(12)The sacred bond of brother and sister

रक्षाबंधन का आध्यात्मिक रहस्य – 12

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भाई-बहन का पवित्र नाता


परिचय: रक्षाबंधन – केवल एक पर्व नहीं

रक्षाबंधन केवल एक धागा नहीं है।
यह वह क्षण है, जब आत्मा को पवित्रता के सूत्र में बाँधा जाता है।
यह पर्व भारत में हजारों वर्षों से मनाया जाता रहा है। लेकिन क्या यह केवल एक मौसमी त्यौहार है?

हम तीज, झूला जैसे त्यौहारों को मौसमी कहते हैं – सावन आता है और चला जाता है।
तो क्या रक्षाबंधन भी ऐसा ही है?

बिलकुल नहीं।
रक्षाबंधन का मूल स्वरूप एक गहन आध्यात्मिक संदेश लिए हुए है।


आज की मानवता की स्थिति

आज की मानवता
शारीरिक आकर्षण,
विकारों,
और स्वार्थ में उलझ चुकी है।

ऐसे समय में यह राखी हमें याद दिलाती है –
हम आत्माएँ एक ही परमपिता परमात्मा की संतान हैं।
इसलिए हम भाई-बहन हैं।


गोपी वल्लभ शिव – अबलाओं को सबला बनाने वाला

परमात्मा शिव को “गोपी वल्लभ” कहा गया है –
अर्थात वे जो अबलाओं को सबला बनाते हैं।
“वल्लभ” का अर्थ है बाप।
यह वही परमात्मा शिव हैं जो प्रजापिता ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर
रुद्र ज्ञान यज्ञ की स्थापना करते हैं।

वे अबला नारियों को ज्ञान और योग का बल देकर
उन्हें सच्ची ब्राह्मणियाँ बनाते हैं,
जो पवित्रता का मार्ग दुनिया को दिखाती हैं।


शिव शक्ति की स्मृति – भारत की पूजा परंपरा

भारत में जो दुर्गा, काली, शीतला, चंडी आदि की पूजा होती है –
वह वास्तव में उन साधारण स्त्रियों की स्मृति है,
जिन्होंने परमात्मा से शक्तियाँ पाई थीं।
वे कोई देवी नहीं थीं, बल्कि शिव की शक्तियाँ थीं।


रक्षाबंधन की शुरुआत – ब्रह्मा की मुख वंशावली से

यह पर्व लौकिक बहन द्वारा भाई को राखी बाँधने से नहीं आरंभ हुआ।
यह शुरुआत हुई ब्रह्मा की मुख वंशावली से।
ब्रह्मा कुमारियाँ जब पुरुषों को राखी बाँधती हैं,
तो वे यह याद दिलाती हैं:

“हे आत्मा, तू भी मेरी तरह परमात्मा की संतान है।
हम एक ही बाबा के बच्चे हैं।
इसलिए हम भाई-बहन हैं।
चलो इस पवित्र दृष्टि से रहें।”

यही काम विकार पर विजय पाने की अलौकिक युक्ति है।


लौकिक राखी – एक अलौकिक बंधन की स्मृति

आज की दुनिया में राखी केवल धागा, मिठाई और उपहारों तक सीमित हो गई है।
परन्तु इसका मूल रहस्य यह है –
जो आत्मा, दूसरी आत्मा को आत्मा समझकर देखती है,
वह कभी विकार में नहीं जाती।

भाई-बहन के नाते से देखने से ही
आत्मा पवित्र बनती है।
यह विचारधारा ही चेतन गंगा है
जो आज ब्रह्मा कुमारियों के माध्यम से बह रही है।


पवित्रता का संदेश – मुरली संदर्भ

मुरली 14 अगस्त 1998:

“बच्चे, रक्षाबंधन पवित्रता का बंधन है।
तुम आत्माएँ परमात्मा की संतान हो,
इसलिए भाई-बहन हो। इस नाते से पवित्र बनो।”

मुरली 18 अगस्त 2005:

“आज शिव शक्तियाँ दुनिया को पवित्रता की राखी बाँध रही हैं।
यही आत्मा को माया से बचाने की सहज विधि है।”

मुरली 15 अगस्त 2011:

“राखी प्रतिज्ञा का प्रतीक है –
पवित्र रहने की और सबको आत्मिक दृष्टि से देखने की।”


लौकिक और अलौकिक राखी में अंतर

लौकिक राखी अलौकिक राखी (ब्रह्मा कुमारियों में)
बहन मिठाई देती है आत्मा को आत्मिक स्मृति दिलाई जाती है
भाई रक्षा का वचन देता है आत्मा को माया से रक्षा करने का संकल्प मिलता है
शरीर आधारित भावना आत्मा आधारित पवित्र दृष्टिकोण

