(04)The difference between God and human souls

(04)भगवान और मनुष्यात्माओं में अन्तर

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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गीता का भगवान कौन? आत्मा और परमात्मा में अंतर | क्या आत्मा परमात्मा बन सकती है? | BK Dr Surender Sharma


 ओम शांति

आज का विषय है — “भगवान और मनुष्य आत्मा में क्या अंतर है?”
यह कोई सिर्फ दार्शनिक प्रश्न नहीं, बल्कि मुक्ति और सद्गति का मूल आधार है।


 आत्मा और परमात्मा क्या एक ही हैं?

बहुत से मत-पंथ कहते हैं – “आत्मा ही परमात्मा है”,
कुछ कहते हैं – “आत्मा परमात्मा बन सकती है।”
पर क्या यह सच है?

  • अगर आत्मा कभी परमात्मा थी,
    तो अब विकारी, अज्ञानी, दुर्बल कैसे हो गई?

  • क्या माया उस परमात्मा से भी शक्तिशाली हो गई?

  • क्या परमात्मा को भी हार माननी पड़ी?

स्पष्ट उत्तर:
आत्मा और परमात्मा अलग हैं।
आत्मा कभी परमात्मा थी – यह संभव ही नहीं।


 भगवान में और मनुष्य आत्मा में अंतर

आत्मा (मनुष्य) परमात्मा (भगवान)
जन्म-मरण में आती है जन्म-मरण से परे है
विकारी बन सकती है सदा निर्विकारी है
शक्ति में कमी आ सकती है सर्वशक्तिवान है
अज्ञान में जा सकती है ज्ञान का सागर है
समय/माया के अधीन है माया-काल से परे है

 इस स्पष्ट अंतर से सिद्ध होता है – आत्मा और परमात्मा अलग सत्ता हैं।


 “Human Being” शब्द की गहराई

मनुष्य = मिट्टी + आत्मा (Soil + Soul)
 आत्मा जब शरीर धारण करती है – तब कहलाती है जीव आत्मा (Human being)
परमात्मा शरीर में नहीं आता, वह अजन्मा, निराकार और सदा परम रहता है।


 भगवान कौन है?

परमात्मा = शिव

  • जो स्वयं को गीता में “परमात्मा” कहते हैं।

  • जो कभी जन्म नहीं लेते, सिर्फ एक बार आते हैं — संगम युग में,
    जब सारी आत्माएं पतित हो जाती हैं।

वे स्वयं कहते हैं —
“मैं अविनाशी हूँ। मैं न तो जन्म लेता हूँ, न मरता हूँ।”
(गीता अध्याय 4, श्लोक 6)


 आत्मा क्या है?

  • आत्मा अद्वितीय है।

  • हर आत्मा की अपनी अलग पहचान, संस्कार और भूमिका है।

  • कोई दो आत्माएं एक जैसी नहीं हो सकतीं।
     उसी प्रकार, परमात्मा भी एक ही है – अद्वितीय, अलौकिक


 अगर आत्मा परमात्मा नहीं है, तो फिर क्या संबंध?

  • आत्मा = रचना (Creation)

  • परमात्मा = रचयिता (Creator)

जैसे निर्माता और वस्तु में अंतर होता है, वैसे ही आत्मा और परमात्मा में है।


  • आत्मा और परमात्मा कभी एक नहीं थे, न हो सकते हैं।

  • आत्मा पतित हो सकती है – पर परमात्मा कभी पतित नहीं होता।

  • आत्मा को परमात्मा मिलते हैं, ताकि वह फिर से पावन बन सके।

  • आत्मा ज्ञान से जाग्रत होती है, पर ज्ञान का सागर केवल परमात्मा है।

सृष्टि रूपी नाटक में
परमात्मा निर्देशक हैं,
और आत्माएं कलाकार।


 अंतिम विचार:

आज गीता का भगवान कौन है – इसका उत्तर यही है:
भगवान = परमात्मा शिव,
जो सर्व आत्माओं के पिता हैं,
जो इस संगम युग में आकर गीता का सच्चा ज्ञान सुनाते हैं।

गीता का भगवान कौन? आत्मा और परमात्मा में अंतर | क्या आत्मा परमात्मा बन सकती है? | BK Dr Surender Sharma


 ओम शांति | प्रश्न-उत्तर शैली स्क्रिप्ट

प्रश्न 1: आत्मा और परमात्मा क्या एक ही हैं?

