(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
छठ पूजा का असलीअर्थ-:(06)नदी में स्नान क्यों करते हैं छठ में?
अध्याय : छठ पूजा का असली अर्थ
“नदी में स्नान क्यों करते हैं छठ में?”
1. शारीरिक नहीं, आध्यात्मिक स्नान का प्रतीक
छठ पूजा में नदी या तालाब में स्नान करना केवल शरीर की सफाई नहीं, बल्कि आत्मा की पवित्रता का प्रतीक है।
ब्रह्माकुमारी ज्ञान कहता है — शरीर का स्नान बाहरी शुद्धता है, पर आत्मा का स्नान ही सच्ची पवित्रता है।
मुरली: 15 मार्च 2024
“बच्चे, शरीर को जितना भी धो लो, अगर मन मेला है तो कोई भी लाभ नहीं।
सच्चा स्नान है — मन को बाप की याद में पवित्र बनाना।”
उदाहरण:
जैसे किसी वस्त्र पर दाग हो तो केवल बाहर से धोने से नहीं निकलता, जब तक भीतर तक साफ न किया जाए।
वैसे ही आत्मा के विकार तब तक नहीं मिटते जब तक वह परमात्मा के ज्ञान से स्नान न करे।
2. जल का आध्यात्मिक प्रतीक — शुद्धता और पारदर्शिता
जल सदा से शुद्धता का प्रतीक माना गया है।
जितना शुद्ध जल होगा, उतना ही पारदर्शी — उसमें सब स्पष्ट दिखाई देगा।
नदी या तालाब का जल आत्मा की निर्मल स्थिति को दर्शाता है, जहाँ कोई विकार नहीं होता।
मुरली: 22 अप्रैल 2024
“जो मुझे याद करते हैं, उनकी आत्मा का हर विकार धुल जाता है।
यही है योग-स्नान, सबसे श्रेष्ठ स्नान।”
उदाहरण:
जैसे जल में डूबने पर शरीर की धूल अपने आप निकल जाती है,
वैसे ही परमात्मा-स्मृति में डूबने पर आत्मा की कर्म-धूल धुल जाती है।
3. नदी — प्रवाहशीलता का संदेश
छठ पूजा में नदी में स्नान इसलिए किया जाता है क्योंकि नदी निरंतर बहती रहती है —
वह किसी भी बाधा से रुकती नहीं।
कहा जाता है —
“एक नदी में दोबारा कोई स्नान नहीं कर सकता,
क्योंकि वह जल आगे बढ़ गया, अब नया जल आ गया।”
इसका गूढ़ अर्थ है — जीवन को भी निरंतर प्रवाह में रखना चाहिए।
मुरली: 12 जून 2024
“बच्चे, जैसे गंगा निरंतर बहती है, वैसे ही तुम्हारा योग-स्मरण भी निरंतर रहना चाहिए।
यही निरंतरता आत्मा को शक्तिशाली बनाती है।”
उदाहरण:
अगर जल रुक जाए तो सड़ जाता है।
वैसे ही मन यदि विकारों में अटक जाए तो जीवन गंधाने लगता है।
सच्चा योग वही है जो गंगा की तरह अविरल और सतत् बहता रहे।
4. तालाब — स्थिरता और आत्म निरीक्षण का प्रतीक
जहाँ नदी प्रवाह का प्रतीक है, वहीं तालाब स्थिरता का।
छठ पूजा में व्रती जल में खड़े होकर सूर्य को निहारते हैं —
यह बाहरी नहीं, अंतर की स्थिरता का अभ्यास है।
मुरली: 5 मई 2024
“बच्चे, जब मन स्थिर हो जाता है, तभी बाप की शक्ति आत्मा में भरती है।”
उदाहरण:
जैसे शांत तालाब में सूर्य का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखता है,
वैसे ही स्थिर मन में परमात्मा का प्रकाश स्पष्ट झलकता है।
5. जल में खड़े होकर पूजा — शरीर और आत्मा का समर्पण
जब व्रती जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं,
