(69) The Golden Future of Satyayuga: From Baba’s Mouth

(69)सत्ययुग का स्वर्णिम भविष्यः बाबा के श्रीमुख से

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“सतयुग का स्वर्णिम भविष्य: आदिदेव ब्रह्मा बाबा का दिव्य अभिषेक | Brahma Kumaris Gyaan”


आदिदेव ब्रह्मा बाबा का अनुसरण

ओम् शांति।
आदिदेव ब्रह्मा बाबा को हमें फॉलो करना है।
क्योंकि बाप समान बनने की पहली शर्त है — बाप जैसे चलना।

आज हम ब्रह्मा बाबा के 69वें अभिषेक के शुभ अवसर पर
उस सतयुग का दर्शन करेंगे,
जिसकी स्थापना स्वयं शिव बाबा ने ब्रह्मा के माध्यम से की थी।


1. हर आत्मा की चाह: शांति, प्रेम और सुख

हर आत्मा स्वाभाविक रूप से शांति, प्रेम, आनंद और सुख चाहती है।
यह कोई स्वप्न नहीं, यह हमारा भूला हुआ भविष्य है —
सतयुग

शिव बाबा ने इसे कहा —
“स्वर्णिम भविष्य”,
जिसकी झलक आज हम बाबा के श्रीमुख से देखेंगे।


 2. सतयुग — वह दुनिया जो हमने खुद देखी है

बाबा कहते हैं —
“तुम जानते हो, यह भारत ही स्वर्ग था।”
(साकार मुरली: 1969)

हमने ही 84 जन्म पूरे किए हैं और अब भूल गए हैं कि हम कौन थे।

 उदाहरण:

जैसे कोई बच्चा अपने महल को भूलकर झोपड़ी में रहने लगे,
वैसे ही आत्मा ने दुख को ही स्वभाव मान लिया है।


 3. मुख्य भावना: तुम वही देवी-देवता हो

बाबा की वाणी:
“तुम वही देवी-देवता आत्माएं हो जो सतयुग में राज्य करते थे।
यह कल्पना नहीं, आत्मा की स्मृति है।”


 4. सतयुग में जीवन कैसा होता है?

बाबा के श्रीमुख से वर्णन:
सतयुग में सब कुछ स्वर्णिम होता है —
तन, मन, वातावरण, संबंध — सब दिव्य।

  • कोई विकार नहीं

  • कोई रोग नहीं

  • अधिकार नहीं, केवल स्नेह

 उदाहरण:

जैसे एक सुंदर फिल्म — जिसमें सौंदर्य, प्रेम और सामंजस्य हो,
वैसे ही सतयुग का हर दृश्य होता है।


 5. बाबा का अनुभव: तुम स्वर्ग के मालिक थे

बाबा कहते हैं —
“बच्चे, तुम मेरे साथ स्वर्ग के मालिक थे। अब फिर वही पद पाओ।”


 6. सतयुग की आत्माएं — श्रीमत पर स्वतः चलने वाली

बाबा कहते हैं —
“सतयुग की आत्माएं श्री लक्ष्मी और श्री नारायण जैसी होती हैं।
उन्हें मुरली, अमृतवेला या श्रीमत के लिए कहा नहीं जाता —
वो स्वभाव में श्रेष्ठ होती हैं।”
(अव्यक्त वाणी: 1975)

 उदाहरण:

जैसे सोने की वस्तु अपने आप चमकती है,
वैसे ही सतयुगी आत्माएं स्वतः दिव्य होती हैं।


 7. मुख्य संदेश: तुम चलते-फिरते मंदिर बन जाओगे

बाबा की वाणी:
“तुम बच्चे अपने आप में चलते फिरते मंदिर बन जाओगे।”
तब हर कर्म, हर संबंध, हर संकल्प — देवत्वमय हो जाएगा।


 8. सतयुग — जहां न डर है, न द्वेष

बाबा ने कहा —
“स्वर्ग में शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं।”

