Ravana Rajya vs Ram Rajya (31)This world has become a big hospital. Real health in Satya Yuga?

रावण राज्य बनाम रामराज्य (31)यह दुनिया एक बड़ा अस्पताल बन गई है सतयुग में असली स्वास्थ्य?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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भूमिका: यह दुनिया एक विशाल अस्पताल

आज की दुनिया की सच्चाई क्या है?

चारों ओर नज़र डालें —
हर घर में, हर गली में, हर उम्र के लोगों में —
किसी न किसी रूप में बीमारी व्याप्त है।
शरीर से लेकर मन तक, भावनाओं से लेकर संबंधों तक —
दर्द ही दर्द फैला है।

यह संसार एक अशुद्ध आत्माओं का विशाल अस्पताल बन गया है।
शरीर की बीमारी तो एक लक्षण है,
मूल बीमारी है आत्मा की अशुद्धता —
काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार।

इन्हीं विकारों ने आत्मा को बीमार बना दिया है।
आयु घट गई, जीवन में अस्थिरता आ गई,
और अकाल मृत्यु एक सामान्य बात बन गई है।

बाबा कहते हैं:
“यह जीवन नहीं है… यह दुख में जीना है।”


यह जीवन एक ‘हॉस्पिटल’ है – छुट्टी का कोई उपाय नहीं?

जैसे अस्पताल में हर कोई जल्दी से छुट्टी चाहता है,
वैसे ही इस दुखद संसार में भी हर कोई मुक्ति चाहता है —
परंतु किसी को राह नहीं मिलती।

हर आत्मा परेशान है:
– कोई शरीर के रोग से,
– कोई मन के तनाव से,
– कोई संबंधों की उलझनों से।

लेकिन क्या इसका कोई सच्चा इलाज है?


 अब आया है सर्वोच्च डॉक्टर: शिव परमात्मा

इस आत्मिक अस्पताल में,
अब अवतरित हुए हैं परमपिता परमात्मा शिव
सिर्फ़ शारीरिक उपचार के लिए नहीं,
बल्कि आत्मा की गहराई से चिकित्सा करने के लिए।

 वे कहते हैं:
“मुझे याद करो, प्यारे बच्चों…
तुम्हारी आत्मा पवित्र हो जाएगी।
जितनी याद, उतना विकारों का खात्मा।”

वे हैं शाश्वत सर्जन,
जो आत्मा की गहराई तक जाकर
उसकी स्मृति, बुद्धि और संस्कारों को शुद्ध करते हैं।


 सतयुग: जहाँ न बीमारी है, न अस्पताल

भगवान जिस नई दुनिया की स्थापना कर रहे हैं —
वह है सतयुग – स्वर्ण युग

उस दिव्य युग की विशेषताएँ:

  • कोई अस्पताल नहीं – क्योंकि कोई बीमार नहीं होता

  • कोई शास्त्र नहीं – क्योंकि सत्य को पढ़ा नहीं, जिया जाता है

  • कोई मंदिर नहीं – क्योंकि भगवान हरेक आत्मा के हृदय में रहते हैं

  • कोई अदालत नहीं – क्योंकि अपराध का नामोनिशान नहीं

वह है धर्म, शुद्धता और सुख की भूमि


 सतयुग में भारत: देव भूमि

सतयुग का भारत:

  • विलायती — कोई गरीबी नहीं

  • शुद्ध — कोई विकार नहीं

  • शांतिपूर्ण — कोई कलह नहीं

  • समृद्ध — कोई कमी नहीं

वहाँ एक ही धर्म था — सनातन देवता धर्म,
जहाँ हर आत्मा प्रेम, शांति, आनंद और पवित्रता की प्रतिमूर्ति थी।

बच्चों की बुद्धि दिव्य होती थी,
संवेदनाएँ मधुर होती थीं,
और जीवन आपसी सहयोग और प्रेम का आदर्श होता था।


देवता कौन थे?

देवता चार भुजाओं वाले या चमत्कारी नहीं थे,
बल्कि मानव ही देवता बने थे
अपने दिव्य गुणों और शुद्ध जीवनशैली के कारण।

– कोई हिंसा नहीं
– कोई घृणा नहीं
– कोई ईर्ष्या नहीं
– कोई भ्रष्टाचार नहीं

हर आत्मा धर्म के अनुसार स्वाभाविक रूप से चलती थी —
प्रकृति के साथ सामंजस्य में।


 अब है परिवर्तन का समय

अब समय है संगम युग का —
जब आत्मा को फिर से शुद्ध किया जा सकता है।

ईश्वर कह रहे हैं:
“प्यारे बच्चों, यह दुनिया अब दुःख का अस्पताल है।
पर मैं इसे फिर से देवताओं के मंदिर में बदलने आया हूँ।”

अब है समय:

  • आत्मा का उपचार करने का

  • विकारों से छुटकारा पाने का

  • शाश्वत स्वास्थ्य की ओर लौटने का


 निष्कर्ष: दर्द से दिव्यता की ओर

सतयुग कोई कल्पना नहीं है
वह हमारी सच्ची मातृभूमि है।
ईश्वर आज ज्ञान और योग के माध्यम से
उस देव भूमि की पुनः स्थापना कर रहे हैं।

अब प्रश्न है:
क्या मैं इस दुखभरे अस्पताल में रहना चाहूँगा?
या
क्या मैं सत्य के मंदिर में एक पवित्र देवता बनकर रहना चाहूँगा?