तो यह दृश्य दर्शाता है —
“मैं अपनी सारी आसक्ति, देह-भावना ईश्वर को समर्पित कर रही हूँ।”
मुरली: 18 जुलाई 2024
“बच्चे, देह-अभिमान छोड़ो, मैं तुम्हें आत्मा का सच्चा सौंदर्य दिखाऊँगा।”
उदाहरण:
जल में खड़ा होना — देह का विसर्जन है।
सूर्य की ओर देखना — आत्मा की जागृति है।
6. जल और सूर्य का मिलन — आत्मा और परमात्मा का योग
छठ पूजा का सबसे सुंदर दृश्य है — सूर्य और जल का मिलन।
यह मिलन प्रतीक है — आत्मा (जल) का परमात्मा (सूर्य) से मिलन।
मुरली: 23 दिसंबर 2023
“मैं हूँ ज्ञान-सूर्य, बच्चे हैं मेरी ज्योतियाँ।
जब बच्चे मुझे याद करते हैं, तब उनकी आत्मा का हर मैल धुल जाता है।”
उदाहरण:
जैसे सूर्य की किरणें जल में चमकती हैं,
वैसे ही परमात्मा की किरणें आत्मा में चमकने लगती हैं जब वह योग में आती है।
7. भक्ति से ज्ञान की ओर
समय के साथ जब सच्चा ज्ञान लुप्त हुआ,
तो मनुष्य ने आत्मा के स्नान को भूलकर केवल शरीर के स्नान को ही पूजा मान लिया।
अब पुनः वही आत्मा परमात्मा से ज्ञान और योग का स्नान करना सीखती है।
मुरली: 2 फरवरी 2024
“संगम युग पर ही तुम योग-स्नान करते हो।
तभी आत्मा स्वर्णिम बनती है और स्वर्ण की सृष्टि रचती है।”
उदाहरण:
भक्ति में लोग गंगा जल में डुबकी लगाते हैं,
पर ज्ञान में आत्मा परमात्मा के सागर में डुबकी लगाती है।
यही है छठ पर्व का सच्चा अर्थ।
8. सच्चा स्नान — मन, बुद्धि और संस्कारों की सफाई
शरीर की गंदगी जल से निकल जाती है,
पर मन की गंदगी केवल योग-स्मृति से।
मुरली: 26 अगस्त 2024
“मन, बुद्धि और संस्कार जब पवित्र बन जाते हैं, तब ही आत्मा को कहा जाता है — स्नान की हुई निर्मल आत्मा।”
उदाहरण:
जैसे झील में गंदगी डालने से उसकी सुंदरता खत्म हो जाती है,
वैसे ही नकारात्मक विचार मन की झील को गंदा कर देते हैं।
छठ का स्नान इसलिए है — अपने विचारों की सफाई करना।
9. सच्चा उद्देश्य — आत्मा की आंतरिक सफाई
छठ पूजा का स्नान यह नहीं कि शरीर स्वच्छ है,
बल्कि आत्मा की आंतरिक सफाई हो।
जब आत्मा परमात्मा-स्मृति में स्नान करती है,
तब वह निर्मल, तेजस्वी और दिव्य बन जाती है।
मुरली: 7 सितंबर 2024
“बच्चे, अब समय है अपने मन की गंदगी धोने का।
परमात्मा-स्मृति ही सच्चा स्नान है जो तुम्हें देवता बना देगा।”
अंतिम संदेश
छठ पूजा का नदी-स्नान केवल जल का स्पर्श नहीं,
बल्कि आत्मा का परमात्मा से स्पर्श है।
जब आत्मा ईश्वर-स्मृति में स्नान करती है,
तो वह पापों, दुखों और विकारों से मुक्त होकर
फिर से स्वर्णिम युग की योग्य बन जाती है।
यही है सच्चा छठ का स्नान —
जहाँ आत्मा परमात्मा की किरणों से स्नान कर दिव्य बनती है।
छठ पूजा का असली अर्थ
“नदी में स्नान क्यों करते हैं छठ में?”
(ब्रह्माकुमारी ज्ञान के अनुसार आध्यात्मिक व्याख्या)
प्रश्न 1:
छठ पूजा में नदी या तालाब में स्नान का क्या अर्थ है? क्या यह केवल शरीर की सफाई है?
