(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
24-03-1982 “ब्राह्मण जीवन की विशेषता है – पवित्रता”
आज बापदादा अपने पावन बच्चों को देख रहे हैं। हरेक ब्राह्मण आत्मा कहाँ तक पावन बनी है – यह सबका पोतामेल देख रहे हैं। ब्राह्मणों की विशेषता है ही पवित्रता। ब्राह्मण अर्थात् पावन आत्मा। पवित्रता को कहाँ तक अपनाया है, उसको परखने का यन्त्र क्या है? “पवित्र बनो”, यह मन्त्र सभी को याद दिलाते हो लेकिन श्रीमत प्रमाण इस मन्त्र को कहाँ तक जीवन मे लाया है? जीवन अर्थात् सदाकाल। जीवन में सदा रहते हो ना! तो जीवन में लाना अर्थात् सदा पवित्रता को अपनाना। इसको परखने का का यन्त्र जानते हो? सभी जानते हो और कहते भी हो कि पवित्रता सुख-शान्ति की जननी है अर्थात् जहाँ पवित्रता होगी वहाँ सुख-शान्ति की अनुभूति अवश्य होगी। इसी आधार पर स्वयं को चेक करो – मन्सा संकल्प में पवित्रता है, उसकी निशानी – मन्सा में सदा सुख स्वरुप, शान्त स्वरुप की अनुभूति होगी। अगर कभी भी मन्सा में व्यर्थ संकल्प आता है तो शान्ति के बजाय हलचल होती है। क्यों और क्या इन अनेक क्वेश्चन के कारण सुख स्वरुप की स्टेज अनुभव नहीं होगी और सदैव समझने की आशा बढ़ती रहेगी – यह होना चाहिए, यह नहीं होना चाहिए, यह कैसे, यह ऐसे। इन बातों को सुलझाने में ही लगे रहेंगे इसलिए जहाँ शान्ति नहीं वहाँ सुख नहीं। तो हर समय यह चेक करो कि किसी भी प्रकार की उलझन सुख और शान्ति की प्राप्ति में विघ्न रुप तो नहीं बनती है! अगर क्यों, क्या का क्वेश्चन भी है तो संकल्प शक्ति में एकाग्रता नहीं होगी। जहाँ एकाग्रता नहीं, वहाँ सुख-शान्ति की अनुभूति हो नहीं सकती। वर्तमान समय के प्रमाण फरिश्ते-पन की सम्पन्न स्टेज के वा बाप समान स्टेज के समीप आ रहे हो, उसी प्रमाण पवित्रता की परिभाषा भी अति सूक्ष्म समझो। सिर्फ ब्रह्मचारी बनना सम्पूर्ण पवित्रता नहीं लेकिन ब्रह्मचारी के साथ ब्रह्मा आचार्य भी चाहिए। शिव आचार्य भी चाहिए अर्थात् ब्रह्मा बाप के आचरण पर चलने वाला। फुट स्टेप अर्थात् ब्रह्मा बाप के हर कर्म रुपी कदम में कदम रखने वाले, इसको कहा जाता है ब्रह्मा आचार्य। तो ऐसी सूक्ष्म रुप से चेकिंग करो कि सदा पवित्रता की प्राप्ति, सुख-शान्ति की अनुभूति हो रही है? सदा सुख की शैय्या पर आराम से अर्थात् शान्ति स्वरुप में विराजमान रहते हो? यह ब्रह्मा आचार्यों का चित्र है।
सदा सुख की शैय्या पर सोई हुई आत्मा के लिए यह विकार भी छत्रछाया बन जाते हैं। दुश्मन बदल सेवाधारी बन जाते हैं। अपना चित्र देखा है ना! तो शेष शैय्या नहीं लेकिन सुख-शैय्या। सदा सुखी और शान्त की निशानी है – सदा हर्षित रहना। सुलझी हुई आत्मा का स्वरुप सदा हर्षित रहेगा। उलझी हुई आत्मा कभी हर्षित नहीं देखेंगे। वह सदा खोया हुआ चेहरा दिखाई देगा और वह सब कुछ पाया हुआ चेहरा दिखाई देगा। जब कोई चीज़ खो जाती है तो उलझन की निशानी क्यों, क्या, कैसे ही होता है। तो रुहानी स्थिति में भी जो भी पवित्रता को खोता है, उसके अन्दर क्यों, क्या और कैसे की उलझन होती है। तो समझा कैसे चेक करना है! सुख-शान्ति के प्राप्ति स्वरुप के आधार पर मन्सा पवित्रता को चेक करो।
दूसरी बात, अगर आपकी मन्सा द्वारा अन्य आत्माओं को सुख और शान्ति की अनुभूति नहीं होती अर्थात् पवित्र संकल्प का प्रभाव अन्य आत्मा तक नहीं पहुँचता तो उसका कारण चेक करो। किसी भी आत्मा की ज़रा भी कमज़ोरी अर्थात् अशुद्धि अपने संकल्प में धारण हुई तो वह अशुद्धि अन्य आत्मा को सुख-शान्ति की अनुभूति करा नहीं सकेगी या तो उस आत्मा के प्रति व्यर्थ वा अशुद्ध भाव है वा अपनी मन्सा पवित्रता की शक्ति में परसेन्टेज की कमी है। जिस कारण औरों तक वह पवित्रता की प्राप्ति का प्रभाव नहीं पड़ सकता। स्वयं तक है, लेकिन दूसरों तक नहीं हो सकता। लाइट है, लेकिन सर्चलाइट नहीं है। तो पवित्रता के सम्पूर्णता की परिभाषा है – “सदा स्वयं में भी सुख-शान्ति स्वरुप और दूसरों को भी सुख-शान्ति की प्राप्ति का अनुभव कराने वाले।” ऐसी पवित्र आत्मा अपनी प्राप्ति के आधार पर औरों को भी सदा सुख और शान्ति, शीतलता की किरणें फैलाने वाली होगी। तो समझा, सम्पूर्ण पवित्रता क्या है?
