विश्व नाटक :-(06)क्या सृष्टि कभी बनती या बिगड़ती नहीं?स्थाई अवस्था सिद्धांत की कहानी
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
भूमिका — क्या सृष्टि बनती या बिगड़ती है?
विश्व नाटक के इस छठे पाठ में हम उन भाई–बहनों से मिलते हैं जो कहते हैं —
“सृष्टि कभी बनी ही नहीं, यह हमेशा से है।”
कुछ इसे कहते हैं —
स्थाई अवस्था सिद्धांत (Steady State Theory)।
आज हम चर्चा करेंगे —
क्या यह सिद्धांत सचमुच स्थाई है?
क्या यह सृष्टि वास्तव में कभी बनती या बिगड़ती नहीं?
और ऐसे विचार रखने वालों को सत्य तक कैसे पहुंचाया जाए?
स्थाई अवस्था सिद्धांत — Steady State Theory
यह सिद्धांत कहता है —
“संसार हमेशा स्थाई अवस्था में रहता है। यह न कभी बना, न कभी मिटेगा।”
अर्थात — ब्रह्मांड सदा से वैसा ही है,
सदैव विस्तारित होता जा रहा है,
और नित्य संतुलित रहता है।
सृष्टि का रहस्य — क्या यह स्थाई है या बनी थी?
मानव बुद्धि को दो प्रश्न हमेशा चुनौती देते रहे —
-
यह सृष्टि कैसे बनी?
-
क्या यह शाश्वत (Eternal) है या कभी बनी थी?
“शाश्वत” का अर्थ है —
यह हमेशा थी, है और रहेगी।
कुछ कहते हैं —
“यह सृष्टि बनी नहीं, हमेशा से है।”
कुछ कहते हैं —
“यह सृष्टि कभी एक बार बनी थी।”
आज हम दोनों दृष्टिकोणों की तुलना करेंगे।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण — बिग बैंग से असहमति
जब वैज्ञानिक बिग बैंग सिद्धांत से संतुष्ट नहीं हुए,
तो उन्होंने एक नया विचार प्रस्तुत किया —
स्थाई अवस्था सिद्धांत (Steady State Theory)।
यह विचार 1948 में हरमन बॉन्डी (Hermann Bondi),
थॉमस गोल्ड (Thomas Gold) और
फ्रेड हॉयल (Fred Hoyle) द्वारा दिया गया था।
इन वैज्ञानिकों ने कहा —
“ब्रह्मांड का कोई आरंभ नहीं हुआ।
यह हमेशा से चलता आ रहा है।
बिग बैंग का विस्फोट सिद्धांत असंभव है।”
कॉस्मोलॉजिकल प्रिंसिपल — ब्रह्मांडीय समानता का नियम
एडवर्ड आर्थर माइलर ने कहा —
“ब्रह्मांड किसी भी दिशा से देखें, हर ओर समान दिखता है।”
इसे कहा गया —
Cosmological Principle (ब्रह्मांडीय सिद्धांत)।
भारत से देखें या अमेरिका से,
आकाश का दृश्य लगभग एक जैसा है।
इससे निष्कर्ष निकला —
“विश्व अनंत है, उसका कोई आरंभ या अंत नहीं।”
विज्ञान के भीतर विरोधाभास
विज्ञान यह भी कहता है कि —
ब्रह्मांड लगातार विस्तारित हो रहा है।
गैलेक्सियाँ एक-दूसरे से दूर जा रही हैं।
यदि ब्रह्मांड बढ़ रहा है,
तो वह स्थाई कैसे रह सकता है?
परिवर्तन = अस्थिरता
इसलिए “स्थाई अवस्था” का विचार
अपने आप में विरोधाभास (Contradiction) है।
वैज्ञानिकों का समाधान — “शून्य से निर्माण”
1948 में इन वैज्ञानिकों ने एक कल्पना दी —
“जब कोई गैलेक्सी विलुप्त होती है,
तब उसकी जगह शून्य से नई गैलेक्सी बन जाती है।”
इसे कहा गया —
Continuous Creation Theory (सत निर्माण सिद्धांत)।
उन्होंने कहा —
“हाइड्रोजन परमाणु शून्य से लगातार बनते रहते हैं।”
यही विज्ञान की सबसे बड़ी दार्शनिक भूल थी।
उदाहरण से समझिए
कल्पना कीजिए —
एक बगीचे में 100 फूल हैं।
हर दिन 10 फूल मुरझा जाते हैं।
अगर बगीचे को वैसा ही बनाए रखना है,
तो हर दिन 10 नए फूल उगने चाहिए।
अब प्रश्न उठता है —
वो नए फूल कौन बोता है?