उत्तर:
नहीं, छठ पूजा का स्नान केवल शरीर की सफाई नहीं बल्कि आत्मा की पवित्रता का प्रतीक है।
ब्रह्माकुमारी ज्ञान कहता है — शरीर का स्नान बाहरी शुद्धता है, पर आत्मा का स्नान ही सच्ची पवित्रता है।
मुरली: 15 मार्च 2024
“बच्चे, शरीर को जितना भी धो लो, अगर मन मेला है तो कोई भी लाभ नहीं।
सच्चा स्नान है — मन को बाप की याद में पवित्र बनाना।”
उदाहरण:
जैसे किसी कपड़े पर दाग हो तो केवल बाहर से धोने से नहीं निकलता, जब तक भीतर तक साफ न किया जाए।
वैसे ही आत्मा के विकार तब तक नहीं मिटते जब तक वह परमात्मा के ज्ञान से स्नान न करे।
प्रश्न 2:
छठ पूजा में जल (नदी या तालाब) को क्यों इतना पवित्र माना गया है?
उत्तर:
जल शुद्धता और पारदर्शिता का प्रतीक है।
जितना शुद्ध जल होगा, उतना ही उसमें सब स्पष्ट दिखेगा — वैसे ही शुद्ध आत्मा में सत्य झलकता है।
मुरली: 22 अप्रैल 2024
“जो मुझे याद करते हैं, उनकी आत्मा का हर विकार धुल जाता है।
यही है योग-स्नान, सबसे श्रेष्ठ स्नान।”
उदाहरण:
जैसे जल में डूबने पर शरीर की धूल धुल जाती है,
वैसे ही परमात्मा-स्मृति में डूबने पर आत्मा की कर्म-धूल धुल जाती है।
प्रश्न 3:
छठ में विशेष रूप से नदी में ही स्नान क्यों किया जाता है?
उत्तर:
क्योंकि नदी प्रवाहशीलता का प्रतीक है — वह निरंतर बहती रहती है, रुकती नहीं।
यह हमें सिखाती है कि जीवन में निरंतर प्रवाह और परिवर्तन आवश्यक है।
मुरली: 12 जून 2024
“बच्चे, जैसे गंगा निरंतर बहती है, वैसे ही तुम्हारा योग-स्मरण भी निरंतर रहना चाहिए।
यही निरंतरता आत्मा को शक्तिशाली बनाती है।”
उदाहरण:
अगर जल रुक जाए तो सड़ जाता है।
वैसे ही मन यदि विकारों में फँस जाए तो जीवन गंधाने लगता है।
सच्चा योग वही है जो गंगा की तरह अविरल हो।
प्रश्न 4:
तालाब में स्नान या जल में खड़े होकर सूर्य को निहारना क्या दर्शाता है?
उत्तर:
तालाब का अर्थ है स्थिरता और आत्म निरीक्षण।
यह बाहरी नहीं, बल्कि अंतर की शांति और मन की स्थिरता का अभ्यास है।
मुरली: 5 मई 2024
“बच्चे, जब मन स्थिर हो जाता है, तभी बाप की शक्ति आत्मा में भरती है।”
उदाहरण:
जैसे शांत तालाब में सूर्य का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखता है,
वैसे ही स्थिर मन में परमात्मा का प्रकाश स्पष्ट झलकता है।
प्रश्न 5:
छठ पूजा में जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
यह दृश्य दर्शाता है कि —
“मैं अपनी देह-भावना, आसक्ति और अहंकार को जल में विसर्जित कर ईश्वर को समर्पित कर रहा हूँ।”
मुरली: 18 जुलाई 2024
“बच्चे, देह-अभिमान छोड़ो, मैं तुम्हें आत्मा का सच्चा सौंदर्य दिखाऊँगा।”
उदाहरण:
जल में खड़ा होना देह का विसर्जन है,
और सूर्य की ओर देखना आत्मा की जागृति का प्रतीक है।
प्रश्न 6:
सूर्य और जल के मिलन का क्या आध्यात्मिक अर्थ है?
