छठ पूजा का असली अर्थ-:(03)”क्या हम सूर्य की नहीं, आत्मा की आराधना कर रहे हैं।
अध्याय: “छठ पूजा का असली अर्थ — लोक से आत्मा की आस्था तक”
1. परिचय: छठ पूजा और उसका वास्तविक महत्व
छठ पूजा आज भव्य लोक उत्सव के रूप में मनाई जाती है, विशेषकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में। लेकिन इसका असली प्रारंभ किसी व्यक्ति या राज्य से नहीं, बल्कि मानव आत्मा की ईश्वर से जुड़ने की पहली प्रेरणा से हुआ।
उदाहरण:
हर नदी का कोई स्रोत होता है। वैसे ही हर धार्मिक परंपरा का स्रोत परमात्मा की याद है। छठ पूजा भी उस स्मृति की लहर है, जहाँ आत्मा सूर्य प्रकाश की ओर मुड़ती है।
मुरली नोट:
14 नवंबर 2023 — “बच्चे, यह सब भक्ति परंपराएँ मेरी याद की निशानियां हैं। जब ज्ञान का सूर्य अस्त होता है, तब भक्ति आरंभ होती है।”
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
महाभारत काल से लेकर आज तक छठ पूजा का उल्लेख मिलता है। कुंती और द्रोपदी ने सूर्य भगवान की पूजा की थी। बी की दृष्टि से यह केवल कथा नहीं, बल्कि योग की शुरुआत का प्रतीक है।
उदाहरण:
कुंती ने सूर्य से कर्ण को पाया। जैसे प्रकाश से जीवन की उत्पत्ति होती है, वैसे ही जब आत्मा ईश्वर की किरणों से जुड़ती है, तो जीवन और दिव्य संस्कार जन्म लेते हैं।
मुरली नोट:
19 जनवरी 2024 — “जब आत्मा परमात्मा से योग लगाती है, तब नया जन्म अर्थात नया जीवन मिलता है।”
3. सूर्य उपासना का वास्तविक अर्थ
छठ पूजा की प्राचीन जड़े आर्यकालीन सूर्य उपासना से भी पुरानी हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से सूर्य उपासना वस्तुतः ज्ञान सूर्य शिव की स्मृति है।
उदाहरण:
जैसे कोई व्यक्ति असली रत्न खो दे और उसकी नकली प्रति रख ले, वैसे ही आत्मा ने परमात्मा की याद के लिए सूर्य की पूजा आरंभ की।
मुरली नोट:
8 मई 2024 — “मैं ही ज्ञान सूर्य हूं। जो आत्माओं को अंधकार से मुक्त करता हूं।”
4. छठी माया: शक्ति और शुद्धता का प्रतीक
छठी माया कोई देवी नहीं, बल्कि आत्मा में शुद्धता और शक्ति का प्रतीक है। यह आत्मा को विकारों से मुक्त करती है और श्रद्धा, संयम तथा पवित्रता की प्रेरणा देती है।
उदाहरण:
जैसे मां अपने बच्चे को साफ-सुथरा रखती है, वैसे ही छठी मैया आत्मा के भीतर शुद्धता की शक्ति है।
मुरली नोट:
9 दिसंबर 2023 — “शुद्धता ही मां है। जो शुद्ध है वही दुनिया को पवित्र बना सकता है।”
5. सूर्य को अर्घ देना: आंतरिक जागरण
छठ पूजा में सूर्य को अर्घ देना केवल प्रतीक नहीं। अस्त होते सूर्य को अर्घ देना अहंकार का अंत है और उदयमान सूर्य को अर्घ देना आत्मा के पुनर्जागरण का प्रतीक है।
मुरली नोट:
25 फरवरी 2024 — “समर्पण का अर्थ है ‘मैं नहीं, बाप ही करता है।’ ऐसे बनो तो सुख का सागर बन जाएगा।”
6. छठ पूजा की आध्यात्मिक उत्पत्ति
मानव आत्मा ने पहली बार परमात्मा के प्रकाश का अनुभव किया, तब छठ पूजा शुरू हुई। ज्ञान युग में परमात्मा शिव ने आत्माओं को ज्ञान संपन्न बनाया और उसके बाद भक्ति मार्ग पर स्मृति रह गई।
मुरली नोट:
14 मार्च 2024 — “ज्ञान युग का अंत होते ही भक्ति शुरू होती है। हर धर्म और हर परंपरा उसी याद की निशानी है।”
7. समापन विचार: सच्चा छठ पूजा
छठ पूजा स्मृति से साक्षात तक की यात्रा है। सूर्य केवल प्रतीक है। सच्चा छठ वही है जब आत्मा कहती है:
“अब मैं बाहरी सूर्य नहीं, अपने ज्ञान सूर्य शिव को याद करती हूं।”
मुरली नोट:
7 जून 2024 — “अब बाप आया है तुम्हें प्रकाशमय बनाने। बच्चे अपने भीतर के सूर्य को जगाओ।”
निष्कर्ष:
छठ पूजा हमें यह सिखाती है कि जैसे सूर्य अंधकार मिटाता है, वैसे ही परमपिता का ज्ञान आत्मा के भीतर नया सूर्य उदय लाता है। शुद्धता और योग की ज्योति जलते ही छठ पूजा का वास्तविक अर्थ प्राप्त होता है।
छठ पूजा का असली अर्थ — लोक से आत्मा की आस्था तक
प्रश्न: छठ पूजा का वास्तविक प्रारंभ कहाँ से हुआ?
