(01)-गीता में सांख्य योग सत्य/असत्य क्या
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
गीता में सांख्य योग सत्य /असत्य क्या
‘सांख्य’ का अर्थ है — संख्या द्वारा जानना, या तत्वों की गिनती द्वारा सच्चाई को समझना।
‘योग’ का अर्थ है — जुड़ना, विशेषकर आत्मा का परमात्मा से जुड़ना।
सांख्य योग वह विधा है जो आत्मा और शरीर के भेद को स्पष्ट करते हुए विवेक से यह निर्णय कराता है कि सत्य क्या है और असत्य क्या।
श्लोक 2.11 संस्कृत:
श्रीभगवानुवाच — अशोच्यान् अन्वशोचः त्वं प्रज्ञा-वदाम्श् च भाषसे।
गतासून् अगतासून् च न अनुशोचन्ति पण्डिताः॥
शब्दार्थ:श्रीभगवान= भगवान श्रीकृष्ण
उवाच = बोले अशोच्यान् = जिन पर शोक नहीं करना चाहिए
अन्वशोचः= तू शोक करता है
त्वं = तू प्रज्ञा-वदाम्श्= ज्ञानी की तरह च = और भाषसे = बोलता है
गतासून् = जिनकी प्राण निकल गए हैं (मृत)
अगतासून् = जिनकी प्राण नहीं निकले हैं (जीवित) न = नहींअनुशोचन्ति = शोक करते पण्डिताः = ज्ञानी लोग
हिन्दी अनुवाद: भगवान ने कहा: तू उन बातों पर शोक कर रहा है जिन पर शोक नहीं करना चाहिए, और ज्ञानी की तरह बातें कर रहा है; परंतु जो वास्तव में ज्ञानी होते हैं,
वे न मरे हुए का शोक करते हैं और न जीवित का।
ज्ञानी शोक नहीं करत✔ सत्य — आत्मा अविनाशी है, ज्ञानी आत्मा शोक नहींकरती
शीर्षक:
गीता में सांख्य योग: सत्य और असत्य क्या है?
(आधारित: अध्याय 2, श्लोक 11)
❓प्रश्न 1: ‘सांख्य योग’ का क्या अर्थ है?
✅ उत्तर:‘सांख्य’ का अर्थ है संख्या या तत्वों की गिनती द्वारा सच्चाई को समझना – जैसे आत्मा और शरीर के भेद को समझना।
‘योग’ का अर्थ है जुड़ना – विशेषकर आत्मा का परमात्मा से जुड़ना।
इसलिए सांख्य योग वह ज्ञान है जो विवेकपूर्वक हमें यह पहचान कराता है कि क्या सत्य है (अविनाशी) और क्या असत्य है (नाशवान)।
❓प्रश्न 2: गीता के श्लोक 2.11 में श्रीकृष्ण अर्जुन को क्या सिखाते हैं?
✅ उत्तर:श्रीकृष्ण कहते हैं: “तू उन बातों पर शोक कर रहा है जिन पर शोक नहीं करना चाहिए। जो वास्तव में ज्ञानी होते हैं, वे न मृत आत्मा के लिए शोक करते हैं, न जीवित के लिए।”
इसका भावार्थ है: ज्ञानी आत्मा जानती है कि आत्मा अविनाशी है, शरीर नाशवान है। अतः मृत्यु या शरीर के आधार पर शोक करना मोह है, ज्ञान नहीं।
❓प्रश्न 3: इस श्लोक के अनुसार ‘सत्य’ और ‘असत्य’ की पहचान कैसे होती है?
✅ उत्तर:
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सत्य = आत्मा अविनाशी है, जन्म-मरण के चक्र से परे है।
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असत्य = शरीर नाशवान है, पंचतत्वों से बना है और बदलता रहता है।
सांख्य योग हमें यह विवेक देता है कि हम शरीर को असत्य (क्षणिक) समझें और आत्मा को सत्य (शाश्वत) मानें।
❓प्रश्न 4: अर्जुन की मन:स्थिति इस समय कैसी थी, और श्रीकृष्ण उसे कैसे बदलते हैं?
✅ उत्तर:अर्जुन शारीरिक संबंधों, मोह और मृत्यु के भय के कारण शोक कर रहा था।
श्रीकृष्ण उसे सांख्य योग के माध्यम से यह सिखाते हैं कि तू न कर्ता है, न कोई मरता है। आत्मा अजर-अमर है।
इस बोध से अर्जुन की मन:स्थिति बदलती है – शोक से ज्ञान की ओर।
❓प्रश्न 5: ब्रह्मा कुमारी ज्ञान के अनुसार यह श्लोक आत्मा-चेतना की कौन सी स्थिति दर्शाता है?
✅ उत्तर:ब्रह्मा कुमारी ज्ञान कहता है:
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जब आत्मा अलग है शरीर से, तब ही वह सच्चे अर्थों में ज्ञानयुक्त होती है।
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ज्ञानी आत्मा न किसी के देह छूटने पर शोक करती है, न संबंधों में उलझती है।
यह वही स्थिति है जिसे सांख्य योग कहा गया – निर्विकारी आत्मिक स्थिति।
❓प्रश्न 6: क्या यह ज्ञान आज भी प्रासंगिक है?
✅ उत्तर:हाँ, अत्यंत प्रासंगिक है।
आज हर व्यक्ति शरीर और संबंधों में उलझकर दुःखी है।
यदि हम आत्मा और शरीर का भेद समझ लें, आत्मा को अविनाशी जानें – तो सभी मानसिक दुःख स्वतः दूर हो जाते हैं।
सांख्य योग आज भी जीवन में शांति और स्थिरता लाता है।
🌟 निष्कर्ष:गीता का यह श्लोक 2.11 हमें सांख्य योग के माध्यम से यह शिक्षा देता है कि
“सत्य है – आत्मा अविनाशी है। असत्य है – शरीर जो नाशवान है। ज्ञानी वह है जो इस भेद को जानता है और कभी शोक नहीं करता।”
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