(01) The secret of true recognition of God’s qualities and characteristics

(01)भगवान के गुण और लक्षण सत्य पहचान का रहस्य

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“गीता के भगवान कौन? परमात्मा की सच्ची पहचान | सत्य का रहस्य | Shiv Baba Murli Speech” 


ओम् शांति।

 विषय प्रस्तावना: पहचान ही आधार है

“जब तक कोई पहचाना नहीं जाता, तब तक उससे संबंध और सच्चा योग असंभव है।”

आज हम एक अत्यंत गूढ़ प्रश्न पर चिंतन करेंगे —
“गीता के भगवान कौन हैं?”

 भक्ति, योग और आत्मा का कल्याण — यह सब भगवान की सच्ची पहचान पर निर्भर करता है।

मुरली वाणी:
“पहचान के बिना न सच्चा प्यार हो सकता है, न सच्चा योग।”


 पहचान का आधार क्या है?

उत्तर: गुण और लक्षण।
जैसे वस्तु की विशेषता उसके गुणों से जानी जाती है, वैसे ही परमात्मा की पहचान भी उन्हीं के विशेष दिव्य गुणों से होती है।

 उदाहरण:

  • महात्मा: महान कर्म और गुणों वाला

  • धर्मात्मा: धर्म अनुसार चलने वाला

  • पुण्य आत्मा: पुण्य कर्म करने वाली आत्मा

इसी प्रकार,
“परम + आत्मा” = सभी आत्माओं से श्रेष्ठ गुणों वाला।


 भ्रम का पर्दाफाश: क्या परमात्मा निर्गुण है?

 आम भ्रांति: परमात्मा निर्गुण यानी निराकार और गुणहीन है।
सत्य:
“निर्गुण” का अर्थ गुणहीन नहीं, बल्कि अवगुणों से रहित है।

मुरली वाणी:

“मैं निराकार हूं, परंतु मेरा आकार है — मैं बिंदु हूं, अति सूक्ष्म।”

निराकार का अर्थ है — स्थूल शरीर नहीं,
परंतु उनका सूक्ष्म ज्योति स्वरूप अस्तित्व में है।


 परमात्मा के चार प्रमुख लक्षण

1. ज्ञान का सागर

  • अज्ञान से मुक्ति दिलाने वाला।
    “मैं ज्ञान सागर हूं — ज्ञान देता हूं जिससे तुम बदल सको।”

2. शांति और पवित्रता का सागर

  • पतित आत्माओं को पावन बनाने वाला।

3. प्रेम और करुणा का सागर

  • कोई पक्षपात नहीं — सभी आत्माओं को “बच्चा” समझते हैं।

4. सर्वशक्तिवान

  • मुक्ति व जीवनमुक्ति देने वाला
    “मैं परमधाम से आता हूं — बच्चों को स्वर्ग का अधिकारी बनाने।”


 परमात्मा का आकार: क्या वह है?

हां! परमात्मा का आकार है — “ज्योति बिंदु”

  • दृश्य नहीं, परंतु अनुभव करने योग्य

  • शिव = कल्याणकारी — उनके नाम में ही उनका कार्य समाहित है।

 उदाहरण:

जैसे डॉक्टर केवल भावना नहीं, ज्ञान और औषधि भी रखता है।
वैसे ही परमात्मा — केवल आश्रय नहीं, बल्कि ज्ञान, शक्ति और साधन भी देते हैं।


 आत्मा और परमात्मा: एक या अलग?

विषय आत्मा परमात्मा
रूप ज्योति बिंदु ज्योति बिंदु
जन्म जन्म-मरण में आती अजन्मा
ज्ञान ज्ञान प्राप्त करती है ज्ञानदाता
स्थिति पतित बनती है पतित-पावन
इच्छा शांति चाहती है शांति का सागर

गीता श्लोक 18:66:
“मामेकं शरणं व्रज… अहं त्वां सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि।”
 स्पष्ट करता है कि भगवान और आत्मा दो भिन्न सत्ता हैं।


भारतीय संस्कृति में भगवान के संकेत

दीपावली:ज्ञान का दीप जलाकर आत्मा को प्रकाशित करना

शिवरात्रि:परमात्मा शिव का अवतरण — अंधकार में प्रकाश का संचार

होली:विकारों का दहन — पावनता की ओर परिवर्तन

“मैं आता हूं तुम्हें सतयुगी देवता बनाने — यह मेरा कल्प-कल्प का कार्य है।”


सच्ची पहचान से ही सच्चा कल्याण

 यदि भगवान को “निर्गुण” कहें, तो उनके कार्यों का अपमान होगा।

 सच्चा समाधान:

“भगवान को गुणों से पहचानो, तभी बन सकेगा उनसे सच्चा योग, सच्चा संबंध और सच्चा जीवन।”

“जब आत्मा, परमात्मा को सच्चे रूप में पहचानती है, तो उसकी भक्ति ज्ञान में बदल जाती है — ज्ञान शक्ति में और शक्ति मोक्ष में।”


 अंत में — एक आत्मिक स्मृति:

“मैं आत्मा, परमात्मा की संतान हूं।
वे ज्ञान सागर, शांति सागर, प्रेम सागर हैं।
मुझे उनसे ही शक्ति मिलती है —
मुक्ति भी, जीवनमुक्ति भी।”

गीता के भगवान कौन? परमात्मा की सच्ची पहचान | सत्य का रहस्य | Shiv Baba Murli Speech

विषय प्रस्तावना:
“पहचान ही आधार है”
“जब तक कोई पहचाना नहीं जाता, तब तक उससे सच्चा संबंध और योग असंभव है।”


प्रश्न 1: परमात्मा को पहचानना क्यों ज़रूरी है?

