Thinking Before and After Birth

                                           
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                                            Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

                                                       जन्म से पहले और बाद में सोचना(Thinking Before and After Birth)

आत्मा और शरीर का संबंध

आत्मा और शरीर का संबंध ड्राइवर और गाड़ी, या ऑपरेटर और कंप्यूटर जैसा है। भगवद् गीता में इसे स्पष्ट किया गया है:

“शरीर रथ है और आत्मा रथी।”

जब आत्मा शरीर में नहीं होती, तो शरीर निष्क्रिय हो जाता है और उसे “शव” कहा जाता है। जैसे बिना ड्राइवर के गाड़ी चलने योग्य नहीं होती, वैसे ही आत्मा के बिना शरीर मात्र निष्क्रिय पदार्थ है।

आत्मा शरीर में भृकुटि (माथे के भीतर) स्थित होती है। यहीं से आत्मा शरीर के संदेशों को समझती है और अनुभव करती है। आत्मा की दृष्टि से होकर यह सब मस्तिष्क में रिकॉर्ड होता है।

आत्मा की कार्य प्रणाली

आत्मा तीन सूक्ष्म शक्तियोंमन, बुद्धि, और संस्कारसे संचालित होती है:

  1. मन: शरीर और आत्मा के बीच संदेशवाहक का कार्य करता है। यह शरीर से प्राप्त संदेश आत्मा तक पहुंचाता है।
  2. बुद्धि: आत्मा को मिले संदेशों का विश्लेषण करती है और सही-गलत का निर्णय लेती है।
  3. संस्कार: आत्मा के भीतर की वह नियमावली, जो पिछले कर्मों और अनुभवों से बनी होती है। बुद्धि इन्हीं संस्कारों के आधार पर निर्णय लेती है।

आत्मा और कर्म

आत्मा अपने कर्मों और संस्कारों के आधार पर शरीर धारण करती है। आत्मा को, जब वह किसी जीव के शरीर में होती है, जीवात्मा कहा जाता है। यह शरीर के कर्म इंद्रियों को संचालित करती है।

  • पुण्य कर्म करने वाली आत्मा को “पुण्य आत्मा” कहते हैं।
  • बुरे कर्मों के कारण आत्मा “दुष्ट आत्मा” कहलाती है।

जन्म से पहले आत्मा की स्थिति

आत्मा परमधाम में साइलेंट मोड में रहती है। इसे समझने के लिए इसे बिना चालू मोबाइल फोन से तुलना की जा सकती है। जैसे ही आत्मा का समय आता है, वह जागृत होती है और पृथ्वी पर जन्म लेने का निर्णय करती है।

सतयुग में जन्म लेने वाली आत्माओं को अपने कर्तव्यों और भूमिकाओं का पहले से ज्ञान होता है। लेकिन बाद में आने वाली आत्माएं गर्भ में प्रवेश के बाद अपने कर्म और संस्कारों के आधार पर शरीर का निर्माण करती हैं।

जन्म और पुनर्जन्म का चक्र

आत्मा पृथ्वी पर आकर 84 जन्म तक ले सकती है।

  • सतयुग की आत्माओं के लगभग 8 जन्म होते हैं।
  • त्रेता, द्वापर, और कलयुग में जन्मों की संख्या घटती जाती है।

यह चक्र आत्मा के कर्मों और उसके संस्कारों पर निर्भर करता है।

मृत्यु और नया जीवन

आत्मा मृत्यु के बाद:

  • मृत्यु से पहले आत्मा को यह पता नहीं होता कि उसे शरीर छोड़ना है।
  • जब आत्मा शरीर छोड़ती है, तो वह अपने कर्मों और संस्कारों के आधार पर अगला शरीर निर्माण करती है।

उदाहरण:
जैसे एक खेत में आम और नीम के बीज बोए जाते हैं।

  • दोनों को समान जल और खाद मिलती है।
  • फिर भी, आम का बीज मीठा फल देता है और नीम का बीज कड़वा।

इसी प्रकार, आत्मा अपने कर्मों के अनुसार शरीर का स्वरूप तय करती है।

शरीर और आत्मा का द्वंद्व

आत्मा का मन सक्रिय होते ही वह शरीर के अनुसार कार्य करना शुरू कर देती है। परंतु अंतिम क्षण तक आत्मा को यह नहीं पता होता कि वह मृत्यु के निकट है।

निष्कर्ष: आत्मा का अद्भुत रहस्य

आत्मा:

  • शरीर, मन, बुद्धि, और संस्कारों को संचालित करने वाली शक्ति है।
  • अपने कर्मों और संस्कारों के आधार पर जीवन चक्र तय करती है।
  • जन्म, मृत्यु, और पुनर्जन्म का क्रम आत्मा के कर्मिक चक्र का हिस्सा है।

मुख्य संदेश:

आत्मा और शरीर के इस गहरे संबंध को समझकर जीवन का उद्देश्य समझा जा सकता है। यह ज्ञान हमें जीवन को पवित्र और कर्मों को श्रेष्ठ बनाने के लिए प्रेरित करता है।

 

 

 

प्रश्नोत्तर: आत्मा का जन्म से पहले और जन्म के बाद का विचार

 

प्रश्न 1: आत्मा और शरीर के बीच क्या संबंध है?

