T.L.P 76″क्या सूक्ष्म शरीर से किए गए कर्मों का आत्मा पर प्रभाव पड़ता है
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
ओम शांति कौन बनेगा पद्मा पदम पति जब हम जानेंगे परमात्मा के द्वारा हर कर्म करने से कैसे हम पद्म की कमाई जमा कर सकते तब बनेंगे पद्मा पदम पति आज का विषय है क्या सूक्ष्म शरीर से किए गए कर्मों का आत्मा पर प्रभाव पड़ता है क्या सूक्ष्म शरीर से किए गए कर्मों का आत्मा पर प्रभाव पड़ता है प्रश्न समझ में आ रहा है हा समझ में आ रहा है आत्मा ने कर्म करना क्योंकि इस कर्म क्षेत्र में आकर के आत्मा को या तो कर्म वो सूक्ष्म शरीर के द्वारा करेगी या स्थूल शरीर के द्वारा करेगी अब सूक्ष्म शरीर के द्वारा कर्म वो करती है उसका क्या रिजल्ट निकलता
है
भूमिका आत्मा के कर्म और उनके प्रभाव का सिद्धांत गहराई से समझने योग्य है यह प्रश्न है कि क्या सूक्ष्म शरीर से किए गए कर्मों का आत्मा पर प्रभाव पड़ता है एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक विषय है चाहे आत्मा स्थूल शरीर में हो या सूक्ष्म शरीर में उसके कर्मों का प्रभाव अवश्य पड़ता है परमात्मा को छोड़कर कोई भी आत्मा ऐसी नहीं है जिसके कर्म निष्फल हो जाते निष्फल जाते हो यह लाइन नोट करने वाली है परमात्मा को छोड़कर बाकी कोई भी आत्मा जो भी कर्म करेगी उस क्रिया की प्रतिक्रिया उसे लेनी ही पड़ेगी अपनी बुद्धि में हमने लिख लेना है
कि परमात्मा किसी भी क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं लेते यह नियम परमात्मा पर लागू नहीं होता परमात्मा कोई भी कर्म करे और उसका परिणाम उसे नहीं लेना पड़े परमात्मा कोई भी कर्म करते हैं चाहे सूक्ष्म शरीर के द्वारा चाहे स्थूल शरीर के द्वारा वे उसकी प्रति क्रिया नहीं लेते क्यों लेप में नहीं आते कर्म के लेप में नहीं आ परमात्मा को शरीर नहीं भाई जी शरीर किराए पर लिया तो है बाबा को लगेगा ब्रह्मा बाबा करेंगे तो जी बाबा ने शरीर भी लिया होगा तो वो शरीर भान से कर्म करते ही नहीं ना आत्मा समझ कर कर्म करते तो उसका लेप छेप नहीं
लगता शरीर किराए पर ले किराएदार बनो तो कर्म करोगे तो कर्म का फल लेना पड़ेगा परंतु परमात्मा पर यह फार्मूला फिट नहीं बैठता यह गलत बात है ना परमात्मा पर भी तो फार्मूला फिट बैठना चाहिए ना क्यों नहीं बैठता क्योंकि वो अभोगता है वह शरीर में होते हुए भी शरीर को भोगता नहीं ना सुख लेता है ना दुख की फीलिंग करता है वह जो है ना इन सब प्रभावों से क्या है एकदम मुक्त शरीर का आधार लेते हुए भी शरीर को प्रयोग करते हुए भी अ भोगता है सुख दिया तब भी न्यारा दुख हुआ उससे किसी आत्मा को तो भी न्यारा उसके द्वारा दुख कैसे होगा
वो किसी को दुख या सुख देते ही नहीं ना वह किसी को ना दुख देते हैं और ना ही सुख देते वह केवल सबको एक रूहानी आनंद का अनुभव कराते हैं अब कोई जिस्म समझ कर ले रहा है तो यह उस आत्मा का पार्ट है परमात्मा कोई जिस्मानी सर्दी गर्मी सुख दुख खुशी गम कुछ नहीं देते एक तो आत्मिक दृष्टि देते हैं और ज्ञान सुनाते बस दूसरा कुछ नहीं कर इसके अलावा उनका कोई रोल नहीं कोई सुनो ना सुनो बनो ना बनो सुधरो ना सुधरो व उस आत्मा का पार्ट इसलिए उनके कर्म निष्फल जाते परमात्मा के कर्म निष्फल जाते हैं और किसी के कर्म निष्फल नहीं जाते परमात्मा आकर
