(04)दशहरा कब और कैसे होता है?
“सच्चा दशहरा कब होता है? | बीके ज्ञान से दशहरे का गुप्त रहस्य |”
परिचय: दशहरे का बाहरी और आंतरिक अर्थ
हम सब जानते हैं कि दशहरा भारत का एक बड़ा पर्व है।
परंतु बी.के. ज्ञान हमें बताता है कि असली दशहरा कोई बाहरी उत्सव नहीं बल्कि आत्मा की यात्रा का एक गहरा आध्यात्मिक रहस्य है।
बाहर पुतला जलाना एक प्रतीक है।
पर असली दशहरा आत्मा के भीतर रावण रूपी विकारों को जलाने से होता है।
मुरली नोट्स और तिथि अनुसार संदर्भ
1. साकार मुरली – 25 अक्टूबर 2004
“रावण तो विकारों का नाम है। मनुष्य समझते हैं कोई राक्षस था, इसलिए पुतला जलाते रहते हैं। असली रावण का दहन तो आत्मा को विकारों को खत्म करने से होगा।”
मुख्य संदेश:
रावण कोई शरीरधारी आत्मा नहीं, बल्कि काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के रूप में हर आत्मा के भीतर है।
2. अव्यक्त मुरली – 9 अक्टूबर 1979
“दशहरे का असली अर्थ है आत्मा की विजय। जब आत्मा रावण रूपी विकारों पर जीत पाती है तब सच्चा विजय दशमी मनाई जाती है।”
मुख्य संदेश:
सच्चा दशहरा तब होता है जब आत्मा अपनी पवित्रता और शांति की स्थिति को पुनः प्राप्त कर ले।
3. साकार मुरली – 18 अक्टूबर 1999
“रावण के 10 सिर कोई मनुष्य के सिर नहीं थे। ये 10 सिर 10 विकारों का प्रतीक हैं – 5 पुरुष के और 5 स्त्री के।”
मुख्य संदेश:
रावण के 10 सिर केवल प्रतीकात्मक हैं।
5 विकार पुरुष में (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार)
5 विकार स्त्री में (कामना, चिड़चिड़ापन, लोभ, मोह, अभिमान)।
असली दशहरा कब होता है?
बी.के. ज्ञान के अनुसार दशहरा हर साल नहीं बल्कि संगम युग पर होता है।
यानी जब स्वयं परमपिता शिव आकर हमें राजयोग सिखाते हैं।
यही वह समय है जब आत्मा को ईश्वर से शक्ति मिलती है और वह विकारों रूपी रावण को परास्त कर पाती है।
असली दशहरा कैसे होता है?
जब आत्मा याद में रहती है –
-
मैं आत्मा हूं
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परमात्मा मेरी शक्ति का सागर है
तब आत्मा विकारों को जीत लेती है।
उदाहरण:
यदि कोई डॉक्टर केवल बीमारी के लक्षण दबा दे पर जड़ कारण न मिटाए, तो रोगी बार-बार बीमार होगा।
उसी तरह बाहर पुतला जलाने से आत्मा की बीमारी नहीं मिटती।
योग की शक्ति से भीतर के विकार मिटाने पर ही आत्मा स्वस्थ होती है।
विकारों पर विजय = सच्चा दशहरा
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काम पर विजय → पवित्रता
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क्रोध पर विजय → शांति
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लोभ पर विजय → संतोष
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मोह पर विजय → आत्मिक संबंध
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अहंकार पर विजय → ईश्वर का बच्चा
निष्कर्ष
बीके ज्ञान के अनुसार दशहरा हर साल नहीं बल्कि संगमयुग में होता है।
असली दशहरा बाहर पुतला जलाने से नहीं, बल्कि अंदर के रावण को जलाने से होता है।
जब आत्मा विकारों से मुक्त होकर अपनी देवी-देवता स्थिति प्राप्त करती है, तब मनाया जाता है सच्चा दशहरा – सच्ची विजय दशमी।
प्रश्न–उत्तर (Q&A)
Q1: बीके ज्ञान के अनुसार दशहरा क्या है?
Ans: दशहरा कोई बाहरी पर्व नहीं है, बल्कि आत्मा की विजय का प्रतीक है। जब आत्मा विकारों (रावण) पर विजय पाती है, तभी सच्चा दशहरा होता है।
Q2: रावण वास्तव में कौन है?
Ans: साकार मुरली 25 अक्टूबर 2004 में शिव बाबा ने कहा –
“रावण तो विकारों का नाम है। कोई राक्षस या शरीरधारी नहीं।”
रावण = काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार।
Q3: रावण के 10 सिर का क्या अर्थ है?
Ans: साकार मुरली 18 अक्टूबर 1999 में बताया गया –
“रावण के 10 सिर कोई मनुष्य के सिर नहीं थे, बल्कि 10 विकारों का प्रतीक हैं –
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5 विकार पुरुष के
-
5 विकार स्त्री के।”
Q4: असली दशहरा कब होता है?
Ans: बीके ज्ञान के अनुसार दशहरा हर साल नहीं बल्कि संगम युग में होता है। जब परमात्मा शिव आकर आत्माओं को राजयोग सिखाते हैं और उन्हें विकारों पर विजय दिलाते हैं।
Q5: असली दशहरा कैसे मनाया जाता है?
Ans: असली दशहरा बाहर पुतला जलाने से नहीं होता। यह तब होता है जब आत्मा –
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काम पर विजय पाकर पवित्र बनती है।
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क्रोध पर विजय पाकर शांत स्वरूप बनती है।
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लोभ पर विजय पाकर संतोषी बनती है।
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मोह पर विजय पाकर आत्मिक संबंध निभाती है।
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अहंकार पर विजय पाकर ईश्वर का सच्चा बच्चा बनती है।
Q6: बाहरी पुतला जलाने और अंदर रावण जलाने में क्या अंतर है?
Ans:
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बाहरी पुतला जलाने से आत्मा की बीमारी (विकार) खत्म नहीं होती।
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अंदर रावण जलाने का मतलब है योगबल से विकारों को खत्म करना।
यही आत्मा का असली इलाज है।
Q7: विजय दशमी का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?
Ans: अव्यक्त मुरली 9 अक्टूबर 1979 में कहा गया –
“दशहरे का असली अर्थ है आत्मा की विजय। जब आत्मा रावण रूपी विकारों पर जीत पाती है तब सच्ची विजय दशमी मनाई जाती है।”
डिस्क्लेमर
यह वीडियो/भाषण ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय ज्ञान (मुरली) पर आधारित आध्यात्मिक दृष्टिकोण है।
इसका उद्देश्य किसी धार्मिक परंपरा, रीति-रिवाज या भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है।
यह केवल आत्मा की आंतरिक यात्रा और रावण रूपी विकारों पर विजय पाने की प्रेरणा देता है।
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