सतयुग-(02)-सतयुग का दिव्य वैभव और संकल्प का सेफ्टी का रहस्य
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
02- सतयुग का दिव्य वैभव और संकल्प से सेफ्टी का रहस्य!
“स्वर्णिम युग का दिव्य वैभव और विनाश के समय सेफ रहने का राज!”
सतयुग का दिव्य वैभव और संकल्प से सेफ्टी का रहस्य
ओम् शांति।
आज हम जानेंगे दो गहरे और अद्भुत रहस्य—
सतयुग के दिव्य वैभव की झलक
संकल्प शक्ति द्वारा विनाश के समय सेफ्टी का गुप्त राज!
1. सतयुग का नैचुरल और दिव्य वैभव
सतयुग कोई साधारण समय नहीं, यह आत्मा की पूर्णता का उत्सव है, जहाँ हर चीज़ दिव्यता से भरी होती है।
दिव्य साधन और सहज सुख
हर वस्तु दिव्य, नैचुरल और सेवा में तत्पर होती है।
संगीत यंत्र ऐसे होंगे जो केवल स्पर्श से बज उठेंगे।
हर आत्मा की ड्रेस कोड उसी स्थान और सेवा अनुसार दिव्य रूप में होगी—सज्जा में वैभव होगा, पर बोझ नहीं होगा।
गहने आत्मा की आभा बढ़ाएँगे, लेकिन अहंकार नहीं बढ़ाएँगे।
बाबा मुरली: “सतयुग में सब कुछ इतना सहज और सुंदर होता है कि कुछ भी करने की मेहनत नहीं लगती—सब कुछ अपने आप प्राप्त होता है।”
( मुरली: 05-06-1986)
2. आत्मा की दिव्यता ही उसकी पहचान
सतयुग में आत्मा का आभामंडल ही सबसे बड़ा श्रृंगार होता है।
मेहनत नहीं, बल्कि स्वाभाविक गुणों से चीज़ें प्रकट होती हैं।
उदाहरण:
आज जिस वस्त्र, सजावट या यंत्र के लिए हम संसाधनों और समय की आवश्यकता समझते हैं—सतयुग में वह सब आत्मिक शक्ति से संचालित होता है।
3. अब की तैयारी—विनाश समय के लिए सेफ्टी का अभ्यास
अब समय है—एवररेडी बनने का!
क्योंकि अंतिम समय आएगा अचानक, और उस समय आपकी संकल्प शक्ति ही आपकी सुरक्षा होगी।
सेफ्टी के दो राज:
बुद्धि की लाइन क्लीयर हो—बाबा से कनेक्शन टूटा न हो।
अशरीरी बनने का सहज अभ्यास हो—जब चाहो, शरीर से न्यारे बन सको।
बाबा कहते हैं: “बच्चे, एक सेकंड में देहधारी से देही बनने की कला ही तुम्हें सेफ रखेगी।”
( अव्यक्त वाणी: 17-03-1991)
4. संकल्प शक्ति—परिवर्तन का टूल
अभ्यास बनाओ:
“अभी साकार में, अभी अशरीरी।”
जैसे कपड़े बदलते हैं, वैसे ही शरीर छोड़ने की सहजता हो।
उदाहरण:
कोई परिस्थिति आए, और आप तुरंत अशरीरी स्थिति में चले जाएँ—यह होगी वास्तविक फ़रिश्ता स्थिति।
मृत्यु नहीं लगेगी मृत्यु जैसी—वह तो पुराने वस्त्र बदलने जैसा सहज होगा।
5. फ़रिश्तेपन का साक्षात्कार—अभी से!
अंतिम समय की सुंदरता इसी अभ्यास से आएगी।
जो आत्माएँ अभी से सहयोग में रहती हैं, वही अंत में सहयोग पाएँगी।
याद रखें—सेफ्टी की तैयारी अंतिम समय में नहीं होगी, वह अब की मेहनत पर निर्भर है।
निष्कर्ष: क्या आप तैयार हैं?
