(04)The mystery of the combined human-sized statue of Shiva

साक्षात्कार मूर्त कैसे बने?-(04)शिव के साथ मनुष्य आकार की संयुक्त प्रतिमा का रहस्य

YouTube player

अध्याय : साक्षात्कार मूरत कैसे बने हमारे से

Murli Date : 05 जनवरी 1984 (अव्यक्त वाणी)


1. परमात्मा का साक्षात्कार – हमारे द्वारा

  • प्रश्न : ऐसा कैसे बने कि हमारे द्वारा सबको परमात्मा का साक्षात्कार हो?

  • बाबा कहते हैं – जब आत्मा बाप को याद करते-करते शक्तिशाली अनुभव करती है, तब सुनने वाले केवल ज्ञान नहीं सुनते, बल्कि साक्षात्कार अनुभव करते हैं।

  • यही है साक्षात्कारी मूरत बनना।


2. मंदिरों में शिव और संयुक्त प्रतिमा का रहस्य

  • सब जानते हैं कि शिव निराकार है।

  • फिर भी मंदिरों में केवल शिवलिंग नहीं, बल्कि शंकर और उनका परिवार दिखाया जाता है।

  • इसका रहस्य यह है कि –

    • शिव अकेले कार्य नहीं करते।

    • वे ब्रह्मा (बाद में शंकर) और परिवार के साथ मिलकर सृष्टि की स्थापना करते हैं।

 इसलिए संयुक्त प्रतिमा को यादगार बनाया गया।


3. शिव और शंकर – कंबाइंड रूप

  • अव्यक्त वाणी (05-01-1984) : “कई मंदिरों में बाप-दादा के कंबाइंड यादगार के रूप में शिव की प्रतिमा के साथ मनुष्य आकार भी दिखाते हैं।”

  • शंकर = अव्यक्त ब्रह्मा का रूप।

  • उदाहरण :

    • बिजली का करंट दिखाई नहीं देता।

    • लेकिन जब बल्ब में प्रवेश करता है तो रोशनी का अनुभव होता है।

    • ऐसे ही शिव निराकार है, लेकिन ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर ज्ञान कराते हैं।

मंदिरों की संयुक्त प्रतिमा उसी का स्मारक है।


4. परिवार क्यों दिखाया जाता है?

  • शिवलिंग कभी अकेला नहीं होता।

  • शंकर का परिवार भी दिखाया जाता है – पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी।

  • क्यों?

    • क्योंकि बाबा कार्य अकेले नहीं करते।

    • बच्चों के सहयोग से ही स्थापना का कार्य होता है।

    • सबसे पहले सहयोगी = ब्रह्मा बाबा।


5. शिक्षा – बाप और बच्चा अलग नहीं

  • बाबा कहते हैं : “बाप, दादा और आप – यह संयुक्त रूप है।”

  • जब यह स्मृति रहती है, तभी आत्मा साक्षात्कारी मूरत बन सकती है।

  • तब लोगों को लगता है कि कोई इंसान नहीं, बल्कि स्वयं परमात्मा मिला रहे हैं।


6. निष्कर्ष – हमें क्या करना है?

  • मंदिर की संयुक्त प्रतिमा हमें याद दिलाती है कि –

    • शिव अकेले नहीं, बच्चों के साथ मिलकर नया युग रचते हैं।

    • हमें भी श्रोता नहीं, बल्कि बाप समान साक्षात्कारी मूरत बनना है।

  • जब हमारा जीवन और व्यवहार ही परमात्मा का साक्षात्कार कराएगा, तभी सच्ची प्रत्यक्षता होगी।


 Murli Notes (05-01-1984)

  • शिव = निराकार, पर कार्य मनुष्य शरीर से।

  • शंकर = अव्यक्त ब्रह्मा का रूप।

  • संयुक्त प्रतिमा = बाप-दादा का संयुक्त यादगार।

  • परिवार = बाप-बच्चों का संगठित कार्य।

  • शिक्षा = बाप, दादा और आप – कंबाइंड स्वरूप।

  • लक्ष्य = स्वयं को साक्षात्कारी मूरत बनाना।

  • 1. परमात्मा का साक्षात्कार – हमारे द्वारा

    प्रश्न: ऐसा कैसे बने कि हमारे द्वारा सबको परमात्मा का साक्षात्कार हो?
    उत्तर: जब आत्मा बाप को याद करते-करते शक्तिशाली अनुभव करती है, तब श्रोता केवल ज्ञान नहीं सुनते बल्कि साक्षात्कार का अनुभव करते हैं। यही स्थिति है – साक्षात्कारी मूरत बनने की।


