(07)How does one gain the power of endurance through Sahaja Raja Yoga?

(07)सहज राजयोग से सहन करने की शत्कि कैसे प्राप्त हाेती है?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“सहज राजयोग से सहनशक्ति: आत्मा को शेर बना देने वाली दिव्य शक्ति | Brahma Kumaris Gyaan”


 ओम् शांति।

आज का विषय है —
“सहज राजयोग से सहनशक्ति कैसे प्राप्त होती है?”

बापदादा कहते हैं:
“सहन करने की शक्ति आत्मा को शेर समान बना देती है।”
इस दिव्य शक्ति को हम सहज राजयोग से कैसे प्राप्त कर सकते हैं — आज हम इसी पर विस्तार से चिंतन करेंगे।


 सहनशक्ति: आत्मा की रॉयल पहचान

  • शेर की सवारी किसकी दिखाई जाती है? देवियों की।

  • क्यों? क्योंकि उन्होंने राजयोग सीखा और विपरीत परिस्थितियों पर सवारी कर ली।

  • राजयोग = परिस्थितियों पर अधिकार।

उदाहरण:
बच्चा पेड़ को पत्थर मारे और पेड़ उसे फल दे — यही सहन शक्ति का चमत्कार है।


 सहनशक्ति क्यों जरूरी है?

  • आज की दुनिया में हर आत्मा प्रतिक्रिया देती है।

  • छोटी-छोटी बातों पर टूट जाते हैं, क्रोध आ जाता है, शांति खो देते हैं।

उदाहरण:
स्प्रिंग को दबाते जाओ, एक सीमा पर उछलता है।
रबड़ को खींचते जाओ, अंत में टूट जाता है।

यह बताता है:
“सहनशक्ति के बिना हम अंदर से टूट सकते हैं।”


 सहन और प्रतिक्रिया में क्या अंतर है?

स्थिति प्रतिक्रिया सहन करना
कोई आपको अपमानित करे आप भी अपमान करें मौन रहकर क्षमा करें
कोई आलोचना करे तर्क-वितर्क करें अंदर ही अंदर शांति बनाए रखें
बीमारी हो जाए शिकायत करें “हिसाब-किताब खत्म हो रहा है” सोचकर शांत रहें

 सहन करना = आंतरिक ताकत
प्रतिक्रिया देना = आत्मा की कमजोरी


 सहन करना = अपमान को पचाना

  • कोई कितना भी अपमान करे, हमें उसे महसूस न करके ड्रामा समझकर पचा लेना है।

  • आलोचना सुनकर मुस्कुराना।

  • “सहन करना कमजोरी नहीं, महान आत्मा की निशानी है।”
    (अव्यक्त वाणी – 10 जनवरी 1970)


राजयोग कैसे देता है सहनशक्ति?

राजयोग की तीन मुख्य धारणाएं:

(1) आत्मा की स्मृति:

“मैं आत्मा हूँ, देह नहीं।”
दर्द शरीर को है, आत्मा को नहीं।

उदाहरण:
सैनिक गोली निकलवाता है — क्योंकि मानसिक कमांड दे चुका है: “मुझे सहना है।”

(2) परमात्मा की याद:

“शिव बाबा मेरे साथ हैं, मैं शक्ति ले रहा हूँ।”
शक्ति भावनाओं से नहीं, समझ से मिलती है।

(3) ड्रामा की समझ:

“जो कुछ हो रहा है, वह पूर्वकर्मों का हिसाब है।”
भगवान भी उसे नहीं रोक सकते — फिर प्रतिक्रिया क्यों?


 ब्रह्मा बाबा का व्यवहार — आदर्श उदाहरण

  • अपमान झेलते रहे, परंतु कभी प्रतिक्रिया नहीं दी।

  • “यह भी ड्रामा है। बाप है ना साथ।”
    (मुरली: 18 जनवरी 1981)

  • सहन करने वाला ही सच्चा विजयी बनता है।


 सहनशक्ति किन रूपों में कार्य करती है?

  • अपमान को पचाना

  • विरोध के समय मर्यादा में रहना

  • शारीरिक पीड़ा में शांति बनाए रखना

  • नजदीकी संबंधों से चोट मिलना, फिर भी द्वेष न रखना

  • आलोचना सुनकर मुस्कुराना

 यह सब राजयोग से ही संभव है।


 सहन करना = छत्रछाया पाना

अव्यक्त वाणी — 12 फरवरी 1977:
“सहनशील बच्चों पर बाप की विशेष छत्रछाया होती है।”

  • बाबा को ‘सहारा’ की ज़रूरत नहीं, परंतु सहनशील आत्माएं ही सच्चा सहयोगी बनती हैं।

  • बाबा की श्रीमत ही छत्रछाया है।


 आज के युग में सहनशक्ति क्यों आवश्यक है?

  • आज हर आत्मा अशांत है।

  • प्रतिक्रिया देने की आदत बन गई है।

  • पहले से जवाब तैयार रखे हैं — बस कोई कहे, और हम पलटकर बोलें।

सहनशक्ति ही आत्मा को:
 स्थिर बनाती है
 शांत बनाती है
 दिव्यता प्रदान करती है


 सहनशक्ति = विजयशक्ति

  • सहनशक्ति का स्रोत — परमात्मा की याद

  • सहज राजयोग = आत्मा की स्थाई बैटरी चार्ज करना

  • सहन करने वाला — सर्वप्रिय बनता है

  • विजय रत्न वही आत्मा बनती है जो प्रतिक्रिया नहीं करती


 अंतिम स्मृति:

“Reaction weakens the soul.
Sahan strengthens the soul.”