चुनाव अब आपके हाथ में है।


 आइए:

  • पवित्रता को अपनाएँ

  • ईश्वर को साथी बनाएँ

  • सतयुग को लक्ष्य बनाएँ

यही है — “दिव्य स्वास्थ्य की दुनिया में प्रवेश”।

सच्चा स्वास्थ्य आत्मा की शुद्धता में है
सच्चा जीवन ईश्वर की स्मृति में है
सच्चा सुख सतयुग में है

“यह दुनिया एक बड़ा अस्पताल बन गई है — अब समय है उस सतयुगी मंदिर में लौटने का।”

प्रश्न 1: आज की दुनिया को ‘अस्पताल’ क्यों कहा जाता है?

उत्तर: क्योंकि लगभग हर आत्मा किसी न किसी प्रकार के शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक रोग से पीड़ित है। यह दुनिया विकारों—वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार—से ग्रस्त आत्माओं का एक विशाल अस्पताल बन चुकी है।

प्रश्न 2: असली बीमारियों का मुख्य कारण क्या है?

उत्तर: असली कारण है आत्मा की अशुद्धता। जब आत्मा पवित्र नहीं होती, तब दुर्गुण उत्पन्न होते हैं और वही मन, शरीर और संबंधों को बीमार बनाते हैं।

प्रश्न 3: क्या कोई ऐसा डॉक्टर है जो इन बीमारियों का इलाज कर सके?

उत्तर: हाँ, परमपिता शिव—सर्वोच्च आत्मा—ही असली डॉक्टर हैं जो आत्मा का इलाज करते हैं। वे इस संगम युग में आकर आत्मा को पवित्र बनाते हैं और शाश्वत स्वास्थ्य प्रदान करते हैं।

प्रश्न 4: परमात्मा का इलाज क्या है?

उत्तर: “मुझे याद करो।” – यही ईश्वरीय श्रीमत है। जब आत्मा परमपिता शिव को सच्चे दिल से याद करती है, तो वह आत्मिक ऊर्जा प्राप्त करती है जिससे विकार जलते हैं और आत्मा शुद्ध होती जाती है।

प्रश्न 5: सतयुग में अस्पताल क्यों नहीं होते?

उत्तर: क्योंकि सतयुग में आत्माएँ पूरी तरह शुद्ध होती हैं। वहाँ कोई विकार, तनाव, रोग या पीड़ा नहीं होती। वहाँ हर आत्मा प्राकृतिक रूप से दिव्यता और संतुलन में रहती है।

प्रश्न 6: सतयुगी जीवन कैसा होता है?

उत्तर: सतयुगी जीवन दिव्य, शांत, समृद्ध और पवित्र होता है। वहाँ न कोई ईर्ष्या है, न हिंसा, न भ्रष्टाचार। हर आत्मा अपने धर्म, कर्म और संबंधों में संतुलित होती है। बच्चों में जन्म से ही दिव्य बुद्धि होती है।

प्रश्न 7: क्या हम उस सतयुग को फिर से प्राप्त कर सकते हैं?

उत्तर: हाँ, अभी संगम युग चल रहा है। यह वही समय है जब भगवान हमें आध्यात्मिक ज्ञान दे रहे हैं ताकि हम विकारों से मुक्त होकर फिर से सतयुग के योग्य बन सकें।

प्रश्न 8: क्या यह बदलाव रातोंरात होगा?

उत्तर: नहीं, यह एक प्रक्रिया है। रोज़ परमात्मा की याद, आध्यात्मिक ज्ञान, आत्मचिंतन और गुणों की धारणा के माध्यम से धीरे-धीरे आत्मा दिव्य बनती जाती है।

प्रश्न 9: आज हमें क्या निर्णय लेना चाहिए?

उत्तर: हमें यह तय करना है कि क्या हम इस रोगी संसार में ही रहना चाहते हैं, या सतयुगी देवताओं की तरह शुद्ध और स्वस्थ बनना चाहते हैं। अब चुनाव हमारा है — पवित्रता या पीड़ा?

प्रश्न 10: दिव्य स्वास्थ्य की पहली सीढ़ी क्या है?

उत्तर: स्वयं को आत्मा समझना और परमात्मा की याद में स्थित होना। जब हम आत्मिक स्थिति में रहते हैं, तो सभी दुर्गुण स्वतः छूटते हैं और आत्मा स्वस्थ बनती जाती है।

निष्कर्ष (Conclusion):

सतयुग कोई कल्पना नहीं है — वह हमारी आत्मा की सच्ची स्थिति है।
आइए, अब परमात्मा की श्रीमत पर चलें, विकारों से छुटकारा पाएं,
और उस दुनिया में प्रवेश करें जहाँ स्वास्थ्य ही स्वाभाविक स्थिति है।

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