Avyakta Murli-03 /06-01-1982

अव्यक्त मुरली-03/सगंमयुगी ब्राह्मणजीवन में पवित्रता का महत्व” रिवाइज: 06-01-1982

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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06-01-1982 “सगंमयुगी ब्राह्मण जीवन में पवित्रता का महत्व”

बापदादा आज विशेष बच्चों के प्युरिटी की रेखा देख रहे हैं। संगमयुग पर विशेष वरदाता बाप से दो वरदान सभी बच्चों को मिलते हैं। एक सहजयोगी भव:। दूसरा पवित्र भव:। इन दोनों वरदानों को हर ब्राह्मण आत्मा पुरुषार्थ प्रमाण जीवन में धारण कर रहे हैं। ऐसे धारणा स्वरुप आत्माओं को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के मस्तक और नयनों द्वारा पवित्रता की झलक दिखाई दे रही है। पवित्रता संगमयुगी ब्राह्मणों के महान जीवन की महानता है। पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ श्रृंगार है। जैसे स्थूल शरीर में विशेष श्वांस चलना आवश्यक है। श्वांस नहीं तो जीवन नहीं। ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वांस है पवित्रता। 21 जन्मों की प्रालब्ध का आधार अर्थात् फाउन्डेशन पवित्रता है। आत्मा अर्थात् बच्चे और बाप से मिलन का आधार पवित्र बुद्धि है। सर्व संगमयुगी प्राप्तियों का आधार पवित्रता है। पवित्रता, पूज्य-पद पाने का आधार है। ऐसे महान वरदान को सहज प्राप्त कर लिया है? वरदान के रुप में अनुभव करते हो वा मेहनत से प्राप्त करते हो? वरदान में मेहनत नहीं होती। लेकिन वरदान को सदा जीवन में प्राप्त करने के लिए सिर्फ एक बात का अटेन्शन चाहिए कि वरदाता और वरदानी दोनों का सम्बन्ध समीप और स्नेह के आधार से निरन्तर चाहिए। वरदाता और वरदानी आत्मायें दोनों सदा कम्बाइण्ड रुप में रहें तो पवित्रता की छत्रछाया स्वत: रहेगी। जहाँ सर्वशक्तिवान बाप है वहाँ अपवित्रता स्वप्न में भी नहीं आ सकती है। सदा बाप और आप युगल रुप में रहो। सिंगल नहीं, युगल। सिंगल हो जाते हो तो पवित्रता का सुहाग चला जाता है। नहीं तो पवित्रता का सुहाग और श्रेष्ठ भाग्य सदा आपके साथ है। तो बाप को साथ रखना अर्थात् अपना सुहाग, भाग्य साथ रखना। तो सभी बाप को सदा साथ रखने में अभ्यासी हो ना।

विशेष डबल विदेशी बच्चों को अकेला जीवन पसन्द नहीं हैं ना? सदा कम्पैनियन चाहिए ना! तो ऐसा कम्पैनियन और कम्पन्नी सारे कल्प में भी नहीं मिलेगी, तो बाप को कम्पैनियन बनाया अर्थात् पवित्रता को सदा के लिए अपनाया। ऐसे युगलमूर्त के लिए पवित्रता अति सहज है। पवित्रता ही नेचुरल जीवन बन जायेगी। पवित्र रहूँ, पवित्र बनूँ, यह क्वेश्चन ही नहीं। ब्राह्मणों की लाइफ ही पवित्रता है। ब्राह्मण जीवन का जीय-दान ही पवित्रता है। आदि-अनादि स्वरुप ही पवित्रता है। जब स्मृति आ गई कि मैं आदि-अनादि पवित्र आत्मा हूँ। स्मृति आना अर्थात् पवित्रता की समर्थी आना। तो स्मृति स्वरुप, समर्थ स्वरुप आत्मायें तो निजी पवित्र संस्कार वाली – निजी संस्कार पवित्र हैं। संगदोष के संस्कार अपवित्रता के हैं। तो निजी संस्कारों को इमर्ज करना सहज है वा संगदोष के संस्कार इमर्ज करना सहज है? ब्राह्मण जीवन अर्थात् सहजयोगी और सदा के लिए पावन। पवित्रता ब्राह्मण जीवन के विशेष जन्म की विशेषता है। पवित्र संकल्प ब्राह्मणों की बुद्धि का भोजन है। पवित्र दृष्टि ब्राह्मणों के आंखों की रोशनी है। पवित्र कर्म ब्राह्मण जीवन का विशेष धन्धा है। पवित्र सम्बन्ध और सम्पर्क ब्राह्मण जीवन की मर्यादा है।

