(03) Difference in the qualities, characteristics and glory of Bhagwan and Shri Krishna

(03)भगवान और श्रीकृष्ण के गुण,लक्षण एवं महिमा मेंअन्तर

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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यह विषय भक्ति का नहीं, सत्य ज्ञान का है

  • गीता का भगवान कौन है – यह केवल भक्ति का प्रश्न नहीं है।

  • यह सत्य ज्ञान और सच्ची पहचान का विषय है।

  • जब तक हम भगवान और श्रीकृष्ण में अंतर नहीं पहचानते,

    • तब तक भक्ति अधूरी है,

    • और ज्ञान अपूर्ण है।

  • इसलिए यह विषय बहुत ही महत्वपूर्ण है।


 विषय 3: भगवान और श्रीकृष्ण – गुण, लक्षण और महिमा में अंतर

 प्रश्न उठता है:

क्या भगवान और श्रीकृष्ण एक ही हैं?
या दोनों अलग-अलग दिव्य सत्ता हैं?


 श्रीकृष्ण के गुण, लक्षण और महिमा

  • श्रीकृष्ण एक महान दिव्य आत्मा हैं।

  • उन्हें सोलह कला संपूर्ण कहा गया है।

  • श्रीकृष्ण को स्वर्णिम सतयुग का पहला राजकुमार कहा जाता है।

  • वे बेहद सुंदर, आकर्षक और पुण्य आत्मा हैं,

    • परंतु वे सृष्टि की रचना नहीं करते,

    • न ही वे त्रिकालदर्शी हैं


 भगवान के गुण, लक्षण और महिमा

  • भगवान ही सृष्टि चक्र का रचयिता है।

  • वे अजन्मा, अविनाशी, और त्रिकालदर्शी हैं।

  • भगवान को “सत्य ज्ञान दाता” कहा गया है –

    • जो नर्क को स्वर्ग बनाते हैं,

    • जो नर को नारायण बनाते हैं।

  • वे सृष्टि रूपी वृक्ष के बीज रूप हैं,

    • जैसे बीज, पूरे वृक्ष का रचयिता होता है

    • वैसे ही परमात्मा, इस संसार रूपी झाड़ के बीज हैं।


 बीज और पत्ता – सृष्टि चक्र की गहराई

  • श्रीकृष्ण को कहा गया है:
    “सृष्टि रूपी वृक्ष का पहला पत्ता”

    • जो सतयुग के प्रारंभ में जन्म लेते हैं।

  • परंतु बीज (परमात्मा) उस वृक्ष का हिस्सा नहीं बनता।

  • बीज स्वयं वृक्ष में प्रवेश नहीं करता,

    • केवल उसका आधार बनता है।


 श्रीकृष्ण रचना हैं, भगवान रचयिता हैं

  • भगवान कभी जन्म नहीं लेते,

    • उन्हें ही ‘परमपिता परमात्मा’ कहा जाता है।

  • श्रीकृष्ण ने किसी को मुक्ति या जीवनमुक्ति नहीं दी।

  • जबकि भगवान स्वयं आकर

    • ज्ञान देते हैं,

    • मुक्ति और जीवनमुक्ति का वर्ष देते हैं


 मुरली प्रमाण – “मैं हूं इस वृक्ष का बीज”

  • मुरली में स्पष्ट कहा गया:
    “मैं इस विश्व रूपी वृक्ष का बीज हूं। मैं आता हूं बीज रूप स्थिति में, आत्माओं को ज्ञान सुनाने।”

  • जैसे बीज एक विशेष संरचना बनाता है जिससे पूरे झाड़ की उत्पत्ति होती है,
    वैसे ही परमात्मा ज्ञान द्वारा आत्माओं को पुनः दिव्य बनाते हैं।


 श्रीकृष्ण: सतयुग का पहला दिव्य पत्ता

  • श्रीकृष्ण सतयुग के आदिपुरुष हैं।

  • उन्हें पीपल के पत्ते पर दिखाई देना प्रतीक है:

    • वह सृष्टि रूपी वृक्ष का पहला पत्ता हैं।

  • संगमयुग पर श्रीकृष्ण और राधा की आत्माएं प्रकट होती हैं,

    • लेकिन उनके माध्यम से भगवान कार्य नहीं करते –

    • भगवान अलग सत्ता हैं।


 भगवान कौन?

  • भगवान वह है जो:
     अजन्मा है
     त्रिकालदर्शी है
     दिव्य दृष्टि देने वाला है
     सृष्टि चक्र का बीज है
     सत्य ज्ञान दाता है
     नर्क को स्वर्ग बनाता है

  • श्रीकृष्ण एक दिव्य आत्मा हैं, पर वे भगवान नहीं हैं।


समापन

इसलिए गीता का भगवान, श्रीकृष्ण नहीं बल्कि
परमपिता परमात्मा शिव हैं,
जो संगमयुग पर अवतरित होकर
ज्ञान सुनाते हैं और
हमें स्वर्णिम युग की प्राप्ति कराते हैं।

 यह ज्ञान न केवल भक्ति को अर्थपूर्ण बनाता है,
बल्कि आत्मा को सच्चे रूप में जानने की दिव्य दृष्टि भी देता है।

“गीता का भगवान कौन है? | यह विषय भक्ति का नहीं, सत्य ज्ञान का है | श्रीकृष्ण और परमात्मा में अंतर”


मुख्य विषय:

विषय 3: भगवान और श्रीकृष्ण – गुण, लक्षण और महिमा में अंतर


प्रश्न 1: क्या गीता का भगवान श्रीकृष्ण ही हैं?