    2. मंदिरों में शिव और संयुक्त प्रतिमा का रहस्य

    प्रश्न: शिव तो निराकार है, फिर भी मंदिरों में शिवलिंग के साथ शंकर और उनका परिवार क्यों दिखाया जाता है?
    उत्तर: इसका रहस्य यह है कि शिव अकेले कार्य नहीं करते। वे ब्रह्मा (बाद में शंकर) और बच्चों के साथ मिलकर सृष्टि की स्थापना करते हैं। इसलिए संयुक्त प्रतिमा और परिवार को यादगार बनाया गया।


    3. शिव और शंकर – कंबाइंड रूप

    प्रश्न: अव्यक्त वाणी में शिव और शंकर के संयुक्त रूप को कैसे समझाया गया है?
    उत्तर: बाबा कहते हैं – “कई मंदिरों में बाप-दादा के कंबाइंड यादगार के रूप में शिव की प्रतिमा के साथ मनुष्य आकार भी दिखाते हैं।”
    शंकर वास्तव में अव्यक्त ब्रह्मा का रूप है।
    उदाहरण: बिजली का करंट दिखाई नहीं देता, पर जब बल्ब में प्रवेश करता है तो रोशनी होती है। ऐसे ही शिव निराकार हैं, परंतु ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर ज्ञान कराते हैं।


    4. परिवार क्यों दिखाया जाता है?

    प्रश्न: शिवलिंग के साथ शंकर का परिवार (पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी) क्यों दिखाया जाता है?
    उत्तर: क्योंकि बाबा कार्य अकेले नहीं करते। बच्चों के सहयोग से ही स्थापना का कार्य होता है। सबसे पहले सहयोगी हैं – ब्रह्मा बाबा। यही कारण है कि शंकर परिवार को यादगार बनाया गया।


    5. शिक्षा – बाप और बच्चा अलग नहीं

    प्रश्न: साक्षात्कारी मूरत बनने की शिक्षा क्या है?
    उत्तर: बाबा कहते हैं – “बाप, दादा और आप – यह संयुक्त रूप है।”
    जब यह स्मृति रहती है, तभी आत्मा ऐसी स्थिति में आती है कि श्रोता को लगता है – यह कोई इंसान नहीं, बल्कि स्वयं परमात्मा मिला रहे हैं।


    6. निष्कर्ष – हमें क्या करना है?

    प्रश्न: मंदिर की संयुक्त प्रतिमा हमें क्या शिक्षा देती है?
    उत्तर: यह याद दिलाती है कि शिव अकेले नहीं, बच्चों के साथ मिलकर नया युग रचते हैं।
    हमें केवल श्रोता या विद्यार्थी नहीं रहना, बल्कि बाप समान साक्षात्कारी मूरत बनना है।
    जब हमारा जीवन और व्यवहार ही परमात्मा का साक्षात्कार कराएगा, तभी सच्ची प्रत्यक्षता होगी।


    📝 Murli Notes (05-01-1984)

    • शिव = निराकार, पर कार्य मनुष्य शरीर से।

    • शंकर = अव्यक्त ब्रह्मा का रूप।

    • संयुक्त प्रतिमा = बाप-दादा का संयुक्त यादगार।

    • परिवार = बाप-बच्चों का संगठित कार्य।

    • शिक्षा = बाप, दादा और आप – कंबाइंड स्वरूप।

    • लक्ष्य = स्वयं को साक्षात्कारी मूरत बनाना।


 डिस्क्लेमर:

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की मुरली (05-01-1984, अव्यक्त वाणी) के आधार पर बनाई गई है।
इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक जागृति और व्यक्तिगत आत्मिक उन्नति है।
यह किसी धर्म, सम्प्रदाय या व्यक्ति विशेष की आलोचना नहीं करता।

साक्षात्कार मूरत, शिव शंकर रहस्य, संयुक्त प्रतिमा का रहस्य, अव्यक्त मुरली 05 जनवरी 1984, ब्रह्माकुमारी मुरली, शिव बाबा, शंकर का रहस्य, ब्रह्मा बाबा और शिव, अव्यक्त ब्रह्मा, शिव और शंकर, बाप-दादा का संयुक्त रूप, साक्षात्कारी मूरत कैसे बने, परमात्मा का साक्षात्कार, मंदिरों का रहस्य, शिवलिंग और परिवार, शंकर परिवार, राजयोग, ब्रह्माकुमारी ज्ञान, बाप दादा और आप, आध्यात्मिक रहस्य,

Realization image, Shiv Shankar mystery, secret of the combined image, Avyakt Murli 05 January 1984, Brahma Kumari Murli, Shiv Baba, secret of Shankar, Brahma Baba and Shiv, Avyakt Brahma, Shiv and Shankar, combined form of BapDada, how to become a realization image, realization of God, secret of temples, Shivling and family, Shankar family, Rajyoga, Brahma Kumari knowledge, BapDada and you, spiritual secret,