तो सोचो कि ब्राह्मण जीवन की महानता क्या हुई? पवित्रता हुई ना! ऐसी महान चीज़ को अपनाने में मेहनत नहीं करो, हठ से नहीं अपनाओ। मेहनत और हठ निरन्तर नहीं हो सकता। लेकिन यह पवित्रता तो आपके जीवन का वरदान है, इसमें मेहनत और हठ क्यों? अपनी निजी वस्तु है। अपनी चीज को अपनाने में मेहनत क्यों? पराई चीज को अपनाने में मेहनत होती है। पराई चीज़ अपवित्रता है न कि पवित्रता। रावण पराया है, अपना नहीं है। बाप अपना है, रावण पराया है। तो बाप का वरदान पवित्रता है, रावण का श्राप अपवित्रता है। तो रावण पराये की चीज़ को क्यों अपनाते हो? पराई चीज अच्छी लगती है? अपनी चीज़ पर नशा होता है। तो सदा स्व-स्वरुप पवित्र है, स्वधर्म पवित्रता है अर्थात् आत्मा की पहली धारणा पवित्रता है। स्वदेश पवित्र देश है। स्वराज्य पवित्र राज्य है। स्व का यादगार परम पवित्र पूज्य है। कर्मेन्द्रियों का अनादि स्वभाव सुकर्म है, बस यही सदा स्मृति में रखो तो मेहनत और हठयोग से छूट जायेंगे। बापदादा बच्चों को मेहनत करते हुए नहीं देख सकते, इसलिए हो ही सब पवित्र आत्मायें। स्वमान में स्थित हो जाओ। स्वमान क्या है? “मैं परम पवित्र आत्मा हूँ।” सदा अपने इस स्वमान के आसन पर स्थित होकर हर कर्म करो। तो सहज वरदानी हो जायेंगे। यह सहज आसन है। तो सदा पवित्रता की झलक और फलक में रहो। स्वमान के आगे देह-अभिमान आ नहीं सकता। समझा।

डबल विदेशी तो इसमें पास हो ना? हठयोगी तो नहीं हो? मेहनत वाले योगी तो नहीं हो? मुहब्बत में रहो तो मेहनत खत्म। लवलीन आत्मा बनो, सदा एक बाप दूसरा न कोई, यही नेचुरल प्युरिटी है। तो यह गीत गाना नहीं आता है? यही गीत गाना सहज पवित्र आत्मा बनना है। अच्छा।

ऐसे सदा स्व-आसन के अधिकारी आत्मायें, सदा ब्राह्मण जीवन की महानता वा विशेषता को जीवन में धारण करने वाली आदि अनादि पवित्र आत्मायें, स्व स्वरुप, स्वधर्म, सुकर्म में स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को वा परम पवित्र पूज्य आत्माओं को, पवित्रता के वरदान प्राप्त किये हुए महान आत्माओं को, बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

फ्रांस, ब्राजील तथा अन्य कुछ स्थानों से आये हुए विदेशी बच्चों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात :-

1. सभी अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिवान समझते हुए हर कार्य करते हो? सदा सेवा के क्षेत्र में अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान समझकर सेवा करेंगे तो सेवा में सफलता हुई पड़ी है क्योंकि वर्तमान समय की सेवा में सफलता का विशेष साधन है – वृत्ति से वायुमण्डल बनाना। आजकल की आत्माओं को अपनी मेहनत से आगे बढ़ना मुश्किल है इसलिए अपने वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल ऐसा पावरफुल बनाओ जो आत्मायें स्वत: आकर्षित होते आ जाएं। तो सेवा की वृद्धि का फाउन्डेशन यह है। बाकी साथ-साथ जो सेवा के साधन हैं वह चारों ओर करने चाहिए। सिर्फ एक ही एरिया में ज्यादा मेहनत और समय नहीं लगाओ और चारों तरफ सेवा के साधनों द्वारा सेवा को फैलाओ तो सब तरफ निकले हुए चैतन्य फूलों का गुलदस्ता तैयार हो जायेगा।