कौन सी शक्ति उन्हें उगाती है?
वैसे ही —
यदि पुरानी गैलेक्सी मिटती है,
तो नई अपने आप कैसे बन सकती है?
क्या शून्य से कुछ उत्पन्न हो सकता है?
विज्ञान इस प्रश्न पर मौन है।
स्थाई अवस्था सिद्धांत की कमजोरी
यह सिद्धांत ऊर्जा संरक्षण के नियम (Law of Conservation of Energy) का उल्लंघन करता है।
क्योंकि वह कहता है —
“ऊर्जा शून्य से उत्पन्न होती है।”
जबकि वैज्ञानिक नियम कहते हैं —
“ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है, न नष्ट की जा सकती है।”
इस प्रकार यह सिद्धांत विज्ञान के अपने ही सिद्धांतों के विरुद्ध खड़ा है।
भगवद्गीता और ईश्वर की दृष्टि
भगवद्गीता 2.20 कहती है —
“अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो।”
अर्थात् — आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और अविनाशी है।
ब्रह्मा कुमारी ज्ञान के अनुसार —
ईश्वर शिव कहते हैं —
“मैं इस सृष्टि का बीज रूप हूं।
यह सृष्टि शून्य से नहीं बनती,
यह समय चक्र के अनुसार पुनरावृत्त होती है।”
सृष्टि न तो कभी बनी,
न ही कभी मिटेगी।
यह एक अनादि-अविनाशी ड्रामा (Eternal Drama) है।
मुरली प्रमाण
9 जून 1969 (साकार मुरली):
“बच्चे, सृष्टि का बीज बाप है।
यह शाश्वत ड्रामा है।
यह कभी बिगड़ता नहीं, केवल रिपीट होता है।”
23 अक्टूबर 1974 (साकार मुरली):
“मनुष्य कहते हैं सृष्टि बनती और बिगड़ती है,
पर ऐसा नहीं।
यह एक खेल है जिसमें दृश्य बदलते रहते हैं।”
19 मई 1979 (अव्यक्त वाणी):
“स्थाई अवस्था तो आत्मा की है।
सृष्टि भी स्थाई है क्योंकि यह ड्रामा अनादि और अविनाशी है।
बस रूप बदलता है, बीज वही रहता है।”
उदाहरण — जल चक्र से समझें
जैसे पानी का चक्र (Water Cycle) —
बादल बनता है, बरसता है, नदियों में जाता है,
फिर भाप बनकर ऊपर चला जाता है।
परंतु पानी का मूल तत्त्व नहीं बदलता।
वैसे ही —
सृष्टि का रूप बदलता है,
पर उसका बीज (ईश्वर) और नियम (ड्रामा) स्थाई रहते हैं।
निष्कर्ष — सच्ची Steady State क्या है?
| विज्ञान की स्थाई अवस्था | ईश्वर की स्थाई अवस्था |
|---|---|
| “शून्य से निर्माण” | “बीज से पुनरावृत्ति” |
| नियम का उल्लंघन | नियम का पालन |
| सीमित दृष्टिकोण | अनादि दृष्टिकोण |
| भौतिक कल्पना | आध्यात्मिक सच्चाई |
विज्ञान की Steady State शून्य पर आधारित है।
ईश्वर की Steady State आत्मा और समय चक्र पर आधारित है।
सृष्टि न बनती है, न बिगड़ती —
बस रूप बदलती है, दृश्य बदलते हैं, नाटक वही रहता है।
मुख्य संदेश
-
शून्य से कुछ नहीं बनता।
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ईश्वर ही सृष्टि का बीज हैं — वही इसे बार-बार सजाते हैं।
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यह सृष्टि एक अनादि-अविनाशी नाटक है,
जो कल्प-कल्प पर समान रूप से दोहराया जाता है।

