गीता का सत्य संदेश: अहिंसा की प्रधानता और ज्ञान-यज्ञ की महिमा
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“गीता और मुरली का रहस्य | क्या गीता हिंसा सिखाती है? |
यह भाषण “ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय” द्वारा प्रमाणित ईश्वरप्रदत्त ज्ञान-मुरली पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी भी धर्म, शास्त्र, संस्था या व्यक्ति की आलोचना करना नहीं है, अपितु परमात्मा शिव द्वारा दिए गए श्रीमत ज्ञान का विवेकपूर्ण, शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक विश्लेषण प्रस्तुत करना है।
यह संदेश प्रेम, अहिंसा और आत्मिक जागृति को प्रेरित करता है।
1. गीता: अहिंसा की प्रतीक
अधिकांश लोग गीता को युद्ध और हिंसा से जोड़ते हैं।
लेकिन गीता के वास्तविक श्लोक बताते हैं कि अहिंसा, सत्य और आत्म-नियंत्रण ही धर्म के स्तंभ हैं।
गीता अध्याय 16, श्लोक 2:
“अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्…”
उदाहरण:
जैसे सर्जन ऑपरेशन करता है पर मारता नहीं, वैसे ही गीता आत्मा की चिकित्सा करती है – हत्या नहीं सिखाती।
2. यज्ञों का सही अर्थ – मांसबलि नहीं, ज्ञानबलि
परंपराओं में यज्ञ का अर्थ विकृत कर दिया गया – बलि और हवन।
परन्तु गीता ज्ञान-यज्ञ को ही श्रेष्ठ यज्ञ बताती है।
गीता 4.33:
“श्रेयान् द्रव्यमयाद् यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप।”
Murli (3 जुलाई 2025):
“यह ज्ञानयज्ञ मैं रचता हूँ जिसमें विकारों की बलि दी जाती है।”
उदाहरण:
जैसे कपड़े जलाकर नहीं, धोकर साफ होते हैं – आत्मा को शुद्ध करने के लिए ज्ञान चाहिए, बलि नहीं।
3. युद्ध का प्रतीकात्मक अर्थ – आत्मा का संग्राम
गीता का युद्ध माया के विरुद्ध आत्मा का युद्ध है।
यह युद्ध बाह्य नहीं, आंतरिक और मानसिक है।
Murli (24 जून 2025):
“तुम माया पर जीत पाने का सहज युद्ध लड़ रहे हो।”
उदाहरण:
सूरज की गर्मी से बर्फ पिघलती है, वैसे ही ज्ञान से विकार मिटते हैं – यही असली संग्राम है।
4. परम धर्म – अहिंसा परमो धर्मः
सच्ची अहिंसा केवल शारीरिक हिंसा से बचना नहीं,
बल्कि वाणी, सोच और व्यवहार से भी किसी आत्मा को दुख न देना।
Murli (19 मई 2025):
“हर आत्मा को परमात्मा की संतान समझो और प्रेम से व्यवहार करो।”
उदाहरण:
जैसे फूल बिना शोर के सुगंध फैलाता है, अहिंसक आत्मा अपने गुणों से शांति फैलाती है।
5. प्रक्षिप्त भागों से भ्रम फैला
गीता के मूल श्लोक अहिंसा और ज्ञान पर आधारित थे।
बाद में प्रक्षिप्त (interpolated) भागों ने हिंसा, बलि जैसे अंश जोड़ दिए।
Murli (9 अप्रैल 2025):
“मनुष्यों ने श्रीमत में उल्टी बातें जोड़ दीं – अब मैं स्वयं सुधार कर रहा हूँ।”
उदाहरण:
पवित्र जलाशय में गंदगी डाल दी जाए तो वह उपयोगी नहीं रहता – वैसे ही गीता में विकृति ने उसका मूल खो दिया।
6. ज्ञानयज्ञ की विशेषता – विकारों की बलि
इस यज्ञ में कोई पशु या मांस नहीं,
बल्कि अहंकार, क्रोध, लोभ, वासना जैसी बुराइयाँ समर्पित होती हैं।
Murli (12 जून 2025):
“बच्चे, अब तुम पाँच विकारों की बलि इस यज्ञ में चढ़ा रहे हो।”
उदाहरण:
जैसे कड़वी दवा कष्टदायक लगती है, पर आरोग्य देती है – वैसे ही यह यज्ञ तपस्या माँगता है, पर शुद्धता देता है।
7. निष्कर्ष – गीता का मूल संदेश: प्रेम, शांति और अहिंसा
गीता हिंसा नहीं, आत्मज्ञान और मुक्ति की ओर मार्गदर्शन देती है।
इसका उद्देश्य है:
-
आत्मा का जागरण
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परमात्मा से मिलन
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ज्ञान द्वारा विकारों का अंत
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और अहिंसा से पावनता प्राप्त करना
प्रश्न 1: क्या गीता वास्तव में युद्ध और हिंसा को बढ़ावा देती है?