2. बापदादा खुशनसीब बच्चों को देख अति हर्षित होते हैं। हरेक रुहे गुलाब हैं। रुहे गुलाब ग्रुप अर्थात् रुहानी बाप की याद में लवलीन रहने वाला ग्रुप। सभी के चेहरे पर खुशी की झलक चमक रही है।

बापदादा एक-एक रत्न की वैल्यु को जानते हैं। एक-एक रत्न विश्व में अमूल्य रत्न है इसलिए बापदादा उसी विशेषता को देखते हुए हर रत्न की वैल्यु को देखते हैं। एक-एक रत्न अनेकों की सेवा के निमित्त बनने वाला है। सदा अपने को विजयी रत्न अनुभव करो। सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ हो क्योंकि जब बाप के बन गये तो विजय तो आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। इसलिए यादगार भी विजय माला गाई और पूजी जाती है। सभी विजय माला के मणके हो ना? अभी फाइनल नहीं हुआ है इसलिए चांस है जो भी चाहे सीट ले सकते हैं।

3. सदा अपने को हर गुण, हर शक्ति के अनुभवी मूर्त अनुभव करते हो? क्योंकि संगमयुग पर ही सर्व अनुभवी मूर्त बन सकते हो। जो संगम युग की विशेषता है उसको जरुर अनुभव करना चाहिए ना। तो सभी अपने को ऐसे अनुभवी मूर्त समझते हो? शक्तियाँ और गुण दोनों ही बड़े खजाने हैं। तो कितने खजानों के मालिक बन गये हो? बापदादा तो सर्व खजाने बच्चों को देने के लिए ही आये हैं। जितना चाहो उतना ले सकते हो? सागर है ना। तो सागर अर्थात् अथाह, खुटने वाला नहीं। तो मास्टर सागर बने हो?

सबसे ज्यादा भाग्य विदेशियों का है। जो घर बैठे बाप का परिचय मिल गया है। इतना भाग्यवान अपने को समझते हो ना? बहुत लगन वाली आत्मायें हैं, स्नेही आत्मायें हैं। स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरुप बाप और बच्चों का मेला हो रहा है। हरेक अपने को सूर्यवंशी आत्मा समझते हो? पहले राज्य में आयेंगे वा दूसरे नम्बर के राज्य में आयेंगे? फर्स्ट राज्य में आने का एक ही पुरुषार्थ है, वह कौन सा? सदा एक की याद में रहकर एकरस अवस्था बनाओ तो वन-वन और वन में आ जायेंगे। अच्छा।

संगमयुगी ब्राह्मण जीवन में पवित्रता का महत्व

🕊 दिनांक: 06 जनवरी 1982 | अव्यक्त वाणी | बापदादा मिलन


 प्रस्तावना: ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार — पवित्रता

आज बापदादा ने विशेष रूप से ब्राह्मण बच्चों के पवित्रता की रेखा को देखा। संगमयुग पर वरदाता बाप द्वारा दो सहज वरदान सभी आत्माओं को प्राप्त होते हैं:

  1. सहजयोगी भव

  2. पवित्र भव

ये वरदान ब्राह्मण जीवन की पहचान बनते हैं। ब्राह्मण जीवन का स्वाभाविक श्रृंगार पवित्रता है, ठीक वैसे जैसे श्वास शरीर के लिए अनिवार्य है — वैसे ही पवित्रता आत्मा के जीवन की सांस है।


🪷 पवित्रता: ब्राह्मण जीवन का मूल आधार

  • 21 जन्मों की श्रेष्ठ प्रालब्ध का आधार पवित्रता है।

  • पवित्र बुद्धि ही बाप और आत्मा को जोड़ती है।

  • ब्राह्मण जीवन की सभी प्राप्तियाँ, पूज्य-पद और योगशक्ति — सब पवित्रता पर आधारित हैं।

प्रश्न:
क्या यह वरदान सहज रूप से अनुभव हो रहा है?
या प्रयास और मेहनत करनी पड़ रही है?

