(03)बाप-दादा के साथ मैं श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा हूँ-यह स्मृति क्यों जरूरी है?
“बाप दादा के साथ मैं श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा हूं”
1. विषय का परिचय
आज हम मंथन कर रहे हैं कि “बाप दादा के साथ मैं श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा हूं” यह स्मृति क्यों जरूरी है।
यह प्रश्न बाप दादा ने 5 जनवरी 1984 की अव्यक्त मुरली में उठाया था।
मुख्य प्रश्न:
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केवल बाप को याद करना पर्याप्त क्यों नहीं है?
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हमें स्वयं को श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा क्यों समझना चाहिए?
2. केवल बाप की याद अधूरी क्यों है?
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यदि हम केवल शिव बाबा को याद करते हैं, तो यह स्मृति अधूरी रहती है।
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बाप के पास शक्ति है, लेकिन जब तक हम स्वयं को उसकी औलाद यानी शक्तिशाली आत्मा नहीं मानेंगे, हमारी याद अधूरी रहती है।
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उदाहरण:
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हम कहते हैं, “बाबा आप सर्व शक्तियों के सागर हो, हम आपके बच्चे हैं।”
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लेकिन वास्तविकता में हमें यह स्मृति स्वयं में अनुभव करनी चाहिए।
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मुरली नोट (5 जनवरी 1984):
“बाप दादा के साथ-साथ मैं श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा हूं। यह भी याद रहना चाहिए।”
3. श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा की स्थिति
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स्वयं को शक्ति का अधिकारी मानना आवश्यक है।
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केवल बाबा शक्तिशाली है, यह सोचने से कोई शक्ति नहीं आती।
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शक्ति अनुभव करने से आती है।
मुख्य बिंदु:
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आत्मा का मूल स्वरूप याद रखना – “मैं आत्मा हूं।”
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अपने भीतर शक्ति का अनुभव करना।
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कमजोरियों पर विजय पाना।
उदाहरण:
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अगर मैं सोचता हूं, “सिर्फ शिव बाबा शक्तिशाली है,” तो मैं निर्भर रहूंगा।
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लेकिन यदि मैं समझता हूं, “मैं भी शक्तिशाली आत्मा हूं,” तो मैं साक्षात्कार मूरत बन जाता हूं और दूसरों को भी दिव्य अनुभव दे सकता हूं।
4. त्रिमूर्ति स्मृति का महत्व
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त्रिमूर्ति स्मृति स्वरूप:
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बाप (शक्ति का स्रोत)
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दादा (अनुभव का मार्गदर्शन)
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मैं (श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा)
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इससे हम केवल ज्ञान सुनाने वाले नहीं, बल्कि अनुभव कराने वाले बन जाते हैं।
प्रैक्टिकल उदाहरण:
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किसी को अंधेरे में रास्ता दिखाना हो।
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केवल सूरज के होने पर भरोसा करना: मैं अंधेरा हूं, मेरे पास कोई शक्ति नहीं।
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अगर मैं सूरज का बच्चा हूं: मैं भी दीपक की तरह रोशनी फैला सकता हूं।
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यह वही स्थिति है, जब हम स्वयं को शक्तिशाली आत्मा मानते हैं।
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5. शक्तिशाली स्थिति के लाभ
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कमजोर आत्माओं को भी शक्तिशाली बनाना।
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अंतिम समय में सुरक्षा प्रदान करना।
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ज्ञान को केवल याद नहीं, बल्कि धारण करना।
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साक्षात्कार कराने वाली आत्मा बनना।
मुरली नोट:
“इसी त्रिमूर्ति स्मृति स्वरूप स्थिति से सहज ही साक्षात्कार मूरत बन जाएंगे। केवल सुनाने वाले नहीं, बल्कि अनुभूति कराने वाले बनो।”
6. निष्कर्ष
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मुख्य स्मृति:
“बाप दादा के साथ-साथ मैं श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा हूं।”
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यह स्मृति हमें केवल ज्ञान सुनाने वाले से अनुभव कराने वाले में बदल देती है।
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बाप दादा की सबसे बड़ी आशा यही है कि बच्चे स्वयं को साक्षात शक्तिशाली आत्मा अनुभव करें।
एंडिंग लाइन:
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अब समय है कि हम सिर्फ बाबा को याद न करें, बल्कि यह भी अनुभव करें:
“मैं श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा हूं।”
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और इस शक्तिशाली अनुभव को दूसरों तक पहुँचाएं।
प्रश्नोत्तर (Q&A) फॉर्मैट
प्रश्न 1: बाप दादा के साथ “मैं श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा हूं” यह स्मृति क्यों जरूरी है?