झंडा फहराते हैं अपना शिव जयंती पर अब वो ब्रह्मा बाबा फैलाता है कि शिव बाबा फैलाता है फराता है शिव बाबा को झंडा फैलाने की जरूरत नहीं है वो तो हां ब्रह्मा बाबा फैला सकते हैं अपना झंडा फहराते हैं गीत भी बना हुआ है अब क्या सोच कर के बनाया गया है हमें समझना है कि परमात्मा अ भोक्ता होने के कारण संसार की कोई भी क्रिया और प्रतिक्रिया का फल नहीं भोगते पर उनके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता सूक्ष्म और स्थूल शरीर से कर्मों का प्रभाव मनुष्य आत्मा जब स्थूल शरीर में होती है तो उसके द्वारा किए गए कर्मों का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है
परंतु जब आत्मा सूक्ष्म शरीर में होती है तब भी उसके कर्मों का प्रभाव उसके स्वरूप और शक्ति पर पड़ता है क्या समझ में आ रहा है जैसे कोई भी आत्मा सूक्ष्म शरीर से किसी दूसरी आत्मा को सुख वा दुख दे रही है व अपना कार्मिक अकाउंट बराबर करने के लिए गई है ना सूक्ष्म शरीर के माध्यम से तो कर्म का प्रभाव उस पर पड़ क्योंकि व आत्मा किसी दूसरे के शरीर का आधार लेकर या उसी के शरीर का आधार लेकर या बिना आधार लिए भी कुछ ऐसे कार्मिक एकाउंट होते हैं जिनको वे बराबर करती है ब्रह्मा बाबा का उदाहरण साकार ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के बाद संदेशों के
अनुभवों से यह सिद्ध होता है कि सूक्ष्म शरीर में भी आत्मा के कर्मों का प्रभाव पड़ता है कई संदेशों ने सूक्ष्म वतन में बाबा के स्वरूप को बदलते हुए देखा वह बताते हैं कि पहले की अपेक्षा बाबा का रूप अधिक तेजस्वी और दिव्य हो गया है इससे स्पष्ट होता है कि सूक्ष्म वतन में भी आत्मा अपने कर्मों के प्रभाव से परिवर्तित होती रहती है ये एग्जांपल समझ में आया है संदेशी जाती थी और नीचे जैसे ब्रह्मा बाबा के जीवन में अंतर आता जा रहा था उसका प्रभाव सूक्ष्म वतन में उनके जो सूक्ष्म शरीर है उस पर भी प्रभाव दिखाई दे रहा लाइन समझ में आई नीचे हम नीचे व पहचान
पाते हो ना पहचान पाते हो क्योंकि रोजाना रूटीन में देखते रहने से पता नहीं लगता परंतु ऊपर तो कभी कभी जाना होता तो यह फर्क ऊपर में दिखाई देता था सूक्ष्म शरीर की अवस्था और आत्मा की शक्ति अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की बढ़ती दिव्यता अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के स्वरूप में पहले की तुलना में अधिक प्रकाश और तेजस्विता देखी गई है नंबर दो इसका कारण ये कि बाबा अभी भी सूक्ष्म शरीर में सेवा कर रहे हैं और उनके कर्मों का प्रभाव उनके स्वरूप पर दिखाई देता है साक्षी भाव में परिवर्तन पहले की अपेक्षा बाबा की स्थिति
अधिक साक्षी भाव वाली हो गई है यह परिवर्तन भी सूक्ष्म शरीर में किए गए कर्मों का ही परिणाम है जो बाबा की मुरर्लियों में भी झलकता है अव्यक्त बाप दादा का दृष्टिकोण अव्यक्त बाप और दादा दोनों का दृष्टिकोण क्या है स्टूडेंट्स के साथ टीचर का कनेक्शन तब तक रहता है जब तक फाइनल पेपर हो फाइनल पेपर लास्ट में होना है ना एक सेकंड का तब तक टीचर का हमारे साथ संबंध रहेगा रिवाइज कोर्स के लिए टीचर हर वक्त साथ नहीं रहता इस बात से स्पष्ट होता है कि सूक्ष्म वतन से बाबा हर आत्मा को दूर से ही देख रेख कर रहे हैं बाबा तरस भी खाते