उत्तर:
जहाँ सच्चा प्रेम और समीपता है वहाँ पवित्रता सहज हो जाती है।
वरदाता बाप और वरदानी आत्मा यदि युगल बनकर रहें, तो पवित्रता की छाया स्वत: बनी रहती है।


 बाप के साथ युगल रहना — सुहाग और भाग्य का रहस्य

  • अकेले (सिंगल) होने से पवित्रता का सुहाग चला जाता है।

  • बाप को साथ रखना यानी भाग्य को साथ रखना।

  • डबल विदेशी बच्चों को भी यह समझाया गया कि संगति का महत्व क्या है — सबसे बड़ा कम्पैनियन स्वयं परमपिता परमात्मा है।


पवित्रता: ब्राह्मण जीवन की स्वाभाविक जीवनशैली

  • ब्राह्मण जीवन पवित्र ही है।

  • पवित्र बनूँ” — यह कोई प्रश्न ही नहीं है।

  • आत्मा का आदि और अनादि स्वरूप पवित्र है।

  • जब आत्मा को अपनी स्मृति आती है — “मैं पवित्र आत्मा हूँ” — तब उसमें स्मृति की शक्ति स्वयं सक्रिय हो जाती है।


 निजी संस्कार बनाम संगदोष के संस्कार

  • पवित्रता आत्मा के निजी संस्कार हैं।

  • अपवित्रता केवल संगदोष का प्रभाव है।

  • संगदोष से आने वाली आदतें कमजोर होती हैं, लेकिन निजी संस्कार शक्तिशाली होते हैं।

स्वधर्म = पवित्रता
स्वराज्य = पवित्र राज्य
स्वदेश = पावन लोक


 पवित्रता में हठ नहीं, सहजता चाहिए

  • पवित्रता कोई हठयोग का विषय नहीं है।

  • यह हमारी “निजी चीज़” है — और अपनी चीज़ को अपनाने में मेहनत नहीं करनी पड़ती।

अपवित्रता = रावण की वस्तु = पराई चीज़
पवित्रता = बाप का वरदान = अपनी चीज़

इसलिए मेहनत से नहीं, नशे और गौरव से अपनाओ।


🪞 आत्मचिंतन: पवित्रता के रूप

  • पवित्र संकल्प = बुद्धि का भोजन

  • पवित्र दृष्टि = आँखों की रोशनी

  • पवित्र कर्म = ब्राह्मण जीवन का धंधा

  • पवित्र सम्पर्क = ब्राह्मण जीवन की मर्यादा


 स्वमान का आसन: सहज वरदानी स्थिति

स्वमान क्या है?

मैं परम पवित्र आत्मा हूँ।

इस स्वमान में स्थित रहकर हर कर्म करने से:

  • देह-अभिमान पास भी नहीं आता

  • पवित्रता की झलक और फलक स्वतः अनुभव होती है


 गीत नहीं, जीवन बने — “एक बाप, दूसरा न कोई”

  • यह गीत केवल गाने का नहीं, जीने का विषय है।

  • ब्राह्मणों की सहज नेचुरल प्योरिटी यही है कि वे “एक बाप दूसरा न कोई” में लवलीन रहते हैं।


 विदेशी बच्चों से विशेष मुलाकात

1. सेवा में सफलता का रहस्य: वृत्ति और वायुमंडल

  • सेवा की सफलता = वृत्ति से शक्तिशाली वायुमंडल।

  • आज की आत्माओं को परिश्रम नहीं, वायब्रेशन खींचता है।

  • सेवा को विविध साधनों से चारों ओर फैलाओ — एक दिशा में नहीं उलझो।


2. बापदादा की दृष्टि में “रुहे गुलाब”

  • हर आत्मा एक अमूल्य रत्न है।

  • हर रत्न किसी-न-किसी सेवा का निमित्त बनने वाला है।

  • विजयी रत्न बनो — विजय माला में स्थान पक्का करो।


3. संगमयुग पर ही सर्व अनुभवी मूर्त बनना

  • संगमयुग पर ही गुण और शक्तियों के सभी खजाने अनुभव होते हैं।

  • बापदादा सर्व खजानों को देने वाले हैं — जितना चाहो, ले सकते हो।


4. विदेशियों का विशेष भाग्य

  • घर बैठे परमात्मा का परिचय मिलना — अद्भुत भाग्य है।

  • स्नेही आत्माओं का मिलन = बाप-बच्चों का अलौकिक मेला।

  • फर्स्ट राज्य (सूर्यवंशी) में आने का पुरुषार्थ — सदा एक की याद में एकरस अवस्था


 अंतिम प्रेरणा:

यह ड्रामा एक सेकंड भी आगे-पीछे नहीं हो सकता।
स्वमान में स्थित रहो — ‘मैं परम पवित्र आत्मा हूँ।’


 निष्कर्ष:

पवित्रता ही ब्राह्मण जीवन की पहचान है।
यह न कोई कठिन तपस्या है, न कोई बोझ — यह तो आत्मा का स्वभाव, स्वधर्म, और वरदान है।
इसलिए जीवन को सहज योगयुक्त और पवित्र बनाओ — यही बापदादा की सच्ची सेवा है।

“संगमयुगी ब्राह्मण जीवन में पवित्रता का महत्व”
(मुरली: 06 जनवरी 1982)


1. संगमयुग पर परमात्मा से कौन-से दो विशेष वरदान मिलते हैं?

