(29)गीता का महत्व कम होने का कारण।
“गीता”—जिसे सर्वशास्त्रमयी और सिरोमणि ग्रंथ कहा जाता है—वास्तव में ऐसा ग्रंथ है जिसमें हर आत्मा, हर युग, और हर धर्म के लिए आध्यात्मिक दिशा निर्देश समाहित हैं। यह कोई साधारण धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि परमात्मा शिव की सीधी शिक्षाएं हैं, जो ब्रह्मा के मुख द्वारा आत्माओं को दी गईं।
तो प्रश्न उठता है—यदि गीता इतनी महान है, तो फिर उसका महत्व आज लुप्त क्यों हो गया?
भारत—भगवान की अवतरण भूमि
भारत ही वह पावन भूमि है, जहाँ स्वयं भगवान अवतरित होते हैं। जैसे माला का मुख्य फूल सबसे केंद्र में होता है—वैसे ही गीता, ब्रह्मा, सरस्वती और फिर शिवबाबा के ज्ञान का संगम बन जाती है।
गीता न केवल भारत की धरोहर है, बल्कि यह विश्व की आध्यात्मिक दिशा-दर्शिका है।
गीता की विशिष्टता
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गीता कोई मानव-रचित ग्रंथ नहीं, बल्कि परमात्मा की वाणी है।
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इसमें आत्मा और परमात्मा का सीधा संवाद है।
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यह ज्ञान सर्वश्रेष्ठ मतयुक्त, पूर्णता की ओर ले जाने वाला मार्ग है।
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गीता ही वह ग्रंथ है जो आत्मा को उसकी पहचान, कर्तव्य, और मुक्ति का मार्ग बताता है।
फिर भी, आज इस दिव्य ज्ञान को लोग केवल एक धार्मिक दस्तावेज़ के रूप में ही क्यों मानते हैं?
गीता का महत्व कम होने के कारण
वक्ता की पहचान में भूल
सबसे बड़ी भूल यही हुई कि परमात्मा शिव—जो गीता का वास्तविक वक्ता हैं—उन्हें हटा दिया गया और श्रीकृष्ण को वक्ता मान लिया गया।
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श्रीकृष्ण तो द्वापर युग के अंत में जन्म लेने वाला एक महान आत्मा था,
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लेकिन गीता में स्वयं “मैं अजन्मा हूँ”, “मैं सबको मोक्ष देने वाला हूँ”—यह वाणी केवल अजर-अमर परमात्मा शिव की हो सकती है।
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श्रीकृष्ण की आत्मा स्वयं भी परमात्मा शिव से ज्ञान लेती है।
जब वक्ता बदल गया, तो संदेश का अर्थ भी बदल गया।
ज्ञान युद्ध को हिंसक युद्ध समझ लिया गया
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गीता का युद्ध असल में आत्मिक युद्ध है—विकारों के विरुद्ध।
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लेकिन समय के साथ इसे महाभारत के बाहरी युद्ध तक सीमित कर दिया गया।
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जिससे गीता को एक हिंसक प्रेरणा के रूप में देखा जाने लगा, जो कि आध्यात्मिक मूल भावना के विपरीत है।
गीता एक सार्वभौम आध्यात्मिक ग्रंथ
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गीता किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है।
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यह हर आत्मा के लिए है—ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, पारसी, सिक्ख सभी के लिए एक मार्गदर्शक।
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आदि शंकराचार्य से लेकर महात्मा गांधी, विनोबा भावे तक—सभी ने इसकी महिमा गायी है।
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विदेशी विद्वानों ने भी इसे मानवता का सर्वोत्तम दर्शन कहा है।
यह आत्मा की मुक्ति का मार्ग है, न कि किसी जाति, काल या भाषा का बंदी।
निष्कर्ष: आत्मा कल्याण का द्वार—गीता