उत्तर:नहीं। आत्मा और परमात्मा कभी एक नहीं थे।
आत्मा – एक अद्वितीय, सीमित शक्तियों वाली सत्ता है।
परमात्मा – सर्वशक्तिवान, निराकार, अजन्मा और सदा पावन सत्ता है।


प्रश्न 2: कुछ लोग कहते हैं “आत्मा ही परमात्मा है” — क्या यह सही है?

उत्तर:यह एक बड़ा भ्रांतिपूर्ण मत है।
अगर आत्मा परमात्मा होती, तो आज पतित, अज्ञानी और कमजोर कैसे हो सकती?
क्या परमात्मा भी पतित बन सकता है? नहीं।


प्रश्न 3: क्या आत्मा परमात्मा बन सकती है?

उत्तर:नहीं। आत्मा और परमात्मा की सत्ता भिन्न है।
जैसे मिट्टी कभी कुम्हार नहीं बन सकती, वैसे ही आत्मा कभी रचयिता परमात्मा नहीं बन सकती।


प्रश्न 4: अगर आत्मा पहले परमात्मा थी, तो अब विकारी कैसे बन गई?

उत्तर:अगर वह परमात्मा होती, तो उसमें पतन हो ही नहीं सकता।
परमात्मा सदा ज्ञान स्वरूप, शक्ति स्वरूप और निर्विकारी है।
आत्मा का पतन इस बात का प्रमाण है कि वह कभी परमात्मा थी ही नहीं।


प्रश्न 5: क्या माया परमात्मा से भी ज़्यादा शक्तिशाली है?

उत्तर:अगर माया परमात्मा को भी विकारी बना दे, तो माया ही भगवान बन जाए!
पर यह असंभव है। परमात्मा तो माया-विजयी है।
माया केवल आत्माओं पर हावी होती है – परमात्मा पर नहीं।


प्रश्न 6: आत्मा और परमात्मा में क्या अंतर है?

 आत्मा (मनुष्य)  परमात्मा (भगवान)
जन्म-मरण में आती है जन्म-मरण से परे है
विकारी बन सकती है सदा निर्विकारी है
शक्ति में कमी आ सकती है सर्वशक्तिवान है
अज्ञान में जा सकती है ज्ञान का सागर है
समय और माया के अधीन है माया और काल से परे है

प्रश्न 7: “Human Being” शब्द का अर्थ क्या है?

उत्तर:Human = Soil (मिट्टी) + Soul (आत्मा)
जब आत्मा मिट्टी के शरीर को धारण करती है, तब कहलाती है – जीव आत्मा।
परमात्मा शरीर में नहीं आता, वह सदा निराकार और परम सत्ता है।


प्रश्न 8: भगवान कौन है? गीता का ज्ञान देने वाला कौन है?

उत्तर:भगवान = परमात्मा शिव
जो स्वयं गीता में कहते हैं —
“मैं अजन्मा हूँ, अविनाशी हूँ।” (गीता अध्याय 4, श्लोक 6)
वे संगम युग में आकर पतित आत्माओं को पावन बनाने का कार्य करते हैं।


प्रश्न 9: आत्मा और परमात्मा का संबंध क्या है?

उत्तर:आत्मा = रचना (Creation)
परमात्मा = रचयिता (Creator)
जैसे निर्देशक और कलाकार में फर्क होता है, वैसे ही आत्मा और परमात्मा में भी अंतर है।
परमात्मा – निर्देशक, आत्माएं – कलाकार।


अंतिम निष्कर्ष

  • आत्मा और परमात्मा कभी एक नहीं थे।

  • आत्मा पतित हो सकती है, परमात्मा नहीं।

  • परमात्मा शिव ही गीता का सच्चा भगवान है।

  • वही संगम युग में आकर हमें आत्मज्ञान से मुक्त करते हैं।


 इस ज्ञान से हमें आत्मा और परमात्मा की सच्ची पहचान मिलती है।
 आत्मा को परमात्मा की याद और राजयोग से ही पुनः पावन बनने का मार्ग मिलता है।

 बोलो – ओम् शांति।

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