ज्ञान मंथन-22-06-2025/स्नेह और सहयोग की शक्ति से करें आत्मा का परिवर्तन
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

“लवली बनो या लव-लीन? | सच्चा सहयोग क्या है? | आत्मा और परमात्मा का गहरा संबंध | अव्यक्त मुरली सार”
“संगमयुग की सच्ची पहचान और निर्देश”
हमें एक बात बहुत स्पष्ट रूप से याद रखनी है — जो भी निर्देश माउंट आबू से मिलते हैं, वह ईश्वरीय निर्देश हैं।
उन पर चलना ही हमारी सच्ची आज्ञाकारीता है।
क्योंकि इस सेवा को हम रिकॉर्ड नहीं कर सकते, न ही भेज सकते हैं — इसलिए जो भी साथी बनना चाहते हैं, वह Google Meet द्वारा या व्यक्तिगत रूप से सहयोगी बनें।
मुख्य संदेश: “अब स्नेह और सहयोग की रूपरेखा स्टेज पर लाओ।”
स्नेह और सहयोग की डबल भूमिका
स्नेह:
-
एक है — स्नेह देना,
-
दूसरा — स्नेह लेना।
सहयोग:
-
एक है — सहयोग देना,
-
दूसरा — सहयोग लेना।
अब इस लेने और देने की स्टेज को स्पष्ट रूप से जीवन में उतारना है।
“हर आत्मा को गुण और शक्तियों की गिफ्ट दो”
मुरली: 15 दिसंबर 2005
हर आत्मा को उसके गुणों को देख-देखकर प्रेरणा देनी है।
आपके अंदर जो भी शक्ति है — वो किसी और की कमी को पूरा कर सकती है।
हर आत्मा परमात्मा की संतान है — कोई छोटा नहीं, कोई कमजोर नहीं।
“परमात्मा में लीन होना” बनाम “परमात्म प्यार में लव-लीन होना”
बहुत बड़ा भ्रांति का विषय रहा है — आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है।
जैसे पानी घड़े में था, घड़ा टूटा तो पानी समुद्र में मिल गया —
परन्तु आत्मा, परमात्मा में समा नहीं जाती।
आत्मा अपनी पहचान बनाए रखती है।
परंतु “लव-लीन” — इसका अर्थ है कि मैं परमात्मा के प्यार में इस कदर डूब गया हूं कि दुनिया के आकर्षण समाप्त हो जाएं।
लवली बनो या लव-लीन?
लवली:
-
सेवा में अच्छा,
-
प्यारी बोली,
-
मीठा व्यवहार,
-
सबको अच्छा लगता है।
लव-लीन:
-
परमात्म प्यार में डूबा हुआ,
-
मस्त, समर्पित, होश खो बैठा।
जैसे मजनूं-लीला की कहानियों में, दीवानगी दिखाते हैं — वैसे परमात्म दीवानगी चाहिए।
मेहनत क्यों लगती है?
