स्वर्ग दिलाने वाला गीता का असली युद्ध
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“स्वर्ग दिलाने वाला गीता का असली युद्ध | अर्जुन कौन था? श्रीकृष्ण नहीं, शिव हैं गीता के भगवान |
“श्रीमद्भगवद्गीता” को बहुतों ने युद्धग्रंथ माना, पर क्या यह सच में रक्तरंजित युद्ध की कहानी है?
आज हम जानेंगे गीता के उस असली युद्ध के बारे में जो दिला सकता है स्वर्ग का राज्य, और समझेंगे कि अर्जुन कौन था, और सारथी कौन?
1. यह कोई साधारण युद्ध नहीं था
गीता में वर्णित युद्ध एक आध्यात्मिक संग्राम था, जहाँ कोई तलवारें नहीं थीं – बल्कि थी ज्ञान की शक्ति, और माया के विकारों से लड़ने का संकल्प।
युद्ध था – आत्मा और उसके अंदर के शत्रुओं के बीच।
शत्रु कौन? – काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार।
उदाहरण:
जैसे डॉक्टर रोग से लड़ता है, मरीज से नहीं –
वैसे ही यह युद्ध आत्मिक रोगों से है, न कि मनुष्यों से।
2. अर्जुन कौन था? – प्रजापिता ब्रह्मा
‘अर्जुन’ वह आत्मा है जो परमात्मा की श्रीमत पर चलता है।
गीता में अर्जुन का अर्थ है:
-
श्वेत वस्त्रधारी
-
गुडाकेश (जो निद्रा पर विजयी)
-
परंतप (तपस्या करने वाला)
-
पवित्र और अच्छे कर्मों वाला
यही आत्मा है प्रजापिता ब्रह्मा,
जिसके द्वारा परमात्मा शिव ने ज्ञान सुनाया।
Murli 18 जनवरी 1970:
“ब्रह्मा के द्वारा मैं तुम बच्चों को युद्ध सिखाता हूँ – यह ज्ञान-युद्ध है, माया पर जीत पानी है।”
3. सारथी कौन था? – परमात्मा शिव
गीता का सारथी श्रीकृष्ण नहीं,
बल्कि वह अजर, अमर, निराकार शिव हैं,
जिनका कोई जन्म या शरीर नहीं होता।
शिव परमात्मा ने ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर यह ज्ञान सुनाया।
Murli 5 मार्च 1970:
“मैं तुम्हारा रथी हूँ। इस रथ में बैठ मैं तुम्हें गीता का ज्ञान सुनाता हूँ – अर्जुन भी यह ब्रह्मा ही है।”
4. चार घोड़े – पवित्र बना हुआ मन
गीता में दिखाए गए चार श्वेत घोड़े
प्रतीक हैं – चारों दिशाओं में दौड़ते हुए मन के।
सफेद रंग – पवित्रता का प्रतीक।
लगाम भगवान के हाथ में देना –
अर्थात मन की लगन परमात्मा में लगाना।
5. शस्त्र क्या हैं? – आत्मिक गुण
इस युद्ध में हथियार थे –
धनुष = पुरुषार्थ की कमान
तरकश = बुद्धि
बाण = दिव्य गुण जैसे:
-
सहनशीलता
-
करुणा
-
निर्मलता
-
मधुरता
-
अन्तर्मुखता
Murli 1 मार्च 1971:
“बच्चे, ये युद्ध कोई हिंसा का नहीं – तुम्हें माया से लड़ना है, ज्ञान और योग के बल से – यही पाशुपतास्त्र है।”
6. श्री और विजय की प्राप्ति – स्वर्ग का राज्य
भगवान गीता में कहते हैं –
“अगर तू युद्ध में मारा गया, तो स्वर्ग मिलेगा।
और यदि जीत गया तो चक्रवर्ती राज्य।”
अर्थ है –
अल्प पुरुषार्थ भी स्वर्ग का अधिकारी बनाता है।
पूर्ण विकार जीतने वाला – बनता है लक्ष्मी-नारायण।
7. पुनरावृत्ति – संगम युग का गीता काल
अब वही काल फिर आया है –
संगम युग – जब परमात्मा शिव ब्रह्मा के माध्यम से
हमें वही अहिंसक धर्म युद्ध सिखा रहे हैं।
Murli 23 फरवरी 1969:
“अब तुम बच्चे शिव बाबा की सेना हो –
जो पवित्रता से दुनिया बदल रहे हो – यही सच्चा धर्म युद्ध है।”
अंतिम सारांश:
-
गीता का युद्ध: अहिंसक आत्मिक संग्राम
-
अर्जुन: प्रजापिता ब्रह्मा
-
सारथी: परमात्मा शिव
-
शस्त्र: ज्ञान, योग, दिव्य गुण
-
परिणाम: स्वर्ग का राज्य, श्री लक्ष्मी-नारायण पद
प्रश्न 1: गीता का युद्ध किस प्रकार का था?