उत्तर:केवल बाप की याद रखना पर्याप्त नहीं है। जब तक हम स्वयं को शक्तिशाली आत्मा नहीं मानेंगे, हमारी स्मृति अधूरी रहती है। यह स्मृति हमें अपनी स्वयं की शक्ति और अधिकार का अनुभव कराती है।
मुरली नोट (5 जनवरी 1984):
“बाप दादा के साथ-साथ मैं श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा हूं। यह भी याद रहना चाहिए।”
प्रश्न 2: केवल शिव बाबा को याद करना क्यों अधूरा है?
उत्तर:शिव बाबा के पास शक्ति है, लेकिन अगर हम स्वयं को शक्तिशाली आत्मा नहीं मानते, तो शक्ति का अनुभव हमारे अंदर नहीं होता। इस स्थिति में हम केवल निर्भर रहने वाले बन जाते हैं।
प्रश्न 3: श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा की स्थिति का क्या लाभ है?
उत्तर:
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कमजोरियों पर विजय मिलती है।
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स्वयं को और दूसरों को शक्तिशाली बना सकते हैं।
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अंतिम समय में सुरक्षा मिलती है।
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केवल ज्ञान सुनाने वाले से अनुभव कराने वाले बनते हैं।
उदाहरण:
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अंधेरे में किसी को रास्ता दिखाना।
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यदि हम सिर्फ सूरज की रोशनी को देखते हैं और खुद अंधेरा मानते हैं, तो कोई प्रभाव नहीं।
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यदि हम समझते हैं कि हम भी शक्तिशाली हैं, तो दीपक की तरह दूसरों को रोशनी दे सकते हैं।
प्रश्न 4: “बाप दादा के साथ त्रिमूर्ति स्मृति” क्या है?
उत्तर:त्रिमूर्ति स्मृति तीन तत्वों से बनती है:
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बाप – शक्ति का स्रोत
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दादा – मार्गदर्शन और अनुभव
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मैं – श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा
इस स्थिति से हम सहज ही साक्षात्कार मूरत बन जाते हैं और दूसरों को दिव्य अनुभव दे सकते हैं।
प्रश्न 5: ज्ञान सुनाने और अनुभव कराने में क्या अंतर है?
उत्तर:
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केवल ज्ञान सुनाने वाला व्यक्ति दूसरों को जानकारी देता है।
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अनुभव कराने वाला व्यक्ति अपने अनुभव के माध्यम से दूसरों को साक्षात्कार कराता है।
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इसे अपनाने के लिए हमें पहले खुद अनुभव करने की जरूरत होती है।
प्रश्न 6: अंतिम समय में सुरक्षा कैसे मिलती है?
उत्तर:सिर्फ ज्ञान याद करने से नहीं, बल्कि शक्तिशाली स्थिति में रहने से हम अंतिम समय में सुरक्षित रहते हैं।
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ज्ञान की धारणा बनाए रखना जरूरी है।
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शक्तिशाली आत्मा होने का अनुभव ही हमें बचाता है।
प्रश्न 7: बाप दादा की सबसे बड़ी आशा क्या है?
उत्तर:बच्चे स्वयं को साक्षात शक्तिशाली आत्मा अनुभव करें।
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सिर्फ बाबा को याद करने से नहीं, बल्कि यह स्मृति अपनाकर स्वयं शक्तिशाली बनना।
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और अपनी शक्तिशाली स्थिति से दूसरों को दिव्य अनुभव कराना।
Disclaimer:
यह वीडियो ब्रह्मा कुमारीज़ की आध्यात्मिक शिक्षाओं और अव्यक्त मुरली पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी आध्यात्मिक अनुभवों और शिक्षाओं पर केंद्रित है। व्यक्तिगत विश्वास और आध्यात्मिक अभ्यास के लिए इसका पालन करें।
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