What things should you pay attention to in the race to move ahead -3

आगे बढ़ने की रेस में किन बातों पर ध्यान दे -3

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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आगे बढ़ने की रेस में किन बातों पर ध्यान दें?
उपविषय: क्या-क्या बातें हैं जिनसे हम आगे बढ़ सकते हैं या धोखा खा सकते हैं?


 1. हर आत्मा की विशेषता को पहचानो – उसे अपनाओ, उससे प्रभावित मत हो

  • 12 अप्रैल 194 में बाबा ने कहा: हर आत्मा के अंदर कोई ना कोई गुण है, विशेषता है।

  • वो गुण ‘दाता की देन’ है — God Gifted है।

  • किसी की विशेषता देखकर प्रेरणा लें, लेकिन आकर्षण न बनाएं।

  • ज्ञान शिव बाबा का है, किसी व्यक्ति का नहीं।

उद्धरण: “व्यक्ति पर प्रभावित होना = धोखा खाना।”


2. संपर्क-संबंध की मृगतृष्णा से सावधान

  • अपवित्रता की शक्ति आकर्षित करती है, लेकिन वह मृगतृष्णा के समान है।

  • हिरन जिस प्रकार रेत में पानी समझकर दौड़ता है और मर जाता है — ऐसे ही व्यक्ति या वैभव से लगाव विनाश की ओर ले जाता है।

उद्धरण: “दाता को छोड़ रंग-बिरंगी डालियों को पकड़ना — यही धोखा है।”


3. बीज अर्थात शिव बाबा से सर्व संबंध ही स्थायी प्राप्ति का आधार है

  • जब तक विधाता से संबंध नहीं, तब तक अल्पकाल की ही प्राप्तियाँ मिलेंगी।

  • स्थायी, अविनाशी अनुभव तब होगा जब हम बीज से जुड़ेंगे, डाली से नहीं।

 सूत्र: “बीज से संबंध = अविनाशी प्राप्ति, डाली से संबंध = अल्पकाल का धोखा।”


4. “सब अच्छा लगता है” बनो, “यही अच्छा लगता है” नहीं

  • 23 जनवरी 1985 के अनुसार:

    • किसी व्यक्ति या वस्तु की तरफ विशेष आकर्षण — यही इच्छा का रूप है।

    • ‘अच्छा लगता है’ कहना — छिपी हुई इच्छा को व्यक्त करता है।

 गहरा ज्ञान:
“सब अच्छा है” = यथार्थ
“यही अच्छा है” = अयथार्थ


 5. अविनाशी खुशी को पहचानो और उसमें स्थित रहो

  • 13 जनवरी 1986 में बाबा ने पूछा: क्या थोड़े में खुश हो?

    • “जैसी हूं वैसी हूं, ठीक हूं” — यह आत्मसंतुष्टि नहीं, आत्मरोक है।

  • अविनाशी खुशी की निशानी: औरों से भी सदा दुआएं प्राप्त होना।

विचार:
“क्या सूर्य की रोशनी छिप सकती है?”
“क्या सत्य की खुशबू मिट सकती है?”


 6. खुशनसीबी की अनुभूति = श्रेष्ठ भाग्य की लहर

  • जो आत्मा खुद को दाता से जोड़ती है, वह:

    • बेहद की खुशी का अनुभव करती है।

    • सेवा में भी अविनाशी खुशी लहराती है।

    • दूसरों से अविनाशी सम्मान और स्नेह प्राप्त करती है।


अंतिम निष्कर्ष:

आगे बढ़ने की रेस में आगे बढ़ने के लिए तीन बातें पक्की करें:

  1. God-Gifted विशेषताओं को अपनाओ, किसी से प्रभावित मत होओ।

  2. बीज से संबंध रखो, डाली से आकर्षण मत रखो।

  3. “सब अच्छा” की भावना रखो, किसी एक की तरफ झुकाव मत रखो।

आगे बढ़ने की रेस में किन बातों पर ध्यान दें?

उपविषय: क्या-क्या बातें हैं जिनसे हम आगे बढ़ सकते हैं या धोखा खा सकते हैं?


प्रश्न 1: आगे बढ़ने की रेस में सबसे पहली चेतावनी क्या है?

 उत्तर:हमें हर आत्मा की विशेषता को पहचानना है, प्रेरणा लेनी है, लेकिन किसी व्यक्ति से आकर्षित नहीं होना।
 बाबा का ज्ञान: “हर आत्मा में कोई-न-कोई गुण होता है — यह दाता की देन है।”

निष्कर्ष: व्यक्ति से प्रभावित होना = धोखा खाना।
ज्ञान का स्त्रोत शिव बाबा है, न कि कोई देही आत्मा।


प्रश्न 2: संपर्क या संबंध में आकर्षण क्यों धोखा है?