बाबा कहते हैं:
“अगर सेवा, योग, या संस्कार परिवर्तन में मेहनत लग रही है —
तो समझो प्रेम में लीकेज है।”
लीकेज के दो कारण:
-
पुराने संस्कारों की आदतें।
-
पुरानी दुनिया के आकर्षण।
जो करना है, खुशी से करो।
कर्म को बोझ मत बनाओ, त्याग को तपस्या नहीं — उत्सव बनाओ।
अपने तीन संस्कार पहचानो:
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अनादि संस्कार (जो आत्मा में हैं)
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आदि संस्कार (सतयुग प्रारंभिक जीवन)
-
अंत के ब्राह्मण संस्कार (संगमयुग)
मध्य के — देह-अभिमान वाले संस्कार — ना अनादि हैं, ना आदि, और ना ही अंत में साथ जाएंगे।
लक्ष्य: बाप समान बनना
हर आत्मा का एक ही लक्ष्य है:
“ब्रह्मा बाबा और शिव बाबा के समान बनना”
दोनों ही आत्मा हैं।
उनके संस्कारों की समानता को खोजो, और अनुसरण करो।
सहयोगी बनो, किनारा मत करो
किसी आत्मा को इग्नोर करना — यह सहयोग नहीं।
उनके साथ रहो, पर उनके दोषों में मत डूबो।
सहयोगी का अर्थ:
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गुणों का आदान-प्रदान।
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शक्ति की गिफ्ट देना।
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शुभ भावना द्वारा वातावरण बदलना।
नया वर्ष, नई संकल्प शक्ति
नए वर्ष में एक-दूसरे को गुणों की गिफ्ट दो,
आत्मिक सहयोग से संगठन को शक्ति दो।
“कमजोर आत्मा को गिराओ मत — उठाओ।”
अंतिम प्रेरणा:
बाबा कहते हैं —
“जब तुम सच्चे में सहयोगी बनोगे, तो बाप-दादा ताली बजायेंगे — जैसे मम्मी-पापा बच्चों को शाबाशी देते हैं।
परन्तु वो ताली आपके घर में नहीं — विश्व रंगमंच पर बजे।”
-
आप लवली हैं — लेकिन लव-लीन बनो।
-
सहयोग दो — भावना से, गुणों से।
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आत्माओं का सम्मान करो, सहयोगी बनो।
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अपनी यात्रा के अंत में वही संस्कार लेकर जाओ जो आदि में थे।
“लवली बनो या लव-लीन? | सच्चा सहयोग क्या है? | आत्मा और परमात्मा का गहरा संबंध | अव्यक्त मुरली सार प्रश्नोत्तर रूप में”
प्रश्न 1: संगमयुग में हमें किस बात को विशेष रूप से ध्यान में रखना है?
उत्तर:हमें यह ध्यान रखना है कि जो भी निर्देश माउंट आबू से मिलते हैं, वे ईश्वरीय निर्देश होते हैं।
उन पर चलना ही सच्ची आज्ञाकारीता है।
प्रश्न 2: “अब स्नेह और सहयोग की रूपरेखा स्टेज पर लाओ” — इसका अर्थ क्या है?
उत्तर:इसका अर्थ है कि अब हमें सिर्फ स्नेह और सहयोग की बातें नहीं करनी, बल्कि वह व्यवहार में लाना है।
स्नेह और सहयोग देना और लेना, दोनों के संतुलन को जीवन में स्टेज पर प्रकट करना है।
प्रश्न 3: स्नेह और सहयोग की भूमिका कैसे डबल होती है?
उत्तर:
-
स्नेह देना और लेना दोनों आवश्यक हैं।
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सहयोग देना और लेना भी दोनों आवश्यक हैं।
हमें केवल लेने वाले नहीं, देने वाले आत्मा भी बनना है।
प्रश्न 4: “हर आत्मा को गुण और शक्तियों की गिफ्ट दो” — इसका क्या भाव है?
उत्तर:हमें हर आत्मा को उसकी विशेषताओं को देखकर प्रेरणा और सम्मान देना है।
जो शक्ति हमारे पास है, वह किसी और की कमजोरी की पूर्ति बन सकती है।
प्रश्न 5: क्या आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है?
उत्तर:नहीं। यह एक भ्रांति है।
आत्मा की पहचान बनी रहती है।
लीन होना का अर्थ है “प्रेम में डूब जाना”, पर आत्मा की सत्ता समाप्त नहीं होती।
प्रश्न 6: “लवली” और “लव-लीन” में क्या अंतर है?
उत्तर:
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लवली: प्यारा, मीठा, सेवा में अच्छा, व्यवहार कुशल।
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लव-लीन: परमात्म प्यार में डूबा हुआ, दीवाना, समर्पित।
बाबा कहते हैं — लवली नहीं, लव-लीन बनो।
प्रश्न 7: सेवा, योग या परिवर्तन में मेहनत क्यों लगती है?