वहां कोई डर नहीं, कोई तुलना नहीं, कोई द्वेष नहीं।

 उदाहरण:

जैसे एक बगीचे में हर फूल सुंदर होता है,
पर कोई तुलना नहीं करता।
वैसे ही सतयुग में हर आत्मा संपूर्ण होती है।


 9. स्पिरिचुअल मीनिंग: एकत्व और श्रीमत पर बना संसार

  • द्वैत नहीं होता

  • अहंकार या होड़ नहीं होती

  • हर आत्मा, परमात्मा की श्रीमत पर बनी संपूर्ण रचना होती है


 10. यह स्वर्णिम भविष्य कैसे मिलेगा?

बाबा कहते हैं:
“जो आज मेरे श्रीमुख से ज्ञान सुन रहे हो, वही ज्ञान कल तुम्हारा भविष्य रच देगा।”
(साकार मुरली: 1968)

 उदाहरण:

जैसे कलाकार पहले ब्लूप्रिंट बनाता है और फिर मूर्ति गढ़ता है —
वैसे ही आज बाबा का ज्ञान हमारी आत्मा को फिर से देवता बना रहा है।


 मुख्य भाव:

“मैं कल्प-कल्प आता हूं ताकि तुम्हारा भाग्य फिर से सतयुगी बना सकूं।”
— शिव बाबा


 सतयुग — भविष्य नहीं, वर्तमान में बनने वाला यथार्थ

सतयुग कोई कहानी नहीं —
वह बाबा के श्रीमुख से बोया गया बीज है।

यह तब फल बनेगा —
जब हम श्रीमत को पूरी तरह स्वीकार कर
अपने कर्म, संकल्प और वाणी को दिव्य बनाएंगे।


 अंत में स्मृति:

“सतयुग आएगा नहीं — सतयुग बन रहा है, आपके कर्मों से।”
अब प्रश्न यह है —
क्या मैं देवता बनने के योग्य कर्म कर रहा हूँ?

ओम् शांति।

“सतयुग का स्वर्णिम भविष्य: आदिदेव ब्रह्मा बाबा का दिव्य अभिषेक | Brahma Kumaris Gyaan”


 प्रश्न 1:आदिदेव ब्रह्मा बाबा को फॉलो करना क्यों आवश्यक है?

उत्तर:क्योंकि बाप समान बनने की पहली शर्त है — बाप जैसे चलना। ब्रह्मा बाबा ने शिवबाबा की श्रीमत पर चलकर आदर्श जीवन प्रस्तुत किया, जिसे अपनाकर ही हम सच्चे ब्राह्मण और देवता बन सकते हैं।


 प्रश्न 2:हर आत्मा की स्वाभाविक चाहत क्या होती है?

उत्तर:हर आत्मा स्वाभाविक रूप से शांति, प्रेम, सुख और आनंद चाहती है। यह कोई स्वप्न नहीं, बल्कि आत्मा की मूल स्मृति और सतयुगी भविष्य की झलक है।


 प्रश्न 3:क्या सतयुग केवल एक कल्पना है या हमने उसे अनुभव किया है?

उत्तर:सतयुग वह युग है जिसे हमने पहले अनुभव किया है। बाबा कहते हैं — “तुम जानते हो, यह भारत ही स्वर्ग था।” हमने 84 जन्मों की यात्रा की है और अब उस स्वर्णिम अनुभव को भूल गए हैं।


प्रश्न 4:दुख को आत्मा ने स्वभाव क्यों मान लिया है?

उत्तर:जैसे बच्चा अपने महल को भूलकर झोपड़ी में रहने लगे, वैसे ही आत्मा ने बार-बार जन्म लेते हुए दुख को ही अपनी पहचान मान लिया है। परंतु वास्तविक पहचान है — शांति और सुख।


 प्रश्न 5:बाबा की दृष्टि में हम कौन हैं?

उत्तर:बाबा कहते हैं — “तुम वही देवी-देवता आत्माएं हो जो सतयुग में राज्य करते थे। यह कोई कल्पना नहीं, यह आत्मा की स्मृति है।”


 प्रश्न 6:सतयुग में जीवन कैसा होता है?