 उत्तर:

  1. सहजयोगी भव

  2. पवित्र भव — ये दोनों वरदान ब्राह्मण जीवन की विशेष पहचान हैं।


2. पवित्रता को ब्राह्मण जीवन में किसके समान बताया गया है?

 उत्तर:
जैसे शरीर के लिए श्वास ज़रूरी है, वैसे ही ब्राह्मण जीवन का श्वास पवित्रता है।


3. पवित्रता क्या है — मेहनत का विषय या वरदान?

 उत्तर:
पवित्रता कोई हठ या मेहनत नहीं, बल्कि वरदान है — जो सहजता से धारण किया जाता है।


4. पवित्रता को जीवन में टिकाने के लिए एक मुख्य बात क्या ज़रूरी है?

 उत्तर:
वरदाता बाप और वरदानी आत्मा का समीप, स्नेहपूर्ण, निरंतर कम्बाइण्ड संबंध


5. अगर हम ‘सिंगल’ हो जाते हैं, तो क्या होता है?

 उत्तर:
जब बाप को भूलकर ‘सिंगल’ हो जाते हैं, तब पवित्रता का सुहाग और श्रेष्ठ भाग्य छिन जाता है।


6. ब्राह्मण जीवन में ‘पवित्रता’ का प्राकृतिक स्वरूप क्या है?

 उत्तर:
ब्राह्मण जीवन का स्वभाव, संस्कार, स्मृति और स्वधर्म — सबका आधार पवित्रता है।
यह जीवन का नेचुरल नेचर है, कोई संघर्ष नहीं।


7. ब्राह्मण की बुद्धि, दृष्टि और कर्म किससे परिभाषित होते हैं?

 उत्तर:

  • पवित्र संकल्प = बुद्धि का भोजन

  • पवित्र दृष्टि = आँखों की रोशनी

  • पवित्र कर्म = ब्राह्मण का विशेष धंधा


8. रावण की चीज़ और बाप का वरदान — इनमें क्या फर्क है?

 उत्तर:

  • रावण देता है अपवित्रता का श्राप (पराई चीज़)

  • बाप देता है पवित्रता का वरदान (अपनी चीज़)
    इसलिए अपनी चीज़ को अपनाने में मेहनत नहीं होनी चाहिए।


9. पवित्रता में सफलता का स्वमान क्या है?

 उत्तर:

मैं परम पवित्र आत्मा हूँ।
इस स्वमान में स्थित रहने से सहज वरदानी बन जाते हैं।


10. कौन-सा गीत जीवन में अपनाना है?

उत्तर:

एक बाप, दूसरा न कोई।
यह गीत गाना नहीं, जीवन बनाना है — यही नेचुरल प्युरिटी है।


11. सेवा में सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण साधन क्या है?

 उत्तर:
वृत्ति और वायुमंडल — जब हमारी वृत्ति सशक्त होती है, तब आत्माएं स्वतः आकर्षित होती हैं।


12. हर ब्राह्मण आत्मा किस मूल्यवान चीज़ की यादगार है?

 उत्तर:
हर आत्मा विजयी माला का मणका है — जिसे बापदादा अमूल्य रत्न मानते हैं।


13. ‘सर्व अनुभवी मूर्त’ कब बन सकते हैं?

 उत्तर:
सिर्फ संगमयुग पर — जब गुण और शक्तियों के अनुभव से आत्मा भर जाती है।


14. फर्स्ट राज्य (सूर्यवंशी) में आने के लिए एकमात्र पुरुषार्थ क्या है?

 उत्तर:

सदा एक की याद में रहो और एकरस अवस्था बनाओ।


15. बापदादा बच्चों को कौन-सी अवस्था में देखना चाहते हैं?

 उत्तर:

सहज वरदानी, लवलीन, मेहनत रहित और परम पवित्र आत्मा के रूप में।

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