(07)Religion, culture and lifestyle change in every era.

सृष्टि चक्र :-(07)हर युग में बदलता है धर्म, संस्कृति और जीवन शैली।

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“हर युग में क्यों बदलता है धर्म, संस्कृति और जीवन शैली? | सृष्टि चक्र का रहस्य | Shiv Baba Murli के आधार पर”


 प्रस्तावना

हम सृष्टि चक्र का आज सातवां विषय समझ रहे हैं —
“हर युग में बदलता है धर्म, संस्कृति और जीवन शैली।”

हर युग की आत्माएँ, उनकी चेतना और कर्मों की गुणवत्ता अलग होती है।
इसीलिए धर्म, संस्कृति और जीवनशैली भी उसी अनुसार परिवर्तित होती जाती है।
आइए इसे शिव बाबा की मुरली के आधार पर प्रश्न-उत्तर रूप में गहराई से समझें।


 प्रश्न 1: क्या सृष्टि चक्र एक स्थिर नाटक है या हर युग में परिवर्तन होता है?

उत्तर:
मुरली में कहा गया है —
“यह सृष्टि नाटक 5000 वर्ष का चक्र है।”
इसमें चार युग आते हैं: सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग।
प्रत्येक युग में आत्मा की अवस्था बदलने से धर्म, संस्कृति और जीवनशैली में परिवर्तन आता है।

उदाहरण:
जैसे एक पेड़ बसंत में फूलों से लद जाता है, और शरद में पत्ते गिर जाते हैं —
फिर भी वही पेड़ रहता है।
वैसे ही पृथ्वी वही रहती है, पर युग के साथ मनुष्य की चेतना और जीवन रूप बदल जाता है।


 प्रश्न 2: सतयुग में धर्म और संस्कृति कैसी थी?

उत्तर:
मुरली 8 अक्टूबर 2025:
“मीठे बच्चे, सतयुग में आत्मा अपने स्वरूप में रहती है। धर्म का आधार है शुद्धता, और संस्कृति है दिव्यता।”

सतयुग की विशेषताएँ:

  • धर्म: आत्म धर्म — शुद्धता, अहिंसा, निर्विकारता।

  • संस्कृति: देव संस्कृति — प्रेम, कृतज्ञता, सहानुभूति।

  • जीवन शैली: सरल, प्राकृतिक और राजयोगमय जीवन।

उदाहरण:
जैसे कमल पानी में रहकर भी अछूता रहता है, वैसे सतयुग में मनुष्य संसार में रहते हुए भी विकारों से अछूता रहता है।


 प्रश्न 3: त्रेता युग में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर:
मुरली 10 सितंबर 2025:
“त्रेता युग में धर्म मर्यादा प्रधान होता है। रामराज्य के समय धर्म और न्याय पर बल रहता है।”

त्रेता युग की विशेषताएँ:

  • धर्म: मर्यादा और नियमों का पालन।

  • संस्कृति: पारिवारिक मूल्य, सेवा भावना, धर्मनिष्ठा।

  • जीवन शैली: अनुशासन, सादगी और संतुलन।

उदाहरण:
जैसे सोने में थोड़ा ताम्र मिल जाता है — थोड़ी कमी आती है, पर चमक बनी रहती है।
त्रेता युग में भी दिव्यता बनी रहती है, पर शुद्धता का प्रतिशत घटता है।


 प्रश्न 4: द्वापर युग में धर्म और संस्कृति कैसे बदल गए?

उत्तर:
मुरली 18 सितंबर 2025:
“द्वापर से भक्ति मार्ग आरंभ होता है। मनुष्य बाह्य पूजा में व्यस्त हो जाते हैं।”

द्वापर युग की विशेषताएँ:

  • धर्म: अनेक मतों का आरंभ — हिंदू, बौद्ध, जैन आदि।

  • संस्कृति: प्रतीक पूजन और रीतियों की जटिलता।

  • जीवन शैली: वैभव तो बढ़ता है, पर शांति घटती है।

उदाहरण:
जैसे दीपक की लौ धीरे-धीरे मंद हो जाती है —
वैसे ही आत्मा की रोशनी द्वापर में कमजोर पड़ जाती है।


 प्रश्न 5: कलयुग में धर्म, संस्कृति और जीवनशैली कैसी बन गई?