 उत्तर:किसी व्यक्ति, परिस्थिति या सहयोग के आकर्षण में आने पर हम अल्पकाल की मृगतृष्णा में फँस जाते हैं। यह आकर्षण अपवित्रता की शक्ति है।

 उदाहरण: जैसे मृग रेत में पानी की झलक देख दौड़ता है और मर जाता है, वैसे ही यह आकर्षण आत्मिक पतन का कारण बनता है।

बाबा कहते हैं: “दाता को छोड़ रंग-बिरंगी डालियों को पकड़ना — यही धोखा है।”


प्रश्न 3: स्थायी प्राप्ति किससे होती है — बीज से या डाली से?

उत्तर:बीज अर्थात शिव बाबा से संबंध रखने पर ही अविनाशी प्राप्तियाँ होती हैं।
डाली से संबंध — जैसे वैभव, व्यक्ति, वातावरण — अल्पकालिक अनुभव देता है।

 सूत्र: “बीज से संबंध = अविनाशी प्राप्ति, डाली से संबंध = अल्पकाल का धोखा।”


प्रश्न 4: “अच्छा लगता है” और “सब अच्छा है” में क्या अंतर है?

 उत्तर:जब हम कहते हैं “यही अच्छा लगता है” — तब वह एक विशेष आकर्षण या लगाव का रूप है, जो इच्छा (कामना) बन जाती है।
लेकिन “सब अच्छा है” — यह आत्मिक स्थिति का संकेत है जिसमें सबको समान दृष्टि से देखा जाता है।

 बाबा का ज्ञान:
“‘सब अच्छा है’ = यथार्थ, ‘यही अच्छा है’ = अयथार्थ।”


प्रश्न 5: क्या थोड़े में खुश हो जाना भी आगे बढ़ने में रुकावट बन सकता है?

उत्तर:हाँ। अगर हम कहें “जैसी हूं, वैसी ठीक हूं” — यह आत्मप्रसन्नता आत्मिक प्रगति की बाधा बन जाती है।
असली खुशी तब है जब हमारी उपस्थिति दूसरों को भी खुशी और दुआएं दिलाए।

 विचार:
“क्या सूर्य की रोशनी छिप सकती है?”
“क्या सत्य की खुशबू मिट सकती है?”


प्रश्न 6: सच्ची खुशनसीबी की पहचान क्या है?

उत्तर:जब आत्मा शिव बाबा से जुड़ती है, तब उसे अविनाशी खुशी का अनुभव होता है, सेवा में श्रेष्ठता आती है और सभी से स्नेह व सम्मान मिलता है।

 सूत्र:
“खुशनसीबी = श्रेष्ठ भाग्य की अनुभूति और लहर।”


अंतिम निष्कर्ष (Summary Questions):

Q: आगे बढ़ने की रेस में कौन-सी तीन बातों का ध्यान जरूरी है?

 उत्तर:

  1. दाता की दी हुई विशेषताओं को पहचानो, लेकिन व्यक्ति से प्रभावित मत होओ।

  2. बीज से संबंध रखो, रंग-बिरंगी डाली से नहीं।

  3. “सब अच्छा” की भावना रखो, “यही अच्छा” नहीं।आगे बढ़ने की रेस, आत्मिक प्रगति, ब्रह्मा कुमारी ज्ञान, शिव बाबा के निर्देश, मृगतृष्णा से सावधान, सच्ची खुशी, बीज से संबंध, आत्मिक स्थिति, प्रेरणा बनो आकर्षण नहीं, विशेषता को अपनाओ, धोखा कैसे ना खाएं, बाबा का ज्ञान, संग का प्रभाव, आत्मा की विशेषता, आत्मिक रुचि, संबंधों में संतुलन, इच्छा मुक्त जीवन, अविनाशी प्राप्ति, ज्ञान योग, सब अच्छा भावना, सत्य की पहचान, खुश रहने का रहस्य, सच्चा भाग्य, श्रेष्ठ भाग्य की लहर, ब्रह्मा कुमारिज़ मुरली ज्ञान, संगम युग की शिक्षा, आध्यात्मिक चेतना, धोखा से बचने की सीख, शिव बाबा से संबंध, ईश्वरीय गुणों को अपनाना
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