उत्तर:
सूर्य और जल का मिलन आत्मा और परमात्मा के योग का प्रतीक है।
सूर्य — परमात्मा है, और जल — आत्मा का प्रतीक।
मुरली: 23 दिसंबर 2023
“मैं हूँ ज्ञान-सूर्य, बच्चे हैं मेरी ज्योतियाँ।
जब बच्चे मुझे याद करते हैं, तब उनकी आत्मा का हर मैल धुल जाता है।”
उदाहरण:
जैसे सूर्य की किरणें जल में चमकती हैं,
वैसे ही परमात्मा की किरणें आत्मा में चमकने लगती हैं जब वह योग में आती है।
प्रश्न 7:
भक्ति में लोग गंगा-स्नान करते हैं, पर ज्ञान में योग-स्नान क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
भक्ति में बाहरी जल से स्नान होता है, पर ज्ञान में आत्मा परमात्मा के सागर में डुबकी लगाती है।
यही है योग-स्नान, जो आत्मा को स्वर्णिम बना देता है।
मुरली: 2 फरवरी 2024
“संगम युग पर ही तुम योग-स्नान करते हो।
तभी आत्मा स्वर्णिम बनती है और स्वर्ण की सृष्टि रचती है।”
उदाहरण:
भक्ति में गंगा जल में डुबकी,
ज्ञान में परमात्मा-स्मृति में डुबकी — यही छठ का सच्चा अर्थ है।
प्रश्न 8:
सच्चा स्नान किसे कहा गया है — शरीर का या मन-बुद्धि का?
उत्तर:
सच्चा स्नान है मन, बुद्धि और संस्कारों की सफाई।
शरीर की गंदगी तो जल से निकलती है, पर मन की गंदगी योग-स्मृति से ही धुलती है।
मुरली: 26 अगस्त 2024
“मन, बुद्धि और संस्कार जब पवित्र बन जाते हैं, तब ही आत्मा को कहा जाता है — स्नान की हुई निर्मल आत्मा।”
उदाहरण:
जैसे झील में गंदगी डालने से उसकी सुंदरता खत्म हो जाती है,
वैसे ही नकारात्मक विचार मन की झील को गंदा कर देते हैं।
इसलिए छठ का स्नान — विचारों की सफाई का प्रतीक है।
प्रश्न 9:
छठ पूजा का सच्चा उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
छठ पूजा का सच्चा उद्देश्य है — आत्मा की आंतरिक सफाई।
जब आत्मा परमात्मा-स्मृति में स्नान करती है,
तो वह निर्मल, तेजस्वी और दिव्य बन जाती है।
मुरली: 7 सितंबर 2024
“बच्चे, अब समय है अपने मन की गंदगी धोने का।
परमात्मा-स्मृति ही सच्चा स्नान है जो तुम्हें देवता बना देगा।”
उदाहरण:
जल का स्पर्श शरीर को शुद्ध करता है,
पर परमात्मा का स्पर्श आत्मा को दिव्य बना देता है।
अंतिम संदेश:
छठ पूजा का नदी-स्नान केवल जल का स्पर्श नहीं,
बल्कि आत्मा का परमात्मा से योग-स्पर्श है।
जब आत्मा ईश्वर-स्मृति में स्नान करती है,
तो वह पापों, दुखों और विकारों से मुक्त होकर
फिर से स्वर्णिम युग की योग्य बन जाती है।
वीडियो डिस्क्लेमर:
यह वीडियो किसी धर्म या परंपरा की आलोचना के लिए नहीं है।
इसका उद्देश्य छठ पूजा के आध्यात्मिक रहस्य को
ब्रह्माकुमारी मुरलियों के प्रकाश में समझाना है।छठ पूजा का असली अर्थ, छठ पूजा का रहस्य, नदी में स्नान क्यों करते हैं, छठ पूजा का आध्यात्मिक अर्थ, ब्रह्माकुमारी छठ ज्ञान, आत्मा और परमात्मा का योग, योग-स्नान का रहस्य, आत्मिक पवित्रता, परमात्मा-स्मृति से शुद्धता, छठ पूजा का दिव्य संदेश,
The real meaning of Chhath Puja, the secret of Chhath Puja, why do we take bath in the river, the spiritual meaning of Chhath Puja, Brahmakumari Chhath knowledge, the union of soul and God, the secret of yoga-bath, spiritual purity, purity through the remembrance of God, the divine message of Chhath Puja,

