सहज राजयोग कोर्स 16 दिवस कर्मों की गुह्य गति ब्रह्मा कुमारीज
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“कर्मों की गुह्य गति | आत्मा का आत्मा से ही हिसाब–किताब क्यों होता है?” |
हम सहज राजयोग कोर्स का मंथन कर रहे हैं। इस मंथन में हमने आत्मा के बारे में जाना, परमात्मा के बारे में समझा और परमात्मा से कैसे योग लगाना है, यह भी सीखा।
अब एक बहुत गहराई की बात को जानना है —
क्यों आत्माओं के जीवन में सुख और दुख आते हैं? यह कर्मों का क्या रहस्य है?
मुख्य विषय: कर्मों की गुह्य गति
“कर्मों की गुह्य गति” — एक ऐसा विषय जो भक्ति मार्ग में भी प्रसिद्ध है, लेकिन उसे अलग–अलग रीति से समझाया गया है।
आज हम इसे स्पष्ट, सटीक और आध्यात्मिक दृष्टि से समझने का प्रयास करेंगे।
1. आत्मा का कार्मिक अकाउंट शरीर से नहीं, आत्मा से जुड़ा होता है
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हमारा हिसाब–किताब आत्मा से आत्मा का होता है, शरीर के साथ नहीं।
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पैसे, वस्तुएँ, सेवा — ये सभी स्थूल माध्यम हैं, लेकिन हिसाब आत्मिक स्तर पर होता है।
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उदाहरण: यदि आपने किसी को धन दिया, उसका हिसाब आत्मा नहीं, संसारिक कर्ज़ के रूप में होता है। परंतु आपने भाव से सुख दिया, तो वह आत्मा आपको सुख लौटाएगी।
2. कर्मों का हिसाब केवल सुख और दुख के लेन–देन पर आधारित है
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आपने जिस आत्मा को दुख दिया है — वही आत्मा आपको दुख लौटाएगी।
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आपने जिस आत्मा को सुख दिया है — वही आत्मा आपको किसी रूप में सुख लौटाएगी।
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मुरली में कहा: “एक कदम चलोगे, पद्म मिलेंगे” — इसका अर्थ है: एक श्रेष्ठ कर्म लाख गुना पुण्य बन जाता है।
3. प्रकृति से भी हमारा कर्मों का संबंध जुड़ा है
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यदि हम प्रकृति को शुद्ध रखेंगे — जल, वायु, पेड़, पृथ्वी की सेवा करेंगे — तो सतयुग में वही प्रकृति हमें सुरक्षित वातावरण देगी।
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यदि हम आज पर्यावरण को दूषित कर रहे हैं, तो वह हमें शुद्ध वातावरण क्यों देगी?
4. पेड़–पौधों में आत्मा नहीं होती, परंतु जीव–जंतु में होती है
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आत्मा के लिए संकल्प, बुद्धि और अभिव्यक्ति का होना आवश्यक है।
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पेड़–पौधों में ये क्षमताएँ नहीं होतीं, इसलिए उनमें आत्मा नहीं होती।
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लेकिन जीव–जंतु जैसे मच्छर, चींटी, पशु–पक्षी — ये सभी आत्मा वाले हैं। और इनके साथ भी सुख–दुख का हिसाब बनता है।
5. आत्मा का आत्मा से ही हिसाब–किताब बनता है
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आपने जिससे लिया या दिया है — वही आत्मा आपको सुख या दुख लौटाएगी।
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यही कारण है:
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“सुख के कर्म सोने की बेड़ी हैं”
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“दुख के कर्म लोहे की बेड़ी हैं”
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लेकिन बेड़ी तो बेड़ी ही है, चाहे वह सोने की हो या लोहे की।
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6. हिसाब–किताब पूरा हुए बिना मुक्ति नहीं
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जब तक सुख–दुख का हिसाब पूरा नहीं होगा, आत्मा मुक्त नहीं हो सकती।
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आत्मा को वही आत्मा पुनः लौटाकर देगी जिससे लेन–देन हुआ है — तभी संतुलन बनेगा।
7. किसी को भी दुख देना पाप है — चाहे वह छोटा जीव क्यों न हो
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चूहे को मारना, मच्छर को मारना — यह भी दुख देना है।
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जितना अधिक दुख देने वाला तरीका होगा, उतना ही दुख हमें वापस लेना पड़ेगा।
निष्कर्ष: आत्मा के कर्म ही आत्मा की दिशा तय करते हैं
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हमें ध्यान रखना है:
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न किसी को दुख दें
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न किसी से अनावश्यक अपेक्षा रखें
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प्रकृति के प्रति भी सजग रहें
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यह कर्मों की गुह्य गति हमें यह सिखाती है कि —
“हर आत्मा के साथ हमारा पवित्र संबंध है — इसलिए हर कर्म सोच–समझकर करें।”
“कर्मों की गुह्य गति | आत्मा का आत्मा से ही हिसाब–किताब क्यों होता है?” | Brahma Kumaris Hindi Speech
प्रश्न 1:कर्मों की गुह्य गति का अर्थ क्या है?
