What things should you pay attention to in the race to move ahead

  भूमिका: क्यों आगे बढ़ना जरूरी है?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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हम सभी आत्माएं जो बाबा के बच्चे हैं, स्वभाविक रूप से आगे बढ़ना चाहती हैं।
और बाबा का भी बार-बार यही स्पष्ट निर्देश रहता है—“रुको नहीं, निरंतर आगे बढ़ो।”

बाबा समय-समय पर हमें मूल्यों में विकास के लिए मार्गदर्शन देते हैं।
आज हम जानेंगे कि 3 अप्रैल 1997 की अव्यक्त मुरली में बाबा ने आगे बढ़ने के लिए कौन से खास डायरेक्शन दिए।


1. दूसरों की कमजोरियों को देखना — आत्मविकास में सबसे बड़ी रुकावट

बापदादा ने देखा है कि अधिकांश बच्चे महारथियों की विशेषताओं को कम और कमियों को अधिक देखते हैं।

  • हम अपने दीदी, भाई, या टीचर्स की अच्छाइयों को नजरअंदाज कर देते हैं।

  • बजाय उनसे गुण लेने के, हम उनकी कमियों की चर्चा करते हैं।

  • फिर दूसरों को सुनाते हैं — “उसमें यह कमी है”, “उसने ऐसा किया…”

परिणाम क्या होता है?
हम रुक जाते हैं। और सोचते हैं — “जब बड़े बदलेंगे, तब हम भी बदलेंगे।”

बाबा की चेतावनी:

“अगर आप इंतजार करते रहे कि महारथी बदलेंगे तो हम बदलेंगे — तो आप धोखा खा लेंगे।”


2. अच्छाई की दौड़ लगाओ, बुराई की नहीं

बापदादा ने साफ कहा —

“बुराई की रेस नहीं करनी है। अच्छाई की रेस करो।”

दूसरों की कमियों को देखने वाली आंखें — अंधी हो जानी चाहिए
सुनना बंद करो, देखना बंद करो।
अपने मन को अंतर्मुखी बनाओ।

याद रखो:

“किसी और की गलती से तुम्हारा नुकसान नहीं हो सकता, और किसी की अच्छाई से तुम्हारा फायदा नहीं होगा जब तक तुम खुद परिवर्तन नहीं लाओ।”


3. अपने आप को सिद्ध मत करो — ये आत्मप्रशंसा धोखा है

बाबा ने एक और बहुत गहरा नियम बताया:

“जो स्वयं को किसी भी प्रकार से सिद्ध करता है, वह कभी भी प्रसिद्ध नहीं हो सकता।”

  • अपने गुणों के गान में मत डूबो।

  • सोचो मत — “मैं तो अच्छा हूं, लोग मुझे पहचानते नहीं।”

  • यह “मुख मियाँ मिठू” बनना — माया की मीठी निद्रा है।

यह वैसा ही है जैसे खरगोश सोचता है कि वह तेज है, और फिर दौड़ में सो जाता है।

बाबा कहते हैं:

“जो मीठी निद्रा में रहते हैं, वे समय पर सफल नहीं हो सकते।”


4. चेतावनी: अलबेलेपन की नींद से बाहर निकलो

यह आत्मप्रशंसा की स्थिति क्या बनती है?

  • एक छोटे समय के आराम जैसी।

  • जैसे “मैं अच्छा हूं, बाकी नहीं समझते” — यह सोच, आत्मा को गति से रोक देती है।

बाबा की मुरली की एक गहरी बात:

“जिन सोया न खोया, तो खोना ही सोना है।”

अगर आपने आत्म-जागृति नहीं की, दूसरों को देखा-सुना और सो गए — तो आपने खुद को खो दिया।


5. निष्कर्ष: यदि सफल होना है — तो यह दो काम तुरंत छोड़ो

पहला: दूसरों की कमियां देखना और उनका वर्णन करना।
दूसरा: अपने आप को श्रेष्ठ समझना और आत्मप्रशंसा करना।

बजाय इसके:

  • अपने अंदर झांको।

  • सच्चे दिल से बाबा के सामने खरे बनो।

  • अच्छाइयों की दौड़ लगाओ, और आगे बढ़ते रहो।


अंतिम संकल्प

“मैं दूसरों की कमियों को देखने के बजाय उनकी विशेषताओं को देखूंगा।”
“मैं अपने आप को सिद्ध करने की बजाय स्वयं को सुधारने की यात्रा पर रहूंगा।”