उत्तर:नहीं। गीता का युद्ध बाह्य नहीं, बल्कि आंतरिक है। गीता अध्याय 16, श्लोक 2 में “अहिंसा, सत्य और क्रोध पर नियंत्रण” जैसे दिव्य गुणों को धर्म का आधार बताया गया है। गीता आत्मा की चिकित्सा करती है, न कि किसी की हत्या को बढ़ावा देती है।
प्रश्न 2: गीता में ‘यज्ञ’ का क्या वास्तविक अर्थ है?
उत्तर:गीता अध्याय 4, श्लोक 33 में ज्ञान-यज्ञ को सबसे श्रेष्ठ बताया गया है। मांसबलि या हवन में पशुबलि जैसी परंपराएं गीता की आत्मा के विपरीत हैं। ब्रह्माकुमारी मुरली में भी स्पष्ट किया गया है कि “यह ज्ञानयज्ञ मैं रचता हूँ जिसमें विकारों की बलि दी जाती है।”
प्रश्न 3: गीता का युद्ध किस प्रकार का है?
उत्तर:यह आत्मा और माया के बीच का मानसिक और आत्मिक संग्राम है। गीता का कुरुक्षेत्र प्रतीक है उस आंतरिक मैदान का, जहाँ आत्मा विकारों से युद्ध करती है। मुरली में इसे “माया पर जीत पाने का सहज युद्ध” कहा गया है।
प्रश्न 4: ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का गीता में क्या स्थान है?
उत्तर:गीता में अहिंसा को श्रेष्ठ धर्म माना गया है। अहिंसा केवल शारीरिक हिंसा से दूर रहना नहीं, बल्कि सोच, वाणी और व्यवहार से भी दूसरों को न आहत करना सच्ची अहिंसा है।
प्रश्न 5: क्या गीता के कुछ भागों में मिलावट हुई है?
उत्तर:हाँ, ब्रह्माकुमारी ज्ञान अनुसार गीता में कुछ ‘प्रक्षिप्त’ (interpolated) भागों के कारण मूल संदेश विकृत हो गया है। मुरली में कहा गया है, “मनुष्यों ने श्रीमत में उल्टी बातें जोड़ दीं – अब मैं स्वयं सुधार कर रहा हूँ।”
प्रश्न 6: ज्ञान-यज्ञ में बलि का क्या अर्थ है?
उत्तर:ज्ञान-यज्ञ में बलि का अर्थ है: आत्मा के विकार – जैसे अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह और वासना – को त्यागना। यह आंतरिक शुद्धि का उपाय है, न कि बाह्य बलिदान।
प्रश्न 7: गीता और मुरली का मूल संदेश क्या है?
उत्तर:गीता और मुरली दोनों का मूल उद्देश्य है आत्मज्ञान, परमात्मा की याद, पवित्रता की साधना और प्रेम तथा अहिंसा के मार्ग से मुक्ति प्राप्त करना।
Disclaimer
इस वीडियो में व्यक्त सभी विचार ब्रह्माकुमारीज़ के आध्यात्मिक ज्ञान और श्रीमद्भगवद्गीता की आध्यात्मिक व्याख्या पर आधारित हैं। हमारा उद्देश्य किसी भी धर्म, संप्रदाय, या आस्था की भावना को ठेस पहुँचाना नहीं है। यह ज्ञान केवल आत्मा की उन्नति और आत्मिक युद्ध की समझ हेतु प्रस्तुत किया गया है। कृपया इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ग्रहण करें।
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