Sahaja Raja Yoga Course 14 Days Brahma Kumaris

सहज राजयोग कोर्स 14 दिवस ब्रह्मा कुमारीज

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“दिव्य गुणों का गुलदस्ता और त्याग का रहस्य | 


स्पीच: दिव्य गुणों और त्याग का गहन रहस्य

 प्रस्तावना: आज का विशेष दिन
ओम् शांति।
आज राजयोग कोर्स का चौदहवाँ दिन है।
हमने अब तक आत्मा को जाना, परमात्मा को पहचाना और यह भी समझा कि सहज राजयोग सिखाने वाला परमात्मा शिव है।
अब हमें यह भी समझ आ गया है कि यह शिक्षा हमें कोई मनुष्य नहीं दे सकता — सिर्फ परमपिता परमात्मा ही दे सकते हैं।


1. दिव्य गुणों का गुलदस्ता

बाबा ने दिव्य गुणों को फूलों के गुलदस्ते की तरह वर्णित किया है — हर गुण एक विशेष फूल है।
हमारे जीवन को महकाने वाले ये गुण कौन-कौन से हैं?


2. कमल पुष्प समान पवित्रता

बाबा का पहला पाठ — कमल पुष्प समान पवित्र बनो।
कमल कीचड़ में रहकर भी उससे अछूता रहता है।
इसी तरह हमें संसार में रहते हुए पवित्र बनना है।


3. सहनशीलता — शक्ति भी, गुण भी

बार-बार सहन करने की शक्ति को ही सहनशीलता कहा जाता है।
यह आत्मा का स्थायी गुण बनता है।


4. नम्रता — सच्चा सम्मान देने की कला

नम्रता का अर्थ है — पहले स्वयं झुकना, दूसरों को सम्मान देना।
मीठा और प्रेमपूर्ण व्यवहार करना।


5. निर्भयता — भय से परे दिव्यता

निर्भयता ईश्वर का विशेष गुण है।
निर्भय निर्वैर — जब आत्मा परमात्मा से जुड़ती है, तो भय समाप्त हो जाता है।
भय ही सभी दुखों और विकारों की जड़ है।


6. अंतर्मुखता — स्वयं में झाँकना

बाबा की श्रीमत: “दूसरों को नहीं, स्वयं को देखो।”
अपनी कमियाँ पहचानो और उन्हें समाप्त करो।


7. धैर्य — ड्रामा की सटीकता में विश्वास

जो कुछ भी होता है, सही समय पर होता है।
ज्ञान से धैर्य आता है, और धैर्य से शांति।


8. मधुरता — मुस्कान से भर दे जीवन

मधुरता वह गुण है जो आपके व्यवहार से दूसरों को आनंदित करता है।
आपका चेहरा ही मुस्कुराहट का स्रोत बन जाए।


9. पवित्रता — बिना मिलावट की स्थिति

केवल बाबा की श्रीमत हो — यही सच्ची पवित्रता है।
जहां कोई दूसरी मत न हो, वहीं आत्मा शुद्ध कहलाती है।


10. संतोष — सारे गुणों की जननी

संतोषी आत्मा के पास सारे दिव्य गुण स्वतः आ जाते हैं।
संतोषी सदा सुखी, क्योंकि उसे कोई इच्छा शेष नहीं रहती।


11. संतुष्टि की प्रैक्टिकल पहचान

कैसे भी हालात हों — आग, बाढ़ या पीड़ा —
बुद्धि कहे: हिसाब बराबर हो रहा है।
अगर दुख, डर या क्रोध आता है — समझो ज्ञान की धारणा कमज़ोर है।


त्याग का दिव्य रहस्य

1. तपस्या = त्याग

बाबा कहते हैं — तपस्वी बनने के लिए त्यागी बनो।
सच्ची तपस्या वही है जिसमें आत्मा त्याग करती है।


2. स्थूल त्याग — अपने ही लाभ के लिए

जैसे: चाय, प्याज़, लहसुन, बीड़ी, शराब, बुरा संग — ये सब छोड़कर हमने अपने शरीर, धन और मन को सुधारा है।


3. सूक्ष्म त्याग — क्रोध, मोह, विकार

इन विकारों के त्याग से हमारे संबंध, व्यवहार और कर्म सुधरते हैं।
अहंकार छोड़ने से हल्कापन आता है।
लोभ, मोह त्यागने से मन शांति में रहता है।


4. क्या त्याग करके पाया या खोया?