उत्तर:सतयुग में तन, मन, वातावरण, और संबंध — सब स्वर्णिम और दिव्य होते हैं। वहां कोई रोग, विकार या तनाव नहीं होता। केवल प्रेम, सामंजस्य और सौंदर्य होता है।


 प्रश्न 7:बाबा का अनुभव स्वर्ग से जुड़ा कैसे है?

उत्तर:बाबा कहते हैं — “बच्चे, तुम मेरे साथ स्वर्ग के मालिक थे। अब फिर वही पद पाओ।” यह अनुभव बाबा के तप और सत्य ज्ञान से जागृत हुआ।


 प्रश्न 8:सतयुग की आत्माओं की विशेषता क्या होती है?

उत्तर:वे आत्माएं श्रीमत पर स्वतः चलती हैं। उन्हें मुरली, अमृतवेला या याद दिलाने की आवश्यकता नहीं होती। उनका हर कर्म स्वभाव से श्रेष्ठ होता है। (अव्यक्त वाणी: 1975)


 प्रश्न 9:चलते-फिरते मंदिर बनने का अर्थ क्या है?

उत्तर:जब आत्मा श्रीमत पर चलकर इतनी पवित्र, स्नेही और दिव्य बन जाती है कि हर कर्म, संकल्प और संबंध में ईश्वरीय गुण प्रकट हो, तब वह चलते-फिरते मंदिर बन जाती है।


 प्रश्न 10:सतयुग में डर और द्वेष क्यों नहीं होता?

उत्तर:क्योंकि वहां आत्मा संपूर्ण, स्नेही और अहंकार रहित होती है। वहां शेर और बकरी भी एक घाट पर पानी पीते हैं — यह दर्शाता है कि वहां संघर्ष और तुलना नहीं होती।


 प्रश्न 11:सतयुग का स्पिरिचुअल मीनिंग क्या है?

उत्तर:सतयुग का तात्पर्य है — एकत्व का युग। वहां द्वैत, अहंकार, होड़, ईर्ष्या नहीं होती। हर आत्मा परमात्मा की श्रीमत पर बनी संपूर्ण रचना होती है।


 प्रश्न 12:स्वर्णिम भविष्य कैसे मिलेगा?

उत्तर:जो आत्माएं आज शिवबाबा से ज्ञान ले रही हैं और श्रीमत पर चल रही हैं — वही आत्माएं कल का स्वर्णिम भविष्य बनाएंगी। (साकार मुरली: 1968)


 प्रश्न 13:ज्ञान आत्मा को देवता कैसे बनाता है?

उत्तर:जैसे कलाकार पहले ब्लूप्रिंट बनाता है और फिर मूर्ति गढ़ता है, वैसे ही बाबा का ज्ञान आत्मा के संस्कारों को देवता-गुणों से सज्जित करता है।


 प्रश्न 14:शिव बाबा का कल्प-कल्प आने का उद्देश्य क्या है?

उत्तर:बाबा कहते हैं — “मैं कल्प-कल्प आता हूं ताकि तुम्हारा भाग्य फिर से सतयुगी बना सकूं।” यही है कल्याणकारी अवतरण।


 प्रश्न 15:क्या सतयुग भविष्य की कोई कहानी है?

उत्तर:नहीं। बाबा ने स्पष्ट किया — “सतयुग कोई कल्पना नहीं, वह आज बोया गया बीज है।” यह बीज तभी फल बनेगा जब हम कर्म, संकल्प और वाणी को दिव्य बनाएंगे।


 अंतिम प्रश्न:क्या मैं देवता बनने के योग्य कर्म कर रहा हूँ?

उत्तर:यह आत्मनिरीक्षण का समय है। बाबा कह रहे हैं — “सतयुग आएगा नहीं — सतयुग बन रहा है, आपके कर्मों से।” इसलिए हमें हर कर्म श्रीमत पर चलकर दिव्य बनाना है।

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