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गीता आत्मा को उसकी असली पहचान देती है—“मैं आत्मा हूँ, यह शरीर मेरा वाहन है।”
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गीता परमात्मा से जुड़ने का ज्ञानयोग सिखाती है।
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आज यह ज्ञान साकार मुरली के रूप में, ब्रह्मा के मुख से—परमात्मा शिव द्वारा पुनः सुनाया जा रहा है।
आने वाले संकटों में गीता की भूमिका
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भविष्य में जब मानवता अंधकार में होगी, यही गीता ज्ञान उसका दीपस्तंभ बनेगा।
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यह ज्ञान आत्मा को उसकी ईश्वरीय स्थिति में पुनः स्थापित करेगा।
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यही सच्चा “श्रीमद भगवद गीता ज्ञान” है, जो संगमयुग में पुनः प्रकट होता है।
अंतिम सारांश
“गीता का महत्व तब कम हुआ, जब परमात्मा को श्रीकृष्ण बना दिया गया।”
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वक्ता की पहचान गुम हुई,
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ज्ञान युद्ध का उद्देश्य बदल गया,
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और परिणामस्वरूप गीता की आत्मा खो गई।
अब समय है—फिर से उस गीता को पहचानने का,
जिसमें परमात्मा शिव स्वयं ब्रह्मा के द्वारा हमें ज्ञान, योग, और धर्मराज्य की राह दिखा रहे हैं।
“गीता का महत्व क्यों कम हुआ? | सच्चा वक्ता कौन? | भगवद गीता का आध्यात्मिक रहस्य | Brahma Kumaris”
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“गीता — एक दिव्य ग्रंथ या केवल एक धार्मिक पुस्तक?”
Q&A प्रारूप (Short, impactful format):
प्रश्न 1:
गीता को ‘सर्वशास्त्रमयी’ क्यों कहा गया है?
उत्तर:
क्योंकि गीता में हर युग, हर धर्म और हर आत्मा के लिए आध्यात्मिक दिशा निर्देश समाहित हैं—यह परमात्मा की सीधी वाणी है।
प्रश्न 2:
क्या गीता कोई मानव रचित ग्रंथ है?
उत्तर:
नहीं। गीता परमात्मा शिव की वाणी है, जो ब्रह्मा के मुख से आत्माओं को सुनाई गई।
प्रश्न 3:
अगर गीता इतनी दिव्य है, तो इसका महत्व कम क्यों हो गया?
उत्तर:
क्योंकि वक्ता की पहचान में भूल हुई—श्रीकृष्ण को परमात्मा मान लिया गया, जबकि वक्ता हैं अजन्मा परमात्मा शिव।
प्रश्न 4:
“मैं अजन्मा हूँ” — यह किसकी वाणी हो सकती है?
उत्तर:
केवल परमात्मा शिव की—क्योंकि आत्माएं और श्रीकृष्ण दोनों जन्म लेते हैं, लेकिन शिव अजन्मा हैं।
प्रश्न 5:
गीता में बताया गया युद्ध किससे है?
उत्तर:
आत्मिक युद्ध है—काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे विकारों से।
प्रश्न 6:
क्या गीता किसी एक धर्म के लिए है?
उत्तर:
नहीं। गीता एक सार्वभौम आत्मिक ग्रंथ है—हर आत्मा के लिए, चाहे वह किसी भी धर्म से हो।
प्रश्न 7:
आज गीता की आत्मा क्यों खो गई?
उत्तर:
क्योंकि वक्ता को बदल दिया गया, और ज्ञान युद्ध को बाहरी युद्ध मान लिया गया।
प्रश्न 8:
आज गीता का ज्ञान कहाँ मिल रहा है?
उत्तर:
ब्रह्मा के मुख द्वारा—साकार मुरली के रूप में, परमात्मा शिव स्वयं फिर से सुनाते हैं।
प्रश्न 9:
गीता आत्मा को क्या सिखाती है?
उत्तर:
“मैं आत्मा हूँ, यह शरीर मेरा वाहन है”—और परमात्मा से जुड़ने का योग सिखाती है।
प्रश्न 10:
आने वाले समय में गीता का क्या योगदान होगा?
उत्तर:
मानवता के अंधकार में यही गीता दीपस्तंभ बनेगी—आत्मा को पुनः ईश्वरीय स्थिति में लाएगी।
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