
Third Motion of The Earth(पृथ्वी की तीसरी गति)
पृथ्वी, कालचक्र और ब्रह्माण्ड का रहस्य(The mystery of the earth, time cycle and the universe)
हम सभी पृथ्वी के घूर्णन और परिक्रमण के बारे में जानते हैं क्योंकि इसे हमें विज्ञान के पाठों में पढ़ाया गया है। लेकिन यह रहस्य मात्र यांत्रिक गति तक सीमित नहीं है। इसके पीछे ऐसा कुछ है जो त्रिमूर्ति शिव के माध्यम से ही समझा जा सकता है। यह रहस्य अद्वितीय और गहन है।
क्या आपने कभी यह महसूस किया है कि आप किसी स्थान पर पहली बार नहीं, बल्कि कई बार आ चुके हैं? दरअसल, पूरे ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी घटित हो रहा है, वह पहले भी हो चुका है और फिर से होता रहेगा। यह एक अटल नियम है जिसे कोई बदल नहीं सकता—यहां तक कि स्वयं परमात्मा भी नहीं।
कल्प और युग चक्र
जिस प्रकार सप्ताह में सात दिन और वर्ष में बारह महीने होते हैं, उसी प्रकार चार युगों—सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग—का एक चक्र होता है जिसे कल्प कहा जाता है।
ऋग्वेद (मंडल 10, सूक्त 190, मंत्र 3) में इसे इस प्रकार व्यक्त किया गया है:
“सू॒र्या॒च॒न्द्र॒मसौ॑ धा॒ता य॑थापू॒र्वम॑कल्पयत्।
दिवं॑ च पृथि॒वीं चा॒न्तरि॑क्ष॒मथो॒ स्व॑ः॥”
अर्थात, संसार को धारण करने वाले परमात्मा ने सूर्य, चन्द्रमा, द्युलोक, पृथ्वी, और अंतरिक्ष को जैसे पहले रचा था, वैसे ही अब भी रचते हैं और आगे भी ऐसा ही होगा।
पृथ्वी की गति और ब्रह्माण्ड का चक्र
पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है और अपनी धुरी पर भी घूमती है। यह गति सीधी रेखा में नहीं होती, बल्कि एक सर्पिल के रूप में होती है। यह सर्पिल गति पूर्णता का प्रतीक है, जिसे एक कल्प कहा जाता है।
पृथ्वी की इस गति के परिणामस्वरूप:
- हर 0.072 डिग्री पर यह सर्पिल आगे बढ़ती है।
- 360 डिग्री पूरा करने में 5000 वर्ष लगते हैं।
इस चक्र के दौरान, पृथ्वी की धुरी धीरे-धीरे अपनी स्थिति बदलती है। प्रारंभ में, पृथ्वी की ध्रुवीय स्थिति उत्तर में स्थिर होती है। परंतु जैसे-जैसे यह 90 डिग्री की गति पूरी करती है, एक बड़ा बदलाव होता है। पैंजिया, जो एकमात्र महाद्वीप था, टूट जाता है और सात महाद्वीपों में विभाजित हो जाता है।
स्वर्ण युग और प्राकृतिक संतुलन
जब पृथ्वी की स्थिति स्थिर थी, तब एक स्वर्ण युग था।
- दिन और रात बराबर थे—12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात।
- पृथ्वी पर केवल एक राष्ट्र और एक महाद्वीप था।
- प्रकृति पूरी तरह संतुलित थी।
कालचक्र में परिवर्तन
जैसे ही 1250 वर्षों में 90 डिग्री की प्रगति होती है, पृथ्वी में असंतुलन शुरू हो जाता है।
- महाद्वीप विभाजित होते हैं।
- ऋतुओं का जन्म होता है।
- दिन और रात में असमानता आ जाती है।
- पृथ्वी का 23 डिग्री झुकाव उत्पन्न होता है।
उदाहरण के लिए, बरमूडा त्रिकोण इसी असंतुलन का एक परिणाम है।
विनाश और पुनर्जन्म
अगले 1250 वर्षों में, यह बदलाव और तीव्र हो जाता है। मौसम और प्रकृति में अत्यधिक परिवर्तन होते हैं। अंततः, 360 डिग्री का चक्र पूरा होने से पहले एक महाविनाश होता है।
पृथ्वी और ब्रह्माण्ड अपनी मूल स्थिति में लौट आते हैं। सब कुछ जैसे प्रारंभ में था, वैसा ही हो जाता है। वैज्ञानिक इसे “आग के गोले” के रूप में संदर्भित करते हैं, और यह तीसरे विश्व युद्ध के माध्यम से संभव होगा।
परम सत्य का अनुभव
अगर आप इस ज्ञान को परमात्मा का उपहार नहीं मानते, तो इसे समझने के लिए एक मार्गदर्शक कोर्स का पालन करें। यह आपको सत्य और ब्रह्माण्ड के नियमों की गहरी समझ देगा।
सत्य का अर्थ है: वह जो हर समय, हर स्थान और हर परिस्थिति में अपरिवर्तनीय रहे। यही परमात्मा का ज्ञान है, जो न कभी बदला है और न बदलेगा।
प्रश्नोत्तर: पृथ्वी, कालचक्र और ब्रह्माण्ड का रहस्य
प्रश्न 1: पृथ्वी के घूर्णन और परिक्रमण से संबंधित कौन-सा गूढ़ रहस्य इस अध्याय में बताया गया है?
