(06)”Can a widow, unmarried or pregnant woman observe the Karwa Chauth fast?

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करवा चौथ आध्यात्मिक रहस्य (06)”क्या विधवा, अविवाहित या गर्भवती महिला करवा चौथ का व्रत रख सकती हैं?

“सच्चा करवा चौथ – आत्मा का परमात्मा से मिलन”


 1. प्रारंभ – समाज के दो दृष्टिकोण

समाज में दो विचार चल रहे हैं –
कई लोग कहते हैं, “करवा चौथ तो सुहागिन स्त्रियों का पर्व है, इसलिए विधवाएँ या अविवाहिताएँ इसे नहीं रख सकतीं।”
कुछ कहते हैं, “गर्भवती महिला को भूखा रहना उचित नहीं।”

पर ईश्वर कहते हैं —

“मैं किसी देह या रिश्ते से नहीं, आत्मा से संबंध रखता हूँ।”

 इसलिए, करवा चौथ केवल शारीरिक पति-पत्नी का नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का पावन पर्व है।


 2. सच्चे सुहाग का अर्थ – आत्मा और परमात्मा का योग

साकार मुरली दिनांक: 25 अक्तूबर 2018

“बच्चे, सच्चा सुहाग वह नहीं जो देहधारी से जुड़ा हो। सच्चा सुहाग वह है जो एक शिव बाप से अटूट योग रखे। सदा सुहागन वही जो परमात्मा को अपना सच्चा पति माने।”

 इसका अर्थ है —
हर आत्मा, चाहे स्त्री हो या पुरुष, विवाहित, अविवाहित या विधवा —
सबका सच्चा सुहाग परमात्मा शिव से है।
इस दृष्टि से देखें, तो हर आत्मा “सदा सुहागन” बन सकती है।

उदाहरण:
जैसे चंद्रमा अपनी पूर्णिमा की रोशनी केवल सूर्य के प्रकाश से पाता है,
वैसे ही आत्मा भी परमात्मा की याद से अपने सुहाग का प्रकाश प्राप्त करती है।


 3. विधवा के लिए – आध्यात्मिक सुहाग अमर है

समाज कहता है कि विधवा का सुहाग समाप्त हो गया।
परंतु मुरली में बाबा सिखाते हैं —

साकार मुरली दिनांक: 21 अक्तूबर 2016

“आत्मा न मरती है, न जन्म लेती है। सुहागन आत्मा कभी विधवा नहीं होती।”

 अर्थात, जो आत्मा परमात्मा शिव से संबंध जोड़ लेती है,
वह सदा के लिए “अमर सुहागन” बन जाती है।

उदाहरण:
जैसे एक दीपक से दूसरे दीपक को जलाया जाए,
तो पहले दीपक की ज्योति कम नहीं होती —
वैसे ही परमात्मा की याद से आत्मा भी ज्योतिर्मय बनती है।
इसलिए विधवा शब्द केवल शरीर के संबंध से है, आत्मा पर नहीं।


 4. अविवाहित के लिए – यह तैयारी का समय है

एक अविवाहित कन्या सोच सकती है — “मेरा विवाह ही नहीं हुआ, मैं व्रत क्यों रखूँ?”
परंतु यह समय आत्मा को परमात्मा से सगाई कराने का है।

अव्यक्त मुरली दिनांक: 18 अक्तूबर 1981

“बच्चे, अभी सगाई का समय है – आत्मा और परमात्मा की सगाई। जब यह सगाई पक्की हो जाती है, तब आत्मा भविष्य में देवी बनती है।”

 अर्थात, अविवाहित आत्मा इस समय परमात्मा से सच्ची सगाई कर सकती है –
अर्थात शुद्ध, पवित्र जीवन का व्रत ले सकती है।
यह व्रत उसे “सदा सौभाग्यवती आत्मा” बना देता है।

उदाहरण:
जैसे विद्यार्थी परीक्षा से पहले तैयारी करता है,
वैसे ही अविवाहित आत्माएँ इस जन्म में आत्मिक तैयारी कर रही हैं –
परमात्मा से मिलन की तैयारी।


 5. गर्भवती के लिए – आत्मा और शरीर दोनों की देखभाल

गर्भवती स्त्रियाँ अक्सर पूछती हैं – “क्या मुझे भूखा रहना चाहिए?”
बाबा सिखाते हैं —

अव्यक्त मुरली दिनांक: 17 अक्तूबर 1983

“बच्चे, शरीर सेवा का यंत्र है। इसे अस्वस्थ नहीं करना चाहिए। याद में रहो, पर शरीर को बल दो।”

 अतः गर्भवती महिला को व्रत के भाव से जुड़ना चाहिए, भूख से नहीं।
अगर स्वास्थ्य अनुमति न दे, तो थोड़ा फल, दूध या जल लेना कोई दोष नहीं,
बल्कि यह समझदारी है।

उदाहरण:
जैसे दीपक में तेल न हो तो वह बुझ जाता है,
वैसे ही शरीर में शक्ति न रहे तो साधना टिक नहीं सकती।
इसलिए शरीर को समर्थ रखना भी ईश्वर सेवा है।


6. सभी के लिए एक ही सच्चा नियम – परमात्मा की याद में रहो

साकार मुरली दिनांक: 20 अक्तूबर 2017

“सच्चा व्रत वही है जो मन से एक बाप को याद करे। व्यर्थ संकल्पों से उपवास रखे, वही सच्चा योगी है।”

 इसलिए, चाहे आप विधवा हों, अविवाहित हों या गर्भवती —
अगर आपका मन परमात्मा की याद में है,
तो आप सच्चे अर्थों में “सदा सुहागन आत्मा” हैं।

उदाहरण:
जैसे रेडियो केवल एक ही फ्रिक्वेंसी पर सही आवाज़ पकड़ता है,
वैसे ही मन जब केवल परमात्मा की याद में स्थिर हो जाता है,
तो आत्मा सच्चे सुहाग का अनुभव करती है।


 7. निष्कर्ष – व्रत शरीर का नहीं, आत्मा का है

“व्रत” का मूल अर्थ है — वृत्ति को एक में स्थिर करना।
अर्थात मन को एक परमात्मा शिव की याद में लगाना।

इसलिए —

  • विधवा: आत्मा का सुहाग कभी नहीं मिटता।

  • अविवाहित: यह आत्मिक सगाई का समय है।

  • गर्भवती: शरीर की देखभाल करते हुए भी याद का योग रख सकती है।

“व्रत भूख का नहीं, भावना का है। सुहाग शरीर का नहीं, आत्मा का है। और शिव से योग रखने वाली हर आत्मा सदा सुहागन है।”


 8. समापन संदेश

तो बहनों, ईश्वर के इस अमर ज्ञान से हमें यह सीखना है कि —
सच्ची सुहागिन वही है जो हर परिस्थिति में परमात्मा शिव को अपना साथी मानकर
आत्मिक मर्यादा में जीवन जीती है।

Disclaimer (वीडियो आरंभ में पढ़ा जाए):

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ के ईश्वरीय ज्ञान और मुरली वचनों पर आधारित एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
इसका उद्देश्य किसी परंपरा, समाज या धर्म की आलोचना नहीं, बल्कि उसके गूढ़ आध्यात्मिक अर्थ को उजागर करना है।
दर्शक कृपया इसे ईश्वरीय ज्ञान के रूप में आत्म चिंतन हेतु ग्रहण करें।

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