अब आपको निर्णय लेना है—
क्या आप सतयुग के उस दिव्य वैभव के अधिकारी बनना चाहते हैं?
क्या आप विनाश समय में सुरक्षित रहना चाहते हैं?
क्या आप अपने अंतिम क्षण को सुंदरतम बनाना चाहते हैं?
प्रश्न 1: सतयुग में जीवन कितना दिव्य और वैभवशाली होता है?
उत्तर:सतयुग का जीवन एकदम दिव्य, प्राकृतिक और सहज होता है।
हर वस्तु नैचुरल और सेवा में तत्पर होती है।
संगीत यंत्र बिना छुए, केवल संकल्प या स्पर्श से बज उठते हैं।
वस्त्र हर स्थान और सेवा के अनुसार अपने आप अनुकूल हो जाते हैं।
श्रृंगार बोझ नहीं, बल्कि आत्मा की दिव्यता का प्रतीक होता है।
प्रश्न 2: सतयुग में इतनी सम्पन्नता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर:यह सम्पन्नता मेहनत से नहीं, दिव्यता और पुण्य-संचय से मिलती है।
आत्मा की आंतरिक शक्ति और शुद्धता इतनी होती है कि हर चीज़ स्वतः आकर्षित होती है।
प्रश्न 3: क्या विनाश के समय सेफ रहना संभव है?
उत्तर:हाँ! लेकिन उसके लिए अभी से अभ्यास करना होगा—
“फुल स्टॉप” लगाने की शक्ति चाहिए।
साकार से आकारी और आकारी से निराकारी बनने की कला होनी चाहिए।
यही अभ्यास अन्तिम समय में आत्मा की सेफ्टी का रक्षक बनेगा।
प्रश्न 4: ‘फ़रिश्तेपन का साक्षात्कार’ क्या है और क्यों ज़रूरी है?
उत्तर:फ़रिश्तापन यानी शरीर के पार जाने की स्थिति।
जब आत्मा स्थूल से subtle बनती है, तो वह फ़रिश्ते जैसे अनुभव करती है।
इस स्थिति से ही परमात्मा की प्रत्यक्षता और सहयोग का अनुभव होता है।
प्रश्न 5: सेफ रहने के लिए सबसे महत्वपूर्ण 2 बातें क्या हैं?
उत्तर:
(1) बुद्धि की लाइन स्पष्ट हो—परमात्मा से कनेक्शन टूटा न हो।
(2) अशरीरी बनने का अभ्यास गहरा हो—स्थिति स्थूल में रहते हुए भी पारशरीरी हो।
प्रश्न 6: मृत्यु कैसी होगी सतयुग में जाने वाले आत्माओं के लिए?
उत्तर:🕊 मृत्यु नहीं, बल्कि पुराने वस्त्र बदलने जैसा अनुभव होगा।
एक संकल्प में शरीर छोड़ देना—बिलकुल सहज और शांतिपूर्ण।
प्रश्न 7: इस स्थिति को पाने के लिए अभी क्या करना चाहिए?
उत्तर:रोज़ अभ्यास करें:
-
मैं आत्मा हूँ, यह शरीर मेरा वस्त्र है।
-
एक सेकंड में संकल्प बदलने की कला सीखो।
राजयोग और संकल्प शक्ति से स्वयं को तैयार करें।
दिव्यता को धारण कर, फ़रिश्तापन की स्थिति में स्थित हों।
प्रश्न 8: क्या हम सतयुग के अधिकारी बन सकते हैं?
उत्तर:बिलकुल!
अभी का अभ्यास, आत्मिक मेहनत और परमात्मा का संग यही तय करता है कि हम सतयुग के अधिकारी बनेंगे या नहीं।
यह स्वर्णिम समय है—आत्मा को दिव्य बनाकर सतयुग के प्रवेश द्वार तक पहुँचना ही सच्चा पुरुषार्थ है।
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