“सहन करने वाला कभी हारता नहीं।”
(18 जनवरी 1981 की मुरली)


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“सहज राजयोग से सहनशक्ति: आत्मा को शेर बना देने वाली दिव्य शक्ति | Brahma Kumaris Gyaan”

“सहज राजयोग से सहनशक्ति: आत्मा को शेर बना देने वाली दिव्य शक्ति | Brahma Kumaris Gyaan”
ओम् शांति।


प्रश्न 1: सहज राजयोग से सहनशक्ति कैसे आत्मा को शेर बना देती है?

 उत्तर:बापदादा कहते हैं:
“सहन करने की शक्ति आत्मा को शेर समान बना देती है।”
जैसे देवियों को शेर की सवारी करते दिखाया गया है, वैसे ही सहज राजयोग आत्मा को विपरीत परिस्थितियों पर सवारी करने की शक्ति देता है। यह आंतरिक शासन (राज) और स्थितिपर अधिकार का प्रतीक है।


प्रश्न 2: सहनशक्ति की इतनी आवश्यकता आज क्यों है?

 उत्तर:आज की दुनिया में हर आत्मा अशांत है।
लोग छोटी-छोटी बातों पर प्रतिक्रिया दे देते हैं, टूट जाते हैं, क्रोध करते हैं।
सहनशक्ति न होने से आत्मा कमजोर हो जाती है।
इसलिए राजयोग से यह शक्ति आज सबसे ज़रूरी बन गई है।


प्रश्न 3: सहन करना और प्रतिक्रिया देने में क्या अंतर है?

 उत्तर:

स्थिति प्रतिक्रिया सहन करना
अपमान अपमान का उत्तर देना मौन रहकर क्षमा करना
आलोचना तर्क-वितर्क शांत रहना
बीमारी शिकायत करना हिसाब समझकर स्वीकार करना

 प्रतिक्रिया आत्मा को कमजोर करती है, जबकि सहनशक्ति आत्मा को मजबूत करती है।


प्रश्न 4: क्या सहन करना कमजोरी है?

 उत्तर:बिल्कुल नहीं।
“सहन करना कमजोरी नहीं, महान आत्मा की पहचान है।”
(अव्यक्त वाणी – 10 जनवरी 1970)
सहन करने वाला ही असली विजयी बनता है।


प्रश्न 5: सहज राजयोग से सहनशक्ति कैसे प्राप्त होती है?

 उत्तर:सहज राजयोग हमें तीन मुख्य स्मृतियाँ देता है:

  1. मैं आत्मा हूँ – आत्मा को कोई चोट नहीं लगती।

  2. बाबा मेरे साथ हैं – हम शक्ति लेते हैं।

  3. यह ड्रामा है – सब कुछ पूर्वकर्मों का फल है, इसलिए शिकायत नहीं।


प्रश्न 6: ब्रह्मा बाबा ने सहनशक्ति का कौन-सा उदाहरण दिया?

 उत्तर:ब्रह्मा बाबा ने अनेक अपमान झेले, लेकिन कभी प्रतिक्रिया नहीं दी।
वो हमेशा कहते थे:
“यह भी ड्रामा है। बाप है ना साथ।”
(मुरली: 18 जनवरी 1981)
उनका जीवन सहनशक्ति और स्थितिप्रज्ञता का श्रेष्ठ उदाहरण है।


प्रश्न 7: सहनशक्ति आत्मा में किन रूपों में कार्य करती है?

 उत्तर:

  • अपमान को पचाना

  • विरोध में भी मर्यादा रखना

  • शारीरिक कष्ट में संतुलन बनाए रखना

  • नजदीकी आत्माओं से चोट मिलने पर भी द्वेष न रखना

  • आलोचना सुनकर मुस्कुराना


प्रश्न 8: सहनशील आत्मा को बाबा क्या कहते हैं?

 उत्तर:अव्यक्त वाणी (12 फरवरी 1977) में बाबा ने कहा:
“सहनशील बच्चों पर बाप की विशेष छत्रछाया होती है।”
सहनशील आत्मा ही सच्ची सहयोगी और विजयशाली बनती है।


प्रश्न 9: आज के युग में सहनशक्ति क्यों और अधिक आवश्यक है?

 उत्तर:
क्योंकि:

  • हर आत्मा में प्रतिक्रिया देने की आदत है

  • कोई कुछ कह दे, तो उत्तर पहले से तैयार होता है

  • सहनशक्ति ही आत्मा को स्थिर, शांत और दिव्य बनाती है


प्रश्न 10: सहनशक्ति का मूल स्रोत क्या है?

 उत्तर:परमात्मा की याद।
सहज राजयोग आत्मा की चार्जिंग बैटरी है।
जितना हम बाबा को याद करते हैं, उतनी ही सहनशक्ति, समर्पण और सफलता की शक्ति बढ़ती है।


अंतिम स्मृति व प्रेरणा:

“Reaction weakens the soul. Sahan strengthens the soul.”
“सहन करने वाला कभी हारता नहीं।”
(18 जनवरी 1981 की मुरली)

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