उत्तर: पृथ्वी के घूर्णन और परिक्रमण का रहस्य केवल यांत्रिक गति तक सीमित नहीं है। यह एक गहन और विशेष चक्र है, जिसे त्रिमूर्ति शिव के माध्यम से समझा जा सकता है। पूरे ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी हो रहा है, वह पहले भी हो चुका है और भविष्य में भी वैसा ही होगा। इसे कोई नहीं बदल सकता—यहां तक कि स्वयं परमात्मा भी नहीं।
प्रश्न 2: “कल्प” और “युग चक्र” में क्या अंतर है?
उत्तर:
- कल्प: चार युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग) के चक्र को “कल्प” कहा जाता है।
- युग चक्र: यह चारों युगों का क्रमिक चक्र है जो बार-बार दोहराया जाता है।
प्रश्न 3: ऋग्वेद (मंडल 10, सूक्त 190) में सृष्टि के बारे में क्या बताया गया है?
उत्तर: ऋग्वेद में बताया गया है कि परमात्मा ने सूर्य, चन्द्रमा, द्युलोक, पृथ्वी, और अंतरिक्ष को जैसे पहले रचा था, वैसे ही अब भी रचते हैं और आगे भी ऐसा ही करेंगे। यह सृष्टि का अटल नियम है।
प्रश्न 4: पृथ्वी की गति सर्पिल रूप में क्यों कही गई है?
उत्तर: पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है, लेकिन यह सीधी रेखा में नहीं बल्कि सर्पिल रूप में होती है। यह सर्पिल गति पूर्णता का प्रतीक है और इसे “कल्प” कहा जाता है।
प्रश्न 5: पृथ्वी का 360 डिग्री चक्र पूरा करने में कितना समय लगता है?
उत्तर: पृथ्वी का 360 डिग्री का चक्र पूरा करने में 5000 वर्ष लगते हैं।
प्रश्न 6: स्वर्ण युग के दौरान पृथ्वी की स्थिति कैसी थी?
उत्तर: स्वर्ण युग के दौरान:
- दिन और रात बराबर थे—12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात।
- पृथ्वी पर केवल एक महाद्वीप (पैंजिया) और एक राष्ट्र था।
- प्रकृति पूरी तरह से संतुलित थी।
प्रश्न 7: पैंजिया का टूटना और ऋतुओं का जन्म किस कारण हुआ?
उत्तर: पैंजिया का टूटना पृथ्वी के 90 डिग्री के बदलाव और असंतुलन के कारण हुआ। इससे पृथ्वी 23 डिग्री झुक गई, जिसके परिणामस्वरूप ऋतुओं और दिन-रात में असमानता आई।
प्रश्न 8: बरमूडा त्रिकोण को पृथ्वी के असंतुलन से कैसे जोड़ा गया है?
उत्तर: बरमूडा त्रिकोण पृथ्वी के असंतुलन का एक परिणाम है, जहां पृथ्वी और गुरुत्वाकर्षण बिंदु अलग-अलग हो गए, जिससे इस क्षेत्र में अद्वितीय घटनाएं होती हैं।
प्रश्न 9: 360 डिग्री चक्र पूरा होने से पहले क्या होता है?
उत्तर: 360 डिग्री का चक्र पूरा होने से पहले महाविनाश होता है। इसके बाद पृथ्वी और ब्रह्माण्ड अपनी मूल स्थिति में लौट आते हैं।
प्रश्न 10: “सत्य” की परिभाषा क्या है?
उत्तर: सत्य वह है जो हर समय, हर स्थान और हर परिस्थिति में अपरिवर्तनीय रहता है। यही परमात्मा का ज्ञान है, जो न कभी बदला है और न बदलेगा।
- Third Motion of The Earth (पृथ्वी की तीसरी गति)
- The Mystery of the Earth, Time Cycle, and the Universe (पृथ्वी, कालचक्र और ब्रह्माण्ड का रहस्य)
- Understanding the Cosmic Spiral of Earth’s Movement (पृथ्वी की सर्पिल गति का रहस्य)
- Kalpa and the Eternal Cycle of Yugas (कल्प और युगों का शाश्वत चक्र)
- Secrets Hidden in Earth’s Rotations and Revolutions (पृथ्वी की घूर्णन और परिक्रमण के छिपे रहस्य)
- The Science Behind Earth’s Tilt and Bermuda Triangle (पृथ्वी के झुकाव और बरमूडा त्रिकोण का विज्ञान)
- Pangea to Seven Continents: The Cosmic Transition (पैंजिया से सात महाद्वीपों तक: ब्रह्माण्डीय बदलाव)
- Golden Age of Balance: When Earth was Unified (संतुलन का स्वर्ण युग: जब पृथ्वी एक थी)
- What Rigveda Reveals About Creation and Destruction (सृष्टि और विनाश के बारे में ऋग्वेद का रहस्य)
- Cycles of Creation: Returning to the Original State (सृष्टि चक्र: मूल स्थिति में वापसी)
- Why Earth’s Motion is a Divine Spiral (पृथ्वी की गति को दिव्य सर्पिल क्यों माना गया है)
- Exploring Truth: The Unchanging Knowledge of the Universe (सत्य की खोज: ब्रह्माण्ड का अपरिवर्तनीय ज्ञान)
- What Happens Before the Great Cosmic Destruction? (महाविनाश से पहले क्या होता है?)
- Bermuda Triangle: A Result of Earth’s Imbalance? (बरमूडा त्रिकोण: पृथ्वी के असंतुलन का परिणाम?)
- Understanding the Timeless Wisdom of Shiva’s Cosmic Truths (शिव के ब्रह्माण्डीय सत्य का शाश्वत ज्ञान)
Om Shanti bhai ji , yadi science ka yahi formula truth hai ki Srishti 5000 sal mein Badal jaati hai naturaly,to ham BK Parivar ka kya roll hai ismein ,Om Shanti Shanti.