निष्कर्ष: भाई-बहन का पवित्र नाता – परमात्मा की युक्ति

आज की दुनिया को जो सबसे ज़रूरी संदेश चाहिए –
वह यह है कि हम सभी आत्माएँ परमात्मा की संतान हैं।

इसलिए हम सभी एक-दूसरे के भाई-बहन हैं।
यदि इस दृष्टिकोण से जीवन जिएँ –
तो विकार स्वतः समाप्त हो जाएगा।

यही युक्ति रुद्र ज्ञान यज्ञ से मिली है
और यही आत्माओं को सच्ची राखी बाँधने का मूल कार्य है।

रक्षाबंधन का आध्यात्मिक रहस्य – भाग 12

भाई-बहन का पवित्र नाता


प्रश्न 1: रक्षाबंधन केवल धागा बांधने की रस्म है क्या?
उत्तर: नहीं, यह आत्मा को पवित्रता से बांधने का दिव्य संकल्प है।


प्रश्न 2: क्या रक्षाबंधन केवल एक मौसमी त्यौहार है?
उत्तर: नहीं, यह एक आध्यात्मिक संदेश देता है — हम सभी आत्माएं एक परमपिता की संतान हैं।


प्रश्न 3: आज की मानवता किस भ्रम में उलझी हुई है?
उत्तर: शारीरिक आकर्षण, विकारों और स्वार्थ में।


प्रश्न 4: गोपी वल्लभ किसे कहा जाता है?
उत्तर: परमात्मा शिव को, जो अबलाओं को सबला बनाते हैं।


प्रश्न 5: “अबला” किसे कहा जाता है?
उत्तर: जो खुद को कमजोर समझती है — जिसमें आत्मबल की कमी है।


प्रश्न 6: परमात्मा शिव अबलाओं को क्या बनाते हैं?
उत्तर: शिव शक्तियाँ — जो ज्ञान और योगबल से दुनिया को पवित्रता का मार्ग दिखाती हैं।


प्रश्न 7: भारत की दुर्गा, काली आदि देवियाँ कौन थीं?
उत्तर: वे साधारण स्त्रियाँ थीं जो परमात्मा से शक्ति पाकर पूज्य बनीं।


प्रश्न 8: ब्रह्माकुमारियों में राखी का आरंभ कैसे हुआ?
उत्तर: यह लौकिक बहनों से नहीं, ब्रह्मा की मुख वंशावली से आरंभ हुआ — आत्मा को आत्मा से पवित्र बंधन में बांधने के संकल्प से।


प्रश्न 9: लौकिक और अलौकिक राखी में क्या अंतर है?
उत्तर: लौकिक राखी में मिठाई और वचन होता है, जबकि अलौकिक राखी में आत्मा को माया से बचाने का ज्ञान होता है।


प्रश्न 10: रक्षाबंधन का मुरली आधार क्या है?
उत्तर: मुरली अनुसार, रक्षाबंधन आत्मा को पवित्रता का व्रत दिलाने वाला परमात्म सन्देश है (14 अगस्त 1998, 18 अगस्त 2005, 15 अगस्त 2011)।


प्रश्न 11: अलौकिक राखी का सच्चा उद्देश्य क्या है?
उत्तर: आत्मा को माया से बचाना और आत्मिक दृष्टि से जीवन जीने का संकल्प दिलाना।


प्रश्न 12: परमात्मा ने भाई-बहन के नाते को क्यों महत्व दिया?
उत्तर: ताकि आत्माएं विकारों से बचें और आत्मा को आत्मा समझकर पवित्र दृष्टि रखें।


प्रश्न 13: आज की दुनिया को सबसे ज़रूरी संदेश क्या है?
उत्तर: हम सभी आत्माएं एक ही परमात्मा की संतान हैं — इसलिए भाई-बहन हैं। यही परमात्म युक्ति है विकारों से मुक्त जीवन की।

Disclaimer:डिस्क्लेमर:

इस वीडियो में प्रस्तुत विचार शुद्ध आध्यात्मिक और ज्ञान आधारित हैं, जो ब्रह्मा कुमारियों के मुरली ज्ञान व आध्यात्मिक शिक्षाओं से प्रेरित हैं। इसका उद्देश्य केवल आत्मिक जागृति व पवित्रता का संदेश देना है, न कि किसी धर्म, परंपरा या संस्था की आलोचना करना। सभी दर्शकों से निवेदन है कि इसे सकारात्मक भाव से ग्रहण करें।

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