उत्तर:
मुरली 24 सितंबर 2025:
“कलयुग में धर्म अधर्म बन जाता है। सच्चाई की जगह दिखावा और स्वार्थ आ जाता है।”

कलयुग की विशेषताएँ:

  • धर्म: कर्मकांड और व्यापार का रूप।

  • संस्कृति: भौतिकता, प्रतिस्पर्धा, स्वार्थ।

  • जीवन शैली: कृत्रिमता, प्रदूषण, तकनीकी निर्भरता, मानसिक अशांति।

उदाहरण:
जैसे फूल की सुगंध तो मिट जाती है, पर उसका रूप रह जाता है —
वैसे कलयुग में धर्म और संस्कृति का सार खोकर केवल बाहरी रूप रह जाता है।


 प्रश्न 6: संगम युग की भूमिका क्या है?

उत्तर:
मुरली 25 अक्टूबर 2025:
“अभी संगम युग में वही पुरानी दिव्य संस्कृति पुनः स्थापित हो रही है।”

संगम युग की विशेषताएँ:

  • धर्म: आत्म धर्म में वापसी — शुद्धता और योग।

  • संस्कृति: विश्व एकता, आध्यात्मिकता, प्रेम और सहयोग।

  • जीवन शैली: योगयुक्त जीवन, आत्म-सुधार और सेवा की भावना।

उदाहरण:
जैसे रात के बाद सूर्योदय होता है, वैसे कलयुग के अंधकार के बाद संगम युग का नया प्रकाश आता है।


 प्रश्न 7: यह परिवर्तन क्यों आवश्यक है?

उत्तर:
क्योंकि प्रकृति और आत्मा दोनों चक्रीय हैं।
आत्मा की चेतना के अनुसार समाज, धर्म और संस्कृति बदलती जाती है।

अव्यक्त मुरली 23 अक्टूबर 2025:
“जब आत्मा परिवर्तन का कारण बनती है, तब समाज और संस्कृति भी बदलती है। यह है — आत्म सुधार से विश्व सुधार की योजना।”

अर्थ:
जब आत्मा अपने स्वरूप में लौटती है, तब उसकी संस्कृति, जीवनशैली और कर्म भी शुद्ध बन जाते हैं।


 निष्कर्ष

हर युग में धर्म, संस्कृति और जीवन शैली में परिवर्तन आत्मा की अवस्था पर निर्भर है।
सतयुग में आत्मा सतोप्रधान है — दिव्यता का राज्य है।
कलयुग में आत्मा तमोप्रधान — विकारों का राज्य है।
संगम युग वह समय है जब परमात्मा हमें फिर से दिव्य संस्कृति में लौटाता है।


 समापन संदेश

आज बाबा हमें स्मरण कराते हैं —
“अपनी आत्म संस्कृति में लौट आओ।”
शुद्धता, प्रेम और योग को जीवन का आधार बनाओ।
यही संगम युग का वास्तविक उद्देश्य है —
“आत्म सुधार से विश्व सुधार।”

प्रश्न 1: क्या सृष्टि चक्र एक स्थिर नाटक है या हर युग में परिवर्तन होता है?

उत्तर:
मुरली में कहा गया है —
“यह सृष्टि नाटक 5000 वर्ष का चक्र है।”
इसमें चार युग आते हैं: सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग।
प्रत्येक युग में आत्मा की अवस्था बदलने से धर्म, संस्कृति और जीवनशैली में परिवर्तन आता है।

उदाहरण:
जैसे एक पेड़ बसंत में फूलों से लद जाता है और शरद में पत्ते गिर जाते हैं —
फिर भी वही पेड़ रहता है।
वैसे ही पृथ्वी वही रहती है, पर युग के साथ मनुष्य की चेतना और जीवन रूप बदल जाता है।


प्रश्न 2: सतयुग में धर्म और संस्कृति कैसी थी?

उत्तर:
मुरली 8 अक्टूबर 2025:
“मीठे बच्चे, सतयुग में आत्मा अपने स्वरूप में रहती है। धर्म का आधार है शुद्धता, और संस्कृति है दिव्यता।”

सतयुग की विशेषताएँ:

  • धर्म: आत्म धर्म — शुद्धता, अहिंसा, निर्विकारता।

  • संस्कृति: देव संस्कृति — प्रेम, कृतज्ञता, सहानुभूति।

  • जीवन शैली: सरल, प्राकृतिक और राजयोगमय।

उदाहरण:
जैसे कमल पानी में रहकर भी अछूता रहता है, वैसे सतयुग में मनुष्य संसार में रहते हुए भी विकारों से अछूता रहता है।


