Victory over vices and the gift of deity status”

विकारों पर विजय और देवता पद की सौगात”

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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 प्रस्तावना:

क्या आप जानते हैं किसे मिली है संगम युग की लाटरी?
यह कोई साधारण इनाम नहीं, बल्कि आत्मा की सबसे बड़ी जीत है — विकारों पर विजय और देवता पद की सौगात
31 जुलाई 2025 की मुरली में शिव बाबा स्पष्ट करते हैं कि यह संगम युग का स्वीट समय आत्मा के भाग्य को बना देता है।


1. संगम युग – आत्मा का डायमंड युग

बाबा कहते हैं:

“यह संगम का समय कोई साधारण समय नहीं।”

  • यह समय है जब आत्मा विकारों से पार होकर देवता बनने की प्रक्रिया से गुजरती है।

  • यह है आत्मा के जीवन का डायमंड युग, जहाँ वास्तविक लाटरी मिलती है — विकारों पर विजय की लाटरी

उदाहरण:
एक स्टूडेंट पूरे साल मेहनत करता है, लेकिन उसका भाग्य परीक्षा के केवल 3 घंटे में बनता है।
उसी तरह, यह पूरा कल्प – 84 जन्मों का भविष्य, संगम के कुछ वर्षों में तय होता है।


 2. यह ललाट क्यों है लकी?

“तुम्हारा यह ललाट बहुत लकी है।”

  • इसी ललाट पर है याद की शक्ति।

  • यही ज्ञान का केंद्र बिंदु आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।

उदाहरण:
एक चित्रकार की कला उंगलियों में नहीं, बल्कि उसके ललाट की रचना-शक्ति में होती है।
वैसे ही तुम भी आत्मा के रूप में भाग्य रचने वाले कलाकार हो।


 3. विकारों पर विजय = बैकुंठ की लाटरी

“आप अनन्य देवी बच्चे ही विकारों पर विजय प्राप्त कर बैकुंठ की स्वीट लाटरी पाते हो।”

  • यह कोई साधारण जीत नहीं, बल्कि आत्मा की सबसे बड़ी फतह है।

  • जहाँ क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार समाप्त हो जाते हैं।

  • जहाँ आत्मा का राज्य होता है — दिव्यता और स्थिरता का

प्रैक्टिकल उदाहरण:
एक भाई जो रोज ऑफिस की टेंशन में घिरा रहता था,
बाबा का ज्ञान लेने के बाद अब वही परिस्थितियाँ उसे हिला नहीं पातीं।
 यही है विकारों पर विजय की स्थिति।


 4. नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी

  • यह समय है जब ज्ञान के बल से मनुष्य देवता बनता है।

  • नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनने की दिव्य प्रक्रिया

उदाहरण:
एक साधारण गृहस्थ नारी, जो घर-परिवार में
सहनशील, प्यारभरी और सहयोगी है —
बाबा की नजर में वही लक्ष्मी स्वरूप है।


 5. संगम युग का वंडरफुल समय और रीति

“यही है संगम युग के वंडरफुल समय की वंडरफुल रीति।”

  • यही समय है स्वयं को सुधारने का।

  • यही समय है भाग्य को रचने का।

  • यही समय है परमात्मा से मिलन का और देवत्व जागृत करने का

वास्तव में यह आत्मा के जीवन की सबसे बड़ी दिवाली है।
संगम का समय ही वह अमूल्य कालखंड है जब आत्मा विकारों से मुक्त होकर
स्वर्ग की स्थापना में भागीदारी करती है।


 निष्कर्ष:

संगम युग की लाटरी उन आत्माओं को मिलती है जो:

  • अपने आप को पहचानती हैं,

  • विकारों पर विजय प्राप्त करती हैं,

  • और परमात्मा शिव बाबा की याद में टिक कर,
    देवता पद की सौगात प्राप्त करती हैं।

यही समय है जब मानव आत्मा, परमात्मा के साथ मिलकर बैकुंठ की स्थापना करती है।

प्रश्न: संगम युग की लाटरी किसे मिलती है?
उत्तर: जो आत्मा संगम युग में विकारों पर विजय प्राप्त करती है, वही बैकुंठ की लाटरी यानी देवता पद की सौगात पाती है।


 1. संगम युग – आत्मा का डायमंड युग

प्रश्न: संगम युग को “डायमंड युग” क्यों कहा गया है?
उत्तर: क्योंकि यही वह काल है जब आत्मा विकारों से मुक्त होकर देवता बनने की प्रक्रिया से गुजरती है — यह आत्मा की सबसे ऊँची कमाई का समय है।

प्रश्न: 84 जन्मों का भविष्य कब तय होता है?
उत्तर: संगम युग के कुछ वर्षों में ही आत्मा अपना पूरे कल्प का भविष्य तय करती है।

प्रश्न: इसका कोई उदाहरण?
उत्तर: जैसे एक स्टूडेंट का भाग्य परीक्षा के 3 घंटे में तय होता है, वैसे ही आत्मा का भाग्य संगम युग के समय से तय होता है।


 2. यह ललाट क्यों है लकी?

प्रश्न: बाबा “ललाट लकी है” क्यों कहते हैं?
उत्तर: क्योंकि इसी ललाट (मस्तक) से आत्मा याद में रहती है, और परमात्मा से जुड़ती है — यही आत्मा का ज्ञान-केन्द्र है।

प्रश्न: आत्मा कैसे भाग्य रचती है?
उत्तर: आत्मा स्मृति और समझ की रचना शक्ति से ही अपना भाग्य बनाती है — जैसे चित्रकार अपने ललाट की रचना शक्ति से कला रचता है।


 3. विकारों पर विजय = बैकुंठ की लाटरी

प्रश्न: विकारों पर विजय को “लाटरी” क्यों कहा गया है?
उत्तर: क्योंकि यह कोई सामान्य उपलब्धि नहीं, बल्कि आत्मा की सबसे बड़ी जीत है — बैकुंठ जैसे पवित्र पद की प्राप्ति।

प्रश्न: विकारों से जीतने का परिणाम क्या होता है?
उत्तर: आत्मा दिव्यता और शांति में स्थित होती है, जहाँ क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार समाप्त हो जाते हैं।

प्रश्न: इसका कोई व्यावहारिक उदाहरण?
उत्तर: एक भाई जो रोज ऑफिस टेंशन में जाता था, अब बाबा का ज्ञान लेकर परिस्थिति में स्थिर रहता है — यही है विकारों पर विजय की स्थिति।


 4. नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी

प्रश्न: संगम युग में आत्मा कैसे देवता बनती है?
उत्तर: जब आत्मा ज्ञान और योग से स्वयं को शुद्ध बनाती है, तब वह नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनती है।

प्रश्न: लक्ष्मी स्वरूप कौन है?
उत्तर: वह नारी जो घर-परिवार में रहकर प्यार, सहनशीलता और सहयोग की मिसाल बनती है — वही लक्ष्मी स्वरूप है।


 5. संगम युग का वंडरफुल समय और रीति

प्रश्न: संगम युग को “वंडरफुल समय” क्यों कहा गया है?
उत्तर: क्योंकि यह आत्मा के परिवर्तन, भाग्य निर्माण, और परमात्मा से मिलन का समय है — सबसे पवित्र, सबसे शक्तिशाली कालखंड।

प्रश्न: संगम युग आत्मा के जीवन की सबसे बड़ी दिवाली क्यों है?
उत्तर: क्योंकि इस समय आत्मा विकारों से मुक्त होकर, परमात्मा के साथ मिलकर पुनः स्वर्ग की स्थापना करती है — यही सच्ची रौशनी की विजय है।

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