(14)”भक्ति की उत्पति धार्मिक संघर्ष और सतयुग की पवित्र दुनिया
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
प्रश्न 1: भक्ति की शुरुआत कब और क्यों हुई?
उत्तर:भक्ति की शुरुआत द्वापर युग में हुई, जब धर्म में गिरावट आने लगी और मनुष्य दुख, भय और भ्रम से घिर गया। तब मन में यह भावना उत्पन्न हुई कि कोई ईश्वर आकर न्याय करे, सहारा दे और मार्गदर्शन करे। इसी से मूर्तिपूजा, प्रार्थनाएं और मंदिरों का प्रारंभ हुआ।
प्रश्न 2: विभिन्न धर्मों और पंथों की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर:दुखों और वैचारिक भ्रम के समय अनेक ऋषियों और विचारकों ने अलग-अलग मत दिए। वेदों के बाद वेदांग बने, फिर अनेक धर्म, संप्रदाय, पंथ उत्पन्न हुए। हर व्यक्ति ने अपने विचार जोड़कर एक नया मत बना लिया, जिससे धार्मिक विविधता और भ्रम दोनों बढ़े।
प्रश्न 3: कल्पवृक्ष क्या है और यह सभी धर्मों को कैसे दर्शाता है?
उत्तर:कल्पवृक्ष एक आध्यात्मिक चित्र है, जिसमें संसार की सम्पूर्ण धार्मिक यात्रा दिखाई जाती है। इसकी जड़ में सतयुग का एक ही धर्म — देवता धर्म है। द्वापर से शाखाएँ निकलती हैं — जैसे इब्राहिम, बुद्ध, क्राइस्ट, मोहम्मद, गुरु नानक आदि — जिनसे और भी अनेक शाखाएं उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 4: धर्मों के बीच संघर्ष क्यों हुए?
उत्तर:धर्मों की स्थापना तो शांति के लिए हुई थी, लेकिन समय के साथ उनके अनुयायियों में अहंकार, वैचारिक टकराव और सत्ता की इच्छा आ गई। इससे धार्मिक संघर्ष, विवाद और युद्ध हुए। इतिहास गवाह है कि सबसे अधिक युद्ध धर्म के नाम पर ही हुए हैं।
प्रश्न 5: रावण राज्य को आज के समय से कैसे जोड़ा जा सकता है?
उत्तर:आज का समय ‘रावण राज्य’ कहलाता है क्योंकि इसमें दसों दिशाओं में भ्रम, भक्ति, संघर्ष और दुःख फैला हुआ है। यहाँ ज्ञान का अभाव है, सत्य की पहचान नहीं है, और लोग आस्था में उलझे हुए हैं लेकिन समाधान नहीं पा रहे हैं।
प्रश्न 6: राम राज्य क्या है और यह कब होता है?
उत्तर:राम राज्य, यानी सतयुग — वह समय है जब धरती पर एक धर्म, एक भाषा, एक जाति और एक संप्रदाय होता है। वहाँ कोई युद्ध, कोई बीमारी, कोई दुख नहीं होता। शांति, पवित्रता और प्रेम से युक्त जीवन होता है। यह स्वर्ग इसी धरती पर होता है।
प्रश्न 7: क्या भगवान को आज पुकारने की आवश्यकता है?
उत्तर:सवाल यह नहीं कि भगवान को पुकारना चाहिए या नहीं, बल्कि यह है कि हम उन्हें पहचानें। क्योंकि आज वही समय है जब ईश्वर स्वयं अवतरित होकर ज्ञान दे रहे हैं — जिससे रावण राज्य समाप्त हो और राम राज्य की स्थापना हो।
प्रश्न 8: हम राम राज्य की स्थापना में क्या योगदान दे सकते हैं?
उत्तर:सत्य ज्ञान को पहचानकर, पवित्र जीवन जीकर और दूसरों तक यह ज्ञान पहुँचाकर हम राम राज्य की नींव रख सकते हैं। यह आंतरिक परिवर्तन से शुरू होता है — जब आत्मा स्वयं पवित्र और शांत होती है, तब ही बाह्य दुनिया भी वैसी बनने लगती है।
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