प्रश्न 3: त्रेता युग में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर:
मुरली 10 सितंबर 2025:
“त्रेता युग में धर्म मर्यादा प्रधान होता है। रामराज्य के समय धर्म और न्याय पर बल रहता है।”

त्रेता युग की विशेषताएँ:

  • धर्म: मर्यादा और नियमों का पालन।

  • संस्कृति: पारिवारिक मूल्य, सेवा भावना, धर्मनिष्ठा।

  • जीवन शैली: अनुशासन, सादगी और संतुलन।

उदाहरण:
जैसे सोने में थोड़ा ताम्र मिल जाता है — थोड़ी कमी आती है, पर चमक बनी रहती है।
त्रेता युग में भी दिव्यता बनी रहती है, पर शुद्धता का प्रतिशत घटता है।


प्रश्न 4: द्वापर युग में धर्म और संस्कृति कैसे बदल गए?

उत्तर:
मुरली 18 सितंबर 2025:
“द्वापर से भक्ति मार्ग आरंभ होता है। मनुष्य बाह्य पूजा में व्यस्त हो जाते हैं।”

द्वापर युग की विशेषताएँ:

  • धर्म: अनेक मतों का आरंभ — हिंदू, बौद्ध, जैन आदि।

  • संस्कृति: प्रतीक पूजन और रीतियों की जटिलता।

  • जीवन शैली: वैभव तो बढ़ता है, पर शांति घटती है।

उदाहरण:
जैसे दीपक की लौ धीरे-धीरे मंद हो जाती है —
वैसे ही आत्मा की रोशनी द्वापर में कमजोर पड़ जाती है।


प्रश्न 5: कलयुग में धर्म, संस्कृति और जीवनशैली कैसी बन गई?

उत्तर:
मुरली 24 सितंबर 2025:
“कलयुग में धर्म अधर्म बन जाता है। सच्चाई की जगह दिखावा और स्वार्थ आ जाता है।”

कलयुग की विशेषताएँ:

  • धर्म: कर्मकांड और व्यापार का रूप।

  • संस्कृति: भौतिकता, प्रतिस्पर्धा, स्वार्थ।

  • जीवन शैली: कृत्रिमता, प्रदूषण, तकनीकी निर्भरता, मानसिक अशांति।

उदाहरण:
जैसे फूल की सुगंध मिट जाती है, पर उसका रूप रह जाता है —
वैसे कलयुग में धर्म और संस्कृति का सार खोकर केवल बाहरी रूप रह जाता है।


प्रश्न 6: संगम युग की भूमिका क्या है?

उत्तर:
मुरली 25 अक्टूबर 2025:
“अभी संगम युग में वही पुरानी दिव्य संस्कृति पुनः स्थापित हो रही है।”

संगम युग की विशेषताएँ:

  • धर्म: आत्म धर्म में वापसी — शुद्धता और योग।

  • संस्कृति: विश्व एकता, आध्यात्मिकता, प्रेम और सहयोग।

  • जीवन शैली: योगयुक्त जीवन, आत्म-सुधार और सेवा की भावना।

उदाहरण:
जैसे रात के बाद सूर्योदय होता है, वैसे कलयुग के अंधकार के बाद संगम युग का नया प्रकाश आता है।


प्रश्न 7: यह परिवर्तन क्यों आवश्यक है?

उत्तर:
क्योंकि प्रकृति और आत्मा दोनों चक्रीय हैं।
आत्मा की चेतना के अनुसार समाज, धर्म और संस्कृति बदलती जाती है।

अव्यक्त मुरली 23 अक्टूबर 2025:
“जब आत्मा परिवर्तन का कारण बनती है, तब समाज और संस्कृति भी बदलती है।
यह है — आत्म सुधार से विश्व सुधार की योजना।”

अर्थ:
जब आत्मा अपने स्वरूप में लौटती है, तब उसकी संस्कृति, जीवनशैली और कर्म भी शुद्ध बन जाते हैं।


निष्कर्ष

हर युग में धर्म, संस्कृति और जीवन शैली में परिवर्तन आत्मा की अवस्था पर निर्भर है।
सतयुग में आत्मा सतोप्रधान — दिव्यता का राज्य है।
कलयुग में आत्मा तमोप्रधान — विकारों का राज्य है।
संगम युग वह समय है जब परमात्मा हमें फिर से दिव्य संस्कृति में लौटाता है।

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