उत्तर:यदि मेहनत लग रही है तो बाबा कहते हैं:
“समझो कि प्यार में लीकेज है।”
लीकेज के दो मुख्य कारण:
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पुराने संस्कारों की आदतें
-
पुरानी दुनिया के आकर्षण
प्रश्न 8: हम किन-किन प्रकार के संस्कारों की पहचान करें?
उत्तर:
-
अनादि संस्कार – आत्मा के शाश्वत गुण
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आदि संस्कार – सतयुग के दिव्य संस्कार
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अंत के ब्राह्मण संस्कार – संगमयुग के श्रेष्ठ संस्कार
मध्य के देह-अभिमान वाले संस्कार, ना अनादि हैं, ना आदि, और ना अंत में साथ जाएँगे।
प्रश्न 9: हमारा लक्ष्य क्या है?
उत्तर:हमारा सच्चा लक्ष्य है:
“ब्रह्मा बाबा और शिव बाबा के समान बनना।”
उनके समान संस्कारों, आदतों और दृष्टिकोण को अपनाना है।
प्रश्न 10: सच्चा सहयोगी कौन होता है?
उत्तर:
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जो आत्मा के दोषों को देखकर दूरी न बनाए।
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गुणों और शक्तियों का आदान-प्रदान करे।
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शुभ भावना से वायुमंडल बदल दे।
सहयोगी वह है जो दूसरों को गिराने नहीं, उठाने वाला हो।
प्रश्न 11: नए वर्ष में हमें कौन-सी नई गिफ्ट देनी है?
उत्तर:नए वर्ष में हमें एक-दूसरे को गुणों की गिफ्ट देनी है।
कमजोर आत्मा को गिफ्ट दो — प्रेम, सम्मान और शक्तियों की।
प्रश्न 12: बाबा की असली “ताली” कब बजती है?
उत्तर:जब हम सच्चे सहयोगी बनते हैं,
जब हम किसी आत्मा के परिवर्तन में कारण बनते हैं,
तब बाप-दादा विश्व रंगमंच पर ताली बजाते हैं,
जैसे माता-पिता बच्चों को शाबाशी देते हैं।
प्रश्न 13: माला के धागे जैसा संगठन कैसे बनाएं?
उत्तर:
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सबको जोड़ने वाला धागा — प्रेम और सहयोग हो।
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कोई इग्नोर न हो, कोई अलग न हो।
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सबको स्वीकार करके, श्रेष्ठ दृष्टि दो।
प्रश्न 14: आत्मिक संगठन में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
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किनारा न करो, लेकिन न्यारे रहो।
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सबको परमात्म प्यार दो, लेकिन किसी का गुलाम न बनो।
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गिरा हुआ आत्मा भी बाबा का बच्चा है — उसे सम्मान दो।
अंतिम प्रेरणा:
❝ आप लवली हैं — लेकिन लक्ष्य है लव-लीन बनना।
आत्माओं को गिराओ नहीं, उठाओ।
अपने गुण, शक्तियों और सहयोग से संगठन को महान बनाओ। ❞लवली बनो या लव-लीन,सच्चा सहयोग क्या है,परमात्म प्यार,अव्यक्त मुरली सार,संगमयुग की पहचान,ब्रह्मा बाबा,शिव बाबा,संगमयुग के निर्देश,स्नेह और सहयोग,आत्मिक सहयोग,गुणों की गिफ्ट,शक्तियों का आदान प्रदान,सच्चा ब्राह्मण संगठन,आत्मा और परमात्मा का संबंध,संगमयुग का ज्ञान,ब्रह्मा कुमारी मुरली,बाप समान बनना,लवलीन बच्चे,परमात्म दीवाना,संस्कार परिवर्तन,योग में मेहनत क्यों,पुरुषार्थ मार्ग,मुरली सार हिंदी,brahma kumaris murli in hindi,spiritual transformation,love of god,gyan murli summary,
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