ज्ञान मंथन-19-06-2025/सच्ची शांति और स्वर्ग का राज़
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“सच्ची शांति और स्वर्ग का रास: अब हम ईश्वरीय संतान बने हैं | Om Shanti Gyan | BK Speech”
सच्ची शांति और स्वर्ग का रास | अब हम ईश्वरीय संतान बने हैं
ओम शांति।
हम ज्ञान का मंथन शुरू कर रहे हैं। आज हमारा पहला विषय है – सच्ची शांति और स्वर्ग का रास।
हम सभी भाई-बहन मिलकर इस विषय में गहराई से चिंतन करेंगे।
1. “अब तुम ईश्वरीय औलाद बने हो” – इसका अर्थ क्या?
“बने हो” का मतलब – पहले नहीं थे।
जब कोई नहीं होता, तभी किसी को बनाया जाता है।
जैसे अगर कोई बुजुर्ग आपके साथ बैठे हैं और कहा जाए – इनको पिताजी मान लो, तो आप मान सकते हो।
पर यदि आपके पिताजी ही सामने बैठे हैं तो “मानने” की कोई बात ही नहीं।
जब परमात्मा कहते हैं – “अब तुम ईश्वरीय औलाद बने हो”, तो यह सिद्ध होता है कि पहले हम ईश्वरीय संतान नहीं थे।
2. फिर पहले हम कौन थे?
कलियुग में हम “रावण की संतान” थे – आसुरी स्वभाव के।
त्रेता में क्षत्रिय संतान, द्वापर में वैश्य, और अंत में शूद्र संतान कहलाते हैं।
पूरे कल्प में सिर्फ संगम युग ही एक ऐसा समय है, जब हम ईश्वरीय संतान बनते हैं।
यही कारण है कि यह समय हीरा समान है – “हीरा जन्म”।
3. क्या परमात्मा ने हमें रचा? क्या वह हमारा जन्मदाता है?
बाबा स्पष्ट कहते हैं – “मैंने तुम्हें पैदा नहीं किया। तुम आत्माएं भी अनादि-अविनाशी हो, मैं भी अनादि-अविनाशी हूँ।”
तो परमात्मा हमारा जन्मदाता नहीं, बल्कि संगम युग पर आकर हमें पावन बनाने वाला, ज्ञान का दाता और रचयिता बनता है।
4. अब जब हम ईश्वरीय संतान बने हैं – तो क्या हमारी चाल-चलन भी ईश्वरीय है?
अब कोई भी आसुरी गुण शोभा नहीं देता।
यदि हम क्रोध, ईर्ष्या, लोभ आदि धारण करते हैं, तो बाबा कहेंगे – “भाग जा रावण के बच्चे, मेरे को शक्ल मत दिखा!”
हमें सदैव याद रखना है – अब हम देव संतान नहीं, ईश्वर की संतान हैं।
5. परमात्मा ने हमें क्या देने के लिए आना पड़ा?
बाबा कहते हैं – मैं स्वर्ग का वर्ष देने आया हूँ।
ये वर्ष कोई छोटा मोटा नहीं – “संपूर्ण सुख और शांति का वचन पत्र है।”
इससे बड़ा कोई लाभ नहीं – यह कल्प में एक बार ही मिलता है।
6. बाप समान बैठकर ज्ञान दे रहे हैं – ये स्थिति और कहीं नहीं मिल सकती
कल्प में एक बार – स्वयं परमात्मा हमें पढ़ा रहे हैं।
इससे ऊँची स्थिति ना कभी मिली, ना कभी मिलेगी।
क्या हमें इसका नशा है?
यदि नहीं, तो आज से नशा धारण करो – “हम भगवान के विद्यार्थी हैं।”
7. हम संगम युगी ब्राह्मण हैं – इसका प्रमाण?
हम श्रीमत पर चल रहे हैं।
बाबा की आज्ञा से जीवन बदल रहे हैं।
रोज बाबा के पास आकर बैठते हैं – “बाबा, हमारे भेजे में ज्ञान भरो।”
हम मेहनत कर रहे हैं – इसलिए स्वर्ग हमारा बन रहा है।
8. अब समय बहुत थोड़ा है – गफलत नहीं करनी
बाबा बार-बार याद दिलाते हैं – “अब समय बहुत थोड़ा है। गफलत करोगे तो पछताना पड़ेगा।”
अभी भगवान खुद हमें स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं – क्या हम आलस्य में वह मौका गंवा देंगे?