हैं लेकिन अब साकार रूप का पार्ट पूरा हो चुका है इसलिए वह केवल सकाश को हिंदी में बताया गया दूरस्त शक्ति संचार दूर स्थित होकर अपनी शक्तियों का संचार करना इसको बोलते हैं सकाश दूरस्त स्थित होकर के दूर से ही स्थित होकर शक्ति का संचार देते हैं निष्कर्ष सूक्ष्म शरीर से किए गए कर्मों का भी आत्मा पर प्रभाव पड़ता है जैसे आत्मा सेवा और पुरुषार्थ में आगे बढ़ती है उसकी शक्ति और प्रकाश भी बढ़ता जाता है ब्रह्मा बाबा का सूक्ष्म वतन में रूपांतरित होना इस समय का सत्य का प्रमाण है आत्मा चाहे स्थूल शरीर में हो या सूक्ष्म में
अपने कर्मों के प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकती बात समझ में आ गई है हर आत्मा अपने कर्म का फल अवश्य पाती है चाहे वह स्थूल शरीर में हो या सूक्ष्म वतन हर आत्मा अपने कर्मों का फल अवश्य पाती है चाहे वह स्थूल शरीर में हो या सूक्ष्म वतन में हो कर्मों का हिसाब हर आत्मा को क्योंकि पार्ट बजाने के लिए उसने इन दोनों का ही आधार लेना है इन दोनों के द्वारा ही अपना कार्मिक अकाउंट भी बराबर करना है अच्छा हां जी तो दोनों शरीर में तो कर्म करते पर ज्ञानी आत्मा और अज्ञानी आत्मा दोनों में कर्म में तो अंतर होगा वह तो रहेगा जैसे
कर्म करेंगे इससे कोई मतलब नहीं है कर्म अच्छा करे या कर्म बुरा करे परंतु कर्म का फल तो उनको लेना ही लेना कर्म के फल से उनको कोई भी बचा नहीं सकता कोई नियम नहीं है वो कर्म के फल से जो ज्ञानी होगा सूक्ष्म शरीर से भी तो श्रीमत पर चलेगा ना वहां पे जहां पे भी हो होगा सूक्ष्म वतन में भी कर्म करेगा तो श्रीमत के आधार पर ही करेगा ना वो सूक्ष्म वतन में भी जाकर कर्म करेगा तो श्रीमत के आधार पर ही करेगा चाहे वो श्रीमत के आधार पर करे चाहे श्रीमत के आधार पर ना करे इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं
🌸 “ओम शांति: कौन बनेगा पद्मा पदम पति?”
🧘♂️ आज का विषय:“क्या सूक्ष्म शरीर से किए गए कर्मों का आत्मा पर प्रभाव पड़ता है?”
❓ प्रश्न 1:क्या आत्मा सूक्ष्म शरीर से भी कर्म करती है?
✅ उत्तर:हाँ, आत्मा चाहे स्थूल शरीर में हो या सूक्ष्म शरीर में, वह कर्म अवश्य करती है। जैसे स्थूल शरीर में बोलना, चलना, खाना ये कर्म हैं, वैसे ही सूक्ष्म शरीर में भी आत्मा संकल्प, दृष्टि, संकल्प द्वारा सेवा आदि करती है।
❓ प्रश्न 2:क्या सूक्ष्म शरीर से किए गए कर्मों का आत्मा पर प्रभाव पड़ता है?
✅ उत्तर:बिलकुल! आत्मा जब सूक्ष्म शरीर से कोई कर्म करती है, तो उसका प्रभाव आत्मा की शक्ति, स्वरूप और प्रकाश पर पड़ता है। जैसे ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त स्वरूप में भी दिव्यता निरंतर बढ़ती गई — यह प्रमाण है कि सूक्ष्म शरीर से कर्म आत्मा पर असर डालते हैं।
❓ प्रश्न 3:क्या परमात्मा पर भी कर्मों का प्रभाव पड़ता है?