उत्तर:जब तक आत्मा परमात्मा को सच्चे रूप में नहीं पहचानती, तब तक वह उनके गुण, कार्य और शक्ति को अनुभव नहीं कर सकती।
Murli Point: “पहचान के बिना न सच्चा प्यार हो सकता है, न सच्चा योग।”


प्रश्न 2: परमात्मा की पहचान कैसे की जाती है?

उत्तर:जैसे हर वस्तु अपने गुणों से पहचानी जाती है, वैसे ही परमात्मा की पहचान उनके दिव्य गुणों से होती है —

  1. ज्ञान सागर

  2. शांति सागर

  3. प्रेम सागर

  4. सर्वशक्तिवान

उदाहरण:
“महात्मा” उस आत्मा को कहा जाता है जिसके कर्म महान हों।
उसी तरह “परम + आत्मा” यानी परमात्मा — सर्वश्रेष्ठ आत्मा।


प्रश्न 3: क्या परमात्मा ‘निर्गुण’ और ‘निराकार’ हैं?

उत्तर:

  • निर्गुण’ का अर्थ है अवगुण रहित, ना कि गुणहीन

  • निराकार’ का अर्थ है शरीररहित, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनका कोई स्वरूप नहीं है।

Murli Point: “मैं निराकार हूं, परंतु मेरा आकार है — मैं बिंदु हूं, अति सूक्ष्म।”
 परमात्मा का आकार है: “ज्योति बिंदु” — दृश्य नहीं, परंतु अनुभवयोग्य।


प्रश्न 4: आत्मा और परमात्मा में क्या फर्क है?

विषय आत्मा परमात्मा
रूप ज्योति बिंदु ज्योति बिंदु
जन्म जन्म–मरण में आती अजन्मा
ज्ञान ज्ञान प्राप्त करती है ज्ञानदाता
स्थिति पतित बनती है पतित-पावन
इच्छा शांति चाहती है शांति का सागर

स्पष्ट है: आत्मा और परमात्मा अलग सत्ता हैं — यह गीता के श्लोक 18:66 से भी सिद्ध होता है।


प्रश्न 5: गीता का भगवान कौन है?

उत्तर:भगवद्गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि स्वयं निराकार परमात्मा शिव हैं, जो श्रीकृष्ण के माध्यम से यह ज्ञान सुनाते हैं।

Murli Point: “श्रीकृष्ण तो सतयुग का पहला बच्चा है। गीता का ज्ञान निराकार शिवबाबा ही सुनाते हैं।”

गीता श्लोक 18:66:
“मामेकं शरणं व्रज…”
यह स्पष्ट करता है कि आत्मा और भगवान दो भिन्न सत्ता हैं — भगवान कोई देहधारी नहीं, बल्कि निराकार ज्योति बिंदु हैं।


प्रश्न 6: परमात्मा का कार्य क्या है?

उत्तर:परमात्मा कल्प-कल्प पर पतित आत्माओं को पावन बनाने, अज्ञान से ज्ञान में लाने, और भक्ति मार्ग को समाप्त करके राजयोग सिखाने आते हैं।

Murli Point: “मैं आता हूं पतितों को पावन बनाने — यह मेरा कल्प-कल्प का कार्य है।”

उदाहरण:

  • दीपावली: आत्मा में ज्ञान का दीप जलाना

  • शिवरात्रि: अंधकार में परमात्मा का अवतरण

  • होली: विकारों का दहन


प्रश्न 7: यदि परमात्मा को केवल ‘भावना’ माने तो क्या हानि है?

उत्तर:यदि परमात्मा को केवल ‘आश्रय’ मानें, और उनके ज्ञान, शक्ति व कार्य को न समझें, तो आत्मा सच्चे संबंध से वंचित रह जाती है।

उदाहरण:
जैसे डॉक्टर केवल भावना नहीं — ज्ञान और औषधि भी देता है।
वैसे ही परमात्मा सिर्फ भक्ति का पात्र नहीं, बल्कि ज्ञानदाता, मोक्षदाता, और जीवनदाता हैं।


प्रश्न 8: सच्ची पहचान से आत्मा को क्या मिलता है?

उत्तर:

  • सच्चा योग

  • शक्ति और साहस

  • दुखों से मुक्ति

  • मुक्ति और जीवनमुक्ति

Murli Point:
“जब आत्मा, परमात्मा को सच्चे रूप में पहचानती है, तो उसकी भक्ति ज्ञान में बदल जाती है — ज्ञान शक्ति में और शक्ति मोक्ष में।”


अंतिम आत्मिक स्मृति:

“मैं आत्मा, परमात्मा की संतान हूं।
वे ज्ञान सागर, शांति सागर, प्रेम सागर हैं।
मुझे उन्हीं से शक्ति मिलती है —
मुक्ति भी, जीवनमुक्ति भी।”

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