उत्तर:
छठ पूजा का वास्तविक प्रारंभ किसी व्यक्ति या राज्य से नहीं, बल्कि मानव आत्मा की ईश्वर से जुड़ने की पहली प्रेरणा से हुआ।
उदाहरण: हर नदी का स्रोत होता है, वैसे ही हर धार्मिक परंपरा का स्रोत परमात्मा की याद है।
मुरली नोट (14 नवंबर 2023): “बच्चे, यह सब भक्ति परंपराएँ मेरी याद की निशानियां हैं। जब ज्ञान का सूर्य अस्त होता है, तब भक्ति आरंभ होती है।”
प्रश्न: छठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?
उत्तर:
महाभारत काल से छठ पूजा का उल्लेख मिलता है। कुंती और द्रोपदी ने सूर्य भगवान की पूजा की थी। यह केवल कथा नहीं, बल्कि योग की शुरुआत का प्रतीक है।
उदाहरण: कुंती ने सूर्य से कर्ण को पाया। जैसे प्रकाश से जीवन जन्म लेता है, वैसे ही जब आत्मा ईश्वर की किरणों से जुड़ती है, तो जीवन और दिव्य संस्कार जन्म लेते हैं।
मुरली नोट (19 जनवरी 2024): “जब आत्मा परमात्मा से योग लगाती है, तब नया जन्म अर्थात नया जीवन मिलता है।”
प्रश्न: सूर्य उपासना का वास्तविक अर्थ क्या है?
उत्तर:
सूर्य उपासना आध्यात्मिक दृष्टि से ज्ञान सूर्य शिव की स्मृति है।
उदाहरण: जैसे कोई असली रत्न खो दे और उसकी नकली प्रति रख ले, वैसे ही आत्मा ने परमात्मा की याद के लिए सूर्य की पूजा आरंभ की।
मुरली नोट (8 मई 2024): “मैं ही ज्ञान सूर्य हूं। जो आत्माओं को अंधकार से मुक्त करता हूं।”
प्रश्न: छठी माया का क्या अर्थ है?
उत्तर:
छठी माया कोई देवी नहीं, बल्कि आत्मा में शुद्धता और शक्ति का प्रतीक है। यह श्रद्धा, संयम और पवित्रता की प्रेरणा देती है।
उदाहरण: जैसे मां अपने बच्चे को साफ-सुथरा रखती है, वैसे ही छठी मैया आत्मा के भीतर शुद्धता की शक्ति है।
मुरली नोट (9 दिसंबर 2023): “शुद्धता ही मां है। जो शुद्ध है वही दुनिया को पवित्र बना सकता है।”
प्रश्न: सूर्य को अर्घ देना क्या दर्शाता है?
उत्तर:
-
अस्त होते सूर्य को अर्घ देना → अहंकार का अंत
-
उदयमान सूर्य को अर्घ देना → आत्मा के पुनर्जागरण का प्रतीक
मुरली नोट (25 फरवरी 2024): “समर्पण का अर्थ है ‘मैं नहीं, बाप ही करता है।’ ऐसे बनो तो सुख का सागर बन जाएगा।”
प्रश्न: छठ पूजा की आध्यात्मिक उत्पत्ति क्या है?
उत्तर:
मानव आत्मा ने पहली बार परमात्मा के प्रकाश का अनुभव किया, तब छठ पूजा शुरू हुई। ज्ञान युग में परमात्मा शिव ने आत्माओं को ज्ञान संपन्न बनाया और उसके बाद भक्ति मार्ग पर स्मृति रह गई।
मुरली नोट (14 मार्च 2024): “ज्ञान युग का अंत होते ही भक्ति शुरू होती है। हर धर्म और हर परंपरा उसी याद की निशानी है।”
प्रश्न: सच्चा छठ पूजा क्या है?
उत्तर:
सच्चा छठ पूजा वह है जब आत्मा अपने भीतर के ज्ञान सूर्य शिव को याद करती है, न कि केवल बाहरी सूर्य को।
मुरली नोट (7 जून 2024): “अब बाप आया है तुम्हें प्रकाशमय बनाने। बच्चे अपने भीतर के सूर्य को जगाओ।”
निष्कर्ष
छठ पूजा हमें यह सिखाती है कि जैसे सूर्य अंधकार मिटाता है, वैसे ही परमपिता का ज्ञान आत्मा के भीतर नया सूर्य उदय लाता है। शुद्धता और योग की ज्योति जलते ही छठ पूजा का वास्तविक अर्थ प्राप्त होता है।
Disclaimer:
इस वीडियो में छठ पूजा का आध्यात्मिक और आत्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। यह धार्मिक परंपराओं का व्यक्तिगत अध्ययन है। किसी भी सामाजिक या धार्मिक विवाद के लिए जिम्मेदारी वीडियो दर्शक की होगी।