उत्तर:कर्मों की गुह्य गति का अर्थ है — हर आत्मा द्वारा किए गए कर्मों का सूक्ष्म, अदृश्य और न्यायपूर्ण हिसाब–किताब, जो आत्मा के सुख–दुख को निर्धारित करता है। यह गति शरीर, पैसे या स्थूल साधनों से नहीं बल्कि आत्मा और आत्मा के बीच के कर्मिक संबंधों पर आधारित होती है।
प्रश्न 2:क्यों कहा जाता है कि आत्मा का हिसाब–किताब शरीर से नहीं, आत्मा से होता है?
उत्तर:क्योंकि आत्मा अमर और चेतन सत्ता है, जबकि शरीर नश्वर है। कर्मों का फल स्थूल लेन–देन पर नहीं बल्कि आत्मा के भाव, संकल्प और संबंधों पर आधारित होता है। इसलिए हिसाब–किताब आत्मा से आत्मा का होता है, न कि शरीर या धन से।
प्रश्न 3:क्या पैसे, वस्तुएँ या दान देने से भी कर्मों का हिसाब बनता है?
उत्तर:नहीं, केवल स्थूल दान या वस्तु देने से हिसाब नहीं बनता। यदि उस कर्म में पवित्र भाव, सच्चाई और शुभ संकल्प जुड़े हैं, तभी वह पुण्य बनता है। आत्मा को पैसों से कोई वास्ता नहीं है, भावनात्मक और मानसिक लेन–देन ही आत्मिक कर्म बनता है।
प्रश्न 4:मुरली में कहा गया “एक कदम चलोगे, पद्म मिलेंगे” — इसका क्या अर्थ है?
उत्तर:इसका अर्थ है कि जब आत्मा एक श्रेष्ठ संकल्प या शुभ कर्म करती है, तो वह लाखों गुणा पुण्य संचित कर लेती है। यहां ‘पद्म’ का अर्थ धन नहीं, बल्कि पुण्य, शक्ति और आत्मिक उन्नति है।
प्रश्न 5:प्रकृति से हमारा कर्मों का क्या संबंध है?
उत्तर:हम प्रकृति के साथ भी कर्म करते हैं। यदि हम पर्यावरण, जल, वायु, वृक्ष आदि की रक्षा करते हैं, तो वह सतयुग में हमें शुद्ध वातावरण लौटाते हैं। परंतु यदि हम प्रकृति को दूषित करते हैं, तो बदले में वही प्रकृति हमें पीड़ा देगी।
प्रश्न 6:क्या पेड़–पौधों में आत्मा होती है?
उत्तर:नहीं, पेड़–पौधों में आत्मा नहीं होती क्योंकि उनमें संकल्प करने की शक्ति, बुद्धि और अभिव्यक्ति की क्षमता नहीं होती। वे केवल प्रकृति के तत्व हैं। जबकि मच्छर, चींटी, पशु–पक्षी आदि में आत्मा होती है, इसलिए उनके साथ भी कर्मों का हिसाब बनता है।
प्रश्न 7:क्या किसी छोटे जीव को मारने से भी पाप कर्म बनता है?
उत्तर:हाँ, आत्मा चाहे किसी भी आकार या रूप में हो — दुख देना पाप ही कहलाता है। जानबूझकर मच्छर, चींटी, या चूहा मारना भी आत्मा को दुख देना है, और इसका फल आत्मा को किसी न किसी रूप में वापस मिलेगा।
प्रश्न 8:“सुख के कर्म सोने की बेड़ी हैं” — इसका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:इसका अर्थ है कि जब हम किसी आत्मा को सुख देते हैं, तो वह आत्मा हमें वह सुख लौटाती है। लेकिन जब तक वह लौटा नहीं देती, तब तक आत्मा उस संबंध से बंधी रहती है — भले ही वह बंधन अच्छा हो। इसलिए कहा गया है कि बेड़ी तो बेड़ी ही है, चाहे वह सुख की हो या दुख की।
प्रश्न 9:क्या आत्मा का आत्मा से हिसाब–किताब बिना पूरा हुए मुक्ति मिल सकती है?
उत्तर:नहीं, जब तक आत्मा के सुख–दुख का पूरा हिसाब–किताब नहीं होता, तब तक आत्मा मुक्त नहीं हो सकती। मुक्ति या निर्वाण तभी संभव है जब सारे लेन–देन समाप्त हो जाएं और आत्मा परमात्मा से पूर्ण योग में स्थित हो जाए।
प्रश्न 10:इस ज्ञान को समझकर हमें अपने जीवन में क्या परिवर्तन लाना चाहिए?
उत्तर:हमें यह समझना चाहिए कि —
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हर आत्मा से पवित्र संबंध रखें,
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किसी को भी दुख न दें — चाहे वह मनुष्य हो या जीव,
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प्रकृति के प्रति सम्मान और सेवा की भावना रखें,
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हर कर्म सोच–समझकर करें, क्योंकि वह ही भविष्य का भाग्य बनाता है।
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