ओम शांति।

प्रश्न 1: हम सभी आत्माओं को आगे क्यों बढ़ना चाहिए?
उत्तर:क्योंकि हम सभी बाबा के बच्चे हैं, और आत्मा की स्वाभाविक स्थिति है विकासशील रहना।
बाबा का स्पष्ट निर्देश है— “रुको मत, निरंतर आगे बढ़ो।”
आगे बढ़ना आत्म-कल्याण, आत्म-शुद्धि और आत्मा की श्रेष्ठ स्थिति को प्राप्त करने का मार्ग है।


प्रश्न 2: आत्म-विकास में सबसे बड़ी रुकावट क्या बताई गई है?
उत्तर:बाबा ने 3 अप्रैल 1997 की मुरली में बताया —
दूसरों की कमियों को देखना और उनका वर्णन करना आत्म-विकास में सबसे बड़ी रुकावट है।
यह आदत आत्मा को स्थिर नहीं रहने देती और विकास की गति को रोक देती है।


प्रश्न 3: महारथियों की कमियों को देखने का नुकसान क्या है?
उत्तर:बाबा कहते हैं —
अगर हम सोचते हैं कि “पहले महारथी बदलेंगे, फिर हम बदलेंगे” — तो हम धोखा खा लेंगे।
क्योंकि महारथियों की तपस्या, उनके पुराने पुरूषार्थ उन्हें पास विद ऑनर करवा देता है।
हमें उनका अनुसरण करना है गुणों में, ना कि कमियों में।


प्रश्न 4: अगर दूसरों की बुराइयाँ देखनी बंद करनी है, तो हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर:बाबा का स्पष्ट डायरेक्शन है:
“अच्छाई की रेस करो, बुराई की नहीं।”
कमियों को देखने वाली आंखों को अंधा कर दो,
सुनने से बेहतर है — अंतर्मुखी बनो।


प्रश्न 5: क्या दूसरों की गलतियों से मेरा नुकसान हो सकता है?
 उत्तर:नहीं।बाबा कहते हैं —
“किसी और की गलती से तुम्हारा नुकसान नहीं हो सकता,
और किसी की अच्छाई से तुम्हारा लाभ तभी होगा जब तुम स्वयं बदलो।”


प्रश्न 6: आत्म-प्रशंसा क्यों आत्म-विकास में रुकावट है?
 उत्तर:जो आत्मा अपने आप को सिद्ध करती है — “मैं अच्छा हूं”, “लोग मुझे नहीं समझते” —
वह माया की मीठी निद्रा में होती है।
बाबा कहते हैं —
“जो स्वयं को सिद्ध करता है, वह प्रसिद्ध नहीं हो सकता।”
यह सोच आत्मा को धोखे में डाल देती है।


प्रश्न 7: अलबेलेपन की नींद से क्या तात्पर्य है?
 उत्तर:जब आत्मा अपने ही गुणों में खो जाती है और परिवर्तन की प्रक्रिया को रोक देती है,
तो वह अलबेलेपन की मीठी नींद में सो जाती है।
बाबा ने चेतावनी दी —
“जिन सोया न खोया, तो खोना ही सोना है।”
जो आत्म-जागृति नहीं करता, वह आत्मिक प्राप्तियों को खो देता है।


प्रश्न 8: अगर हमें सफल होना है तो हमें कौन से दो मुख्य अवगुण तुरंत छोड़ने हैं?
उत्तर:

  1. दूसरों की कमियां देखना और उसका वर्णन करना।

  2. अपने आप को श्रेष्ठ मानकर आत्म-प्रशंसा करना।


प्रश्न 9: बाबा ने अंत में क्या संकल्प दिया है आत्म-विकास के लिए?
उत्तर:

  1. “मैं दूसरों की कमियों को देखने के बजाय उनकी विशेषताओं को देखूंगा।”

  2. “मैं स्वयं को सिद्ध करने की बजाय, स्वयं को सुधारने की यात्रा पर रहूंगा।”आत्मविकास, ब्रह्माकुमारीज, अव्यक्त मुरली, बाबा का सन्देश, आध्यात्मिक ज्ञान, आगे बढ़ना क्यों जरूरी है, आत्म-जागृति, आत्मशुद्धि, माया की मीठी निद्रा, बाबा के बच्चे, आत्मप्रशंसा, दोष दर्शन, गुण दर्शन, आध्यात्मिक पुरूषार्थ, ब्रह्मा बाबा, बापदादा, आत्मिक स्थिति, कमियों से बचो, अच्छाई की दौड़, अंतर्मुखता, आत्म निरीक्षण, श्रेष्ठ आत्मा, संगम युग का ज्ञान, पुरूषार्थ की गति, अवगुण त्यागो, बाबा के निर्देश, ओम शांति,

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