्टि को जागृत करना होगा। साथ ही, हमें परमात्मा से संबंध जोड़कर सभी कर्म ऋणों को समाप्त करना होगा।


प्रश्न 10: इस विषय से हमें क्या संकल्प लेना चाहिए?

उत्तर:हमें यह संकल्प लेना चाहिए: “मैं आत्मा, आज से अपने सभी संबंधों में आत्मिक दृष्टि रखूँगा। मैं प्रेम, पवित्रता और निस्वार्थता से संबंध निभाऊँगा। मैं परमात्मा से संबंध जोड़कर सभी कर्म ऋणों से मुक्त हो जाऊँगा।”

कर्म बंधन, आनंदमय संबंध, आत्मा, सतयुग, कलयुग, आत्म जागृति, परमात्मा, शिव बाबा, कर्म ऋण, आत्मिक संबंध, आत्मिक दृष्टि, प्रेम, पवित्रता, निस्वार्थता, संबंधों का रहस्य, रावण राज्य, राम राज्य, ध्यान, दिव्य प्रेम, शुद्धता, आत्मा की यात्रा, संबंधों की पीड़ा, संबंधों का गहन रहस्य, आत्ममुक्ति, ध्यान की शक्ति, आत्मिक स्वतंत्रता, आत्मिक अनुभव, ब्रह्मा कुमारी, कर्मों का हिसाब, संबंधों में शांति, दिव्य सेवा, सहज सहयोग, आत्मिक मुक्ति, कर्म बंधन से मुक्ति, आत्मिक विकास, कर्म और भाग्य, आत्मा की पहचान, सतयुग में संबंध, कर्म का फल, आत्मा की स्मृति, आत्मा की शुद्धता, ध्यान का अभ्यास, आत्मिक शांति, शरीर चेतना, अहंकार से मुक्ति, आत्मा की स्वतंत्रता, रावण और राम राज्य, बंधनमुक्त आनंद, कर्मों से बंधना, सच्चे संबंध, ज्ञान की शक्ति, आत्मिक जीवन, ईश्वर का अनुभव, आत्मा का कार्य, मुक्ति का मार्ग, दिव्य संबंध, आत्मा और परमात्मा, निस्वार्थ प्रेम, सत्य का मार्ग, संबंधों की शक्ति, कर्मों की शुद्धता, आत्मा की पवित्रता.

Karmic bondage, blissful relationships, soul, Satyug, Kalyug, self awakening, God, Shiv Baba, karmic debt, soulistic relationships, soulistic vision, love, purity, selflessness, secret of relationships, Ravan Rajya, Ram Rajya, meditation, divine love, purity, soul’s journey, pain of relationships, deep secret of relationships, self liberation, power of meditation, soulistic freedom, soulistic experience, Brahma Kumaris, account of karmas, peace in relationships, divine service, spontaneous cooperation, soulistic liberation, freedom from karmic bondage, soulistic growth, karma and destiny, soulistic identity, relationships in Satyug, fruits of karma, soulistic memory, purity of soul, practice of meditation, soulistic peace, body consciousness, freedom from ego, soulistic freedom, Ravan and Ram Rajya, bondless bliss, bondage of karmas, true relationships, power of knowledge, soulistic life, experience of God, work of soul, path of liberation, divine relationships, soul and god, selfless love, path of truth, power of relationships, purity of karmas, purity of soul.

 

Heaven Hell Tagged #God, #purity, account of karmas, blissful relationships, body consciousness, bondage of karmas, bondless bliss, brahma kumaris, deep secret of relationships, divine love, divine relationships, Divine Service, Experience of God, freedom from ego, freedom from karmic bondage, fruits of karma, Kalyug, karma and destiny, karmic debt, love, Meditation, pain of relationships, path of liberation, path of truth, peace in relationships, power of knowledge, Power of meditation, power of relationships, practice of meditation, purity of karmas, Purity of soul, Ram-Rajya, Ravan and Ram Rajya, Ravan Rajya, relationships in Satyug, Satyug, secret of relationships, Self awakening, self liberation, Selfless love, selflessness, Shiv Baba, Soul, soul and God, soul's journey, soulistic experience, soulistic freedom, soulistic growth, soulistic identity, soulistic liberation, soulistic life, soulistic memory, soulistic peace, soulistic relationships, soulistic vision, spontaneous cooperation, true relationships, work of soul, अहंकार से मुक्ति, आत्म जागृति, आत्ममुक्ति, आत्मा, आत्मा और परमात्मा, आत्मा का कार्य, आत्मा की पवित्रता. Karmic bondage, आत्मा की पहचान, आत्मा की यात्रा, आत्मा की शुद्धता, आत्मा की स्मृति, आत्मा की स्वतंत्रता, आत्मिक अनुभव, आत्मिक जीवन, आत्मिक दृष्टि, आत्मिक मुक्ति, आत्मिक विकास, आत्मिक शांति, आत्मिक संबंध, आत्मिक स्वतंत्रता, आनंदमय संबंध, ईश्वर का अनुभव, कर्म ऋण, कर्म और भाग्य, कर्म का फल, कर्म बंधन, कर्म बंधन से मुक्ति, कर्मों का हिसाब, कर्मों की शुद्धता, कर्मों से बंधना, कलयुग, ज्ञान की शक्ति, दिव्य प्रेम, दिव्य संबंध, दिव्य सेवा, ध्यान, ध्यान का अभ्यास, ध्यान की शक्ति, नि:स्वार्थ प्रेम, निःस्वार्थता, परमात्मा, पवित्रता, प्रेम, बंधनमुक्त आनंद, ब्रह्मा कुमारी, मुक्ति का मार्ग, राम राज्य, रावण और राम राज्य, रावण राज्य, शरीर-चेतना, शिव बाबा, शुद्धता, सच्चे संबंध, सतयुग, सतयुग में संबंध, सत्य का मार्ग, संबंधों का गहन रहस्य, संबंधों का रहस्य, संबंधों की पीड़ा, संबंधों की शक्ति, संबंधों में शांति, सहज सहयोग

Post navigation

Ravana Rajya vs Ram Rajya(04) Kalyug vs Satya Yuga – Treta Yuga
Ravana Rajya vs Ram Rajya(06)”From the world of stones to the world of light

Related Posts

(14) “The origin of bhakti, religious conflict and the sacred world of the Satya Yuga

(14)”भक्ति की उत्पति धार्मिक संघर्ष और सतयुग की पवित्र दुनिया ( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं) “आज रावण…

Ravana Rajya vs Ram Rajya(06)”From the world of stones to the world of light

रावण राज्य बनाम रामराज्य(06)”पत्थरों की दुनिया से प्रकाश की दुनिया तक ( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं) रावण…

Ravana Rajya vs. Ram Rajya (23) Kali Yuga: Harmful Hell Satya Yuga: Beneficial Heaven

    रावण राज्य बनाम रामराज्य (23) कलियुगःअहितकारी नरक सतयुुगःपराेपकारी स्वर्ग ( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं) “कलियुग: अहितकारी…

Copyright © 2025 brahmakumarisbkomshanti | Ace News by Ascendoor | Powered by WordPress.