उत्तर: आत्मा और शरीर का संबंध ऑपरेटर और कंप्यूटर, या ड्राइवर और गाड़ी जैसा है। भगवद् गीता में इसे स्पष्ट करते हुए शरीर को रथ और आत्मा को रथी कहा गया है। आत्मा के बिना शरीर निष्क्रिय हो जाता है और उसे शव कहा जाता है।

 

प्रश्न 2: आत्मा शरीर में कहां स्थित होती है?

उत्तर: आत्मा शरीर में भृकुटि के पास, माथे के भीतर, लगभग दो-तीन इंच अंदर स्थित होती है। यही आत्मा का स्थान है, जहां से वह शरीर के सभी संदेश पढ़ती और अनुभव करती है।

 

प्रश्न 3: आत्मा की तीन सूक्ष्म शक्तियां कौन-सी हैं और उनका कार्य क्या है?

उत्तर: आत्मा की तीन सूक्ष्म शक्तियां हैं:

 

मन: यह शरीर और बुद्धि के बीच मध्यस्थ का कार्य करता है और संदेश आत्मा तक पहुंचाता है।

बुद्धि: यह आत्मा द्वारा मिले संदेशों का विश्लेषण कर निर्णय लेती है।

संस्कार: यह आत्मा के कर्मों और अनुभवों से बनी नियमावली है, जिसके आधार पर बुद्धि निर्णय करती है।

प्रश्न 4: आत्मा को जीवात्मा कब कहा जाता है?

उत्तर: जब आत्मा किसी जीव के शरीर में प्रवेश करती है और उसे संचालित करती है, तो उसे जीवात्मा कहा जाता है।

 

प्रश्न 5: आत्मा की स्थिति जन्म से पहले कैसी होती है?

उत्तर: जन्म से पहले आत्मा परमधाम में रहती है, जहां उसके पास कोई संकल्प या इच्छा नहीं होती। जैसे साइलेंट मोड पर पड़ा मोबाइल, आत्मा तब निष्क्रिय होती है। समय आने पर वह पृथ्वी पर जन्म लेने का निश्चय करती है।

 

प्रश्न 6: आत्मा जन्म लेने के बाद शरीर का निर्माण कैसे करती है?

उत्तर: सतयुग में आने वाली आत्माओं को अपने जीवन का ज्ञान पहले से होता है। लेकिन बाद में आने वाली आत्माएं गर्भ में प्रवेश कर अपने कर्म और संस्कारों के आधार पर शरीर का निर्माण करती हैं।

 

प्रश्न 7: आत्मा कितने जन्म ले सकती है?

उत्तर: आत्मा अधिकतम 84 जन्म तक ले सकती है। सतयुग की प्रारंभिक आत्माओं के आठ जन्म होते हैं, जबकि बाद में आने वाली आत्माओं के जन्म क्रमशः घटते जाते हैं।

 

प्रश्न 8: आत्मा मृत्यु के बाद क्या करती है?

उत्तर: मृत्यु के बाद आत्मा अपने कर्म और संस्कारों के आधार पर नया शरीर बनाने की प्रक्रिया शुरू करती है। मां केवल शरीर निर्माण में सहायक होती है, लेकिन आत्मा स्वयं अपने कर्मों के अनुसार शरीर का स्वरूप और गुण तय करती है।

 

प्रश्न 9: आत्मा को मृत्यु से पहले यह कैसे पता चलता है कि उसे शरीर छोड़ना है?

उत्तर: आत्मा को मृत्यु से ठीक पहले यह ज्ञात नहीं होता कि उसे शरीर छोड़ना है। यह केवल उस समय होता है जब शरीर निष्क्रिय हो जाता है और आत्मा को दूसरा शरीर धारण करने की प्रक्रिया शुरू करनी पड़ती है।

 

प्रश्न 10: क्या आत्मा अपने कर्म और संस्कार बदल सकती है?

उत्तर: हां, आत्मा अपने कर्म और संस्कारों का निर्माण भी कर सकती है और उन्हें बदल भी सकती है। यह प्रक्रिया उसके जीवन के अनुभवों और निर्णयों पर आधारित होती है।

 

प्रश्न 11: क्या आत्मा मृत्यु के बाद वापस परमधाम जा सकती है?

उत्तर: एक बार जब आत्मा पृथ्वी पर जन्म ले लेती है, तो वह वापस परमधाम नहीं जा सकती। वह केवल पुनर्जन्म के चक्र में रहती है और शरीर छोड़ने के बाद नया शरीर धारण करती है।

 

प्रश्न 12: आत्मा के कर्म और संस्कार शरीर के निर्माण को कैसे प्रभावित करते हैं?

उत्तर: आत्मा अपने कर्म और संस्कारों के आधार पर शरीर का निर्माण करती है। जैसे मिट्टी में बीज डालने पर हर बीज अपनी प्रकृति के अनुसार फल देता है, वैसे ही आत्मा अपने कर्मों के अनुसार शरीर धारण करती है।

 

प्रश्न 13: आत्मा और शरीर के बीच द्वंद्व कब समाप्त होता है?

उत्तर: आत्मा और शरीर का द्वंद्व तब समाप्त होता है जब आत्मा शरीर छोड़ देती है। इसके बाद आत्मा केवल अपने कर्मों और संस्कारों के आधार पर कार्य करती है।

 

प्रश्न 14: आत्मा की यात्रा का अंतिम लक्ष्य क्या है?

उत्तर: आत्मा का अंतिम लक्ष्य अपने कर्म और संस्कारों को संतुलित कर पुनः परमधाम की स्थिति में लौटना है, जहां वह शांति और स्थिरता में रहती है।