उत्तर:गीता का युद्ध कोई बाहरी रक्तरंजित युद्ध नहीं था, बल्कि यह एक आध्यात्मिक संग्राम था – आत्मा और माया के विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार) के बीच। यह अहिंसक धर्म-युद्ध ज्ञान और योग के बल से लड़ा गया।
प्रश्न 2: अर्जुन वास्तव में कौन था?
उत्तर:‘अर्जुन’ कोई बाहरी योद्धा नहीं, बल्कि वह आत्मा है जो भगवान की आज्ञा पर चलता है। प्रजापिता ब्रह्मा ही वह आत्मा हैं जिन्हें परमात्मा शिव ने “गीता ज्ञान” सुनाया। गीता में ‘अर्जुन’ के गुणों से स्पष्ट होता है कि वह पवित्र, जाग्रत, पुरुषार्थी आत्मा थी।
Murli 18 जनवरी 1970:
“ब्रह्मा के द्वारा मैं तुम बच्चों को युद्ध सिखाता हूँ – यह ज्ञान-युद्ध है।”
प्रश्न 3: क्या गीता में भगवान श्रीकृष्ण थे?
उत्तर:नहीं। गीता में साक्षात भगवान श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि निराकार परमात्मा शिव ज्ञान दे रहे हैं। वे कहते हैं: “मैं न जन्म लेता हूँ, न मरता हूँ।” इसलिए, वास्तविक ज्ञानदाता परमात्मा शिव हैं जो ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर गीता सुनाते हैं।
Murli 5 मार्च 1970:
“मैं तुम्हारा रथी हूँ। इस रथ में बैठ गीता का ज्ञान सुनाता हूँ। अर्जुन भी ब्रह्मा ही है।”
प्रश्न 4: गीता में चार श्वेत घोड़ों का क्या अर्थ है?
उत्तर:चार घोड़े कोई असली जानवर नहीं, बल्कि चार दिशाओं में दौड़ते हुए मन का प्रतीक हैं। सफेद रंग मन की पवित्रता दर्शाता है। लगाम भगवान के हाथ में देने का अर्थ है – मन को परमात्मा की याद में लगाना।
प्रश्न 5: गीता के शस्त्र क्या हैं?
उत्तर:गीता के हथियार बाह्य नहीं, बल्कि आत्मिक गुण हैं:
-
धनुष = पुरुषार्थ की कमान
-
तरकश = बुद्धि
-
बाण = दिव्य गुण (सहनशीलता, करुणा, निर्मलता, मधुरता, अन्तर्मुखता)
Murli 1 मार्च 1971:
“यह युद्ध माया से है, ज्ञान और योग के बल से – यही पाशुपतास्त्र है।”
प्रश्न 6: गीता का लक्ष्य क्या है?
उत्तर:गीता का उद्देश्य है आत्मा को विकारों पर विजय दिलाना और स्वर्ग का अधिकारी बनाना। जिसने विकारों को जीत लिया – वह श्री लक्ष्मी-नारायण पद प्राप्त करता है।
प्रश्न 7: गीता का युद्ध कब और कैसे पुनरावृत्त होता है?
उत्तर:यह युद्ध हर कल्प के संगमयुग में होता है, जब परमात्मा शिव पुनः आकर प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम से गीता का ज्ञान सुनाते हैं। आज भी वही ज्ञान-युद्ध चल रहा है – विकारों पर विजय पाने के लिए।
Murli 23 फरवरी 1969:
“अब तुम बच्चे शिव बाबा की सेना हो – यही सच्चा धर्म युद्ध है।”
प्रश्न 8: गीता का सारांश क्या है?
उत्तर:
-
गीता का युद्ध: आत्मिक और अहिंसक संग्राम
-
अर्जुन: प्रजापिता ब्रह्मा
-
सारथी: परमात्मा शिव
-
शस्त्र: ज्ञान, योग, दिव्य गुण
-
फल: स्वर्ग की प्राप्ति, लक्ष्मी-नारायण पद
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस वीडियो में व्यक्त विचार ब्रह्माकुमारी संस्था के आध्यात्मिक ज्ञान (Murli) एवं अनुभवजन्य शोध पर आधारित हैं। हमारा उद्देश्य किसी भी धर्म, महापुरुष या धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना नहीं है, बल्कि प्रतीकों के आध्यात्मिक रहस्य को उजागर करना है। कृपया इसे एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें।
#Truth of Geeta #Who was Arjuna #War of Geeta #Mystery of Mahabharata #Lord of Geeta #Gita knowledge #Spiritual knowledge #MurliPoints #BKMurli #RajyogaMeditation #BrahmaKumaris #ShivBaba #SpiritualGita
#गीता_का_सच #अर्जुन_कौन_था #गीता_का_युद्ध #महाभारत_का_रहस्य #गीता_का_भगवान #गीता_ज्ञान #आध्यात्मिक_ज्ञान #मुरलीपॉइंट्स #बीकेमुरली #राजयोगध्यान #ब्रह्माकुमारी #शिवबाबा #आध्यात्मिकगीता