पवित्रता की शक्ति इतनी महान है जो अपनी पवित्र मन्सा अर्थात् शुद्ध वृत्ति द्वारा प्रकृति को भी परिवर्तन कर लेते। मन्सा पवित्रता की शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण है – प्रकृति का भी परिवर्तन। स्व परिवर्तन से प्रकृति का परिवर्तन। प्रकृति के पहले व्यक्ति। तो व्यक्ति परिवर्तन और प्रकृति परिवर्तन – इतना प्रभाव है मन्सा पवित्रता की शक्ति का। आज मन्सा पवित्रता को स्पष्ट सुनाया। फिर वाचा और कर्मणा अर्थात् सम्बन्ध और सम्पर्क में सम्पूर्ण पवित्रता की परिभाषा क्या है, वह आगे सुनायेंगे। अगर पवित्रता की परसेन्टेज में 16 कला से 14 कला हो गये तो क्या बनना पड़ेगा? जब 16 कला की पवित्रता अर्थात् सम्पूर्णता नहीं तो सम्पूर्ण सुख-शान्ति के साधनों की भी प्राप्ति कैसे होगी! युग बदलने से महिमा ही बदल जाती है। उसको सतोप्रधान, उसको सतो कहते हैं। जैसे सूर्यवंशी अर्थात् सम्पूर्ण स्टेज है। 16 कला अर्थात् फुल स्टेज है वैसे हर धारणा में सम्पन्न अर्थात् फुल स्टेज प्राप्त करना सूर्यवंशी की निशानी है। तो इसमें भी फुल बनना पड़े, कभी सुख की शैय्या पर कभी उलझन की शैय्या पर इसको सम्पन्न तो नहीं कहेंगे ना! कभी बिन्दी का तिलक लगाते, कभी क्यों, क्या का तिलक लगाते। तिलक का अर्थ ही है स्मृति। सदा तीन बिन्दियों का तिलक लगाओ। तीन बिन्दियों का तिलक ही सम्पन्न स्वरुप है। यह लगाने नहीं आता! लगाते हो लेकिन अटेन्शन रुपी हाथ हिल जाता है। अपने पर भी हंसी आती है ना! लक्ष्य पावरफुल है तो लक्षण सम्पूर्ण सहज हो जाते हैं। मेहनत से भी छूट जायेंगे। कमज़ोर होने के कारण मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है। शक्ति स्वरुप बनो तो मेहनत समाप्त। अच्छा।
सदा सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, यह अधिकार प्राप्त की हुई आत्मायें, सदा सम्पूर्ण पवित्रता द्वारा स्वयं और सर्व को सुख-शान्ति की अनुभूति कराने वाली, अनुभूति करने और कराने के यन्त्र द्वारा सदा पवित्र बनो – इस मन्त्र को जीवन में लाने वाले, ऐसे सम्पूर्ण पवित्रता, सुख-शान्ति के अनुभवों में स्थित रहने वाले, बाप समान फरिश्ता स्वरुप आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।
पार्टी के साथ :-
सदा रुहानियत की खुशबू फैलाने वाले सच्चे-सच्चे रुहानी गुलाब
सभी बच्चे सदा रुहानी नशे में रहने वाले सच्चे रुहानी गुलाब हो ना? जैसे रुहे गुलाब का नाम बहुत मशहूर है, वैसे आप सभी आत्मायें रुहानी गुलाब हो। रुहानी गुलाब अर्थात् चारों ओर रुहानियत की खुशबू फैलाने वाले। ऐसे अपने को रुहानी गुलाब समझते हो? सदा रुह को देखते और रुहों के मालिक के साथ रुह-रुहान करते, यही रुहानी गुलाब की विशेषता है। सदा शरीर को देखते रुह अर्थात् आत्मा को देखने का पाठ पक्का है ना! इसी रुह को देखने के अभ्यासी रुहानी गुलाब हो गये। बाप के बगीचे के विशेष पुष्प हो क्योंकि सबसे नम्बरवन रुहानी गुलाब हो। सदा एक की याद में रहने वाले अर्थात् एक नम्बर में आना है, यही सदा लक्ष्य रखो।
(दीदी जी, दिल्ली मेले की ओपनिंग पर जाने की छुट्टी ले रहीं हैं)
सभी को उड़ाने के लिए जा रही हो ना! याद में, स्नेह में, सहयोग में, सबमें उड़ाने के लिए जा रही हो। यह भी ड्रामा में बाइप्लाट्स रखे हुए हैं। तो अच्छा है, आत्मा ही प्लेन बन गई। जैसे प्लेन में आना, जाना मुश्किल नहीं है वैसे आत्मा ही उड़ता पंछी हो गई है। इसलिए आने जाने में सहज होता है। यह भी ड्रामा में हीरो पार्ट है, थोड़े समय में भासना अधिक देने का। तो यह हीरो पार्ट बजाने के लिए जा रही हो। अच्छा – सभी को याद देना और सदा सफलता स्वरुप का शुभ संकल्प रखते आगे बढ़ते चलो – यही स्मृति स्वरुप बनाकर आना। आवाज़ फिर भी दिल्ली से ही निकलेगा। सबके माइक दिल्ली में ही पहुँचेंगे। जब गवर्मेन्ट से आवाज़ निकलेगा तब समाप्ति हो जायेगी। तो भारत के नेतायें भी जागेंगे। उसकी तैयारी के लिए जा रही हो ना। अच्छा।