भूत ,प्रेत:-(12)असुर कौन होते हैं? राक्षस और असुर में फर्क क्या है? क्या असुर आज भी सक्रिय हैं?
भूत, प्रेत, चुड़ैल, पिशाच, निशाचर
इन सब के बारे में हम अध्ययन कर रहे हैं।
आज हम इसका 12वां विषय अध्ययन कर रहे हैं।
असुर कौन होते हैं?
राक्षस और असुर में फर्क क्या है?
क्या असुर आज भी सक्रिय हैं?
असुर का सच
क्या यह पौराणिक कथा है या आत्मिक ऊर्जा?
धर्म ग्रंथों में असुरों को देवी शक्तियों के विरोधी बताया गया है।
देवताओं के विरोधी समझो, देवी शक्तियों के विरोधी समझो – उनको असुर कहा गया है।
लेकिन असुर केवल दानव या भौतिक शरीर वाले नहीं।
ध्यान से समझना है।
असल मायने में असुर एक चेतना, एक कॉन्शियसनेस है।
जब चेतना में आसुरी गुण है, तो आसुरी विचार, आसुरी चित या वृत्ति बनती है।
क्योंकि आसुरी संस्कार होंगे, तो चित्त भी आसुरी बनेगा, वृत्ति भी आसुरी बनेगी।
अब वह चाहे शरीर में हो, चाहे शरीर से अलग हो, चाहे स्त्री शरीर में हो, चाहे पुरुष शरीर में हो – यह सारा कारण आत्मा में है।
आत्मा की चेतना में संस्कार।
संस्कार के बाद वृत्ति।
चित्त के बाद वृत्ति।
अब आत्मा चाहे वह शरीर लेकर किसी को दुख दे रही हो – असुर के रूप में किसी को दुख दे रही हो – उसके करेक्टर का वर्णन किया गया है कि उसमें क्रोध है, काम है, लोभ है।
जितने भी आसुरी वृत्ति वाले व्यक्ति दिखाई देते हैं।
ये तो हो गए असुर जो सामने दिखाई दे रहे।
बाकी वह इंसान सबके साथ असुर नहीं है।
किसी के साथ बड़ा रिस्पेक्टफुल भी है, बड़ा अच्छा भी है, और किसी के साथ वह आसुरी संस्कार वाला भी है।
तो असुर किसको कहा जाएगा?
उस आत्मा के उस पोशन को, उस भाग को, जहां आसुरी संस्कार मर्ज इमर्ज होते हैं।
क्योंकि सारा दिन तो वह आसुरी नहीं रहता।
किसी के लिए वह आसुरी है, तो किसी के लिए वह प्यारा भी है।
उसको सहयोग भी देता है, स्नेह भी देता है, सम्मान भी देता है। सब कुछ करता है।
एक विचार शक्ति जो आत्मा को नीचे गिराती है।
जो आत्मा को नीचे गिराती है।
असुर वे नहीं जो दिखते हैं, पर वे जो पांच विकारों का विस्तार करते हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार।
ये पांच विकार ही असुर कहे जाते हैं।
असुर और राक्षस में क्या अंतर है?
असुर का आधार असुर और राक्षस।
असुर क्या हो गया? जो देवता नहीं है, जो दिव्य गुणों वाला नहीं है, वह असुर।
राक्षस क्या होता है?
जो हिंसा, रक्तपात और डर से राज करना चाहे।
असुर जो दिव्य नहीं, असुर एक आसुरी गुण – अवगुण।
जो गुण नहीं है उसको हम असुर गुण कहते हैं।
दिव्य गुण है तो सुर है।
गुण नहीं है तो आसुरी गुण।
आत्मा जिन गुणों को धारण करके प्रैक्टिकल करती है, वह कहलाता है राक्षस।
राक्षस वही है जो हिंसा करता है, प्रैक्टिकल प्रयोग करता है उन आसुरी गुणों को।
उदाहरण: रावण विद्वान पर अहंकारी, महिषासुर खूनी राक्षस, नरभक्षी कथाएं।
बीके दृष्टि से विकारी प्रवृत्ति वाली आत्मा असुर कहलाती है।
जब वो अभिव्यक्त हो जाता है हिंसा से भरी आदतों वाली आत्मा, तब राक्षस कहलाता है।
असुर का इतिहास और उनका उद्देश्य – वेदों में असुर पहले देवताओं जैसे माने जाते थे।
बाद में उनका अर्थ बदलकर अहंकार और अधर्म से जुड़े जीव हो गए।
पहले हमारे अंदर देवी गुण थे।
धीरे-धीरे हमारे अंदर आसुरी गुण बन गए।
पहले हम देवता थे, फिर असुर बन गए।
देवता के गुणों की जगह अवगुण आए, तो हम राक्षस बन गए।
पुराणों में असुर स्वार्थी होते हैं, सत्ता, इंद्रियों का भोग और ईश्वर से विद्रोह।
ज्ञान से दूर, देह अभिमान में आने पर असुर संस्कार पैदा होते हैं।
असुर आत्मा को कैसे प्रभावित करते हैं?
असुर बाहरी दुनिया में नहीं, मन के अंदर जन्म लेते हैं।
चित्त तक अंदर हैं, वृत्ति में अभिव्यक्त होने पर राक्षस कहलाते हैं।
असुर चेतना – आसुरी चेतना, चित्त चेतना का छोटा रूप।
जब अभिव्यक्त हो जाता है, तो वह आशुरी वृत्ति या राक्षस कहलाती है।
असुर आत्माएं वातावरण को भारी, भययुक्त और अस्थिर बनाती हैं।
जहां भय होगा, वहां नकारात्मक चेतना रहेगी।
मनुष्य का विवेक कमजोर हो, निर्णय गलत हो, जीवन दुखमय हो जाता है।
असुर हमला नहीं करते।
वे विचारों में प्रवेश करते हैं।
अगर मन स्थिर हो, कोई आसुरी शक्ति प्रभावित नहीं कर सकती।
मन शक्तिशाली, स्थिर और अचल हो तो असुर का प्रभाव नहीं पड़ता।
असुर हमेशा बुरे नहीं होते।
रावण शिव भक्त था पर अहंकार में गिरा।
हिरणाकश्यप महान तपस्वी पर ईश्वर को ना मानने वाला।
कई असुरों ने वैज्ञानिक ज्ञान, युद्ध कला, ज्योतिष विकसित किए।
असुर होने का मतलब केवल बुरा होना नहीं, बल्कि ज्ञान के बिना शक्ति का उपयोग करना।
ज्ञान के बिना शक्ति का प्रयोग करने वाला नेगेटिव हो जाता है।
असुरों से आत्मिक सुरक्षा कैसे करें?
उपाय – राजयोग, मुरली सुनना, सात्विक भोजन और संगति।
मन शांत और स्वच्छ रहे।
गुस्सा, लालच, बदला – ये तीन चीजें आसुरी शक्तियों के प्रवेश द्वार हैं।
असली युद्ध असुरों से नहीं, अपने ही विकारों से है।
निष्कर्ष – असुर बाहर नहीं, हमारे अंदर हैं।
असुर कोई भूत या डरावनी आकृति नहीं, बल्कि विचार हैं जो आत्मा को ईश्वर से दूर कर देते हैं।
जब मन ईश्वर से जुड़ा है – देवी गुण।
जब मन विकारों से जुड़ा है – आसुरी गुण।
इसलिए बचाव तलवार से नहीं, आत्म जागृति से होगा।

