(80)“युद्ध कब करो? प्रतिक्षण परमात्मा की याद
“युद्ध कब करो? गीता और मुरली का गुप्त रहस्य |”
युद्ध कब करो?
प्रस्तावना
आज हम बात करेंगे – “युद्ध कब करो?”
अधिकतर लोग सोचते हैं कि युद्ध का अर्थ है – किसी खास समय, खास जगह या कुछ दिनों तक लड़ाई करना।
लेकिन गीता और मुरली हमें सिखाती हैं कि असली युद्ध बाहर का नहीं, बल्कि अंदर का सतत युद्ध है – अपने ही इन्द्रियों और मन से।
1. शत्रु कहाँ है?
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यह शत्रु कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे ही अंदर – हमारी इन्द्रियों, वासनाओं और विकारों में छिपा है।
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शत्रु घर में ही बैठा है।
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इसलिए इसे जीतने के लिए सदा-सर्वदा जागरूक रहना आवश्यक है।
साकार मुरली (14-06-1979) कहती है:
“बच्चे, माया तुम्हारे सामने ही बैठी है। वह हर पल आक्रमण करेगी। इसलिए हर क्षण याद में रहो, यही है युद्ध।”
2. युद्ध कब करना है?
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यह कोई युद्ध नहीं जो केवल सुबह-शाम या किसी एक समय तक हो।
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गीता कहती है –
“प्रतिक्षण, प्रतिपल यह युद्ध करना है।” -
जब-जब इन्द्रियाँ आकर्षित होती हैं, काम-क्रोध-विकार उठते हैं, तब युद्ध शुरू हो जाता है।
साकार मुरली (03-07-1985) कहती है:
“माया से युद्ध करना है तो हर सेकण्ड परमात्मा की याद में रहना पड़ेगा। यदि एक क्षण भी भूल गए तो हार हो जायेगी।”
3. उदाहरण – घर का शत्रु
मान लो किसी के घर में चोर घुस आया।
यदि वह व्यक्ति कहे – “मैं केवल सुबह और शाम ही चौकीदारी करूँगा”, तो क्या घर सुरक्षित रहेगा?
नहीं।
उसी प्रकार, इन्द्रियों और माया रूपी शत्रु हर समय हमला कर सकते हैं।
इसलिए 24 घंटे परमात्मा की याद ही हमारी सुरक्षा है।
4. यह युद्ध हिंसा का नहीं है
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गीता का युद्ध तलवार और शस्त्रों से नहीं है।
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यह हिंसा-प्रधान युद्ध नहीं, बल्कि पवित्रता और आत्म-नियंत्रण का संग्राम है।
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हथियार नहीं, बल्कि परमात्मा की याद ही असली शस्त्र है।
साकार मुरली (25-12-1980) कहती है:
“यह युद्ध हिंसा का नहीं। यह तो है योगबल का युद्ध। याद से आत्मा बलवान बनेगी और विकारों पर विजय पायेगी।”
5. जीत का रहस्य
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जीत तभी होगी जब हर पल यह स्मृति रहे कि –
“मैं आत्मा हूँ और परमात्मा मेरा साथी है।” -
जब भी इन्द्रियाँ आकर्षित करें, तुरंत परमात्मा को याद करो।
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यही है असली युद्ध का समय – हर पल, हर स्थिति, हर अनुभव।
निष्कर्ष
युद्ध करने का कोई निश्चित समय नहीं है।
यह युद्ध हर क्षण, हर विचार, हर परिस्थिति में करना है।
शत्रु भीतर बैठा है, इसलिए सतत जागरूक रहना ही जीत का रास्ता है।
और जब भगवान स्वयं हमारे साथी हैं, तो विजय निश्चित है।
Q&A Format
युद्ध कब करो? गीता और मुरली का गुप्त रहस्य |
Q1. असली शत्रु कहाँ है?
A: असली शत्रु बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर है – इन्द्रियों के आकर्षण, वासनाओं और विकारों में। माया हर पल आक्रमण करती है, इसलिए जागरूकता जरूरी है।
Q2. यह युद्ध कब करना है?
A: यह युद्ध किसी खास समय पर नहीं, बल्कि हर सेकंड करना है। जैसे ही विकार या नकारात्मक विचार उठें, उसी क्षण परमात्मा की याद से युद्ध करना चाहिए।
Q3. क्या यह युद्ध हथियारों से होता है?
A: नहीं, यह हिंसा का युद्ध नहीं है। गीता और मुरली सिखाते हैं कि यह योगबल का युद्ध है – आत्म-नियंत्रण और पवित्रता से लड़ा जाने वाला।
Q4. उदाहरण से इसे कैसे समझें?
A: जैसे घर में चोर घुस जाए और हम कहें कि “मैं सिर्फ सुबह-शाम चौकीदारी करूँगा,” तो घर सुरक्षित नहीं रहेगा। उसी तरह, हमें हर समय जागरूक रहना चाहिए।
Q5. विजय का रहस्य क्या है?
A: जीत तभी होगी जब हर पल यह स्मृति रहे – “मैं आत्मा हूँ और परमात्मा मेरा साथी है।” याद ही असली शस्त्र है जो हमें विजय दिलाती है।
Disclaimer
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज के आध्यात्मिक ज्ञान और गीता-मुरली की शिक्षाओं पर आधारित है।
इसका उद्देश्य केवल आत्मिक जागृति, योगबल की शक्ति और आध्यात्मिक समझ को बढ़ाना है।
इसका किसी भी धर्म, मत या पंथ की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का कोई इरादा नहीं है।
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