अब हम ईश्वरीय संतान हैं – ये बोध ही हमारी आत्मा को ऊँच बनाता है।
सच्ची शांति और स्वर्ग का रास – यही इस संगम युग का वरदान है।
इस ज्ञान से जीवन को हीरे जैसा बनाना है।
जो हीरा बन गया – वही देवता कहलाएगा।
प्रश्न 1: “अब तुम ईश्वरीय औलाद बने हो” – इसका गूढ़ अर्थ क्या है?
उत्तर:“बने हो” का मतलब है कि पहले नहीं थे।
जैसे अगर कोई सामने पिता हैं, तो उन्हें “पिता मान लो” कहने की जरूरत नहीं।
इसलिए जब परमात्मा कहते हैं कि “अब तुम ईश्वरीय संतान बने हो”, इसका अर्थ है – पहले हम ईश्वरीय संतान नहीं थे। अब बन रहे हैं।
प्रश्न 2: यदि हम पहले ईश्वरीय संतान नहीं थे, तो फिर क्या थे?
उत्तर:हम युगों के अनुसार वर्ण में आते हैं:
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कलियुग में – रावण की संतान (आसुरी)।
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त्रेता में – क्षत्रिय।
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द्वापर में – वैश्य।
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अंत में – शूद्र।
सिर्फ संगम युग ही ऐसा काल है जब आत्माएं ईश्वरीय संतान बनती हैं।
प्रश्न 3: क्या परमात्मा ने हमें पैदा किया है? क्या वह जन्मदाता है?
उत्तर:बिलकुल नहीं।
परमात्मा स्वयं कहते हैं:
“तुम आत्माएं अनादि और अविनाशी हो। मैंने तुम्हें पैदा नहीं किया।”
इसलिए वह हमारा जन्मदाता नहीं है, बल्कि संगम युग पर आकर ज्ञान द्वारा पावन बनाने वाला रचयिता बनता है।
प्रश्न 4: अब जब हम ईश्वरीय संतान बन चुके हैं – तो क्या हमारी वृत्ति भी वैसी होनी चाहिए?
उत्तर:हाँ, निश्चित रूप से।
अब कोई भी अवगुण जैसे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या हमारे अंदर शोभा नहीं देता।
बाबा कहते हैं:
“भाग जा रावण के बच्चे, मेरे को शक्ल मत दिखा।”
हमारी चलन, वाणी और संस्कार – सब ईश्वरीय होने चाहिए।
प्रश्न 5: परमात्मा हमें क्या देने आया है?
उत्तर:परमात्मा हमें स्वर्ग का वर्ष देने आया है।
यह कोई साधारण वर्ष नहीं, बल्कि संपूर्ण सुख, शांति और शक्ति का वचन-पत्र है।
कल्प में एक बार ही यह मिलता है।
प्रश्न 6: जब स्वयं परमात्मा ज्ञान दे रहे हैं – क्या यह कोई सामान्य बात है?
उत्तर:नहीं।
यह कल्प में केवल एक बार होता है जब स्वयं परमात्मा आकर हमें पढ़ाते हैं।
इससे ऊँची स्टेज न पहले कभी मिली, न आगे मिलेगी।
क्या हमें इसका नशा है?
प्रश्न 7: हम संगम युगी ब्राह्मण हैं – इसका प्रमाण क्या है?
उत्तर:
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हम बाबा की श्रीमत पर चल रहे हैं।
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हम रोज ज्ञान मंथन कर रहे हैं।
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हम बाबा से कहते हैं – “बाबा, हमारे भेजे में जितना ज्ञान भर सकते हो, भरो।”
यही मेहनत स्वर्ग का अधिकारी बनाती है।
प्रश्न 8: क्या अभी समय बहुत थोड़ा है?
उत्तर:हाँ, बहुत थोड़ा।
बाबा बार-बार कहते हैं:
“अब समय थोड़ा है – गफलत करोगे तो पछताना पड़ेगा।”
यह समय अमूल्य है – इसे व्यर्थ गंवाना पाप है।
अब हम ईश्वरीय संतान बने हैं – यही हमारी सच्ची पहचान है।
सच्ची शांति और स्वर्ग का रास, इस संगम युग पर ही प्राप्त होता है।
इस ज्ञान से जीवन को हीरे जैसा बनाना है – क्योंकि यही “हीरा जन्म” है।
जो इस ज्ञान से निखरा, वही देवता कहलाएगा।
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