(03)रावण राज्य बनाम रामराज्य
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“रावण राज्य बनाम राम राज्य: आज की दुनिया नर्क क्यों है?” | BK ज्ञान से स्वर्ग और नर्क की असली पहचान | Om Shanti
भाषण शीर्षकों के साथ विस्तृत रूपरेखा:
1. परिचय
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ओम शांति।
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आज का विषय है: रावण राज्य बनाम राम राज्य।
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विषय का उद्देश्य: स्वर्ग और नर्क की असली पहचान समझना।
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क्यों जरूरी है यह समझ? ताकि हम दुनिया के पतन और भविष्य के निर्माण को स्पष्ट देख सकें।
2. नर्क — कलियुग — नश्वर दुनिया
नंबर 1: कब्रिस्तान क्यों कहा जाता है नर्क को?
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नर्क की उपमा: चलती फिरती कब्र।
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आत्मा शरीर में दफन है — यही है आज की सबसे बड़ी भूल।
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मुसलमान भाईयों का दृष्टिकोण — कयामत की रात।
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बाबा की सच्ची व्याख्या — यह शरीर ही कब्र है।
नंबर 2: दिल्ली की भूमिका
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आज की दिल्ली — नश्वर दुनिया की राजधानी।
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पुरानी हो या नई — दोनों ही पतनशील व्यवस्था का प्रतीक।
नंबर 3: रावण राज्य की स्थिति
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चारों तरफ भ्रष्टाचार, अशुद्धता, चरित्रहीनता।
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कोई भी आत्मा दिव्यता को धारण नहीं कर पाई है।
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जीवन संघर्षमय, दुखमय, और अस्थाई है।
3. स्वर्ग — सतयुग — अमर दुनिया
अमर दुनिया की पहचान
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जहां आत्माएं शरीर में स्वामी बनकर रहती हैं।
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पूर्ण शांति, आनंद और दिव्यता का साम्राज्य।
दिल्ली की भूमिका — परिस्तान
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सतयुग में राजधानी का नाम: परिस्तान, ख़ुदा का बगीचा।
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वर्तमान दिल्ली नहीं होगी — पर नई भौगोलिक रचना बनेगी।
भौगोलिक परिवर्तन
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हिमालय नहीं रहेगा, तो गंगा यमुना जैसी नदियाँ भी बदलेंगी।
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नई दुनिया में नए भू-आकृति — नई नदियाँ, नई भूमि।
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यह परिवर्तन बाबा ने स्पष्ट रूप से मुरली में बताया है।
4. निष्कर्ष: आत्मबोध ही स्वर्ग का द्वार
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जब तक आत्मा स्वयं को शरीर समझती है — वह कब्र में है।
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स्वयं को आत्मा समझना — यही है स्वर्ग की शुरुआत।
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रावण राज्य का अंत और राम राज्य की स्थापना ज्ञान और योग द्वारा ही संभव है।
समापन:
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यह समय है संगम युग का — जब परमात्मा स्वयं आकर हमें स्वर्ग और नर्क का फर्क समझा रहे हैं।
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बाबा कहते हैं: बच्चे, यह समय है खुद को आत्मा समझ, दिव्य गुणों को धारण करने का।
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शीर्षक: “रावण राज्य बनाम राम राज्य: आज की दुनिया नर्क क्यों है?” | BK ज्ञान से स्वर्ग और नर्क की असली पहचान | Om Shanti
प्रश्न 1: रावण राज्य और राम राज्य में क्या मूलभूत अंतर है?
उत्तर:रावण राज्य यानी नर्क, जहां आत्मा शरीर में दफन होकर मोह, क्रोध, लोभ, अहंकार आदि रावण के गुणों के अधीन हो जाती है।
राम राज्य यानी स्वर्ग, जहां आत्मा शरीर की मालिक बनकर प्रेम, शांति, आनंद, पवित्रता और शक्ति जैसे दिव्य गुणों से सम्पन्न होती है।
प्रश्न 2: आज की दुनिया को ‘कब्रिस्तान’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:क्योंकि आज हर आत्मा स्वयं को शरीर समझकर जी रही है — यही सबसे बड़ी भूल है।
बाबा कहते हैं — यह शरीर एक चलती फिरती कब्र है, जिसमें आत्मा दफन है। इसलिए यह दुनिया कब्रिस्तान बन गई है।
प्रश्न 3: मुसलमान भाई ‘कब्र’ की बात कैसे करते हैं, और बाबा क्या समझाते हैं?
उत्तर:मुसलमान मानते हैं कि आत्मा मृत्यु के बाद कब्र में दफन रहती है और कयामत के दिन खुदा उसे उठाएगा।
बाबा कहते हैं — आत्मा इस चलते फिरते शरीर-कब्र में ही दफन है, और परमात्मा आकर अभी उसे जगाते हैं — संगम युग में।
प्रश्न 4: दिल्ली का रावण राज्य में क्या स्थान है?
उत्तर:आज की दिल्ली — चाहे पुरानी हो या नई — पतनशील दुनिया की राजधानी है, जहां भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता चरम पर है।
यह नश्वर दुनिया के नेतृत्व का प्रतीक बन गई है।
प्रश्न 5: रावण राज्य की तीन मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर:
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भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता का बोलबाला।
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आत्मिक दिव्यता का अभाव।
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संघर्ष, दुख और अस्थायित्व से भरा जीवन।
प्रश्न 6: राम राज्य यानी स्वर्ग की पहचान क्या है?
उत्तर:राम राज्य वह अवस्था है जहां आत्माएं शरीर की स्वामी होती हैं, और जीवन पूर्ण शांति, सुख और पवित्रता से भरपूर होता है।
वह दुनिया अमर और दिव्य होती है, जिसे बाबा ‘परिस्तान’ कहते हैं।
प्रश्न 7: सतयुग में दिल्ली का क्या रूप होगा?
उत्तर:सतयुग में दिल्ली जैसी राजधानी को ‘परिस्तान’ या ‘ख़ुदा का बगीचा’ कहा जाएगा।
भौगोलिक स्थिति पूरी तरह बदल जाएगी — नदियाँ, पर्वत और स्थल नए होंगे।
प्रश्न 8: हिमालय पर्वत नहीं रहेगा, तो गंगा-यमुना जैसी नदियों का क्या होगा?
उत्तर:सतयुग में वर्तमान हिमालय और उससे निकलने वाली नदियाँ नहीं रहेंगी।
नई दुनिया में नई मीठी नदियाँ होंगी, लेकिन उनका स्रोत और भू-आकृति बिल्कुल अलग होगी।
प्रश्न 9: नर्क से स्वर्ग की यात्रा कैसे संभव है?
उत्तर:यह यात्रा केवल आत्मबोध और परमात्मा के ज्ञान-योग के माध्यम से ही संभव है।
जब आत्मा स्वयं को शरीर नहीं, आत्मा समझती है — तब वह धीरे-धीरे दिव्य बनती है और राम राज्य की स्थापना होती है।
प्रश्न 10: यह समय कौन-सा युग है और इसमें हमें क्या करना है?
उत्तर:यह संगम युग है — जब परमात्मा शिव स्वयं आकर आत्माओं को जगाते हैं।
हमें ज्ञान को धारण कर, आत्म-स्मृति में रहना है और दिव्यता का अभ्यास करना है। -
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