उत्तर:नहीं, गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं हैं। गीता में जो “भगवान” बोलते हैं, वे स्वयं को अजन्मा, अविनाशी, त्रिकालदर्शी, सत्य ज्ञान दाता कहते हैं। श्रीकृष्ण एक दिव्य आत्मा हैं जो सतयुग के पहले राजकुमार हैं, लेकिन वे रचयिता नहीं हैं।


प्रश्न 2: क्या श्रीकृष्ण और भगवान एक ही हैं?

उत्तर:श्रीकृष्ण और भगवान दोनों अलग-अलग दिव्य सत्ता हैं। श्रीकृष्ण “रचना” हैं – एक महान, सोलह कला संपूर्ण पुण्य आत्मा। जबकि भगवान “रचयिता” हैं – जो सृष्टि चक्र को रचते हैं और आत्माओं को पुनः पवित्र बनाते हैं।


प्रश्न 3: श्रीकृष्ण के मुख्य गुण, लक्षण और महिमा क्या हैं?

उत्तर:

  • सोलह कला संपूर्ण

  • सतयुग के पहले राजकुमार

  • अत्यंत सुंदर, पुण्य आत्मा

  • परंतु न त्रिकालदर्शी, न रचयिता

  • उन्होंने किसी को न मुक्ति दी, न जीवनमुक्ति


प्रश्न 4: भगवान के गुण, लक्षण और महिमा क्या हैं?

उत्तर:

  • अजन्मा और अविनाशी

  • त्रिकालदर्शी (तीनों कालों को जानने वाले)

  • सत्य ज्ञान दाता

  • दिव्य दृष्टि देने वाले

  • मुक्ति व जीवनमुक्ति देने वाले

  • सृष्टि रूपी झाड़ के बीज रूप

  • नर को नारायण बनाने की शक्ति रखने वाले


प्रश्न 5: “बीज” और “पत्ता” का क्या अर्थ है?

उत्तर:भगवान को “बीज” कहा गया है – जैसे एक बीज पूरे वृक्ष का रचयिता होता है पर स्वयं वृक्ष का हिस्सा नहीं बनता।
श्रीकृष्ण को “पहला पत्ता” कहा गया है – जो सतयुग की शुरुआत में प्रकट होते हैं, अर्थात रचना में आते हैं।


प्रश्न 6: श्रीकृष्ण ने मुक्ति या जीवनमुक्ति क्यों नहीं दी?

उत्तर:क्योंकि श्रीकृष्ण स्वयं सतयुग में जन्म लेने वाले हैं। वे भी पुनर्जन्म में आते हैं। केवल वही सत्ता जो जन्म के बंधन से परे है, अजन्मा है, वही मुक्तिदाता हो सकती है। श्रीकृष्ण स्वयं परमात्मा नहीं, परमात्मा की संतान हैं।


प्रश्न 7: मुरली में भगवान ने क्या कहा है?

उत्तर:“मैं इस विश्वरूपी वृक्ष का बीज हूं। मैं आता हूं बीज रूप स्थिति में, आत्माओं को ज्ञान सुनाने।”
यानी परमात्मा स्वयं कहते हैं कि वे सृष्टि रूपी झाड़ के बीज हैं और ज्ञान द्वारा रचना की पुनः रचना करते हैं।


प्रश्न 8: श्रीकृष्ण और राधा की आत्माएं कब आती हैं?

उत्तर:उनकी आत्माएं संगमयुग पर ही प्रकट होती हैं। वे परमात्मा शिव के ज्ञान द्वारा पुनः दिव्य स्वरूप में आती हैं, लेकिन स्वयं भगवान का कार्य नहीं करतीं। भगवान स्वयं एक अलग शक्ति है जो शिवरात्रि के समय अवतरित होती है।


प्रश्न 9: भगवान कौन हैं?

उत्तर:

  • वह जो अजन्मा है

  • जो त्रिकालदर्शी है

  • जो मुक्ति और जीवनमुक्ति देता है

  • जो दिव्य दृष्टि और सत्य ज्ञान देता है

  • जो नर्क को स्वर्ग बनाता है

  • जिसे सभी धर्मों में “परमपिता परमात्मा” कहा गया है – वह हैं शिव


प्रश्न 10: गीता का सच्चा भगवान कौन है?

उत्तर:
परमपिता परमात्मा शिव, जो संगमयुग पर अवतरित होकर ब्रह्मा के तन से ज्ञान सुनाते हैं। वही आत्माओं को पुनः पवित्र बनाकर स्वर्णिम युग की स्थापना करते हैं।

 यह विषय केवल भक्ति भावना से नहीं, बल्कि सत्य ज्ञान और पहचान से जुड़ा है।
 जब तक भगवान और श्रीकृष्ण में अंतर नहीं पहचाना, तब तक ज्ञान अपूर्ण और भक्ति अधूरी।
 गीता का भगवान, श्रीकृष्ण नहीं बल्कि परमात्मा शिव हैं।


 यह ज्ञान क्यों आवश्यक है?

  • ताकि भक्ति को अंधश्रद्धा नहीं, अर्थपूर्ण अनुभव बने

  • ताकि आत्मा को अपना सच्चा स्वरूप और परमात्मा की पहचान मिले

  • ताकि सच्ची मुक्ति और जीवनमुक्ति की प्राप्ति हो सके

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