✅ उत्तर:नहीं। परमात्मा “अभोक्ता” हैं — वह कोई भी कर्म करें, चाहे सूक्ष्म या स्थूल माध्यम से, उस पर कोई कर्म का फल नहीं लगता। क्योंकि वे “कर्मातीत” हैं, यानी कर्म के फल से परे हैं। वे शरीर का प्रयोग तो करते हैं, लेकिन शरीर को भोगते नहीं, इसलिए कर्म उन्हें लपेटता नहीं।
❓ प्रश्न 4:अगर सूक्ष्म शरीर से किसी आत्मा ने दुख या सुख दिया, तो क्या वह भी कर्म का हिस्सा है?
✅ उत्तर:हाँ, वह भी कर्म है। चाहे वह सूक्ष्म रूप से संकल्प द्वारा किसी को दुख या सुख दे, यह भी आत्मा के “कार्मिक अकाउंट” का भाग होता है। इसलिए सूक्ष्म रूप से भी सेवा या प्रतिक्रिया करते समय सतर्क रहना चाहिए।
❓ प्रश्न 5:ब्रह्मा बाबा के सूक्ष्म वतन के अनुभव से क्या सिद्ध होता है?
✅ उत्तर:अनेक संदेशियों ने बताया कि ब्रह्मा बाबा के सूक्ष्म स्वरूप में पहले की अपेक्षा अधिक तेज, प्रकाश और दिव्यता देखी गई। इसका अर्थ है कि सूक्ष्म शरीर में भी आत्मा सेवा और पुरुषार्थ के द्वारा आगे बढ़ती है और उसका प्रभाव उसके स्वरूप पर पड़ता है।
❓ प्रश्न 6:क्या ज्ञानी आत्मा और अज्ञानी आत्मा के कर्मों का परिणाम अलग होता है?
✅ उत्तर:कर्मों का फल तो सभी को मिलता है, चाहे ज्ञानी हो या अज्ञानी। लेकिन ज्ञानी आत्मा श्रीमत पर चलकर कर्म करती है, जिससे उसके कर्म श्रेष्ठ बनते हैं और उसके फल भी सुखद होते हैं। अज्ञानी आत्मा श्रीमत के अभाव में कर्म कर सकती है, जिससे कष्टकारी फल भोगने पड़ते हैं।
❓ प्रश्न 7:क्या परमात्मा हमें केवल रूहानी आनंद का अनुभव कराते हैं?
✅ उत्तर:हाँ, परमात्मा किसी को न तो सुख देते हैं, न दुख। वे आत्मिक दृष्टि और ज्ञान के माध्यम से केवल रूहानी आनंद का अनुभव कराते हैं। यदि कोई शरीर समझकर ले रहा है, तो वह आत्मा की अपनी सोच है।
❓ प्रश्न 8:सूक्ष्म शरीर में सेवा करने का क्या अर्थ है?
✅ उत्तर:अव्यक्त ब्रह्मा बाबा अभी भी सूक्ष्म वतन से “सकाश” अर्थात दूर से शक्ति-संचार द्वारा सेवा कर रहे हैं। वे हर आत्मा को देख रहे हैं, मार्गदर्शन दे रहे हैं, लेकिन अब साकार का पार्ट पूरा हो चुका है। इसलिए अब वो सेवा अव्यक्त रूप से करते हैं।
🧾 निष्कर्ष:हर आत्मा को अपने कर्मों का फल अवश्य मिलता है — चाहे वह स्थूल शरीर में हो या सूक्ष्म शरीर में। सिर्फ परमात्मा ही एकमात्र आत्मा हैं जिन पर कर्मों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि वे अभोक्ता और कर्मातीत हैं।
तो पद्मा पदम पति वही बनता है जो श्रीमत के आधार पर हर क्षण श्रेष्ठ कर्म करता है — स्थूल से भी और सूक्ष्म से भी।
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