दुनिया कहती है — त्याग करो, तब मिलेगा।
बाबा कहते हैं — त्याग करते ही मिल गया।
हर त्याग ने आत्मा को हल्का, शक्तिशाली और दिव्य बनाया।


5. हल्के फरिश्ते बनने की कला

जब शरीर, संबंध, संपत्ति से “मेरा” निकाल देते हैं —
तो आत्मा एकदम हल्की, उड़ती हुई फरिश्ता बन जाती है।


निष्कर्ष: दिव्यता की ओर बढ़ते कदम

इन दिव्य गुणों को धारण करना ही सच्चा राजयोग है।
त्याग से तपस्या, तपस्या से दिव्यता और दिव्यता से सच्चा सुख।

प्रश्नोत्तरी: दिव्य गुणों और त्याग का गहन रहस्य


प्रश्न 1:दिव्य गुणों को बाबा ने किसके समान बताया है?
उत्तर:बाबा ने दिव्य गुणों को फूलों के गुलदस्ते के समान बताया है — जैसे गुलदस्ते में विविध रंगों के फूल होते हैं, वैसे ही आत्मा में वैराइटी दिव्य गुण होते हैं जो जीवन को सुगंधित और सुंदर बनाते हैं।


प्रश्न 2:‘कमल पुष्प समान पवित्रता’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:कमल कीचड़ में रहकर भी उससे अछूता रहता है। उसी प्रकार आत्मा को संसार के बीच में रहते हुए भी पवित्र और निर्विकारी बनकर जीना है — यह बाबा का पहला पाठ है।


प्रश्न 3:सहनशीलता को शक्ति और गुण दोनों क्यों कहा गया है?
उत्तर:सहन करना अभ्यास से शक्ति बनता है, और जब यह स्वभाव में समा जाए तो वह आत्मा का गुण बन जाता है — जिसे सहनशीलता कहते हैं।


प्रश्न 4:नम्रता का व्यवहारिक स्वरूप क्या है?
उत्तर:नम्रता का अर्थ है – स्वयं झुकना, पहले नमस्ते करना, दूसरों को सम्मान देना और मीठे बोल बोलना।


प्रश्न 5:निर्भयता आत्मा में कैसे आती है?
उत्तर:जब आत्मा परमात्मा से जुड़ती है और ज्ञान को धारण करती है, तो भय समाप्त हो जाता है, क्योंकि परमात्मा निर्भय और निर्वैर है।


प्रश्न 6:‘अंतर्मुखता’ का अर्थ क्या है?
उत्तर:अंतर्मुखता का अर्थ है – स्वयं को देखना, आत्मनिरीक्षण करना, अपनी कमियों को पहचानकर उन्हें सुधारना।


प्रश्न 7:धैर्य आत्मा में कैसे आता है?
उत्तर:जब आत्मा को यह ज्ञान होता है कि ड्रामा बिल्कुल एक्यूरेट है, तब वह प्रतीक्षा करना सीखती है और धैर्यवान बनती है।


प्रश्न 8:मधुरता कैसे व्यवहार में लाई जा सकती है?
उत्तर:जब आत्मा में प्रेम, सम्मान और मुस्कान हो — तो उसका व्यवहार मधुर बनता है। ऐसे व्यक्ति के पास हर कोई सहज आकर्षित होता है।


प्रश्न 9:पवित्रता की सच्ची पहचान क्या है?
उत्तर:सच्ची पवित्रता वह है जिसमें आत्मा केवल बाबा की श्रीमत पर चले, किसी भी देहधारी की मत, देह-अभिमान या विकार उसमें न हों।


प्रश्न 10:संतोषी आत्मा की पहचान क्या है?
उत्तर:जिस आत्मा में संतोष होता है, उसमें अन्य सभी दिव्य गुण स्वतः आ जाते हैं। ऐसी आत्मा सदा सुखी और सकारात्मक होती है।


प्रश्न 11:प्रैक्टिकल जीवन में संतुष्ट रहने की युक्ति क्या है?
उत्तर:कोई भी परिस्थिति हो — बुद्धि यह माने कि “हिसाब बराबर हो रहा है”, तो दुख, क्रोध या डर नहीं आएगा। यह सच्ची संतुष्टि है।


प्रश्न 12:सच्ची तपस्या क्या है?
उत्तर:सच्ची तपस्या वह है जिसमें आत्मा त्याग करती है — वह भी बिना दुख के। त्याग ही तपस्या की बुनियाद है।


प्रश्न 13:स्थूल त्याग में क्या-क्या आता है?
उत्तर:चाय, प्याज़, लहसुन, नशा, बुरा संग, तीर्थ यात्राएँ आदि को छोड़ना — ये सब स्वास्थ्य और आत्मा की शक्ति के लिए आवश्यक स्थूल त्याग हैं।


प्रश्न 14:सूक्ष्म त्याग क्यों ज़रूरी है?
उत्तर:क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकारों को त्यागने से मन शांत, संबंध मधुर और कर्म श्रेष्ठ बनते हैं।


प्रश्न 15:क्या त्याग करने से कुछ खोते हैं?
उत्तर:बिलकुल नहीं! बाबा कहते हैं — त्याग करते ही पाया जाता है
त्याग से आत्मा हल्की, पवित्र और फरिश्ता बनती है।


प्रश्न 16:हल्का फरिश्ता बनने की विधि क्या है?
उत्तर:जब हम “मेरा” छोड़ देते हैं — चाहे वह शरीर हो, संबंध हो या वस्तुएँ — तो आत्मा एकदम हल्की और उड़ती हुई अवस्था में आ जाती है।


प्रश्न 17:राजयोग का अंतिम लक्ष्य क्या है?
उत्तर:राजयोग का अंतिम लक्ष्य है — आत्मा की दिव्यता की पुनः प्राप्ति
त्याग से तपस्या, तपस्या से दिव्यता और दिव्यता से सच्चा सुख प्राप्त होता है।

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